समन्वित विद्यालय में सहायक सेवाओं की अनिवार्यता (Compulsion of Support Services in Integrated School)
समन्वित विद्यालय में सहायक सेवाओं की अनिवार्यता- ऐतिहासिक दृष्टिकोण से विकलांगताग्रस्त बच्चे विशेष विद्यालय कहलाने वाले अलग विद्यालयों में शिक्षा पाते रहे हैं। अलग-अलग निःशक्तताओं के लिए अलग-अलग विद्यालय खोले गए। लेकिन हाल के वर्षों में इस बात की वकालत की गई है कि ऐसे बच्चों को मुख्यधारा के विद्यालयों में, उनके गैर-विकलांग हमजोलियों की संगति में शिक्षा दी जाए। ऐसे विद्यालयों को आमतौर पर समन्वित विद्यालय कहा जाता है। एक सामान्य विद्यालय को समन्वित विद्यालय के रूप में विकसित करने के लिए कई तरह की सहायक सेवाओं की उपलब्धता अनिवार्य है। ये सहायक सेवाएँ हैं-
(i) संसाधन कक्ष (ii) संसाधन शिक्षक (iii) अन्य विशेषज्ञ (iv) सामान्य शिक्षक (v) परामर्शदाता (vi) समवय समूह (vii) परिवार (viii) समुदाय।
(i) संसाधन कक्ष (Resource Room) – समन्वित शिक्षा की परिधि में आने वाले विद्यालयों में संसाधन कक्ष का होना जरूरी होता है। एक संसाधन कक्ष वैसी विशिष्ट कक्षा है जिसमें विशेष आवश्यकता वाले बच्चे पूरी स्कूल अवधि के दौरान आधा से अधिक समय गुजारते हों। संसाधन शिक्षक संसाधन कक्ष के प्रभारी होते हैं। संसाधन कक्ष शिक्षण-अधिगम संबंधी विशिष्ट अनुदेशन सामग्रियों से युक्त होता है। इसके अलावा वहीं प्रत्यक्षीकृत प्रशिक्षण भाषाई विकास गत्यात्मक प्रशिक्षण सामाजिक एवं संवेगात्मक विकास और कौशल विकास के लिए वैयक्तिक अनुदेशन सामग्रियाँ भी होती हैं। संसाधन कक्ष का आकार थोड़ा छोटा होता है। अमूमन ऐसे एक कक्ष में एक शिक्षक और कम से कम 20 विद्यार्थियों के बैठने की व्यवस्था होती है। एक सत्र में या तो वैयक्तिक तौर पर एक विद्यार्थी अथवा 5 विद्यार्थियों के एक समूह को शिक्षण-अधिगम का प्रशिक्षण दिया जाता है। सत्र की अवधि सामान्यतः 20 से 45 मिनट की होती है । नियमित वर्ग कक्ष की तुलना में एक संसाधन कक्ष को ज्यादा आरामदायक होना चाहिए संसाधन कक्ष का क्षेत्रफल करीब 150 वर्ग फुट होना चाहिए। उसमें प्रकाश और वायु के आवागमन की उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए।
(ii) संसाधन शिक्षक (Resource Teacher)- संसाधन शिक्षक को ‘स्रोत शिक्षक’ अथवा ‘विशेष शिक्षक’ के नाम से भी जाना जाता है। ये विशेष शिक्षा में विशिष्ट योग्यताधारी वैसे शिक्षक हैं जो किसी भी माहौल में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को पढ़ा सकते हैं । ये दृष्टि, श्रवण, चलन एवं मानसिक निःशक्तता के क्षेत्र में डिग्री (विशेष शिक्षा), डिप्लोमा (विशेष शिक्षा) अथवा बी. एड. (विशेष शिक्षा) योग्यताधारी होने के साथ-साथ भारतीय पुनर्वास परिषद् से पंजीकृत विशेष अध्यापक भी होते हैं। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के शिक्षण-अधिगम एवं सामान्य शिक्षकों में ऐसे बच्चों के प्रति संवेदनशील करने के लिए संसाधन शिक्षकों को जिला संसाधन समूह के रूप में नियुक्त किया जाता है। इनकी तैनाती भ्रमणशील शिक्षक अथवा परिभ्रामी शिक्षक के रूप में प्रखंड संसाधन केन्द्र अथवा संकुल संसाधन केन्द्र पर भी की जाती रही है।
(iii) अन्य विशेषज्ञ (Other Specialists) – समेकित शिक्षण पद्धति के अंतर्गत विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को मुख्यधारा के स्कूलों के अलावा अन्य विशेषज्ञों की भूमिका अहम होती है। ये तकनीकी विशेषज्ञ हैं।
1. वाक् एवं भाषा विशेषज्ञ ( Speech-Language Pathologist)- वाक् एवं भाषा विशेषज्ञ संचार संबंधी समस्याग्रस्त बच्चे का परीक्षण निदान और उपचार करते हैं। इसके लिए सबसे पहले ऐसे बच्चों की पहचान और परीक्षण किया जाता है। तत्पश्चात् प्राप्त जानकारी के आधार पर पीड़ित बच्चे के लिए एक चिकित्सा कार्यक्रम की रूपरेखा बनाकर उसे कार्यान्वित करता है। साथ ही इसके लिए स्कूल शिक्षक को भी सुझाव देता है।
2. कान विशेषज्ञ (Audiologist)- श्रवण संबंधी समस्याओं का परीक्षण एवं निदान करता है और श्रवण सम्बन्धी समस्याओं से ग्रसित व्यक्तियों को सुनने में सहायक यंत्र या प्रशिक्षण के तरीकों की सलाह देता है।
3. दन्त विशेषज्ञ (Dentist)- दाँतों एवं मसूड़ों का परीक्षण, निदान एवं उपचार करता है।
4. तंत्रिका विशेषज्ञ (Neurologist)- न्यूरोलॉजिस्ट मस्तिष्क एवं केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र के विकारों का परीक्षण, निदान एवं उपचार करता है ।
5. पोषण विशेषज्ञ (Nutritionist)- किसी व्यक्ति की भोजन की आदतों प उसकी खुराक का मूल्यांकन करता है। यह विशेषज्ञ सामान्य एवं औषधीय पोषण सम्बन्ध सलाह प्रस्तुत करता है और विशेष आहार वाले विशेष साधनों एवं तकनीकों के बारे में जानकारी प्रदान करता है ताकि किसी व्यक्ति के स्वयं आहार करने के कौशलों को बढ़ाया जा सके।
6. व्यावसायिक चिकित्सक (Occupational Therapist)- उन बच्चों को मूल्यांकन एवं उपचार करता है जिनकी स्वयं की सहायता करने, खेलने या पूर्व स्कूल गतिविधियों को करने में कठिनाई होती है। उसका उद्देश्य इन क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता एवं स्वतंत्रता को बढ़ावा देना होता है।
7. नेत्र विशेषज्ञ (Ophthalmologist)- नेत्र विशेषज्ञ दृष्टि संबंधी रोगों, क्षतियों वा जन्मजात विकारों का परीक्षण एवम् निदान करता है।
8. चश्मा फरोश (Optician) – दृष्टि में सुधार करने वाले लेन्सों एवं चश्में के फ्रेम को मिलाकर चश्मा बनाता है। वह फ्रेम के चुनाव हेतु सलाह प्रदान कर सकता है और नेत्र विशेषज्ञ द्वारा सलाह दिए गए लेन्स को उसमें लगाता है। चश्मा फरोश कांटेक्ट लेन्स भी लगाता है।
9. आँखों की जाँच करने वाला व्यक्ति (Optometrist) – बच्चे के दृष्टिजन्य विकास का मूल्याकंन करने हेतु एवं दृष्टिजन्य समस्याओं एवं आँखों के रोग के बारे में निर्णय करने के लिए आँखों एवं सम्बन्धित संरचनाओं की जाँच करता है।
10. अस्थि विशेषज्ञ (Orthopaedist) – वह डॉक्टर जो मांसपेशियों, जोड़ों एवं हड्डियों के रोगों एवं क्षतियों का प्रतिदीप्त परीक्षण व निदान करता है।
11. नाक, कान एवं गला विशेषज्ञ (ENT Specialist) – नाक, कान एवं गला विशेषज्ञ कान, नाक एवं गले के विकारों का परीक्षण व निदान उपचार करता है। इन विशेषज्ञ को आटोलेरिजोलोजिस्ट भी कहते हैं।
12. शारीरिक या भौतिक चिकित्सक (Physio-Therapist) – शारीरिक चिकित्सा के कार्यक्रम का मूल्यांकन करता है और उसकी योजना बनाता है। वह ऐसी गतिविधियों को करने की सलाह प्रदान करता है जिनसे मूल रूप से सकल गति प्रेरक कौशलों से सम्बन्धित, घूमने, बैठने एवं स्थितियों को बदलने जैसे कौशलों में सुधार हो सके। वह चलने-फिरने में सहायता स्वरूप उपयोग किए जाने वाले यंत्रों, जैसे पहिए वाली कुर्सियाँ, बँधनी एवं बैसाखी के उपयोग करने में भी व्यक्तियों को सहायता प्रदान करता है।
13. मनोचिकित्सक (Psychiatrist) – मनोवैज्ञानिक, संवेदनात्मक, आचरण संबंधी एवं विकासात्मक मनोचिकित्सक या अंगों से सम्बन्धित समस्याओं का परीक्षण व निदान करता है। मनोचिकित्सक किसी प्रकार के औषधीकरण की सलाह प्रदान करने हेतु सक्षम होते हैं।
14. सामाजिक कार्यकर्ता (Social Worker) – ऐसे व्यक्तियों एवं उनके परिवारों को सेवाएँ उपलब्ध कराता है जो अनेक प्रकार की संवेदनात्मक या सामाजिक समस्याओं से प्रभावित हों। इसमें किसी व्यक्ति या परिवार को रूप से सलाह देना, किसी अन्य से सलाह दिलवाना; एवं पूर्वस्कूल कार्यक्रमों, स्कूलों, क्लीनिकों या अन्य सामाजिक संस्थाओं से सलाह करना शामिल होता है।
(iv) सामान्य शिक्षक (Regular Teacher) – समन्वित शिक्षा प्रणाली में सामान्य शिक्षकों की भूमिका अहम होती है, क्योंकि शिक्षण-अधिगम के दौरान एक शिक्षक दार्शनिक, मार्गदर्शक और मित्र की भूमिका निभाता है। वह न केवल वर्ग कक्ष प्रबंधक की भूमिका भी निभाता है। जिस तरह से कारखानों और औद्योगिक इकाईयों के प्रबंधकों की अकुशलता से उक्त इकाईयों को भारी आर्थिक क्षति होती है उसी तरह शिक्षकों की अकुशलता से बच्चों को कई तरह की व्यवहारगत क्षतियाँ होती हैं। इसलिए एक शिक्षक को हर कौशल में निपुण होना जरूरी है तभी विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को स्कूलों में समन्वित कर सकेंगे।
(v) परामर्शदाता (Counsellors) – प्रत्येक समन्वित विद्यालय में एक परामर्शदाता का होना जरूरी होता है। परामर्शदाता अमूमन मनोविज्ञान एवं परामर्श मनोविज्ञान के ज्ञाता होते हैं। इन दोनों क्षेत्रों में वे प्रशिक्षित एवं अनुभवी भी होते हैं
(vi) समवय समूह की भूमिका (Role of Peer Group) – विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को मुख्यधारा में लाने के लिए समवय समूह की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। समवय समूह के सदस्य उनके लिए सहायकों के रूप में कार्य करते हैं। इसका दोहरा लाभ है। इससे उनमें विशेष समस्या वाले व्यक्तियों के प्रति एक सकारात्मक रवैये का विकास करने में मदद मिलती है, और उपयुक्त आचरणों को करने हेतु प्रोत्साहन प्राप्त होता है।
(vii) परिवार की भूमिका (Role of Family) – विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को समेकित शिक्षा में शामिल करने में उक्त बच्चे के परिवार और खासकर माता-पिता की भूमिका अहम होती है, क्योंकि माता-पिता/अभिभावक बच्चों के प्रथम शिक्षक होते हैं। उनको अपने बच्चे की आवश्कताओं, क्षमताओं एवं सीमाओं के बारे में अधिक जानकारी होती है। अपने बच्चों के समस्याओं के समाधान में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसलिए समेकित शिक्षण पद्धति में माता-पिता अथवा परिवार निम्नलिखित भूमिका निभा सकते हैं।
(viii) समुदाय की भूमिका ( Role of Community) – विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को मुख्यधारा के स्कूलों में समन्वय करने में समुदाय भी अहम भूमिका निभाती है।
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