शिक्षक का महत्व, उत्तरदायित्व एवं गुण
अध्यापक के उत्तरदायित्व
(1) शिक्षण-
शिक्षण ही शिक्षक का पहला उत्तरदायित्व है अत: उसे अपने शिक्षण को रूचिकर बनाने के लिए पूरे प्रयास करना चाहिए। उसे अपने विषय में पारंगत होना चाहिए साथ ही शिक्षण की नवीनतम् विधियों की जानकारी होनी चाहिए
(2) नियोजन-
कुशल नियोजन ही सफलता की कुंजी है। शिक्षण कार्य को भली-भाँति सम्पादित करने के लिए शिक्षक को सत्र के प्रारम्भ में ही पूरे वर्ष में किए जाने वाले कार्यों की योजना बना लेनी चाहिए जिससे कि समय और शक्ति का अपव्यय न हो।
(3) चरित्र का निर्माण करना-
शिक्षण के साथ-साथ विद्यार्थियों के चरित्र का निर्माण करना, उनमें अच्छे नैतिक मूल्यों और आदर्शों का विकास करना भी शिक्षक का उत्तरदायित्व है जिससे कि वे अच्छाई और बुराई के अन्तर को समझ सकें तथा सही दिशा में अपना विकास कर सकें।
(4) संगठन कुशलता-
अध्यापक को पाठ्यक्रम सम्बन्धी तथा पाठ्य-सहगामी विभिन्न क्रियाओं का संचालन करना होता है। अतः संगठन कार्य में कुशल होना भी उसके लिए आवश्यक है।
(5) विद्यार्थियों को निर्देशनव परामर्श देना-
विद्यार्थियों की रुचियों, उनकी योग्यताओं और क्षमताओं को समझते हुए उन्हें विषयों के चुनाव में सहायता देना, उनकी समस्याओं का पता लगाकर उनके समाधान हेतु आवश्यक परामर्श देना भी शिक्षक का उत्तदायित्व है।
(6) नेतृत्व का प्रशिक्षण देना-
हमारे देश में जनतांत्रिक शासन व्यवस्था है और जनतन्त्र की सफलता कुशल नेताओं पर निर्भर करती है। अत: बालकों को नेतृत्व का प्रशिक्षण देना भी शिक्षक का कार्य है जिससे कि विद्यार्थी शिक्षा समाप्त करने के बाद सभी क्षेत्रों में कुशल- नेतृत्व का कार्य कर सकें।
(7) सामाजिक कुशलता का विकास करना-
शिक्षक का एक और उत्तरदायित्व है बालकों में सामाजिक कुशलता एवं सामाजिक गुणों का विकास करना जिससे कि शिक्षा समाप्त करने के बाद बालक जब वास्तविक जीवन में प्रवेश करें तो समाज के साथ समायोजन कर सकें और सफल सामाजिक जीवन व्यतीत कर सकें।
(8) मूल्यांकन करना-
मूल्यांकन में भी शिक्षक को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ती है। अध्यापक का कार्य केवल शिक्षण करना ही नहीं है, वरन् इसके साथ-साथ विद्यार्थियों के ज्ञान, उनके कार्यों तथा उनकी प्रगति की जाँच करने के लिए उनकी परीक्षा लेना भी उसका एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व है। मूल्यांकन में शिक्षक को बिना किसी भेद-भाव के निष्पक्ष होकर अपने कार्य को सम्पन्न करना चाहिए।
अध्यापक के गुण
यह स्पष्ट करने के बाद कि शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक का पद बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। शिक्षा के क्षेत्र में दिन प्रतिदिन परिवर्तन हो रहा है और उसमें नवीनता लाने का प्रयास जारी है ऐसी स्थिति में शिक्षक को अपने अन्दर निपुणता लाना आवश्यक होता है क्यों कि वह विद्यालय में अहम भूमिका का निर्वाह करता है। शिक्षक की नियुक्ति करते समय उसके निम्नलिखित गुणों पर ध्यान देना आवश्यक है जो इस प्रकार है-
अध्यापक के गुणों को हम तीनों भागों में विभक्त कर सकते हैं-
(i) वैयक्तिक गुण-
1. आकर्षक व्यक्तित्व- आकर्षक व्यक्तित्व सभी पर अपना प्रभाव छोड़ता है। व्यक्तित्व का तात्पर्य शारीरिक सुन्दरता से नहीं है वरन् इसका तात्पर्य है अध्यापक का आत्मविश्वास, उसकी वेश-भूषा, उस की चाल-ढाल एवं बातचीत करने का ढंग उचित तथा उसकी गरिमा के अनुकूल होना चाहिए।
2. उत्तम स्वास्थ्य- प्लेटो के अनुसार स्वस्थ मस्तिष्क के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है। यदि शिक्षक स्वस्थ नहीं होगा तो वह अपने उत्तरदायित्व को भली प्रकार से सम्पन्न नहीं कर सकेगा। अत: शिक्षक का अपने स्वास्थ्य का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए।
3. चरित्रवान होना- प्रायः बच्चों के लिए उनके शिक्षक ही आदर्श होते हैं और वो अपने को शिक्षक के अनुसार ही ढालने का प्रयास करते हैं। अत: शिक्षक को अपने विद्यार्थियों के समक्ष अच्छे चरित्र का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
4. नेतृत्व की क्षमता- एक आदर्श अध्यापक में लोकतन्त्रीय नेतृत्व की क्षमता होना भी आवश्यक है। नेतृत्व का अर्थ केवल राजनीतिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है। उसका तात्पर्य है कि शिक्षक में वह क्षमता होनी चाहिए जिससे कि वह विभिन्न शैक्षिक तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं का ठीक सेसंचालन कर सकें। अपने विद्यार्थियों का मार्ग-दर्शन कर सकें तथा उनको सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित कर सके।
5. संवेगात्मक संतुलन- शिक्षक में संवेगात्मक स्थिरता एवं संतुलन का होना भी बहुत आवश्यक है तभी वह अपने विद्यार्थियों का भावात्मक विकास कर सकेगा तथा उनके संवेगों को सुन्दर और कलात्मक ढंग से विकसित कर सकेगा।
6. सहानुभूति की भावना- शिक्षक में प्रेम और सहानुभूति की भावना होना भी परम् आवश्यक है। विद्यार्थियों के प्रति प्रेम और मित्रता पूर्ण व्यवहार से वह उनके आदर और विश्वास को जीत सकता है और उनका नेतृत्व करने में सफल हो सकता है।
7. निष्पक्षता- अध्यापक को जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेद-भाव न करके सभी विद्यार्थियों के प्रति समान व्यवहार रखना चाहिए। कभी-कभी शिक्षक कुछ बालकों को अधिक चाहने लगते हैं, फल यह होता है कि कक्षा के अन्य बालक अपने को उपेक्षित समझने लगते हैं और उनमें शिक्षा के प्रति अरुचि उत्पन्न हो जाती है।
(ii) व्यावसायिक गुण-
1.विषय में पारंगत- शिक्षक का अपने विषय पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए विषय का गम्भीर अध्ययन होने पर ही वह विषय से सम्बन्धिता विद्यार्थियों की शंकाओं का, उनकी समस्याओं का निराकरण करने में सफल हो सकेगा तथा उनका विश्वास प्राप्त कर सकेगा। विषय के ज्ञान के अभाव में कोई भी व्यक्ति एक सफल शिक्षक नहीं बन सकता।
2. शिक्षण-कला का ज्ञान- केवल विषय में पारंगत होने से ही कोई व्यक्ति एक अच्छा शिक्षक नहीं बन जाता वरन् इसके लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक में अपने ज्ञान को रुचिकर और प्रभावशली ढंग से विद्यार्थियों तक पहुँचाने की कला हो।
3. व्यावसायिक प्रशिक्षण- एक कुशल शिक्षक के लिए यह भी आवश्यक है कि उसको शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले नवीनतम् प्रयोगों और तकनीकों की जानकारी हो। आज का युग विज्ञान का युग है। शिक्षा के क्षेत्र में भी निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं। शिक्षक को शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी होना चाहिए। शिक्षक को नवीनतम् शिक्षण-विधियों का जान होना भी आवश्यक है जिससे कि वह विद्यार्थियों की रुचि और योग्यता के अनुरूप शिक्षण-विधि का प्रयोग करके उनका अधिक विकास कर सके।
4. बाल मनोविज्ञान का ज्ञाता- शिक्षक के लिए केवल अपने विषय का पर्याप्त ज्ञान होना ही आवश्यक नहीं है वरन् साथ ही साथ उसे शिक्षा मनोविज्ञान तथा बाल-मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का भी ज्ञान होना आवश्यक है जिससे कि वह बालकों की रुचियों, उनकी योग्यताओं और क्षमताओं के अनुसार ही उन्हें शिक्षित करके उनका अधिक से अधिक विकास कर सके।
5. प्रयोग एवं अनुसंधान में रुचि- आज शिक्षा में प्रयोग और अनुसंधान का महत्व दिन प्रतिदिनि बढ़ता ही जा रहा है। विदेशों में तो अनुसंधान ने शिक्षा की काया ही पलट दी है। हमारे देश में भी तेजी से अनुसंधान हो रहे हैं। यदि शिक्षक को अपने अपने शिक्षण में सुधार लाना है तो उसे नित्य-प्रति नए एवं अनुसंधान करते रहना चाहिए तभी वह अपने शिक्षण को प्रभावशाली बनाने में सफल हो सकेगा।
6. पाठ्यसहगामी क्रियाओं में रुचि- आज की शिक्षा केवल कक्षा की चहारदीवारी तक ही सीमित नहीं है वरन् उसमें पाठ्य सहगामी क्रियाओं का भी महत्वपूर्ण स्थान है। विद्यार्थियों के सर्वागीण एवं बहुमुखी विकास के लिए यह आवश्यक है कि पढ़ाई के साथ-साथ पाठ्य सहगामी क्रियाओं जैसे- खेल-कूल, स्काउटिंग/गाइडिंग एन.सी.सी., एन.एस.एस., वाद-विवाद प्रतियोगिताओं तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों आदि में भी हिस्सा ले। अत: शिक्षक को इन क्रियाओं में भी रूचिय लेना चाहिए तथा उनके संगठन एवं संचालन में अपना पूरा योगदान देना चाहिए।
(iii) सामाजिक गुण-
1. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में जन्म लेता है तथा समाज में ही अपना जीवन व्यतीत करता है। अत: शिक्षक में सामाजिक गुण जैसे- प्रेम, दया, सहयोग, सहानुभूति, सहनशीलता, धैर्य आदि का होना आवश्यक है। इससे उसमें सामाजिक समझदारी का विकास होगा तथा कक्षा और समाज दोनों में सामंजस्य स्थापित करने में सफल हो सकेगा।
2. समाज की संस्कृति तथा मूल्यों में आस्था- शिक्षक समाज की संस्कृति, उसकेमूल्यों और आदर्शों में आस्था रखने वाला व्यक्ति होना चाहिए तभी वह विद्यार्थियों को भी समाज की सांस्कृतिक परम्पराओं और मूल्यों से परिचित कर सकेगा साथ ही उन्हें संस्कृति के संरक्षण तथा उसमें विकास एवं प्रसार के लिए प्रेरित कर सकेगा।
3. दूसरों के साथ अच्छे सम्बन्ध- शिक्षक को विद्यार्थियों, सहयोगी शिक्षकों, प्रधानाध्यापक, अभिभावक तथा अन्य कर्मचारी वर्ग के अच्छे सम्बन्ध बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील होना एवं मार्ग-दर्शक का होना चाहिए। अपने सहयोगी शिक्षकों के प्रति उसका व्यवहार संतुलित एवं प्रेम चाहिए। विद्यार्थियों के प्रति उसका व्यवहार एक तानाशाह का नहीं वरन् एक मित्र, सुधारक, निर्देशक और सहयोगपूर्ण होना चाहिए। प्रधानाध्यापक विद्यालय का मुखिया होता है अत: शिक्षक को उसे पूरा आदर और सम्मान देना चाहिए तथा किसी भी दलबन्दी से अपने को अलग रखना चाहिए।
एक आदर्श शिक्षक के गुणों का उल्लेख करने के पश्चात् हम इसी निष्कर्ष पर आते है कि शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। उसके कन्धों पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व होता है। बालकों के चरित्र को बनाने या बिगड़ने में शिक्षक की अहम् भूमिका होती है।
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