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राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) का मूल्यांकन | Rashtriya Shiksha Niti 1986

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) का मूल्यांकन
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) का मूल्यांकन

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) का मूल्यांकन (Evaluate the National policy of Education 1986)

शिक्षा एक सतत् प्रक्रिया होने के कारण निरंतर विकसित व भिन्नीकृत होती रही है तथा उसका प्रसार क्षेत्र लगातार बढ़ता रहा है। प्रत्येक राष्ट्र अपनी विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान को स्पष्ट करने व कायम रखने, समकालीन चुनौतियों का सामना करने व राष्ट्रीय जीवन के संवर्धन के लिये अपनी विशिष्ट शिक्षा प्रणाली विकसित करता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के भारतीय शिक्षा के इतिहास में 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक महत्त्वपूर्ण कदम का प्रतीत था । इस पर अमल भी होना शुरू हो गया था तथा कई प्रान्तों ने अपने-अपने ढंग से 10+2+3 की शिक्षा संरचना लागू कर दी थी। त्रिभाषा सूत्र लागू कर दिया गया था। कई प्रान्तों में कृषि, व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा, विज्ञान शिक्षा और वैज्ञानिक शोधों के लिये विशेष प्रावधान किये जाने लगे थे। प्रातः सभी प्रान्तों में परीक्षा प्रणाली में सुधार की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। आधुनिकीकरण के नाम पर विज्ञान व गणित की शिक्षा अनिवार्य कर दी गई थी और शैक्षिक अवसरों की समानता के लिये कदम उठाये जाने लगे थे। परंतु 1977 में केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार के बनने पर 10+2+3 शिक्षा संरचना के स्थान पर 8+4+3 शिक्षा संरचना का विचार आया। जिसके परिणामस्वरूप कुछ शिक्षाविदों व सांसदों के सहयोग से तत्कालीन केन्द्रीय शिक्षा मंत्री श्री प्रतापचन्द्र चन्दर नीति 1979 की घोषणा कर दी। इसे अभी लागू भी नहीं किया गया था, कि 1980 में केन्द्र एक नई शिक्षा में पुन: कांग्रेस सत्ता में आ गई व पुनः राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अनुपालन पर जोर दिया। परंतु इसी बीच इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बनने पर, हर क्षेत्र में आन्दोलनकारी कदम उठाने के प्रयास में शिक्षा के पुनर्निरीक्षण व पुनर्गठन प्रक्रिया में तत्कालीन शिक्षा का सर्वेक्षण कराकर इसे शिक्षा की चुनौती नीति सम्बन्धी (Challenge of Education: A Policy Perspective) नाम से अगस्त 1983 में प्रकाशित गया। जिसमें भारतीय शिक्षा की 1951 से 1983 तक की प्रगति यात्रा का सांख्यिकीय विवरण, उसकी उपलब्धियों एवं असफलताओं का यथार्थ चित्रण करते हुये उसके गुण-दोषों का सम्यक् विवेचन किया गया है। सरकार के इस दस्तावेज पर विश्वव्यापी बहस शुरू हुई और सभी प्रान्तों के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से सुझाव प्राप्त हुये । केन्द्रीय सरकार ने इन सुझावों आधार पर एक नई शिक्षा नीति तैयार की और उसे संसद के बजट अधिवेशन, 1986 में प्रस्तुत किया। संसद में प्रस्तुत करने के बाद इसे मई, 1986 में पास कराया गया। इस शिक्षा नीति की घोषणा के कुछ माह बाद इसकी कार्य योजना (Plan of Action) नामक दस्तावेज प्रकाशित किया गया। यह भारत की ऐसी पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति है, जिसमें नीति के साथ उसके कार्यान्वयन की पूरी योजना भी प्रस्तुत की गई है और साथ ही उसके लिये पर्याप्त संसाधन जुटाये गये हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 का दस्तावेज (Format of National Education Policy, 1986)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का दस्तावेज 12 भागों में विभाजित है, जिसका संक्षिप्त वर्णन अग्रवत है-

1. शिक्षा का सार व भूमिका (The Essence and Role of Education)- इस भाग में 1.1 से लेकर 1.5 तक धारायें हैं। इन धाराओं में शिक्षा पर सामान्य कथन करते हुये बताया गया है कि इस नवीन शिक्षा नीति में 1968 की प्रथम राष्ट्रीय नीति का अनुसरण किया गया है इसमें शिक्षा को जीवन से जोड़ने, ग्रामीण क्षेत्र में 90% लोगों को प्राथमिक शिक्षा की उपलब्धता, शिक्षा की 10+2+3 की समान संरचना, उच्च शिक्षा में की गई प्रगति, लोकतंत्र के मार्ग की बाधायें, बेरोजगारी व जनसंख्या की चुनौतियाँ तथा अगले दशक के नये तनावों आदि का वर्णन किया गया है।

2. राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली (National Education System) – शिक्षा की राष्ट्रीय प्रणाली का आशय है-किसी निश्चित स्तर तक जाति, पन्थ, सथान या लिंग के भेदभाव के बिना सभी विद्यार्थियों की एक समान गुणवत्ता वाली शिक्षा तक पहुँच हो । अतः इस भाग में शिक्षा को सभी के लिये सुलभ बनाने हेतु शिक्षा को राष्ट्रीय लक्ष्य मानते हुये इसे एक ऐसा आर्थिक निवेश कहा गया, जो समाज और व्यक्तियों के वर्तमान तथा भविष्य दोनों का निर्माण करता है। यह राष्ट्रीय शिक्षा एक समान शैक्षिक संरचना पर विचार करती है।

3. समानता के लिये शिक्षा (Education for Equality) – नई शिक्षा नीति में वर्तमान समय में पाई जाने वाली शैक्षिक असमानताओं को दूर करने तथा समान अवसरों से वंचित व्यक्तियों की विशिष्ट आवश्यकताओं की ओर ध्यान देकर समान शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया जायेगा। स्त्रियों की स्थिति में आधारभूत परिवर्तन लाने के लिये, स्त्रियों में निरक्षरता को समाप्त करने व प्रारम्भिक शिक्षा तक उनकी पहुँच व शिक्षा प्राप्ति में बाधाओं को हटाने पर विशेष ध्यान दिया जायेगा।

4. विभिन्न स्तरों पर शिक्षा का पुनर्गठन (Reorganization of Education at different Levels)-

(अ) पूर्व बाल्यकाल देखभाल व शिक्षण (Early childhood care and Education-ECCE)–शिक्षा की इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिशु के विकास की सर्वतोन्मुखी प्रकृति को मान्यता दी गई है, अर्थात् आहार, स्वास्थ्य तथा सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, नैतिक व भावनात्मक विकास पर विशेष ध्यान देते हुये समेकित बाल विकास कार्यक्रम चलाया जायेगा, जिसमें पूर्व प्राथमिक शिक्षा को समेकित करते हुये विद्यालयों के स्वास्थ्य कार्यक्रमों को और सुदृढ़ बनाया जायेगा। साथ ही प्राथमिक शिक्षा को भी बालकेन्द्रित बनाते हुये 14 वर्ष के सभी बालकों को विद्यालय भेजने का प्रबंध किया जायेगा। इस काल में औपचारिक विधियों का प्रयोग नहीं किया जायेगा तथा लिखने-पढ़ने तथा गणित के बारे में शिक्षा वहीं दी जायेगी शिशु की देखभाल व पूर्व प्राथमिक शिक्षा में पूर्ण समन्वय रखा जायेगा। इसे एकीकृत बाल विकास सेवा कार्यक्रम से उपयुक्त रूप से समन्वित किया जायेगा।

(ब) प्राथमिक (मौलिक) शिक्षा (Primary (Elementary) Education)- इस शिक्षा नीति में 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के सार्वजनिक नामांकन व नियमित शिक्षा प्राप्ति तथा शिक्षा की गुणवत्ता में पर्याप्त सुधार पर बल दिया जायेगा। इस स्तर पर बालकेन्द्रित व क्रिया आधारित अधिगम प्रक्रिया अपनाई जायेगी। नयी शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा के दो पहलुओं पर बल दिया जायेगा-

(i) सार्विक प्रवेश तथा 14 वर्ष की आयु तक बच्चों की सार्विक शिक्षा (ii) शिक्षा की गुणवत्ता में महत्त्वपूर्ण सुधार।

इस शिक्षा नीति में गति निर्धारित स्कूलों की व्यवस्था करने की बात भी कही गयी है। जहाँ प्राथमिक शिक्षा के विद्यार्थियों को अपनी गति से पढ़ने का अवसर दिया जाएगा तथा उन्हें पूरक उपचारात्मक अनुदेशन दिया जायेगा।

प्राथमिक विद्यालयों में ‘ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड’ अभियान चलाया जायेगा। निरौपचारिक शिक्षा केन्द्रों (NFEC) के अधिगम वातावरण को सुधारने के लिये आधुनिक तकनीकी प्रयुक्त की जाएगी व स्थानीय समुदाय के प्रतिभाशाली व समर्पित युवकों व युवतियों को अनुदेशक नियुक्त किया जायेगा। इस प्रकार औपचारिक व निरौपचारिक शिक्षा की गुणवत्ता में समानता स्थापित करने के उपाय किये जायेंगे। इस प्रकार यह सुनिश्चित किया जायेगा कि सन् 1990 तक 11 वर्ष की आयु के सभी बच्चे कम-से-कम पाँच वर्ष की विद्यालयी शिक्षा या निरौपचारिक शिक्षा प्राप्त कर चुके हों।

(स) माध्यमिक शिक्षा (Secondary Education)- इस राष्ट्रीय नीति में माध्यमिक शिक्षा अपनी विशिष्ट भूमिका में दिखायी देगी। माध्यमिक शिक्षा विद्यार्थियों को विज्ञान, मानविकी तथा सामाजिक विज्ञानों की विभिन्न भूमिकाओं की जानकारी देना शुरू करती है। इस नीति के सुझावों के अनुसार प्रतिभाशाली बच्चों को तीव्र गति से प्रगति करने देने के लिये अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा व उपयुक्त अवसर सुलभ कराने के लिये देश के विभिन्न भागों में एक निश्चित प्रकार के ‘पेस सेटिंग स्कूल’ या ‘गति निर्धारक विद्यालय खोले जायेंगे।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में माध्यमिक शिक्षा के प्रसार व उन्नयन आवश्यकतानुसार देश के विभिन्न भागों में नवोदय विद्यालयों के भी स्थापना की जायेगी ताकि तीव्र गति से विकास करने वाले या विशेष प्रतिभा वाले बच्चों को अवसर प्रदान किये जा सकें।

इस स्तर पर क्रमबद्ध, सुनियोजित तथा लचीले व्यावसायिक कार्यक्रम शुरू किये जायेंगे। विशेष संस्थाओं में व्यावसायिक शिक्षा का प्रबंध किया जायेगा तथा माध्यमिक शिक्षा से अपर्वोचित वर्ग तथा क्षेत्र के लिये व्यापक स्तर पर नये विद्यालय खोले जायेंगे।

5. उच्च शिक्षा (Higher Education) – इस शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा के उन्नयन हेतु छात्रों को प्रवेश परीक्षा द्वारा प्रवेश देने, पाठ्यक्रमों के पुनर्गठन करने, उच्च शिक्षा संस्थानों को साधन उपलब्ध कराने और उनके शिक्षकों के लिये पुनर्बांध कार्यक्रमों की व्यवस्था करने की बात कही गई है।

शिक्षा के समान अवसरों को उपलब्ध कराने की दृष्टि से मुक्त विश्वविद्यालय तथा दूरस्थ शिक्षा प्रणाली को नयी शिक्षा नीति में प्रश्रय दिया जायेगा। विशिष्ट तकनीकी सेवाओं; जैसे- डॉक्टरी, इंजीनियरिंग, विधि तथा ऐसी अन्य सेवाओं में, जहाँ अकादमिक योग्यता आवश्यक है, को छोड़कर अन्य सामान्य सेवाओं के लिये डिग्री की अनिवार्यता समाप्त की जायेगी । शिक्षा नीति में महात्मा गाँधी के शिक्षा सम्बन्धी क्रांतिकारी विचारों के अनुरूप ग्रामीण विश्वविद्यालयों को विकसित किया जायेगा।

6. तकनीकी व प्रबंध शिक्षा (Technical and Management Education)— नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तकनीकी व प्रबंध शिक्षा हेतु अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (AICTE) एवं राज्यों के तकनीकी शिक्षा बोर्डों को सुदृढ़ करने, कुछ अच्छे तकनीकी एवं प्रबंध शिक्षा संस्थानों को स्वायत्तता प्रदान करने, तकनीकी शिक्षा संस्थाओं में अन्तर्सम्बन्ध बढ़ाने और इस क्षेत्र में सतत् शिक्षा की व्यवस्था करने की बात कही गयी है । इसके लिए अग्र कार्य किये जायेंगे-

(i) बालकों के लिए इस प्रकार की पाठ्यवस्तु का निर्माण किया जायेगा, जिससे वे सुन्दरता, समायोजन तथा परिष्कार आदि के प्रति संवेदनशील बन सकें।

(ii) शिक्षा द्वारा छात्रों के जीवन से धार्मिक कट्टरता, अंध विश्वास, हिंसा, असहिष्णुता तथा भाग्यवाद आदि बुराइयों को दूर कर उनमें हो रहे मूल्यों के ह्रास को रोकने के लिए उन्हें जीवन के शाश्वत् मूल्यों से अवगत कराया जायेगा।

(iii) तकनीकी तथा प्रबंध शिक्षा की धारायें अलग-अलग होने पर भी इनके पारस्परिक सम्बन्धों को देखते हुए सदी के अन्त तक प्रस्तावित कल्पना के अनुसार इनका पुनर्गठन करना आवश्यक होगा ।

(iv) मानव शक्ति सम्बन्धी सूचनाओं को विकसित करने के क्रम में हाल ही में स्थापित टैक्नीकल मैन पावर इन्फार्मेशन सिस्टम को और अधिक विकसित एवं सक्षम बनाया जाय।

(v) स्थापित व विकासशील प्रौद्योगिकी के लिए सतत् शिक्षा (Continuing Education) का विकास किया जायेगा।

(vi) सामुदायिक पॉलिटेक्निकों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर वर्ग के लोगों को उत्पादक व्यवसायों में प्रशिक्षण दिया जायेगा।

(vii) शिक्षा में आधुनिक संचार प्रौद्योगिकी के ज्ञान के अन्तर्गत छात्रों को आवश्यक सूचनाओं का ज्ञान, शिक्षक प्रशिक्षण, शैक्षिक गुणवत्ता में वृद्धि, कला व संस्कृति के प्रति जागरूकता तथा स्थायी मूल्यों के संस्कार आदि का ज्ञान कराया जायेगा।

(viii) कार्य अनुभव को उद्देश्यपूर्ण व सार्थक शारीरिक कार्य मानते हुए इसका प्रयोग छात्रों के लिए माध्यमिक स्तर पर दिये जाने वाले पूर्व व्यावसायिक कार्यक्रम तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा के लिए किया जायेगा

(ix) तकनीकी, शिक्षा का सम्बन्ध उद्योग, अनुसंधान और विकास संगठनों से, ग्रामीण और सामुदायिक विकास कार्यक्रमों से तथा पूरक स्वरूप वाले अन्य शिक्षा क्षेत्रों से स्थापित किया जायेगा।

7. शिक्षा व्यवस्था को कारगर बनाना (Making the Education System Effective)— इस शिक्षा नीति में तत्कालीन शैक्षिक वातावरण में उद्देश्यों की गंभीरता के साथ-साथ आधुनिकीकरण एवं सृजनात्मकता की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, शिक्षा के गुण एवं प्रसार के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तनों को सम्मिलित किए जाने की बात कही गई हैं।

8. शैक्षिक विषय-वस्तु और प्रक्रिया को नया स्वरूप देना (To Give New prospective to Education Content and Process) – नई शिक्षा नीति में शिक्षा की विषयवस्तु व प्रक्रिया को अनेक प्रकार से सांस्कृतिक विषयवस्तु से सम्बन्धित किया जायेगा। इस प्रकार नई शिक्षा नीति इन दोनों पक्षों के न्यायोचित संश्लेषण पर बल देने के साथ ही साहित्य और कला आदि के शिक्षण-प्रशिक्षण वाले संस्थानों के संवर्द्धन पर भी बल देगी। बच्चों की सौन्दर्य, संगीत व परिष्कार के प्रति संवेदनशीलता विकसित की जाएगी तथा शिक्षा द्वारा सार्वभौमिक मूल्यों का विकास किया जायेगा।

कार्यानुभव की शिक्षा को सभी स्तरों पर दी जाने वाली शिक्षा का एक आवश्यक अंग माना जायेगा व इसे देने हेतु एक श्रेणीकृत व सुसंरचित कार्यक्रम भी बनाया जायेगा । इसके द्वारा प्राप्त किया गया अनुभव आगे चलकर रोजगार पाने में बहुत सहायक होगा।

शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए शिक्षण अधिगम की किसी भी प्रक्रिया के आन्तरिक अंग के रूप में निष्पत्ति को मूल्यांकन का अनिवार्य अंग मानते हुए परीक्षण प्रणाली की पुनव्यवस्था की जायेगी, जिसमें मूल्यांकन विधि की विश्वसनीयता व वैधता सुनिश्चित की जायेगी

9. शिक्षक व शिक्षक शिक्षा (Teacher and Teacher Education)- शैक्षिक प्रक्रिया में शिक्षक शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है अतः नई शिक्षा नीति में शिक्षक शिक्षा की प्रणाली में आमूल परिवर्तन किये जाने की आवश्यकता को देखते हुए जिला शिक्षा व प्रशिक्षण संस्थान (D.LE.T. Distric Institute of Education and Training) स्थापित किए जायेंगे, जो प्रारंभिक स्कूलों के शिक्षकों व निरौपचारिक और प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत कार्मिकों के लिए सेवापूर्ण व सेवाकालीन कार्यक्रम आयोजित करेंगे। इनकी स्थापना होते ही स्तरहीन संस्थाओं को समाप्त कर दिया जायेगा व चुने हुए शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की उन्नति SCERT (State Council of Education Research and Training) के रूप में की जायेगी। NCERT के शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों को सक्षम बनाने, पाठ्यक्रम तथा विधियों के निर्माण हेतु मार्गदर्शन के लिए वांछित संसाधन प्रदान किए जायेंगे। ये संस्थाएँ व विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग आपस में मिलकर काम करेंगे। कुछ चयनित माध्यमिक | शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों को भी उच्चीकृत करके उन्हें SCERT के कार्य के पूरक के रूप में कार्य दिया जायेगा । राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् (NCTE) को अध्यापक शिक्षा संस्थाओं को मान्यता देने का अधिकार दिया जायेगा तथा उसे आवश्यक साधन उपलब्ध कराए जाएंगे। इस प्रकार शिक्षक शिक्षा संस्थानों व विश्वविद्यालय शिक्षा विभागों की सुसम्बद्ध संगठित शृंखला विकसित की जाएगी।

10. शिक्षा का प्रबंधन (Management of Education) – (a) शिक्षा के प्रबंध हेतु, शैक्षिक नियोजन व प्रबंध प्रणाली में परिवर्तन को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके लिए कुछ सिद्धांतों को ध्यान में रखना आवश्यक होगा-

(i) शैक्षिक आयोजन व प्रबंध का दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य (Long Term Profile) तैयार करना और उसे देश की विकासात्मक और मानवशक्ति सम्बन्धित आवश्यकताओं से जोड़ना।

(ii) विकेन्द्रीकरण तथा शिक्षा संस्थाओं में स्वायत्तता की भावना उत्पन्न करना।

(iii) शिक्षा में लोक भागीदारी, गैर-सरकारी साधनों का प्रयोग तथा स्वैच्छिक प्रयासों को महत्व देना।

(iv) शैक्षिक नियोजन व प्रबंध में स्त्रियों के भाग लेने को प्रोत्साहित करना।

(v) अराजकीय अभिकरणों की परिषदों व ऐच्छिक प्रयासों की सहभागिता पर बल देना।

(vi) प्रदत्त उद्देश्यों तथा मानदण्डों के सम्बन्ध में जबावदेही के सिद्धांत की स्थापना करना, जैसे निर्देशक विचारों पर ध्यान देना।

(b) राष्ट्रीय स्तर पर शैक्षिक नियोजन व प्रबंध की दिशा में ‘सेन्ट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजूकेशन’ शैक्षिक विकास के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निर्धारित करेगा तथा शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु वांछित परिवर्तन किए जायेंगे।

(c) राज्य स्तर पर शैक्षिक नियोजन व प्रबंध हेतु राज्य सरकार स्टेट एडवाइजरी बोर्ड

की स्थापना की जायेगी, जो राज्यों के विभिन्न विभागों का मानव संसाधन विकास के लिए प्रभावशाली सहयोग करेगी।

(d) जिला व स्थानीय स्तर पर भी, उच्च माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा का प्रबंध करने के लिए जिला शिक्षा बोर्ड का गठन किया जाएगा।

11. संसाधन तथा समीक्षा (Resources and Evaluation)- (i) व्यावहारिक रूप से सभी शिक्षाविदों ने यह स्वीकार किया है कि शिक्षा पर किया जाने वाला व्यय आर्थिक निवेश होता है तथा इसके द्वारा ही भारत में समतावादी उद्देश्यों व विकास केन्द्रित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

(ii) विज्ञान और प्रौद्योगिक की शिक्षा से सम्बन्धित संस्थाओं का प्रसार व उन्हें तीव्र गति से आधुनिक स्वरूप देना भी आवश्यक होगा।

नई शिक्षा नीति- 1986 द्वारा उठाये गये कुछ महत्वपूर्ण कदम (Some Important Steps Taken By New National Education Policy-1986)

नई शिक्षा नीति- 1986 का गठन शिक्षा की चुनौतियों के रूप में किया गया था अतः इसका भारत की शिक्षा व्यवस्था पर पर्याप्त स्थायी एवं व्यापक प्रभाव पड़ा है, जिसका कारण संभवतः उसके द्वारा उठाये गये कुछ महत्वपूर्ण शैक्षिक कदम हैं। शिक्षा में योगदान देने वाले ये महत्वपूर्ण कदम इस प्रकार हैं-

(i) 10+2+3 शिक्षा संरचना (10+2+3 Structure of Education) (ii) नवोदय विद्यालय (Navodaya Vidyalaya) (iii) विद्यालय संकुल (Group of Schools) (iv) सर्व शिक्षा अभियान (Education for all Movement) (v) शैक्षिक अवसरों की समानता (Equalization of Education Opportunities) (vi) ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड (Operation Black Board) (vii) दूरस्थ शिक्षा एवं मुक्त विश्वविद्यालय (Distance Education and Open Universities) (viii) उपाधि को सेवा से अलग करना (To Remove Degree from Service) (ix) शिक्षक प्रशिक्षण (Teacher Training) (x) शिक्षक की जवाबदेही (Accountability of Teacher)। नई शिक्षा नीति की विशेषतायें- नई शिक्षा नीति 1986 की विशेषतायें निम्नलिखित हैं-

(i) स्वतंत्रता के उपरांत प्रथम बार शिक्षा के क्षेत्र में इतना महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है, जिसमें शैक्षिक नीतियों के क्रियान्वयन पर बल दिया गया तथा शिक्षा को मजबूत बनाकर उसे देश की अनुरूप परिस्थितियों में ढालने का प्रयास किया गया।

(ii) इसके द्वारा एक निश्चित शैक्षिक स्तर तक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का प्रारूप दिया है, इससे देश के पाठ्यक्रम में एकरूपता आयेगी।

(iii) नई शिक्षा में विषमताओं को दूर करके शैक्षिक समानता लाने का संकल्प किया गया है। महिलाओं, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों, अल्पसंख्यकों, विकलांगों तथा पिछड़े हुए क्षेत्रों एवं वर्गों को एक समान शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराने का दृढ़ संकल्प किया गया है।

(iv) नई शिक्षा नीति में 10+2+3 की एक राष्ट्रव्यापी शिक्षा संरचना की सिफारिशें की गई हैं, जिसे देश के प्रत्येक भाग में स्वीकार कर लिया गया।

(v) सन् 1976 में संविधान संशोधन करके शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल कर लिया गया है, जिससे राज्यों की जिम्मेदारी समाप्त नहीं हुई है, वरन् शिक्षा प्रत्येक स्तर पर उत्कृष्टता लाने के लिये केन्द्र सरकार और अधिक कार्य करेगी।

(vi) नई शिक्षा नीति में शैक्षिक स्तरोन्नयन को क्रियान्वित करने पर विशेष बल दिया गया है । संस्थाओं और शैक्षिक कार्यों में लगे व्यक्तियों के कार्य को उत्कृष्ट मान्यता दी जायेगी और उन्हें पुरस्कृत करने के साथ उनकी जवाबदेही भी निर्धारित की गई।

(vii) बढ़ती हुई शिक्षित बेरोजगारी को रोकने तथा विश्वविद्यालयों में प्रवेश की समस्या कम करने के लिये व्यावसायिक शिक्षा के महत्व को स्वीकार किया गया।

(viii) नई शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा की गिरावट को बचाने हेतु कर सम्भव प्रयास किये। जायेंगे। विश्वविद्यालयों में छात्रों का प्रवेश ग्रहण क्षमता के आधार पर होगा, शिक्षण विधियों को प्रभावी बनाया जायेगा। शिक्षकों के कार्य का मूल्यांकन होगा तथा उच्च कोटि के शोध कार्यों को प्रोत्साहित किया जायेगा।

(ix) शिक्षा नीति 1986 की यह विशेषता है कि उसके विभिन्न पहलुओं के क्रियान्वयन की समीक्षा प्रत्येक पाँच वर्ष में की जायेगी। क्रियान्वयन की प्रगति और समय-समय पर उभरती हुई प्रवृत्तियों की जाँच हेतु मध्यावधि मूल्यांकन भी होंगे।

(x) इसमें शिक्षा द्वारा पर्यावरण रक्षा और सन्तुलन बनाये रखने के लिये विशेष प्रयास किये गये हैं।

नई शिक्षा नीति 1986 का मूल्यांकन

नई शिक्षा नीति भारतीय शिक्षा के लिये स्वच्छ हवा की श्वसन के समान है, परंतु विद्वानों व शिक्षाविदों ने इसकी आलोचना की है-

(i) नई शिक्षा नीति में 1995 तक सभी बच्चों को निःशुल्क शिक्षा सुलभ कराने की बात कही गई है, परंतु उपर्युक्त कार्यक्रमों पर अधिक बल के कारण लोगों को यह पूरा होना मुश्किल लगता है, क्योंकि इसके लिए पर्याप्त वित्तीय व्यवस्था नहीं की गयी है।

(ii) नई शिक्षा नीति के केन्द्र व राज्यों के मध्य सार्थक साझेदारी की बात कही गई है, परंतु केन्द्र की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी बल दिया गया है। शिक्षा के राष्ट्रीय स्वरूप को प्रवल करने, गुणवत्ता व मानकों को बनाए रखने, पूरे देश की शैक्षिक जरूरतों को निर्धारित करने तथा शैक्षिक स्तरों पर श्रेष्ठता को बढ़ावा देने में केन्द्र सरकार का उत्तरदायित्व और अधिक बढ़ गया है।

(iii) नई शिक्षा नीति में भाषा शिक्षा भी विवादास्पद रही है।

(iv) उच्च शिक्षा के संसाधन जुटाने के बारे में नई शिक्षा नीति मौन है इस नीति को अच्छी तरह से क्रियान्वित करने के लिये अत्यधिक वित्तीय संसाधन जुटाने होंगे जिनके अभाव में यह नीति क्रियान्वित नहीं हो पाएगी।

अतः यह कहा जा सकता है कि नई शिक्षा नीति विभिन्न आयोगों, विद्वानों व समितियों के शैक्षिक विचारों का संग्रह मात्र नहीं है, इसमें सिद्धांतों का संश्लिष्टात्मक स्वरूप दिखाई देता है। इसी के आधार पर भारत में शिक्षा व्यवस्था का संचालन किया जा सकता है।

समीक्षकों के अनुसार राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 1986 में किये गये कुछ प्रावधान स्वागत योग्य हैं, परंतु यह आवश्यक है कि इनसे वांछित परिणाम प्राप्त करने हेतु नई नीति को पूर्ण ईमानदारी एवं दृढ़ता से लागू किया जाए। शिक्षाविदों के अनुसार इस नीति में आलोचना का मुद्दा यह है कि नई नीति की लगभग सभी बातों पर डॉ. दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता वाले शिक्षा आयोग (1964-66) के प्रतिवेदन में चर्चा की जा चुकी है। यहाँ यह ही दृष्टव्य है कि नीति का निर्माण शून्य में नहीं होता है। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए शिक्षा विशेषज्ञ, शिक्षा आयोग तथा बुद्धिजीवी वर्ग समय-समय पर विकल्प प्रस्तुत करते रहते हैं। केन्द्र या राज्य सरकार अपने संसाधनों तथा प्राथमिकता के आधार पर इनमें से कुछ विकल्प स्वीकार कर लेती है तथा शेष को विभिन्न कारणों से अस्वीकार कर देती है । स्वीकृत विकल्पों को ही एक क्रमबद्ध रूप देकर समय-समय पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण किया जाता है । अतएव भारत सरकार के द्वारा घोषित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पूर्ववत् सुझाई गयी बातों का विद्यमान होना स्वाभाविक ही है । विचारकों के अनुसार नई शिक्षा नीति में नयापन लाने का प्रयास करने की अपेक्षा यह बेहतर है कि पुरानी नीति के क्रियान्वयन के सन्दर्भ में आई कठिनाइयों व असफलताओं का निवारण कर उसे बेहतर जाए। नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने की दृष्टि से मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक कार्यान्वयन कार्यक्रम (Programme of Action) इस उद्देश्य से तैयार किया, जिससे इस शिक्षा नीति के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था नियोजित ढंग से की जा सके। यह कार्यान्वयन कार्यक्रम वस्तुतः राष्ट्रीय नीति के अन्तर्गत किए जाने वाले क्रियाकलापों की स्थूल रूपरेखा प्रस्तुत करता है।

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