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बाधिता, असमर्थता एवं अपंगता में सम्बन्ध

बाधिता, असमर्थता एवं अपंगता में सम्बन्ध
बाधिता, असमर्थता एवं अपंगता में सम्बन्ध

बाधिता, असमर्थता एवं अपंगता में सम्बन्ध (Relationship between Imparimment, Disability and Handicap)

बाधिता- बाधिता, असमर्थता एवं अपंगता के संप्रत्ययों से अभिप्राय व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक क्रियाओं का ह्रास या हानि होना अथवा उन्हें सीमाओं में बाँधना होता है। ये तीनों शब्द आपस में सम्बन्धित लेकिन अर्थों में एक दूसरे से भिन्न हैं। बाधित क अर्थ है इन्द्रिय अंगों का ह्रास अथवा हानि होना। यह शरीर संरचना सम्बन्धी ह्रास, कमी अथवा विषमता है जो जन्म के समय अथवा जन्म पश्चात् भी हो सकती है। बाधिता शरीर के सम्बन्धित भाग अथवा अंग की सामान्य क्रियाओं को प्रभावित करती है। यथा- कान के पर्दे में छेद होने के कारण बालक सुनने में बाधा अनुभव करता है। पोलियो ग्रसित बालक को गत्यात्मक क्रियाओं में बाधा अनुभव होती है। इसी प्रकार कम दृष्टि अथवा रेटीना पर विकृत प्रतिबिम्ब बनने के कारण बालक को पढ़ने में कठिनाई होती है। मानसिक मन्दन के कारण बालक सामान्य बालकों की तरह संज्ञानात्मक सूचनाओं को ग्रहण करने में बाधित होता है। बाधिता आंशिक अथवा हो सकती है। इसलिए बाधित व्यक्ति की गत्यात्मक, इन्द्रिय सम्बन्धी व मानसिक क्रियाओं को आंशिक अथवा पूर्ण रूप से बाधित करती है।

असमर्थता अथवा अशक्तता- व्यक्ति की शारीरिक अथवा मानसिक क्रियाओं को करने की अक्षमता की प्रकट करती है। यह आंशिक अथवा सम्पूर्ण, अस्थायी अथवा स्थायी हो सकती है। अशक्तता का सम्बन्ध क्रियाओं के क्रियात्मक पक्ष से होता है जैसे यह निश्चित किया जाए कि दृष्टि बाधित बालक पढ़ने-लिखने सम्बन्धी क्रियाएँ करने में कितना सक्षम है। असमर्थता का निरूपण शारीरिक क्रियाओं को करने की सामर्थ्य से लगाया जाता है। आंशिक रूप से बाधित बालक सम्पूर्ण श्रवण बाधित बच्चों की अपेक्षा सुनने की क्रिया में अधिक सक्षम होते हैं। सम्पूर्ण लकवा ग्रसित व्यक्ति की अपेक्षा भुजा-विकल व्यक्ति अधिक गत्यात्मक क्रियाएँ कर सकता है। स्थायी असमर्थता व्यक्ति की क्रियाओं के व्यावहारिक पक्ष को बिल्कुल समाप्त कर देती है। दूसरे शब्दों में स्थायी असमर्थता में व्यक्ति के प्रभावित अंग अथवा भाग से सम्बन्धित क्रियाओं का पूर्ण रूप से नष्ट हो जाना होता है। अस्थायी आंशिक असमर्थता वह दशा होती है जब व्यक्ति चिकित्सीय उपचार लेते हैं तथा बाधिता उपचार से सुधार की अवस्था तक पहुँच जाती है। इसलिए कहा जाता है कि बाधिता सदैव असमर्थता उत्पन्न नहीं करती।

अपंगता (Handicap)- यह बाधिता से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित प्रत्यय है जो सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक रूप से व्यक्ति के व्यावहारिक लक्षणों को सीमांकित करती है। श्रवण बाधिता व्यक्ति को सुनने में अपंग बनाती हैं, दृष्टि बाधिता देखने में तथा अस्थि बाधित गत्यात्मक क्रियाएँ करने में अपंगता पैदा करती है। अपंगता का अर्थ बाधिता पर अवरोधों द्वारा सीमा बाँधना होता है, जो या तो बालक पर थोप दी गई होती है अथवा बालक ने उसे स्वीकार कर लिया होता है। अपंगता ऐसा अवरोध है जो बालक की दिनचर्या के कार्यकलापों की क्षमता को बुरी तरह से प्रभावित करता है। अपंगता से अभिप्राय व्यक्ति की समस्याओं से है जो वह अपनी बाधिता एवं असमर्थता के कारण अपनी दैनिक सामाजिक अन्तःक्रियाएँ करता हुआ अनुभव करता है।

बाधिता से अशक्तता अथवा असमर्थता विकसित होती है तथा अशक्तता से अपंगता । अपंगता एक क्षेत्र में असमर्थता के रूप में लक्षित हो सकती लेकिन किसी दूसरी स्थिति में नहीं। यथा – कृत्रिम भुजा अथवा टाँग वाला बालक के मैदान में अपंग हो सकता है लेकिन शिक्षण-कक्ष में नहीं। यदि व्यक्ति शारीरिक दोषों के कारण शैक्षणिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ है तो उसे बाधित कहा जाता है। बाधित को कम करके असमर्थता को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है जैसे कृत्रिम अंग, सहायक उपकरण, श्रवण-यंत्र तथा दूसरी चिकित्सीय सहायता आदि। अतः कहा जा सकता है कि-

(i) बाधिता का सम्बन्ध शारीरिक संरचना (structure) एवं संगठन से होता है,.

(ii) असमर्थता क्रियात्मक (functional) रूप में होती है तथा

(iii) अपंगता अधिक सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक रूप में होती है।

बाधिता, असमर्थता एवं अपंगता के सम्बन्ध को निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट किया गया है-

बाधिता की प्रकृति (Impairment Type)

बाधिता

(Impairment)

असमर्थता

 

(Disability)

अपंगता

 

(Handicap)

1. श्रवण कान की संरचना का क्षतिग्रस्त होना (जैसे कान के परदे में छेद होना) ध्वनि ग्रहण करने में कठिनाई। सामान्य सुनने में असमर्थता।
2. चाक्षुष कम दृष्टि अथवा रेटिना पर प्रतिबिम्ब ठीक न बनना अथवा आँख की माँस-पेशियों में अवयव स्थापन आदि। पढ़ने-लिखने में समस्या होना। प्रतिबिम्ब ठीक न बन पाने के कारण पढ़ने-लिखने के कार्य में असमर्थ होना।
3. अस्थि बाजू, पैर, टांग अथवा शरीर के किसी अंग में विकलांगता। गत्यात्मक क्रियाओं कठिनाई, सामंजस्य एवं गत्यात्मक क्रियाओं के नियंत्रण में कमी। दैहिक आवश्यकताओं सम्बन्धी क्रियाओं का सीमित होना, सम्बन्धित अंग सम्बन्धी क्रियाएँ करने में कठिनाई ।
4. मानसिक बौद्धिक योग्यता में कमी अथवा क्षति होना। मानसिक योग्यता सम्बन्धी क्रियाएँ करने में अक्षमता। मानसिक योग्यता से जुड़ी क्रियाएँ अति सीमित, सामान्य बालकों की तुलना में निम्न स्तरीय क्रियाएँ, अमूर्त चिन्तन का अभाव।
5. अधिगम असमर्थी मस्तिष्कीय कोषों तथा नाड़ी तंत्र का सुचारू रूप से कार्य न करना। लिखने एवं समझने में विकार, बोलने एव पढ़ने में असमर्थता। अन्तः क्रियात्मक सम्बन्धों का सीमित होना, कल्पना से जुड़े प्रत्ययों को समझने में कठिनाई, पढ़ने व लिखने में अति सीमित कौशल।

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