समावेशी शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Defini tions of Inclusive edcuation)
समावेशी शिक्षा से आशय उस शिक्षा से है, जिसके द्वारा विशिष्ट क्षमता वाले बालक (मन्दबुद्धि) अन्धे बालक, बहरे बालक, प्रतिभाशाली बालक आदि) को ज्ञान प्रदान किया जाता है। समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत सर्वप्रथम छात्रों के बौद्धिक स्तर की जाँच की जाती है, उसके तुरन्त बाद उन्हें दी जाने वाली शिक्षा का स्तर निर्धारित किया जाता है। समावेशी शिक्षा, शिक्षा की एक ऐसी प्रणाली है जिसके द्वारा विशिष्ट क्षमता वाले बालकों के लिए ही शिक्षा निर्धारित की जाती है। दूसरे शब्दों में समावेशी शिक्षा का अर्थ उस शिक्षा से है जिसके द्वारा विशिष्ट क्षमता वाले बालक जैसे- मन्दबुद्धि वाले बालक, अन्धे बालक, बहरे बालक तथा प्रतिभाशाली बालक आदि को ज्ञान प्रदान किया जाता है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार समावेशी शिक्षा का अर्थ है कि सभी सीखने वाले, बालक हो या युवा, चाहे अशक्त हो अथवा नहीं, सामान्य विद्यालय पूर्व व्यवस्था विद्यालय एवं सामुदायिक शिक्षा केन्द्रों में उपयुक्त सहयोगी सेवाओं के साथ आपस में मिलजुल कर सीखने में समर्थ हो। उन्होंने आगे स्पष्ट किया है कि सामावेशन का अर्थ है। कि मुख्यधारा के विद्यालयों में विशिष्ट आवश्यकताओं वाले बच्चों का अपने अन्य सहपाठियों के साथ शिक्षा प्राप्त करना यह एक ऐसी प्रक्रिया है लेकिन शायद असम्भव नहीं है। सच तो यह है कि जब हम विभिन्नताओं को सहेजते हुए उच्च लक्ष्य की प्राप्ति की अपेक्षा रखते हैं तो स्वाभाविक है कि क्रियान्वयन की प्रणाली जटिल एवं कठोर भी होगी तथा उसमें अपेक्षाकृत अधिक समस्याओं का सामना भी करना पड़ेगा। यूनेस्को (UNESCO) ने अपने अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षिक सम्मेलन जेनेवा 25-28, 2008 में (International conference on education Geneva Nov, 25-28, 2008) समावेशी शिक्षा पर दस प्रश्न अतिसंवेदनशील एवं सीमान्त समूह सम्बन्धी वार्ता में स्पष्ट किया है कि “समावेशी शिक्षा अधिगमकर्त्ताओं के गुणात्मक शिक्षा के मौलिक अधिकार पर आधारित है जो आधारभूत शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति’ करके जीवन को समृद्ध बनाती है। अति संवेदनशील एवं सीमान्त समूहों को दृष्टिगत रखते हुए यह प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता का पूर्ण विकास करती है। समावेशी गुणात्मक शिक्षा का परम ध्येय सभी प्रकार के विभेदीकरण को समाप्त करके सामाजिक संगठन का पोषण करना है। विभिन्न विद्वानों ने समावेशी शिक्षा की परिभाषा विभिन्न प्रकार से दिये हैं कुछ विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाएँ निम्नलिखित है-
(I) स्टीफन तथा ब्लेकहर्ट (Stephen and Blackhurt) – के अनुसार शिक्षा की मुख्य धारा का अर्थ बाधित (पूर्ण रूप से अपंग नहीं) बालकों की सामान्य कक्षाओं में शिक्षण व्यवस्था करना है। यह समान अवसर मनोवैज्ञानिक सोच पर आधारित है जो व्यक्तिगत योजना के द्वारा उपयुक्त सामाजिक मानकीयकरण और अधिगम को बढ़ावा देती है।
(Mainstreaming is the education of Mild handicapped children in the regular clasroom. It is based on the philosophy of equal opportunity’ that implemented through individual planning to promote appropriate learning achievement and social normalization – Stephen and Blackhurt.)
(2) (Umatuli) के अनुसार- समावेशी एक प्रक्रिया है, जिसमें प्रत्येक विद्यालय बालकों की दैहिक, संवेगात्मक तथा सीखने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने संसाधनों का विस्तार करता है ।
(Inclusive is a process by which a school expands it resources to meet the learning needs, physical needs and emotional needs of all children.) -Uma tuli
(3) यरशेल (Yershel) के अनुसार- समावेशी शिक्षा के कुछ कारण योग्यता, लिंग, प्रजाति, जाति, भाषा चिन्ता स्तर, सामाजिक आर्थिक स्तर, विकलांगता लिंग व्यवहार या धर्म से सम्बन्धित होते हैं।
समावेशी शिक्षा की विशेषताएँ (Features characteristics of Inclusive Education)
समावेशी शिक्षा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) विभिन्नता की पहचान (Identification of Diversity)- समावेशी शिक्षा बालकों की विभिन्नताओं जैसे- शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक आदि की पहचान करती है, उन्हें स्वीकार करती है तथा उसके बाद आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संज्ञानात्मक, संवेगात्मक तथा सृजनात्मक विकास के अवसर प्रदान करती है।
(2) शिक्षा एक मौलिक अधिकार (Education as a basic Right) – शिक्षा के मौलिक अधिकार को सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक रूप में अपनाना समावेशी शिक्षा की एक प्रमुख विशेषता है। शिक्षा की अन्य पद्धतियों में भी बालकों के शिक्षा के अधिकार की भावना सबसे अधिक इस शिक्षा पद्धति में निहित है। जिसके अन्तर्गत कोई भी विद्यालय किसी भी निम्न दैहिक, मानसिक एवं आर्थिक स्तर के बच्चे को नामांकन लेने से रोक नहीं सकता है।
(3) सभी विद्यालयों में सब के लिए शिक्षा (Education for all Schools) – समावेशी शिक्षा में सामान्य तथा बाधित बच्चों के लिए सभी विद्यालयों में सभी के लिए शिक्षा के प्रावधान रखे गए हैं।
(4) विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं के बालकों की स्वीकृति तथा समर्थन (Aceptance and support to children having special education needs)- इस शिक्षा पद्धति में विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं के बालकों जैसे- दैहिक रूप से बाधित, श्रवण, दृष्टि एवं वाणी रूप से बाधित, मानसिक असमर्थ, आदि सभी बालकों को उनकी वर्त्तमान शारीरिक अथवा मानसिक अवस्था में स्वीकार करती है, उन्हें समर्थन देती है तथा उन्हें अच्छे विकास के अवसर प्रदान करती है।
(5) सामान्य तथा विशिष्ट शिक्षा में निकट संबंध (Closer link between General and special Education)- इस शिक्षा पद्धति में सामान्य तथा विशिष्ट शिक्षा, औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा, विद्यालय एवं समाज में निकटतम संबंध होता है ताकि सभी बालकों को अधिकतम लाभ मिल सके।
(6) विद्यालय की जिम्मेदारी (Responsibility of School) – शिक्षण की यह पद्धति या प्रणाली इस बात को स्पष्ट मान्यता देती है कि सभी बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष रूप से विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं के लिए समुचित प्रावधान का आयोजन तथा करना राष्ट्रीयता विद्यालय शिक्षा संस्थान की जिम्मेदारी है।
(7) प्राथमिक शिक्षण तथा पाठ्यक्रम अत्यन्त लचीला (Primary teaching and curriculum more flexible) – प्राथमिक शिक्षण के लिए नेतृत्व एवं संसाधनों का प्रावधान होना समावेशी शिक्षा की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, जिसके कारण सामान्य अनुभव तथा विशिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है। शिक्षण पद्धति के इस गुण के कारण अनेकों विद्यार्थियों की वैयक्तिक आवश्यकताओं तथा परिवेश की विभिन्न परिस्थितियों यहाँ तक की स्थानीय समुदाय तथा समाज की भी आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जा सकता है।
(8) अभिभावक एवं सामाज की भागीदारी (Parrental and community Involvement)- समावेशी शिक्षा एक संयुक्त प्रयास है जिसमें माता-पिता तथा अभिभावकों को विशेष रूप से तथा समाज को सामान्य रूप से सम्मिलित किया जाता है चाहे वह कार्य नियंत्रण वितरण तथा उत्तरदायित्व निर्वहन का हो।
(9) सतत् एवं सहायक (Continuous and supportive) – यह एक विशेष मान्यता है कि इस पद्धति द्वारा बालकों की आवश्यकताओं अधिगम के तरीकों तथा गुणों की विविधता की बहुलता को ध्यान रखते हुए बालकों के कौशल एवं क्षमता वृद्धि करने के लिए निरंतर एवं सहयोगी प्रक्रिया है।
(10) मजबूत नीतियाँ एवं नियोजन (Strong Struteges and planning)- इस शिक्षा पद्धति के अन्तर्गत शिक्षा के अधिकार का रक्षा करने एवं उसे लागू करने के लिए राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर नीतियाँ मजबूत एवं स्पष्ट है तथा उनका नियोजन भी सफलता से किया जा रहा है। यही कारण है कि पिछले एक दशक में बालकों की शिक्षा विशेष रूप से असमर्थ एवं सामाजिक हाशिये पर स्थित बच्चों के प्रति विद्यालयों, अध्यापकों एवं समाज की अभिवृत्ति में पर्याप्त परिवर्तन आया है।
(11) विविधता कोई समस्या नहीं (Diversity is not a plight)- बालकों की संख्या के साथ उनकी बढ़ती हुई विभिन्नताएँ इस पद्धति में कोई समस्या नहीं समझी जाती है। भाषा, धर्म, लिंग, संस्कृति, सामाजिक शारीरिक एवं मानसिक गुणों की विविधता बालकों को एक दूसरे से सीखने सामाजिक रूप से संबंधित होने तथा समायोजित होने के अवसर प्रदान करती है।
(12) विद्यालय का प्रयत्न एवं अभियोजन (Adaptation on the part of the School)- समावेशी शिक्षा पद्धति या प्रणाली में विद्यालय बालकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए प्रयत्न एवं अभियोजन करता है। इस पद्धति में सामान्य शिक्षणपद्ध की तरह बालकों को विद्यालय के साथ अभियोजन नहीं करना पड़ता है।
समावेशी शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Inclusive Education)
समावेशी शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) सभी के लिए शिक्षा (Education for all) – समावेशी शिक्षा समाज के सभी वर्गों के लिए है। इसका प्रमुख उद्देश्य सभी वर्गों के बालकों को शिक्षा देना है। इसकी नीतियों एवं कार्यक्रमों को इस प्रकार लचीला बनाया गया है कि कोई भी बालक शिक्षा से वंचित न रहे। बालक शिक्षा कायक्रम का केन्द्र है इसलिए इसके विकास एवं शिक्षा के लिए समावेशी बचनबद्ध है।
(2) समाज का अंग (Part of Society) – अशक्त एवं बाधित बालकों को समाज के महत्त्वपूर्ण अंग के रूप में स्वीकार करना तथा उन्हें अपनी क्षमताओं के विकास के अवसर प्रदान करना इस प्रणाली के महत्त्वपूर्ण उद्देश्य हैं। अशक्त व्यक्तियों को समाज की सहानुभूति एवं दया नहीं बल्कि उनका समर्थन एवं स्वीकृति चाहिए। उन्हें भीख अथवा दान नहीं, बल्कि काम एवं सम्मान चाहिए, ठीक समाज के दूसरे व्यक्तियों की तरह, क्योंकि वे भी दूसरों की तरह उसी समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। समाज में ऐसी जागृति लाना समावेशी शिक्षा के उद्देश्य हैं।
(3) सामाजिक चेतना का उद्गम (Origin of Social Consiousness)- समावेशी शिक्षा के व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ सामाजिक चेतना का भी विकास होता है। अधिकारों की रक्षा की चेतना, समता एवं मातृभाव की चेतना, बालकों के पालन-पोषण तथा उनकी शिक्षा के महत्त्व की चेतना, उनकी शारीरिक एवं मानसिक सामर्थ्य या क्षमताओं की चेतना आदि संबंधी ज्ञान शिक्षा के माध्यम से ही होता है।
(4) अधिकारों की रक्षा (Protection of Rights) – शिक्षा का अधिकार मूलभूत अधिकारों में से एक है। यह अधिकार समानता के अधिकार से सम्बन्धित है। जब प्रजातान्त्रिक गणराज्य में सभी व्यक्ति समान है तो शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार भी समतावादी धारणा का समर्थन करता है। सभी को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकर समान ही हैं। समावेशी शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तियों के शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार की रक्षा करना भी है। इसलिए इसकी पाठ्यचर्या में वांछित परिवर्तन करने की भी सिफारिश की गई है ताकि सभी को शिक्षा प्राप्ति का अधिकार प्राप्त हो सके।
(5) संवैधानिक उत्तरदायित्वों का निवर्हन (Fulfilling the constitution Responsibility)- भारत के संविधान में विभिन्न धाराओं एवं संशोधनों के द्वारा भारतीय नागरिकों के लिए ठगों से शिक्षा के अधिकार का प्रतिपादन किया गया है। इन धाराओं में विशेष सन्दर्भ शिक्षा को सार्वभौमिक बनाना तथा विशिष्ट लक्षणों के समूहों के शिक्षा तथा विकास के अवसरों तथा अधिकारों की रक्षा करना है।
(6) शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार (Improvement in the Quality of Education) – जीवन में उन्नति एवं समृद्धि के लिए केवल शिक्षा प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं होता, परन्तु शिक्षा का दूसरी आवश्यकताओं के अनुरूप होना भी आवश्यक होता है शिक्षा का रूप ऐसा हो जिसमें बालकों की सक्रिय भागीदार निश्चित की जा सके तथा वे अपने अनुभवों से सीखें तथा आगे बढ़े। यह तभी सम्भव हो सकता है जब पाठ्यक्रम पर्याप्त रूप से लचीला रखा जाए। समावेशी शिक्षा में ये गुण विद्यमान हैं इसलिए गुणवत्ता सुधार का उद्देश्य इसका एक ठोस आधार भी है। यही कारण है कि शिक्षाविद इस शिक्षा पद्धति को गुणात्मक ‘समावेशी शिक्षा के नाम से सम्बोधित करते हैं।
7. मातृभाव की भावना का विकास (Development of Feeling of Brotherhood)- बालकों में सहकारिता, सामाजिक सकारात्मक अन्तः क्रिया, सहयोग, परानुभूति आपसी विश्वास तथा मैत्रीभाव आदि भावनाओं का संचार करना समावेशी शिक्षा के उद्देश्यों में सम्मिलित है। ऐसी भावनाएँ भाईचारे तथा धनात्मक सामाजिक सम्बन्धों का निर्माण करने में सहायक होती हैं। समावेशी शिक्षा सामाजिक असमानता का खण्डन करती है तथा समता एवं प्रजातान्त्रिक सिद्धान्तों के अन्तर्गत सभी बालकों को एक छत के नीचे दूसरे सभी बालकों के साथ एक समान वातावरण में शिक्षा देने का उद्देश्य रखती हैं। ताकि सभी बालक एक दूसरे के साथ मिलकर पढ़ें, शिक्षा ग्रहण करें तथा आगे बढ़ें।
(8) आत्म-विश्वास एवं आत्म-सम्मान की भावना का विकास (Develop- ment of Self-Confidence and Scocial Prestige) – शिक्षा एवं शैक्षिक उपलब्धि आत्म-विश्वास का निर्माण करती हैं। आत्म-विश्वास का पोषण आत्म-प्रतिष्ठा एवं सामाजिक प्रतिष्ठा (Social Prestige) से जुड़कर व्यक्ति के व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन की दिशा-निर्देशित करता है। मनोवैज्ञानिक अध्ययन इन निष्कर्षों की पुष्टि करते हैं। इसलिए आत्म-विश्वास की भावना का विकास करना समावेशी शिक्षा में एक उद्देश्य के रूप में मान्य है। प्रारम्भ से ही प्रत्येक बालक में इस भावना कि वह भी कुछ करने में समर्थ है- का संचार करना आवश्यक होता है।
(9) आशक्तता एवं असामर्थ्य को शक्ति एवं क्षमता में परिणित करना (to Transform Disability and Helplessness into Competence and Potential) – सर्व शिक्षा विस्तार के उद्देश्य की प्राप्ति के अतिरिक्त समावेशी शिक्षा अशक्त एवं असमर्थ बालकों की क्षमताओं का इष्टतम विकास करने उन में सक्षम होने की भावना. का संचार करने का उद्देश्य भी रखती है। लचीले पाठ्यक्रम, उपयुक्त शिक्षण विधियों तथा सहयोगी अधिगम साथी द्वारा अधिगम, तर्क एवं व्याख्या, व्यावहारिक योजना निर्माण, एवं उनका क्रियान्वयन आदि तकनीकों से यह बालकों-विशेष रूप से असमर्थ बालकों को इस भावना का संचार करती है कि ‘वे भी कुछ अच्छा’ करने में समर्थ हैं। यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है जिस पर समावेशी शिक्षा की सम्पूर्ण रणनीति टिकी हुई है।
(10) कौशलों की पहचान (Identification of Skills) – प्रत्येक बालक किसी न किसी रूप से सृजनात्मक एवं विशिष्ट हो सकता है। कोई बालक किसी एक कार्य-क्षेत्र में कुशल है तो कोई दूसरा किसी और कार्य में। शोध अध्ययन स्पष्ट करते हैं कि कला एवं सृजनात्मकता मानसिक- मन्दता के बालकों में भी दृष्टिगोचर होती है। ऐसे बालकों को ‘Savage Genius’ की संज्ञा दी जाती है। यथा: बीथोवन (Beethovan) संसार का एक प्रसिद्ध संगीतकार बहरा एवं गूंगा था। इसी प्रकार अनेक अशक्त बालक किसी न किसी कौशल में प्रवीण होते हैं। अभिप्राय यह है कि आवश्यकता तो केवल इन बालकों के विविध कौशलों को पहचानने, उन्हें सम्भालने तथा पोषित करने की है। इस सन्दर्भ में समावेशी शिक्षा बालकों के विशिष्ट कौशलों को पहचानने, उन्हें पोषित करने के माध्यम से समाज कल्याण का उद्देश्य रखती है।
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