NCF-2005 के अनुसार भाषा शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Language Education According to NCF-2005)
भाषा शिक्षा का उद्देश्य (Objectives of language education)- विचारों के आदान-प्रदान का सुगम तथा सुलभ माध्यम भाषा है, जो वाक् इन्द्रिय से निसृत सार्थक ध्वनियों का समूह हैं और व्यवस्थित है।
विचारों को दूसरों के लिए व्यक्त करना प्रदान (अभिव्यक्ति) है तो दूसरों के विचारों को ग्रहण कर समझना आदान (ग्रहण करना) है विचारों के आदान-प्रदान के लिए मनुष्य निम्न चार प्रकार की क्रियाएँ करता है-सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना आदान अर्थात् ग्रहण करना, सीखना । प्रदान अर्थात् अभिव्यक्ति करना। आदान में सुनना व पढ़ना क्रिया होती है प्रदान में बोलना तथा लिखना क्रिया होती है। इन चारों क्रियाओं में (सुनना, पढ़ना, बोलना, लिखना) कुशलता अर्जित करना ही भाषा, शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य हैं। ये ही भाषा के मूल उद्देश्य कहलाते हैं।
(अ) सुनना: 1. भाषा के सभी ध्वनि रूपों के शुद्ध उच्चारण को समझना।
2. विषय-वस्तु में आए विचारों, भावों, घटनाओं, तथ्यों आदि में प्रसंगानुसार सम्बन्ध स्थापित करते हुए समझना।
3. विषय-वस्तु केन्द्रीय भावों, प्रमुख विचारों और निष्कर्षों को समझना।
4. सुनने के शिष्टाचार का पालन करने की क्षमता का विकास करना।
शिष्टाचार पूर्वक सुनने में बालक की निम्न प्रकार की शारीरिक, मानसिक स्थिति होनी चाहिए-
(i) श्रोता बालक वक्ता की ओर मुँह करके बैठे।
(ii) श्रोता चुपचाप ध्यानपूर्वक अर्थग्रहण करते हुए सुनें।
(iii) सुनते समय मुँह फेरकर बैठना, साथी से वार्तालाप, वाद विवाद नहीं करना चाहिए।
(iv) श्रोता वक्ता के सम्मान का ध्यान रखे।
(v) वक्ता को अनावश्यक परेशान न करे।
(ब) बोलना : 1. शुद्धता, स्पष्टता, उतार-चढ़ाव व उचित हाव-भाव का करते हुए समूह में अथवा अलग से सहज रूप में प्रभावी ढंग से बोलने की क्षमता का विकास करना।
2. परिचित विषय घटना तथा परिस्थिति का अपने ढंग से वर्णन/विवरण करने की क्षमता का विकास करना।
3. समय-समय पर प्रसंगानुसार बोलने के शिष्टाचार का पालन करते हुए मौलिक रूप से तर्कपूर्ण विचार प्रकट करने की क्षमता का विकास करना।
4. अभिनय अथवा भूमिका निर्वाह करते हुए पत्रानुसार संवाद बोलने के कौशल का विकास करना।
(स) पढ़ना: 1. भाषा तत्त्वों को प्रसंगानुसार विश्लेषण करते हुए समझना।
2. विषय-वस्तु में ‘आए विचारों, भावों, घटनाओं तथ्यों आदि में प्रसंगानुसार सम्बन्ध स्थापित करते हुए समझना।
3. विषय-वस्तु के सारांश, केन्द्रीय भावों और निष्कर्षों को समझना।
4. मुद्रित व हस्तलिखित सामग्री को शुद्ध उच्चारण उचित यतिगति, आरोह-अवरोह विराम-चिह्नों के अनुसार अर्थ ग्रहण करते हुए स्वाभाविक रूप से वाचन करने की क्षमता का विकास करना।
5. बाल शब्दकोश को समझने की क्षमता का विकास करना ।
6. स्तरानुकूल पाठ्योत्तर कहानियाँ, सचित्र पुस्तकें आदि साहित्य को समझकर पढ़ने की क्षमता का विकास करना।
(द) लिखनाः 1. अक्षरों व शब्दों के सही आकार, उचित क्रम, पर्याप्त अन्तर को समझते हुए लिखने की क्षमता का विकास करना।
2. देखकर और सुनकर सुस्पष्ट, सुन्दर, शुद्ध रूप में उचित विराम चिह्नों का ध्यान रखते हुए लिखने की क्षमता का विकास करना।
3. सरल प्रारूपों, प्रार्थना-पत्रों, निबन्ध, वर्णन, विवरण आदि को सरल अनुच्छेदों में रचना करते हुए लिखने की क्षमता का विकास करना।
4. मौलिक रूप से तथा तर्कपूर्ण ढंग से सरल वर्णन, विवरण, निबन्ध, प्रश्नोंत्तर, सारांश कहानी, कविता आदि को लिखने की क्षमता का विकास करना।
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