जनसंचार

विकास संचार में विभिन्न माध्यमों का प्रयोग किस प्रकार किया जा रहा है? संक्षेप में बताइए ।

विकास संचार में विभिन्न माध्यमों का प्रयोग
विकास संचार में विभिन्न माध्यमों का प्रयोग

विकास संचार में विभिन्न माध्यमों का प्रयोग

आज विकास संचार में विभिन्न माध्यमों का प्रयोग किया जा रहा है। इनको संक्षेप में इस प्रकार समझा जा सकता है-

रेडियो : ग्रामीण रेडियो प्रसारण भारत में सन् 1940 के दशक में आरंभ हुआ। तब से ही भारत में विकास संचार माना जाता है। ग्रामीण रेडियो का प्रसारण उनकी भाषा में किया जाता है। इसमें जो कार्यक्रम पेश किए जाते हैं वे प्राय: खेती या उससे संबंद्ध विषयों पर होते हैं। इन कार्यक्रमों में विशेष अधिकारी कृषक के साथ भेंटवार्ता करता है। इसके अतिरिक्त उनमें लोकगीत, मौसम, बाज़ार, बीज आदि विषयों पर भी चर्चा की जाती है।

दूरदर्शन : सन् 1950 के दशक में सरकार ने बड़े स्तर पर विकास संबंधी कार्यक्रम तैयार किए। 15 सितंबर, 1959 में भारत में दूरदर्शन आरंभ हुआ। तब यह कृषि संबंधी कार्यक्रमों पर आधारित था। कृषि दर्शन कार्यक्रम तो बहुत लोगों को याद है जो दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ करता था। सन् 1975 में एस०आई०टी०ई० (सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट) नाम से टेलीविजन कार्यक्रम प्रसारण के लिए उपग्रह का प्रयोग किया गया। तब टेलीविजन से शिक्षा और विकास पर तैयार कार्यक्रम आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उड़ीसा तथा राजस्थान राज्यों के 2400 से गाँवों में देखे गए।

समाचारपत्र : स्वतंत्रता के बाद जब देश के विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का कार्यक्रम तैयार किया गया तो इसके सुनियोजित विकास के लिए समाचापत्रों का आश्रय लिया गया। इसके विकास में इस मुद्रित माध्यम ने बहुत सहयोग दिया। समाचारपत्रों पर इस विषय पर बहुत लिखा गया कि इन सरकारी विकास योजनओं का आम आदमी किस प्रकार फायदा उठा सकते हैं।

परंपरागत माध्यम : इसमें दो राय नहीं कि भारत के विकास में रेडियो, टेलीविजन व समाचारपत्रों ने बहुत योग दिया है। पर विकास में परंपरागत माध्यमों का भी योगदान रहा है। ये माध्यम उनके बहुत निकट हैं जिन्हें विकास संबंधी संदेश की ज्यादा जरूरत रहती है। जैसे कृषक तथा कामगार । जन माध्यमों के ये रूप सहभागिता को प्रोत्साहित करते हैं।

नुक्कड़ नाटक : मजदूर वर्ग सड़क किनारे झोंपड़ी डालकर रहता है, आग जलाकर दाल-चावल पकाकर खाता है और आँधी-मींह, कड़कड़ाती हाड-कंपती सर्दी में जाड़े की रात बिताता है। उन्हें सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक व स्वास्थ्य संबंधी संदेश देने के लिए नुक्कड़ नाटक जैसे माध्यमों का उपयोग किया जाता है। ऐसे लोगों के लिए संदेश के विषय साक्षरता व सामाजिक जागृति आदि विषय पर आधारित होते हैं। इसी प्रकार महिलाओं और उनके बच्चों को लिखना पढ़ना सिखाया जाता है। नुक्कड़ नाटक का माध्यम संदेश में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इसके बाद भी विकासकर्मियों के लिए संदेश का प्रभावी रूप से संचार एक समस्या है। लोगों को नए कौशल कैसे सिखाए जाएँ, स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील विषयों पर बातचीत करने के लिए क्या तरीका अपनाया जाए, यह आज भी समस्या है। इसका सभी को सरलता से समझ आने वाला कोई उपाय अभी तक दिखाई नहीं दे रहा है।

कॉमिक्स : संदेश के संचार का एक तरीका कॉमिक्स है। पर ये कामिक्स तभी सुपरिणाम दे सकते हैं जब इनका निर्माण स्थानीय स्तर किया जाए। इस संचार का लाभ यह है कि ये लोगों के द्वारा उनकी ही भाषा में बनाए जाते हैं। यही वजह है कि पाठक इन्हें अपने जीवन के सबसे अधिक निकट पाते हैं। ग्रामीण संप्रेषकों को विकास संचार में कॉमिक्स के प्रयोग में सक्षम बनाने के लिए और उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए उत्तर पूर्व राज्यों के दूरदराज इलाकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसी प्रकार कॉमिक्स के माध्यम से अनेक राज्यों में एच०आई०वी/एड्स जैसे संवेदनशील स्वास्थ्य मुद्दों पर सूचना दी जाती है।

विकास संचार में हमें तभी सफलता मिल सकती है जब इसमें निम्नलिखित को शामिल कर लिया जाए-विकास एजेंसियाँ जैसे कृषि विभाग, स्वयंसेवी संगठन, रुचि लेने वाले नागरिक, गैर-सरकारी संगठन (एन०जी०ओ०) ।

वस्तुतः जब हम विकास की बात करते हैं तो इसमें रुचि लेने वाले नागरिकों व स्वयंसेवी संगठनों की हम उपेक्षा नहीं कर सकते। ये विकास कार्यक्रमों में सरकार की मदद करते हैं। केंद्र व राज्यों के सरकारों के तमाम विभाग विभिन्न मुद्दों के साथ जनता तक पहुँचते हैं। इसी प्रकार गैर-सरकारी संगठन शोध आदि करते हैं और अनेक विषयों पर जागरूकता पैदा करते हैं।

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