पठन एक अर्थ प्रकाशक पाठ्य पर एक निबंध लिखिए। (Write an essay on reading an expository text)
पठन एक अर्थ प्रकाशक पाठ्य पर एक निबंध – मानव एक सामाजिक प्राणी है इसलिए उसे अपनी मातृभाषा में पठन करने तथा उसके अर्थ को समझने का कौशल होना चाहिए। उसे अपने विचारों तथा भावों को भाषा के माध्यम से व्यक्त करना ही जरूरी नहीं है बल्कि दूसरे के विचारों तथा भावों को समझना भी आवश्यक है। उसमें चिन्तन तथा मनन की क्षमता का होना भी आवश्यक है। यह पूर्ण सत्य है कि मनन एवं चिन्तन तभी भाषा के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है जब हमें इस प्रकार की सामग्री पढ़ने तथा समझने की योग्यता हो। बालक में इस प्रकार के कौशलों का विकास होना आवश्यक है जिसमें वह विभिन्न दार्शनिकों, चिन्तकों तथा समाजसेवियों के विचारों को समझ सके तथा बोधगम्य कर सके। बालक पढ़कर अधिकांश विचार ग्रहण. करते हैं तथा उसी आधार पर विभिन्न सिद्धान्तों का निर्माण करते हैं। पढ़ने के द्वारा ही विचार एवं भावों का अर्थ बोधगम्य होता है। बालक पढ़कर ही अर्थ ग्रहण करता है और चिन्तन सम्बन्धी दक्षता प्राप्त करता है। प्राथमिक स्तर पर भाषा के पाठ्यक्रम द्वारा अर्थ ग्रहण सम्बन्धी विशेषताएँ बच्चों में विकसित हो जाती हैं। भाषा शिक्षक उच्च प्राथमिक शिक्षा की कड़ी होता है बालक को पठन के माध्यम से इस आयु स्तर तक साहित्य और साहित्य की विधाओं तथा साहित्यकारों की जानकारी होने लगती है। इस अवस्था में बालक का भावनात्मक विकास के साथ-साथ चिन्तनात्मक शक्ति भी विकसित होने लगती है। अत: बालक आनन्ददायी अनुभूतियों के साथ-साथ कुशलतापूर्वक अपनी भाषायी दक्षताओं को भी विकसित करने लगता है।
विचार सम्प्रेषण का माध्यम भाषा है। बालक-बालिकाओं में इस स्तर पर व्याकरण की जानकारी, सृजनात्मकता और चिन्तनात्मक पक्षों का विकास होना आवश्यक है क्योंकि पठन द्वारा उसमें तर्क शक्ति विश्लेषणात्मक का धीरे-धीरे विकास लगता है। वह यह समझने लगता है कि पढ़ी गई सामग्री का अर्थ प्रकाशन किस प्रकार करना है तथा उसके अन्तर्निहित विचारों का सार क्या है । उसकी वैचारिक शक्ति बढ़ जाती है, उसे जीवन-मूल्यों का ज्ञान होने लगता है।
पठन दक्षता के उद्देश्य
पठन दक्षता के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-
(i) मौन एवं सस्वर द्वारा वाक्य को अर्थान्वितियों या लय इकाइयों में बाँटकर उचित अनुपात के साथ पढ़ने की क्षमता का विकास करना।
(ii) विषय-वस्तु के केन्द्रीय भाव तथा सार को समझते हुए पढ़ने के कौशल का विकास करना।
(iii) शब्दकोश के अवलोकन का अभ्यास करते हुए पठन कौशल का विकास करना।
(iv) कविता, काहनी एवं मनोरंजन युक्त पठन सामग्री को पढ़ने की रुचि विकसित करना।
(v) निश्चित गति से बोधपूर्वक समझते हुए पठन की क्षमता का विकास करना।
(vi) विषय-वस्तु के केन्द्रीय भाव तथा सार को समझते हुए पढ़ने के कौशल का विकास करना।
(vii) अनुच्छेद के मुख्य कथनों और उदाहरणों को पहचानकर स्वाभाविक रूप से पढ़ने के कौशल का विकास करना।
पठन की आवश्यकता
पठन की जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यकता होती है। प्रगतिशील दशाएँ पठन के प्रति रुचि जाग्रत करने हेतु विद्यालय में समस्त प्रकार के प्रयास करती हैं और समुदाय तथा समाज जिसमें आप राज्य को भी शामिल कर सकते हैं, पटन हेतु समस्त प्रकार के अवसर तथा सुविधाएँ देता है इतिहास, जीवन-चरित्र, कहानियाँ, काव्य, उपन्यास, लेख तथा नाटक आदि सत्साहित्य का प्रकाशन किया जाता है पुस्तकालयों एवं वाचनालयों की व्यवस्था की जाती है, जिससे लोगों में पठन के प्रति रुचि तथा उत्साह जाग्रत हो सके पुस्तक मेले भी लगाये जाते हैं। वाचन ( पठन) एक ऐसा माध्यम है जिससे हम साहित्य के विशाल साम्राज्य में प्रवेश करते हैं।
वाचन एक ऐसी क्रिया है जिसका सहारा लेने वाला व्यक्ति ‘व्यक्ति’ बन जाता है। फ्रांसिस बेकन के अनुसार, ” सम्मेलन से मुस्तैदी और लेखन से दुरस्ती आती है, परन्तु मनुष्य में पूर्णता पढ़ने से आती है। ” पठन का इतना अधिक महत्व है कि वह विद्यालय की चारदीवारी से बाहर भी मानव का साथ देता है और उसे पूर्ण बनाता है। पठन के जिस रूप की प्रशंसा बेकन ने की है, वह वास्तव में निपुणता व्यक्ति के विचारों की प्रौढ़ता का सूचक होती है और यह निपुणता बताती है कि व्यक्ति में भाषायी दक्षता कितनी है?
पठन द्वारा अर्थ ग्रहण की योग्यताओं का विकास
पठन के द्वारा व्यक्ति में अर्थ ग्रहण की निम्नलिखित योग्यताओं का विकास होता है-
(i) पठित सामग्री में से तथ्यों, भावों और विचारों को चुन लेना तथा उनकी क्रमबद्धता को पहचानना
(ii) पठित सामग्री का केन्द्रीय या विचार ग्रहण कर।
(iii) साहित्य की विविध विधाओं के प्रमुखों तत्वों को पहचानना।
(iv) पुस्तकालय एवं वाचनालयों में जाकर पुस्तक सूची आदि से पुस्तकें चुन लेना, उनका प्रयोग कर सकना।
(v) सामग्री पर पूछे गये प्रश्नों का उत्तर दे सकना, उसका निष्कर्ष निकाल सकना, उपयुक्त शीर्षक दे सकना। अपरिचित शब्दों, उक्तियों, मुहावरों के अर्थ का अनुमान लगा लेना, शब्दों के लक्ष्यार्थ और व्यंग्यार्थ को समझ लेना।
(vi) प्रकाशित सामग्री से उन सामग्रियों को चुन लेना जो उसकी आवश्यकताओं के अनुकूल हों।
(vii) अनावश्यक स्थलों को छोड़ते हुए मुख्य सूचनाओं और भावों को ग्रहण कर लेना।
1. नीतियाँ (Strategies) – पठन के लिए एक उपयुक्त नीति बनानी आवश्यक है छात्र को पठन सीखने से पूर्व शब्दों का ज्ञान होना आवश्यक है और शब्दों से पूर्व अक्षर ज्ञान होना जरूरी है। छात्रों को कई बार अक्षरों की पहचान करानी चाहिए। श्यामपट्ट पर एक बार अक्षर लिखकर पुन: उस अक्षर पर छात्र का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करना चाहिए तत्पश्चात् छात्रों से उस अक्षर को लिखवाने का अभ्यास करना चाहिए, उसी अक्षर को पुनः पहचानने के लिए कहना चाहिए। बार-बार के अभ्यास से छात्र उस अक्षर को पहचानने लगते हैं और अक्षरों की पहचान के बाद उसी प्रकार छात्रों से अक्षरों को पढ़वाने का अभ्यास कराना चाहिए। जब छात्र भली प्रकार पहचानकर अक्षर लिखना सीख जाते हैं तो उसे पढ़ना भी सीख जाते हैं तत्पश्चात् छात्रों को मात्राओं को बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवाया जाता है तत्पश्चात् मौखिक रूप से मात्राओं को छात्रों के मुख से अभिव्यक्त कराया जाता है और उन्हें अक्षरों के साथ जोड़कर उनका अभ्यास कराया जाता है। शब्दों के पश्चात् दो शब्दों के मेल का अभ्यास कराया जाता है तत्पश्चात् तीन या चार शब्दों के मेल का अभ्यास कराया जाता है।
छात्रों में पठन बोधगम्यता बढ़ाने के लिए उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उनके अनुरूप ही शिक्षण कराना चाहिए-
प्राथमिक स्तर पर भाषा शिक्षण में पठन कौशल का विकास करने के लिए निम्नलिखित उद्देश्य रखने चाहिए-
(i) छात्र के उच्चारण को शुद्ध बनाना।
(ii) उसके विचारों का क्षेत्र धीरे-धीरे विकसित करना।
(iii) उसके शब्दकोश का विकास करना।
(iv) उसके विचारों में स्पष्टता एवं तर्कसंगतता लाना।
(v) उसके वाचन में गति का विकास करना।
(vi) वाचन को शुद्ध तथा प्रभावोत्पादक बनाना।
(vii) लिपि का सही ज्ञान तथा अभ्यास प्रदान करना।
(viii) सुलेख, अनुलेख एवं श्रुतिलेख का अभ्यास कराना।
(ix) अभिव्यक्ति की शक्ति को विकसित करना।
(x) कविता का सस्वर एवं उचित लय के साथ पाठ करने की क्षमता उत्पन्न करना।
(xi) उन्हें पढ़े हुए वृत्तान्त का नाटकीकरण करने की ओर उन्मुख करना।
(xii) पढ़ने की आदत का विकास करना, पढ़ने में गति एवं शुद्धता लाना तथा पढ़कर लेखक के भाव-ग्रहण करने की योग्यता का विकास करना।
प्राथमिक स्तर के अन्त तक भाषा अधिकार की सीमा- ये सीमा निम्न प्रकार है-
(i) भाषा की समस्त ध्वनियों और ध्वनि गुच्छों का समुचित उच्चारण।
(ii) वाक्य-रचना का अभ्यास।
(iii) स्तरोपयुक्त शब्दावली से निर्मित वाक्यों का बिना हिचक, शुद्धतापूर्वक अभिप्रायानुसार प्रभावोत्पादक रूप में उच्चारण एवं वाचन तथा शान्ति के साथ मौन वचान।
(v) सुलेख।
(iv) वाक्यों को छोटे-छोटे अनुच्छेदों के रूप में संगठित करने की प्रविधि का अभ्यास।
(vi) पूर्ण विराम, अर्द्ध विराम, प्रश्नवाचक, आश्चर्यादिबोधक तथा उद्धरण सूचक चिह्नों का प्रयोग।
(vii) अध्येय एवं स्वाध्येय दोनों प्रकार की पुस्तकों में आये हुए शब्दों का अर्थ एवं वर्तनी सहित ज्ञान।
(viii) माता-पिता, भाई-बहन, अध्यापक एवं प्रधानाध्यापक के प्रति बरते जाने वाले भाषायी शिष्टाचार का ज्ञान।
(ix) कहानी कहने, वस्तु अथवा चित्र का वर्णन करने, स्तरोपयुक्त कविताओं का पाठ करने तथा छोटे-छोटे संवादों में भाग लेने की योग्यता।
(x) छोटी-छोटी कहानियों, घरेलू पत्रों, विद्यालय-सम्बन्धी आवेदन-पत्र लिखने की योग्यता।
माध्यमिक स्तर पर पठन भाषा के लिए निम्नलिखित योग्यताओं के उद्देश्य होने चाहिए-
(i) छात्रों में सौन्दर्यानुभूति का विकास करना।
(ii) उनमें संवाद तथा अभिनय की योग्यता का विकास करना।
(iii) व्याकरण का उच्च ज्ञान।
(iv) लेखन के गूढ़ विचारों को समझने की योग्यता।
(v) स्वाध्याय की आदत का विकास।
(vi) द्रुत रूप से सस्वर तथा मौन पठन करने की प्रेरणा प्रदान करना।
(vii) मौखिक तथा लिखित भाषा के माध्यम से बोध ग्रहण की क्षमताओं का विकास करना।
(viii) मौखिक तथा लिखित अभिव्यक्ति की कुशलताओं का विकास करना।
(ix) मौखिक तथा लिखित अभिव्यक्ति का विभिन्न विधाओं और शैलियों का ज्ञान कराना और उनके की योग्यता का विकास करना।
(x) भाषा के साहित्य के इतिहास का संक्षिप्त परिचय देना।
उद्देश्य के अनुरूप शिक्षण
उद्देश्य के अनुरूप शिक्षण की नीतियाँ बनानी चाहिए। उपयुक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शिक्षक कक्षा में सस्वर वाचन तथा मौन वाचन के अवसर छात्रों को प्रदान करता है और वाचन के समय छात्रों की अशुद्धियों को सुधारता है । वह लिखने का अभ्यास और श्यामपट्ट पर स्वयं सुडौल अक्षर लिखकर छात्रों के समक्ष उपयुक्त आदर्श प्रस्तुत करता है। भाषा एवं शैली में सुधार लाने के लिए वह विभिन्न प्रकार के रचना कार्यों को अपनाता है। कक्षा में प्रश्न-उत्तर की प्रणाली को अपनाकर छात्रों की बोध-शक्ति की परीक्षा करता चलता है और छात्रों को अभिव्यक्ति के अवसर प्रदान करता चलता। काव्य शिक्षण में स्वयं रस लेता है और छात्रों को सस्वर कविता पाठ द्वारा आनन्दानुभूति के लिए प्रेरित करता है। समय-समय पर वह गृह कार्य भी देता है जिससे छात्र पढ़ी हुई सामग्री का प्रयोग करना सीख जाएँ । रचना कार्य, गृह कार्य एवं अन्य लिखित कार्य को वह संशोधित भी करता है जिससे छात्रों की वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियों को वहसुधार सके।
2. बोधगम्यता (Comprehension) – पठन का कौशल विकसित करने के लिए छात्रों को पठित सामग्री का केन्द्रीय भाव ग्रहण कर लेने में समर्थ बनाया जाता है बोध गम्यता के लिए छात्रों को अक्षर की बनावट का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए इसके साथ-साथ मुख्य सूचनाओं तथा भावों की समझ होनी चाहिए । छात्रों में किसी वाक्य तथा तथ्य का भाव तथा सारांश बता सकने की योग्यता होनी चाहिए । बोधगम्यता के आधार पर ही छात्र पठित सामग्री पर पूछे गये प्रश्नों का उत्तर दे सकता है । पठित सामग्री के निष्कर्ष निकाल लेने की क्षमता भी छात्रों में होनी चाहिए। बोधगम्यता के लिए छात्रों में भाषा तथा भाव सम्बन्धी कठिनाइयाँ सामने रखने की योग्यता, उपसर्ग, प्रत्यय, सन्धि-विच्छेद द्वारा शब्द का अर्थ जान लेना तथा कोश में शब्द के दिये हुए अनेक अर्थों में से प्रसंगानुसार सही अर्थ जानने की योग्यता होनी चाहिए । पठित अंश में आये हुए तथ्यों तथा विचारों को विस्तार से जानने के लिए एवं सन्दर्भ ग्रन्थों का अनुशीलन करना तथा वांछित सामग्री ढूँढ़ लेने की क्षमता होना आवश्यक है । इसके अतिरिक्त छात्रों में कुछ अन्य योग्यताएँ भी होनी आवश्यक हैं, जैसे- निबन्ध, नाटक, कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण आदि के प्रमुख तत्त्वों की पहचान होना भी आवश्यक है।
3. सक्रिय रूपरेखा (Activating Schemes) – पठित सामग्री को समझने के लिए तथा भाषा कौशल के विस्तार के लिए उसकी सक्रिय रूपरेखा बना लेनी चाहिए । छात्र इस सक्रिय रूपरेखा के माध्यम से शीघ्रतापूर्वक भाषा का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । सक्रिय रूपरेखा बनाने से छात्र किसी भी पठित सामग्री को बहुत ही वैज्ञानिक रूप से कम समय में समझ जाते हैं और उसके भावों को ग्रहण कर लेते हैं।
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