संचार किसे कहते हैं?
संचार किसे कहते हैं, यह सवाल करने में जितना आसान है उतना ही इसका जवाब देना मुश्किल है। संचार का अर्थ हर आदमी के लिए एक नहीं हो सकता। हर आदमी के लिए इसका अलग-अलग मतलब है। पर यह भी कह देना जरूरी है कि जिस तरह वैज्ञानिक शब्दों की परिभाषा होती है और वह सभी को एक जैसी स्वीकार्य नहीं होती उसी तरह संचार की भी परिभाषा होती है और वह भी हर आदमी को एक-सी स्वीकार नहीं होती।
संदेश के बारे में कहा जाता है कि जब हम शब्दों के जरिए कुछ कहते हैं तो उसे संदेश कहा जाता है। यह संदेश एक शब्द का भी हो सकता है और कुछ शब्दों के समूह का भी। कभी-कभी एक वाक्य या दो वाक्यों का भी। अगर हम अपने मोबाइल से किसी को अपनी नई नौकरी शुरू करने के बारे में संदेश देना चाहते हैं तो इतना कहा भी संदेश है-‘नौकरी शुरू।’ यह संदेश है जिसे यह प्राप्त हो रहा है, उसे उस संदेश की व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है। वह इतने ही संदेशभर से आपका मंतव्य समझ जाएगा।
अतः संचार वह है जो समझा गया है संदेश है। जब तक संदेश समझा नहीं गया है तब तक उसे संचार नहीं कह सकते। अगर कोई इतना ही संदेश दे-‘कॉपी कहाँ भेजो’। तो यह संदेश, संदेश नहीं कहला सकता क्योंकि इस संदेश को समझा नहीं जा सकता। इससे कोई सारगर्भित अर्थ नहीं निकलता।
इससे यह बात साफ़ होती है कि संचार पूरा होने के लिए दो बातों का होना अनिवार्य है। पहला यह कि जो संदेश भेजा जा रहा है वह अपने आप में स्पष्ट होना चाहिए। उसकी व्याख्या की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। दूसरे जिसे आप संदेश भेज रहे हैं उसे वह समझ आना चाहिए।
समाज में हम संदेश के जरिए ही परस्पर संबंध स्थापित करते हैं। बिना परस्पर संबंध कायम किए समाज में नहीं रह सकते। इस प्रकार संचार की यह परिभाषा दी जा सकती है।
संचार, संदेशों के माध्यम से सामाजिक अंतरसंबंध बनाता है।
एक परिभाषा संचार की यह भी है- संचार एक-दूसरे के साथ अनुभव बाँटने को कहते हैं।
इस परिभाषा को इस प्रकार समझा जा सकता है। आपसे आपकी माताजी ने कहा, ‘आज तो कड़ाके की ठंड पड़ रही है।’ इसमें वह बात कही गई है जो आपकी माताजी और आप अनुभव कर रहे हैं। इसमें आपकी माताजी अपना अनुभव आपके साथ बाँट रही है, इसलिए यह संदेश है। अतः स्पष्ट है कि संचार एक-दूसरे के साथ अनुभव बाँटने का नाम है।
आपको एक-दूसरे के साथ संचार की आवश्यकता पड़ती है। जब तक बच्चा अपनी माँ को यह नहीं बताएगा कि उसे भूख लगी है तब तक उसकी माँ को कैसे पता लगेगा कि उसे दूध चाहिए। इसी तरह अगर आप बाजार में मॉल से अपने बेटे के लिए टी-शर्ट खरीदना चाहते हैं तो आपको जाकर सेलमैन को बताना पड़ेगा कि आपको टी-शर्ट चाहिए। तभी तो वह आपको दे सकेगा। इससे यह स्पष्ट होता है कि जीवन में संचार के बिना क्षण भर भी काम नहीं चल सकता। यह जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
हम संचार क्यों करते हैं? इसके पाँच कारण बताइए।
संचार क्यों? : हम समाज में रहते हैं। इसमें विभिन्न भाषा बोलने वाले, विभिन्न धर्मो को मानने वाले निर्धन व धनवान् आदि सभी प्रकार के लोग रहते हैं। सब को समाज में रहने के लिए एक-दूसरे से विचार-विनिमय करना पड़ता है। ऐसा न करें तो समाज का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। इसलिए हमें संचार की आवश्यकता पड़ती है। अगर हम कहीं ऐसी जगह रहते हैं जहा लोग तो हैं पर वे आपस में बात नहीं करते, तो ऐसी स्थिति में वहाँ निश्चित रूप से रहना कठिन हो जाएगा और न ही एक-दूसरे को समझ सकेंगे।
संचार के कारण
यों तो संचार के अनेक कारण हैं परंतु मुख्य रूप से पाँच कारण निम्न कहे जा सकते हैं-
1. सूचनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए
2. क्रय-विक्रय के लिए।
3. पुष्टि करने और परामर्श देने के लिए।
4. शिक्षा देने और सिखाने के लिए।
5. प्रेरित करने और आलोचना करके लिए।
संचार की परिभाषा
संचार की विभिन्न परिभाषाएँ दी गई हैं, जिनमें से प्रमुख निम्न हैं-
संचार सामाजिक अंतर संबंध : संचार एक समझा गया संदेश है। इसमें दो बातों का होना आवश्यक है। एक तो संदेश स्पष्ट होना चाहिए और दूसरा जिसे भेजा जाए उसे समझ आ जाए। इस आधार पर संचार की परिभाषा यह दी जा सकती है – संचार संदेशों के माध्यम से सामाजिक अंतरसंबंध बनाता है।
संचार : एक-दूसरे को अनुभव बाँटना : दूसरी संचार की परिभाषा यह है कि इसमें व्यक्ति एक-दूसरे से अपने अनुभव बाँटता है। जैसे अगर कोई कहे- ‘मैं अंग्रेजी की कक्षा में बोर हो गया।’ यह अनुभव वक्ता अपने किसी साथी के साथ बाँट रहा है। इस आधार पर संचार की परिभाषा यह दी जा सकती है-संचार एक-दूसरे को अनुभव बाँटने को कहते हैं।
संचार जीवन के लिए अनिवार्य : एक-दूसरे से विचार-विनिमय के लिए संचार आवश्यक है। अगर आप बीमार होने पर डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाते हैं तो आपको बताना होगा कि आपको यह बीमारी है तभी वह आपका सही इलाज कर सकेगा। इस प्रकार संचार जीवन के लिए आवश्यक है।
हम संचार कैसे करते हैं? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
संचार की पाँच इंद्रियाँ: संचार के लिए हम अपनी पाँचों इंद्रियों- स्वाद, स्पर्श, श्रवण, दृष्टि तथा घ्राण का प्रयोग करते हैं।
हम दही चख कर देखते हैं और उसका नतीजा हमारे मुख की अभिव्यक्ति बता देती है। कहीं मोबाइल पर गाना सुन रहे हैं तो आपकी की खुशी या उदासी बता देगी कि गाना कैसा है? किसी चीज को छूकर आप अपने चेहरे पर उभरे भाव से दूसरे को बता सकते हैं कि वह चीज़ आपको पसंद आई है या नहीं। किसी श्मशान भूमि की ओर से गुज़रते हुए आपके मुख पर आए भाव बता देते हैं कि वहाँ से गुज़रना आपको कैसा लग रहा है। इसी तरह हम संचार के लिए स्वाद, स्पर्श श्रवण, दृष्टि तथा घ्राण इंद्रियों का प्रयोग करते हैं।
अशाब्दिक संचार क्या होता है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
हम संचार के लिए जिन इंद्रियों का प्रयोग करते हैं वे हमारे पास स्वाभाविक हैं, परंतु बोलना हमें सीखना पड़ता है। किसी विषय पर हम अपनी स्वीकृति या अस्वीकृति के लिए संकेतों का आश्रय लेते हैं। अपने भावों को अभिव्यक्त करने के लिए हम विभिन्न संकेतों का सहारा लेते हैं। महाकवि बिहारी ने ‘बिहारी सतसई’ में अशाब्दिक संचार को व्यक्त करने के लिए एक बहुत सुंदर दोहा कहा है-
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत खिलत लजियात ।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात।।
भाव यह है कि एक नायक नायिका से प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए कहता है, पर नायिका उसकी प्रार्थना अस्वीकार कर देती है। उसके मना करने के अंदाज पर नायक रीझ उठता है। नायिका उसकी इस स्थिति पर खीझ उठती है। फिर उनकी आँखें मिलती हैं, दोनों खिल उठते हैं और जब उनकी इस स्थिति का किसी को भान हो जाने का संदेह होता है तो लजा भी जाते हैं। इस तरह दोनों भरे-पूरे परिवार में नैनों से ही बातें कर रहे हैं।
इसी प्रकार कुशल नर्तक अपने मुख की विभिन्न मुद्राओं से साहित्य में वर्णित सभी रसों का वर्णन कर देता है। उसकी चेहरे की अभिव्यक्तियों सुख, दुख, क्राध, उत्साह, वात्सल्य, हास्य आदि सभी कुछ प्रकट कर देती हैं।
अशाब्दिक संचार किस प्रकार किया जा सकता है?
हम निम्नलिखित माध्यमों से अशाब्दिक संचार कर सकते हैं-
1. शरीर के भावों से- इस शाब्दिक संचार में मुस्कुराना, सर हिलाना, सर झुकाना, दूसरे की आँख में देखना, आँखें बंद करना या अधखुली खोलना आदि शामिल हैं।
2. अंग के संचालन से- अगर हम अपने किसी मित्र को रेलवे स्टेशन या बस अड्डे पर विदा करने के लिए जाते हैं तो ‘बाइ’ करने के लिए हाथ हिलाते हैं। इसी तरह खेल के मैदान में एंपायर हाथ के इशारे से किसी खिलाड़ी को आउट या नॉट आउट का इशारा करता है। संगीत निर्देशक संगीत निर्देशन करते हुए विभिन्न वादकों को संकेत से नोटेशन बजाने या ताल बजाने का निर्देश देता है। यह अशाब्दिक संचार है।
भाषाविज्ञानियों का मत है कि दुनियाभर में व्यक्ति के बीच होने वाले समस्त संचार का अस्सी फीसद अशाब्दिक होता है। इस माध्यम का प्रयोग वे भी करते हैं जो दृष्टिहीन हैं या बोल नहीं सकते। दिल्ली दूरदर्शन पर मूक-बधिरों के लिए विशेष समाचार बुलेटिन प्रस्तुत किया जाता रहा है। इस माध्यम से समाचार प्रस्तुत करने वाली भाव-भंगिमाओं और संकेत से समाचारों का प्रसारण करती है।
इसके अतिरिक्त बोलने वाले लोग भी कई बार अपनी बात कहने के लिए विभिन्न इशारों का प्रयोग करते देखे जा सकते हैं। इस तरह वे शाब्दिक संचार के साथ-साथ अशाब्दिक संचार का भी सहारा लेते हैं। आपने आस्था चैनल, संस्कार चैनल या अन्य चैनलों पर धार्मिक संतों, कथावाचकों को धर्मोपदेश देते हुए देखा होगा। या फिर राजनेताओं को चुनावी सभाओं में भाषण देते सुना होगा। ये नेता अपने भाषणों में शाब्दिक संचार के साथ-साथ अशाब्दिक संचारों का खूब प्रयोग करते हैं।
यह बता देना आवश्यक है कि अशाब्दादिक संचार पूरी दुनिया में एक जैसा नहीं है। जो भारत में अशाब्दिक संकेत हैं, आवश्यक नहीं है कि वे अमेरिका या ब्रिटेन में भी प्रयुक्त किए जाते हों। अंगुली से इशारा का भिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग अर्थ है। इसी तरह सर हिलाने का जो अर्थ भारत में लिया जाता है, आवश्यक नहीं है कि वही अर्थ केनिया या जावा, सुमात्रा में लिया जाए। यूरोप में प्रार्थना के लिए हाथ जोड़े जाते हैं। वे नमस्ते कहना नहीं जानते। इसी तरह वे मिलने वालों का उस तरह अभिनंदन नहीं करते जिस तरह भारत में किया जाता है।
संचार हेतु मानव द्वारा प्रयुक्त पाँच इंद्रियों के नाम बताइए।
संचार के लिए मानव द्वारा निम्न पाँच इंद्रियों का प्रयोग किया जाता है-स्पर्श, दृश्य, स्वाद, श्रवण और घ्राण।
अशाब्दिक संचार से आप क्या समझते हैं?
जिस संचार में शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता अपितु संकेत व भाव-मुद्राओं का आश्रय लिया जाता है उसे अशाब्दिक संचार कहा जाता है। अशाब्दिक संचार मुख्यतः दो प्रकार से अभिव्यक्त होता है-चेहरे के भावों से और शरीर के भावों से। चेहरे के भावों से अर्थ है-मुस्कुराना, सर हिलाना, सुनना, दिलचस्पी दिखाने के लिए आँखें मींचना या भौंहें उठाना । शरीर के भावों से अर्थ है- अंगुलियों से संकेत करना, हाथ हिलाना, हाथ बढ़ाना, मामूली सा हाथ बढ़ाना, हाथ छूना। अगर कोई आदमी आपकी केवल हथेली छूना चाहता है तो इसका अर्थ यह है कि वह आपसे दूरी बनाए रखना चाहता है और अगर कोई गर्मजोशी से हाथ मिलाता है तो इसका अर्थ यह है कि वह आपसे दोस्ती बनाए रखना चाहता है। यह सब बात केवल हाथ के बढ़ाने- हिलाने से जानी जा सकती है। अतः यह अशाब्दिक अभिव्यक्ति है। इसके अतिरिक्त गूंगे अपनी बात कहने के लिए इशारों या भाव-भंगिमाओं का आश्रय लेते हैं। कभी-कभी शाब्दिक संचार करने वाले भी अपनी बात कहते हुए अशाब्दिक संचार करते हैं। पर यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि पूरे देश में अशाब्दिक संचार के अर्थ अलग-अलग हैं। जैसे भारत में लोग परस्पर गले-मिलकर एक-दूसरे का अभिनंदन करते हैं जबकि विदेशों में चुंबन लेकर। इस प्रकार अशाब्दिक संचार वह संचार है जिसमें शब्दों का प्रयोग न कर अंग संकेतों व चेहरे के भावों से संचार किया जाता है। मौखिक संचार
मौखिक संचार किसे कहते हैं? संक्षेप में लिखिए।
मौखिक संचार से अर्थ : बोली के विकास के बाद मौखिक संचार: पहले हमने संचार के लिए बोली का विकास किया। इसके बाद मौखिक संचार किया जाने लगा। मौखिक संचार की विशेषता यह है कि इसे पहले बनाया जाता है और फिर इसका विकास किया जाता है। यह शाब्दिक संचार है। इसमें भाषा का प्रयोग होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि इसमें शब्द का भी प्रयोग किया जाता है और वाक्य का भी। असल में, संचार का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। अगर कोई यह कहे कि घोड़ा, नीला या ऊँचा। तो इसका कोई अर्थ नहीं है। ये शब्द तो प्रतीक हैं। जब आप घोड़ा शब्द बोलते हैं तो उसी क्षण सुनने वाला कल्पना कर लेता है कि घोड़ा क्यों प्रयुक्त किया जा रहा है। पर जब हम इन शब्दों को समूह में प्रयुक्त करते हैं तो इसका एक अर्थ निकलता है। मौखिक संचार में ये शब्द अगर स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होते हैं तो इनका कोई अर्थ नहीं है परंतु अगर समूह में प्रयुक्त होकर कोई सार्थक अर्थ देते हैं तो निश्चित ही यह मौखिक संचार है।
मौखिक संचार के लाभ
1. यह संचार निरंतर होता है और स्वाभाविक होता है।
2. यह दूसरों के लिए समझना आसान होता है।
3. इसमें अशाब्दिक संचार का भी योग होता है।
4. संचार करने वाला शारीरिक रूप से मौजूद होता है।
5. यह वक्ता और श्रोता के बीच लगभग संबंध स्थापित करता है।
मौखिक संचार के नुकसान
1. बोले गए शब्द हवा में उड़ जाते हैं। अस्थायी होते हैं।
2. ये लिखित संचार के समान स्थायी नहीं होते।
3. जो कुछ सुना जाता है उसे भुला दिया जाता है।
4. ऐसा हो सकता है कि अशाब्दिक संचार को मौखिक संचार के साथ सहयोग करने वाले अन्य संस्कृति वाले कदाचित न समझें।
संचार के अन्य साधन
इन साधनों के अतिरिक्त संचार के अन्य साधन भी हैं। उनमें ग्राहम बेल की ओर से खोजा गया टेलीफोन भी है । इसी तरह मारकोनी का रेडियो भी है। ये साधन मौखिक संदेश का प्रयोग करते हैं। इन आविष्कारों की सहायता से लंबी दूरी का संचार भी किया जा सकता है।
लिखित संचार के लाभ
1. लिखित संचार में शब्दों को स्थायीत्व प्राप्त होता
2. इससे उन्हें ही लाभ मिलता है जो पढ़-लिख सकते हैं।
3. इससे विचारों का प्रसार होता है।
लिखित संचार के प्रकार या रूप
लिखित संचार के कई रूप हैं। यह रूप निजी पत्र के रूप में देखा जा सकता है और पुस्तक के रूप में भी। समाचारपत्र के रूप में देखा जा सकता है और पत्र के रूप में भी।
लिखित संचार के दोष
निश्चित रूप से आज लिखित संचार एक व्यक्ति के चातुर्य का परिणाम है। इसका सबसे अधिक लाभ यह है कि जो लिखा जाता है, उसे संरक्षित किया जा सकता है। लेखन ने संसार को एक इतिहास दिया है। वेब साइट और इंटरनेट ने लेखन को नवीन दिशा प्रदान की है परंतु इसके बाद भी लेखन में कुछ दोषों को रेखांकित किया जा सकता है। पहला दोष तो यह है इसके लिए साक्षर होना आवश्यक है। निरक्षर व्यक्ति के लिए इसका कोई महत्त्व नहीं है। दूसरी बात यह है कि प्रायः लेखन पाठक के लिए सरल और सहज नहीं होता। एक कहानी या उपन्यास पढ़कर आप आनंद ग्रहण कर सकते हैं परंतु गूढ़ निबंध के लिए तो आपको अतिरिक्त बौद्धिक होना होगा। अतः लिखित संचार बोलने से एकदम अलग है।
संचार के कितने प्रकार होते हैं? उल्लेख कीजिए।
1 उत्तर-संचार का वर्णन उन स्थितियों पर निर्भर है जिनमें यह किया जाता है। यह संचार हम स्वयं से करते हैं, दूसरे के साथ आमने-सामने करते हैं या फिर भारी संख्या में जनता के साथ संबोधन-क्रिया से करते हैं। संचार के लिए हम रेडियो का उपयोग करते हैं अथवा टेलीविजन का उपयोग करते हैं।
संचार के मुख्यतः चार प्रकार हैं-
1. अंतः वैयक्तिक संचार
2. अंतर-वैयक्तिक संचार
3. समूह संचार
4. लोक संचार ।
अंतः वैयक्तिक संचार किसे कहते हैं?
यह संचार व्यक्ति स्वयं से करता है। अगर आप कहीं रात को अकेले जा रहे हैं। कुछ असामाजिक तत्त्व आपका पीछा कर रहे हैं। आप उनसे भयभीत होकर तेज वाहन दौड़ाए भाग रहे हैं। इस बीच उनका बाइक दुर्घटनाग्रस्त होकर बीच सड़क रुक जाता है और आप किसी तरह सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाते हैं। तब आप अपने आपसे संचार करते हैं। ‘भगवान्! मैं बच गया। यह तो अच्छा हुआ कि उनका वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया अन्यथा नगदी, मोबाइल और गाड़ी लूट ली जाती और जान से भी हाथ धोना पड़ता। भगवान तू कितना दयालु है जो उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त कर दी। पिताजी ने मुझे रोका था कि रात को सफ़र मत कर पर मैं भी तो नहीं माना। आखिर बुजर्ग भी अपने अनुभवों के कारण ठीक ही सलाह देते हैं।’
इस प्रकार अंत: वैयक्तिक संवाद स्वयं के साथ किया जाता है। इस बात को एक अन्य उदाहरण से भी समझ सकते हैं। आप रसोई में खाना बना रही हैं। आटा गूंथते वक्त पानी की जगह बेखयाली में उसमें पास रखा सरसों का तेल डाल देती हैं। तब आप अपने आप से बात करती हैं-‘अरे! यह मैंने क्या किया? आटे में तेल डाल दिया। मैं कितनी बेवकूफ हूँ सब्जी तलने के लिए तेल कढ़ाई में डालना चाहिए था और डाल दिया आटे में । रेवती! तुझे बिलकुल समझ नहीं है। कब ध्यान से काम करना। सीखेगी तू । ‘
इस तरह की बातें हम जीवनभर करते रहते हैं। इसे ही अंतः वैयक्तिक संचार कहा जाता है।
अंतर-वैयक्तिक संचार के बारे में सोदाहरण बताइए |
जब हम किसी के आमने-सामने होकर संचार करते हैं तो उस संचार को अंतरवैयक्तिक संचार कहते हैं। यह ऐसा संचार है जिसे हम रोज़ाना जागने से लेकर सोने तक करते हैं।
जैसे-
सुबह पत्नी बैड टी लेकर आती है- ‘लीजिए, उठिए और गर्मागर्म चाय पीजिए।’
पति : ‘ भई अभी चार बजे तो नींद आई और तुमने चाय के चक्कर में जगा दिया। ले जाओ यहाँ से। मुझे नहीं पीनी अभी चाय दाय।’
पत्नी : ‘नहीं पीनी हो तो मत पिओ। पर कहे देती हूँ अब चाय सुबह नौ बजे से पहले नहीं बनेगी। स्नान आदि क्रियाओं से निपट कर ही पीना।’
यह अंतर- वैयक्तिक संवाद है। इसी तरह दफ्तर जाने के लिए रिक्शा के लिए रिक्शेवाले से संवाद, रेलवे स्टेशन पर टिकट खरीदने के लिए टिकट काउंटर पर संवाद, रेल के डिब्बे में सहयात्रियों से बातचीत आदि सभी अंतर-वैयक्तिक संवाद के अंतर्गत आते हैं। हालाँकि अंतर-वैयक्तिक संवाद आमने-सामने होता है, मित्रों के बीच होता है और दोस्ताना माहौल में भी होता है पर यह कभी-कभी औपचारिक संवाद भी होता है। जैसे एक कार्यालय में अपने मातहत कर्मचारी से बातचीत करता कार्यालय अधिकारी। इसी तरह किसी अदालत में अपराधी से पूछताछ करता वकील।
औपचारिक और अनौपचारिक अंतर-वैयक्तिक संवाद में अंतर
औपचारिक संवादः अगर किसी चुनावी सभा में कोई राजनेता भाषण दे रहा है तो इसे औपचारिक अंतर-वैयक्तिक संवाद कहा जाएगा और अगर किसी रेस्त्रां में आप अपने मित्र से बातचीत करते हैं तो इसे अनौपचारिक अंतर-वैयक्तिक संवाद कहते हैं।
औपचारिक अंतर-वैयक्तिक और अनौपचारिक अंतर वैयक्ति संवाद में अंतर: आपने-सामने के संवाद से अभिप्राय है बहुत-सा अशाब्दिक संचार और जो सवाल किया जाए उसका तत्काल उत्तर। अंतर-वैयक्तिक संचार व्यापारिक संगठन, कार्यालयों व जन सेवाओं में होता है और यह आवश्यक भी है।
समूह संचार के बारे में बताइए ।
जब एक समूह के लोग उस समूह से मिलते हैं जो एक-दूसरे को जानते हैं तो उसमें किया गया संचार समूह संचार कहलाता है। जैसे आपके मुहल्ले में देश के लिए प्राणों का उत्सर्ग करने की प्रेरणा देने के लिए एक वीर सैनिक आया है। वह आप और आपके मुहल्ले के लोगों को संबोधित कर रहा है और बता रहा है कि किस प्रकार उसने अकेले सात आतंकवादियों को मौत की नींद सुला दिया। इसे समूह संवाद कहा जाएगा। यह समूह संवाद इसलिए है कि पहले तो वीर सैनिक अपनी बात मुहल्लेवासियों के समक्ष रखेगा फिर मुहल्ले के लोग भी अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए उसके समक्ष अपने सवाल करेंगे और उनका जवाब चाहेंगे। इस तरह इसे समूह संचार की श्रेणी में रखा जाएगा। इसी तरह अगर किसी विद्यालय के छात्र किसी छात्र नेता से मिल रहे हैं। पहले छात्र नेता संबोधित करेगा और फिर छात्र अपनी शंकाएँ उसके समक्ष प्रकट करेंगे और छात्र नेता उनका समुचित समाधान करेगा। यह समूह संचार कहलाएगा।
लोक संचार किसे कहते हैं? सोदाहरण बताइए |
लोक संचार में जब वक्ता अपने श्रोताओं के समक्ष अपनी बात कहता है वह उनसे परिचित नहीं होता। वह पूरी तरह अपने श्रोताओं को देख भी नहीं सकता। ऐसे से संवाद करना लोक संचार कहलाता है। कोई कथावाचक जब किसी पंडाल में श्रद्धालुओं को भागवत् सुना रहा है तो यह लोक संचार है। हज़ारों लोग कथावाचक की कथा सुनने के लिए पंडाल में बैठे हैं। वह माइक द्वारा अपने श्रद्धालुओं को कथा सुना रहा है। यह बात अलग है उनमें से उसके कुछ परिचित हो सकते हैं या उनसे उसका बाद में लंबा रिश्ता बन सकता है पर फिलहाल यह स्थिति लोक संचार की स्थिति ही कहलाएगी।
लोक संचार को इस तरह भी परिभाषित किया जा सकता है कि इसमें अनेक व्यक्ति एक वक्ता से संदेश प्राप्त करते हैं। ऐसे में वक्ता की व्याख्यान कुशलता पर निर्भर करता है कि यह संचार कितना सफल है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपनी भाषण कुशलता के लिए देश ही नहीं पूरी दुनिया में याद किए जाते हैं। इसी तरह पूर्व सांसद और आर्यसमाजी नेता प्रकाशवीर शास्त्री भी अपने भाषण चातुर्य के लिए आज तक स्मरण हैं। इसी तरह धार्मिक नेता मोरारी बापू, रमेश भाई ओझा, पंडित कृष्णचंद शास्त्री महामंडलेश्वर अवधेशानंनद गिरी उपेदश देने में कुशल समझे जाते हैं। दूसरी बात यह है कि यह समूह संचार से अलग है। इसमें संप्रेषक एक बड़ी संख्या तक श्रोता तक पहुँचता है और अक्सर वह अपनी बात कहने के लिए माइक का सहारा लेता है।
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