समावेशी शिक्षा में सामान्यीकरण (Normalization)
सामान्यीकरण प्रक्रिया से आशय ऐसी प्रक्रिया से है जिनके द्वारा विशेष तथा अपंग बच्चों की शिक्षा और जीवन जीने के लिए प्रयोग में आने वाले पर्यावरण या वातावरण को सामान्य शिक्षा एवं सामान्य पर्यावरण के तुल्य है। चाहे बालक की अपंगता का रूप और स्तर किसी भी प्रकार का हो । सामान्यीकरण प्रक्रिया का उद्देश्य यह है कि बालक अपनी शिक्षा और जीवन के वातावरण में जहाँ तक सम्भव हों सके सामान्य बच्चे जैसा अनुभव करें।
समावेशी शिक्षा में संस्था रहित शिक्षा (De-Institutionalization)
अपंग, असमर्थ तथा विकलांग बच्चों की अपंगता को प्रदर्शित करते हुए उन अपंग बच्चों की देख-रेख करने और उन्हें शिक्षित करने के नाम पर धचलने वाली संस्थाओं की विचारधारा के दिखावें तथा ढोंग पर रोक लगाने के लिए यह शब्द प्रयोग में लाया गया है। एक तरह से यह शब्द संस्थान सम्बन्धित विचारधारा के विरोध को प्रकट करने वाला संकेतक शब्द है। इस परिभाषित शब्द का आशय अपंग बालकों को संस्थानों से बाहर निकालकर दूसरे वातावरण में उपस्थित करना है। संस्थान रहित शिक्षा की विचारधारा ने ही शिक्षा के क्षेत्र में सामान्यीकरण के आन्दोलन को जन्म दिया है।
समावेशी शिक्षा में न्यूनतम प्रतिबन्धित पर्यावरण एकीकृत (Least Restrictive Environment Integration)
न्यूनतम प्रतिबन्धित पर्यावरण एकीकृत से आशय ऐसे पर्यावरण से है जिसके माध्यम से विशिष्ट तथा अपंग बच्चों के सीखने और जीवन जीने में आये कठिनायें को कम से कम किया जा सके। ऐसा करने के लिए इस प्रकार से बनाना होगा कि वह सामान्य पर्यावरण के समान निर्मित हो जाए।
समावेशी शिक्षा में शिक्षा की मुख्य धारा (Mainstreaming )
शिक्षा की मुख्यधारा को प्रयुक्त करती है जो अपंग बालकों की शिक्षा और आवश्यकताओं से सम्बन्धित हो, जो उन्हें कम सेकम बाधित पर्यावरण में उपलब्ध कराई जा सके। दूसरे शब्दों में शिक्षा की मुख्यधारा का अभिप्राय क्षतियुक्त (जो पूर्ण रूप से अपंग नहीं) बालकों की सामान्य कक्षाओं में शिक्षण व्यवस्था करना। यह समान अवसर मनोवैज्ञानिक सोच पर आधारित है जो व्यक्तिगत योजना के द्वारा उपयुक्त सामान्यीकरण और अधिगम को बढ़ावा देती है।
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