मानसिक मंदता से सम्बद्ध समस्याएँ (problems related to mental relardations)
मानसिक मंद व्यक्तियों में बुद्धि और अनुकूली व्यवहार विकृति के अतिरिक्त चिकित्सापरक समस्याएँ अथवा कई संबद्ध विकलांगताएँ होती हैं। ये सम्बद्ध विकलांगताएँ निम्नलिखित हैं:
जन्मजात दोष (Congenital Defects) :
(i) माइक्रोसीफैली (Microcephally) – यह एक विकास से जुड़ी विकृति है जिससे पीड़ित बच्चे का सिर औसत बच्चों से छोटा (परिधि 17″-19″ ) होता है। गर्भावस्था में एक्स-रे कराने, विकिरण प्रभावित होने एवं आनुवंशिक कारणों से गर्भस्थ शिशु माइक्रोसीफैली के शिकार होते हैं। पीड़ित बच्चा न केवल मानसिक मंदता का शिकार होता है बल्कि सामान्य रूप से उनमें श्रवण अक्षमता, कम बुद्धिलब्धि और तपेदिक के लक्षण भी दिखने लगते हैं।
उचित औषधि सेवन से इसका इलाज किया जा सकता है। ऐसे बच्चों के गामक क्षमता दुरुस्त करने के लिए फिजीयोथीरैपी, वाक् क्षमता सुदृढ़ करने के लिए स्पीच थीरैपी और शैक्षिक उन्नति के लिए व्यक्तिनिष्ठ शैक्षिक योजना काफी लाभदायक साबित होता है।
(ii) हाइड्रोसीफैली (Hydrocephally) – बालक के सिर में जब अथवा तरल द्रव के जमा हो जाने से उसका सिर बड़ा हो जाता है। इस अवस्था को ‘हाइड्रोसीफैली’ कहा जाता है। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती माता के संक्रमित हो जाने के कारण ऐसा होता है। पीड़ित बच्चे मानसिक मंदताग्रस्त तो होते ही हैं साथ ही उनके मेरुदण्डीय द्विशाखी विदीर्ण तालू आदि सरीखे सम्बद्ध विकृतियों से ग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है।
ऑपरेशन के जरिए मस्तिष्क में उपस्थित अतिरिक्त जल को निकाल दिया जाता है। पीड़ित बच्चों के गामक समस्याओं को दूर करने के लिए फिजियोथीरैपी करवाना जरूरी होता है। शैक्षिक उन्नति के लिए व्यक्तिनिष्ठ शैक्षिक कार्यक्रम काफी कारगर साबित होता है।
उपापचय संबंधी विकार (Metabolic Disorder) –
(i) फेनाइलकीटोन्यूरिया (Phenylketonuria) – यह एक उपापचय संबंधी जन्मजात आनुवंशिक विकार है। जन्म के वक्त पीड़ित बच्चे सामान्य बच्चों की तरह होते हैं 1 लेकिन कालांतर में 5 प्रतिशत फेनाइलएलानिन युक्त प्रोटीन के सेवन से ऐसे बच्चे बौद्धिक अक्षमताग्रस्त होने लगते हैं। वे स्वलीनता एवं उच्च रक्तचापग्रस्त बच्चों जैसा व्यवहार करने लग जाते हैं। उनका शारीरिक विकास सामान्य होता है लेकिन कुछ बच्चों के सिर की परिधि सामान्य बच्चों से कम होता है। अधिक मात्रा में फेनाएलएलानिन की मौजूदगी के कारण उनका पेशाब दुर्गंधयुक्त हो जाता है।
फेनाइलकीटोन्यूरिया का रोक-थाम काफी आसान है। इसके लिए नवजात शिशु का समय-समय पर उपापचय संबंधित स्क्रीनिंग कर उन्हें फेनाइलएलानिनरहित भोज्य पदार्थ दिया जाता है जन्म के 15 सप्ताह के भीतर ही रोक-थाम के उपायों पर ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि बच्चे मानसिक मंदताग्रस्त होने से बच सकें।
ऐसे बच्चों को दैनिक जीवन से जुड़ी गतिविधियों का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। व्यक्तिनिष्ठ शैक्षिक कार्यक्रम भी उनके लिए लाभदायक सिद्ध होता है। शैक्षिक समृद्धीकरण कार्यक्रम से भी उन्हें फायदा मिलता है।
(ii) गैलेक्टोसेमिया (Galactosemia) – यह उपापचय संबंधित एक आनुवंशिक रोग है। पीड़ित नवजात शिशु दूध में उपस्थित शर्करा का पाचन नहीं कर पाता है । स्तनपान के तुरंत बाद ऐसे बच्चे कै-दस्त करने लग जाते हैं। उनका यकृत भी इससे प्रभावित होता है कालांतर में बच्चा पीलिया से ग्रस्त हो जाता है। बच्चों के आँखों के लेन्स में गड़बड़ी आ जाने के कारण मोतियाबिंद तथा अन्य दृष्टि अक्षमताएँ विकसित हो जाती हैं। मस्तिष्क भी इससे अछूता नहीं रहता है। मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो जाने से बालक मानसिक मंदताग्रस्त हो जाता है यदि इसका ईलाज न किया जाए तो बालक की मृत्यु तक हो जाने की आशंका बनी रहती है।
गैलेक्टोसेमिया से बचाव के लिए एहतियात के तौर पर कुछ ठोस कदम उठाना चाहिए। जन्म के तुरंत बाद नवजात शिशु का चपापचीय स्क्रीनिंग कराना चाहिए। रोग के पता चलने पर शिशु को दूध की बजाए उसके समतुल्य कोई वैकल्पिक आहार देना चाहिए दृष्टि अक्षमता दूर करने के लिए चिकित्सक की सहायता लेनी चाहिए। फिर भी अगर बालक मानसिक मंदता का शिकार हो ही जाए तो ऐसी स्थिति में उन्हें विशिट स्कूल में नामांकन करवाना चाहिए ताकि उनका शैक्षिक समृद्धि हो सके ।
(iii) पोषण संबंधी अन्य विकार- गर्भावस्था के पहले तीन महीनों के दौरान और जन्म से लेकर 2 वर्ष का होने तक मस्तिष्क का सक्रिय विकास होता है। कुपोषण, विशेषतया जन्म के पहले दो वर्षों के दौरान मानसिक विकास में गंभीर रूप से क्षति हो सकती है। जन्म के छः माह के बाद बच्चे को केवल माँ के दूध पर रखना और संपूरक आहार न देने से प्रोटीन, वसा, विटामिन और खनिजों की मात्रा कम पहुँचती है जिससे मानसिक मंदन बढ़ता है। कुछ मानसिक मंद बच्चों को चबाने और निगलने की असमर्थता के कारण आहार की अपेक्षित मात्रा नहीं दी जाती है तथा इससे उनके में विलम्ब होता है। कुछ सामान्य पोषण संबंधी विकार कैलोरी और प्रोटीन कम देने से ‘ए’ और ‘बी’ ग्रुप से संबंधित विटामिन की कमी से होते हैं।
क्रेटिनिज्म (Cretinism) – शायरॉयड नामक नलिकाविहीन ग्रंथि से थाइरॉक्सिन हार्मोन का स्राव होता है जो बालक के शारीरिक वृद्धि को नियंत्रित एवं नियमित करती है । लेकिन जब थायरॉयड ग्रंथि से कम मात्रा में थाइरॉक्सिन का स्राव होने लगे तो बालक क्रेटिनिज्म का शिकार हो जाता हैं। यह एक आनुवंशिक रोग है। 6000 बच्चों में 1 बच्चे में इस रोग के होने की संभावना रहती है। पीड़ित बालक का शारीरिक विकास देर से होता है। वह हमेशा सुस्त रहता है। जीभ मुँह से बाहर निकल आता है। पेट बाहर की ओर निकल आता है साँस लेने में कठिनाई होती है। ऐसे बच्चे खर्राटे के साथ साँस लेते हैं पाँच वर्ष की आयु तक उन्हें उठने-बैठने, चलने-फिरने में काफी कठिनाई होती है। बोली का देर से विकास होता है। कुछ बच्चे 7-8 वर्ष की अवस्था तक बोल नहीं पाते हैं। ऐसे बच्चों में यौवनारंभ देर से होता है अधिकांश ऐसे बच्चे नपुंसक हो जाते हैं। मांसपेशियों के कमजोर होने से उन्हें चलने-फिरने में असंतुलन का सामना करना पड़ता है। अंततः वे श्रवण अक्षमता और मानसिक मंदताग्रस्त भी हो जाते हैं।
ऐसे बच्चे को आजीवन औषधि का सेवन करना पड़ता है। यदि पहचान के बाद शुरूआती दौर में ही उनका इलाज किया जाए तो वे सामान्य भी हो सकते हैं। पीड़ित बच्चों को दैनिक क्रियाकलाप करने का प्रशिक्षण और स्पीच थीरैपी दिया जाता है।
ध्यान अल्पता अतिगतिशीलता सिन्ड्रॉम (Attention Deficiency Hyperactivity Syndrom ( ADHD) – किसी कारणवश मस्तिष्क क्षति के फलस्वरूप बच्चे मानसिक मंदता के साथ-साथ ध्यान अल्पता और अतिगतिशीलता से पीड़ित हो जाते हैं। मस्तिष्कक्षति, प्रसवपूर्ण, प्रसवकालीन अथवा प्रसवोत्तर काल में हो सकता है। यह वातावरणीय कारणों से होता है। पीड़ित बच्चे का शारीरिक विकास तो सामान्य ढंग से होता है। लेकिन उनमें ध्यान संबंधी दोष भी दृष्टिगोचर होते हैं। वे असंतुलित मिजाज के होते हैं एवं उनकी सहनशीलता स्तर काफी कम होता है। अतिगतिशीलता से बचाव के लिए ड्रग-थीरैपी जरूरी होता है। इसके अलावा इस दिशा में बिहैवियर मोडिफिकेशन, योग, म्यूजिक सरीखे नवीन थीरैपी भी कारगर होता है।
प्रमस्तिष्क घात (Cerebral Palsy) – इसे मस्तिष्क लकवा भी कहते हैं। यह एक विकास संबंधी विकृति है जो प्रसवपूर्ण अवस्था में रूबेला व हर्पीस के संक्रमण से, औषधि सेवन, रक्त असंयुक्तता मधुगेह, मिरगी और उच्च रक्तचाप आदि के कारण; प्रसवकालीन अवस्था में ऑक्सीजन की कमी, असामयिक जन्म, वजन की कमी, गर्भस्थ शिशु के गर्दन में नाभिनाल के लिपट जाने, मस्तिष्कीय रक्तस्राव के कारण और प्रसवोत्तर अवस्था में उच्च रक्तचाप, पीलिया, मेनिनजाइटिस, इनसेफलाइटिस, मलेरिया, तपेदिक, मस्तिष्क क्षतिग्रस्तता, की कमी, लेड प्वाइजनिंग, मस्तिष्क ट्यूमर आदि के कारण होता है। पीड़ित बच्चे चलन निःशक्तता के शिकार हो जाते हैं। बच्चे के शरीर के आधे भाग प्रभावित होने की अवस्था को हेमिप्लाजिया कहते हैं। एक हाथ अथवा पैर प्रभावित होने की अवस्था को मोनोप्लाजिया दोनों पैर के लकवाग्रस्त होने की अवस्था को डाइप्लेजिया एवं सभी हाथ-पैर के लकवाग्रस्त होने की अवस्था को क्वाडरीप्लाजिया कहते हैं।
मिरगी नियंत्रित करने के लिए औषधि सेवन करना जरूरी होता है चलन निःशक्तता के उपचार के लिए फिजियोथीरैपी और वाक् एवं भाषा अक्षमता के लिए स्पीचथीरैपी कारगर सिद्ध होता है। चूँकि 50 प्रतिशत से अधिक सेरेब्रल पाल्सी पीड़ित बच्चे मानसिक मंदता से भी ग्रसित होते हैं। इसलिए उन्हें विशिष्ट शिक्षा देना जरूरी होता है।
स्वलीनता (Autism)- प्रसवपूर्ण, प्रसवकालीन और प्रसवोत्तर काल में बालक में मस्तिष्क विकृति, फिनाइलकीटोन्यूरिया, रूबेला संक्रमण, जैव-रासायनिक असंतुलन एवं आनुवंशिक कारणों से बच्चे स्वलीनता के शिकार हो जाते हैं। पीड़ित बच्चा समाज से कटा रहने लगता है । वह हम उम्र साथियों से समन्वय भी स्थापित करने में असमर्थ होता है यहाँ तक कि वह किसी से आँख से आँख नहीं मिला पाता है । वाक् एवं भाषा का विकास देर से होता है। स्वयं सहायता कौशल का अभाव, पेशाब-पाखाना करने की समस्या से भी वह ग्रस्त रहता है। दस हजार बच्चों में तीन या चार बच्चों के स्वलीनताग्रस्त होने की संभावना होती है।
स्वलीनताग्रस्त बच्चों के व्यवहार संबंधी विकृति को दूर करने के लिए बिहैवियर मोडिफिकेशन तकनीक का प्रयोग किया जाता है। ध्यान केन्द्रित करने के लिए योग काफी लाभदायक होता है जबकि पीड़ित बालकों की शैक्षिक समस्याओं को दूर करने के लिए विशिष्ट शिक्षा एवं व्यक्तिनिष्ठ शैक्षिक कार्यक्रम काफी मददगार साबित होता है।
मिरगी (Epilepsy) – लगभग चालीस प्रतिशत मानसिक मंद व्यक्तियों में किसी न किसी प्रकार का आक्षेप होता है। आक्षेप में मस्तिष्क में रक्तस्राव के स्वरूप के आधार पर उनकी आवृत्ति, अवधि और प्रकार में भिन्नता होती है। मामूली या मध्यम रूप से मानसिक मंद व्यक्तियों की अपेक्षा गंभीर मानसिक व्यक्तियों को अत्यधिक दौरे पड़ते हैं।
दौरा (फिट्स) पड़ने पर उसका ब्योरेवार विवरण, उसका स्वरूप, अवधि, आवृत्ति, प्रकार, दौरे कब से पड़ने शुरू हुए, दौरे पड़ने से पूर्व के लक्षण और दौरे नियंत्रित करने के बाद के लक्षण अवश्य लिख लेने चाहिए। रोगी को उपर्युक्त सभी सूचनाओं के साथ तत्काल डॉक्टर के पास भेजा जाना चाहिए और डॉक्टर द्वारा दी गई आक्षेपरोधी औषधि प्रयोग की सलाह का सही रूप में पालन करना चाहिए। माता-पिता को यह बात अवश्य समझा दी जानी चाहिए कि दवाई लेने से दौरे को रोका जा सकता है और इसके लिए नियमित औषधि लेना आवश्यक होगा तथा व्यक्ति को समय-समय पर डॉक्टरी जाँच के लिए अवश्य भेजना चाहिए। दौरा पड़ने से सीखने की प्रक्रिया को क्षति पहुँचती है और इसलिए मानसिक मंद व्यक्ति को विभिन्न कार्यों या कौशल में प्रशिक्षण देते समय, प्रशिक्षण प्रक्रिया के दौरान दौरे पड़ने की बात अवश्य नोट करनी चाहिए । जब किसी मानसिक मंद व्यक्ति, जिसे मिरगी के दौरे पड़ते हों, को किसी नौकरी, जो उसे दी जा रही है, के स्वरूप पर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए। कार्य के ऐसे स्थानों, जहाँ मशीन या काटने के औजारों का प्रयोग किया जाता हो या पानी अथवा ऊँचे भवनों से संबंधित कार्य उसे नहीं दिए जाने चाहिए।
अतिगतिशीलता (Hyperactivity) : (i) कुछ मानसिक मंद बच्चे अतिगतिशीलता के शिकार होते हैं। यह सामान्यतया मस्तिष्क के रक्तस्राव वाले बच्चों में होता है।
(ii) अतिगतिशील बच्चों में अत्यधिक सक्रिय, अन्यमनस्क, कम ध्यान देना, बेचैनी, अन्तर्बाधा का अभाव और कम संगठित तथा अल्प समन्वित गतिविधि आदि लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं उनके आक्रामक रुख से उनकी मनःस्थिति में परिवर्तन होता रहता है जिससे सीखने की प्रक्रिया में गंभीर रूप से बाधा पहुँचती है। औषधि सेवन के जरिए इसे ठीक किया जा सकता है।
बहुविकलांगता (Multiple disability) – शारीरिक, श्रवण, दृश्य और मानसिक विकलांगताओं में से एक से अधिक विकलांगताग्रस्त व्यक्ति को बहुविकलांग कहते हैं। बहुविकलांगताग्रस्त बच्चे एकल विकलांगताग्रस्त बच्चे की अपेक्षा अत्यन्त धीमी गति से बढ़ते, सीखते या विकसित होते हैं। उन्हें जीवित रहने के लिए आवश्यक प्रारंभिक कौशल सिखाने के लिए भी गहन प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
मानसिक मंदता के साथ प्रमस्तिष्कीय अंगघात, बधिरांधता आदि बहुविकलांगता के सर्वाधिक प्रचलित उदाहरण हैं। इनमें बौद्धिक कार्य करने में अत्यधिक कमी, प्रेरक विकास, वाणी और भाषा विकास, दृष्य एवं श्रवण कार्य आदि शामिल हैं। बहुविकलांगता के कारण वे अन्य बच्चे से अलग दिखलाई पड़ते हैं और उनके व्यवहार में विसामान्यता दिखलाई पड़ती है।
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