कठपुतली की परिभाषा
कठपुतली की परिभाषाः कठपुतली को अंग्रेजी में Puppet कहा जाता है। यह फ्रेंच शब्द है। यह पॉपी (popee) या लैटिन के ‘प्यूपा’ (Pupa) से उत्पन्न हुआ है। इसका अर्थ गुड़िया है। हिंदी में पुतली शब्द संस्कृत के पुत्रका, पुत्रिका या पुट्टिलिका शब्द से बना है। ये शब्द मूल रूप से पुट्टा से निकला हैं जिसका अर्थ पुत्र के समान है। यह भारत की इस मानसिकता को उजागर करता है कि पुतलियों में भी जान होती है।
यह नाट्य मनोरंजन का रूप है पर परंरागत जन संचार का भी सशक्त माध्यम है। कठपुतली भारत नहीं दुनिया के हर हिस्से में मिलती है। कठपुतली नाट्य में पुतलियों के विभिन्न रूप मिलते हैं। इन रूपों का प्रयोग कथा कहने के लिए कहा जाता है।
कठपुतली के प्रकार
कठपुतली के चार प्रकार प्रसिद्ध है-
1. दस्ताना कठपुतलियाँ
2. डोर कठपुतलियाँ
3. दंड कठपुतलियाँ
4. छाया कठपुतलियाँ।
1. दस्ताना कठपुतलियाँ
कठपुतली का यह प्रकार हमें ओडिशा, केरल व तमिलनाडु में मिलता है। कठपुतली के प्रदर्शन के समय कलाकार इन्हें अपने हाथों में पहन लेते हैं और उंगलियों के माध्यम से उनके सर व बाहों को सक्रिय करते हैं। कठपुतली नचाने वाला कहानी कहता रहता है और कठपुतली उस कहानी को दृश्यांकित करती रहती है। इसके अन्य नाम बाँह कठपुतली, हथेली कठपुतली व हस्त कठपुतली है।
ओडीशा में दस्ताना कठपुतली को कुंडहाई नाच भी कहते हैं। केरल की दस्ताना कठपुतलियाँ आकर्षक हैं। इन्हें पर्याप्त सजाया-सँवारा जाता है। इनका पहनावा ऐसा होता है जैसे कथकली के कलाकार पहनते हैं। इनका कथानक राधाकृष्ण व रामायण के विविध प्रसंग हैं।
2. डोर कठपुतलियाँ
यह कठपुतली का प्रसिद्ध रूप है। जब भी कठपुतली का प्रसंग आता है तब यही रूप आँखों के सामने घूम जाता है। इसे डोर कठपुतली इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह धागे से हिलाई-डुलाई जाती है। ये बहुत जोड़ वाले धागों से नियंत्रित होती हैं। इसका यह रूप प्रमुख रूप से राजस्थान और कनार्टक में मिलता है। ओडिशा व तमिलनाडु में भी इस रूप को देखा जा सकता है। इसका प्रदर्शन कलाकार की दक्षता पर निर्भर है कि वह डोर पर कितना नियंत्रण कर सकता है। कठपुतली को नृत्य कराने वाला कलाकार कोई गीत गाता रहता है अथवा उसके परिवार की कोई महिला ढोलक की थाप पर गीत गाती रहती है और वह अपने हस्तकौशल से उन्हें नृत्य कराता रहता है। इसके अन्य उदाहरण ओडिशा की साखी कुंडेई व महाराष्ट्र का मालासुतरी भौल्या, तमिलनाडु का बोमलट्टम व कर्नाटक का गोम्बेयाट्टा हैं।
राजस्थान में कठपुतली प्रदर्शक कठपुतली नृत्य करा रहा है। नृत्य का कथावस्तु ऐतिहासिक है- अमर सिंह राठौर। एक महिला पुतलियों के संवाद बोल रही है। अचानक ढोलक की थाप पर वह यह गीत गाने लगती है-
मार दिया रे मैंने दुश्मन को
अब बारी है बड़ी लड़ैया की
कर लो पैनी धारऽऽऽर जी………
3. दंड कठपुतलियाँ
ये कठपुतलियाँ काफी बड़ी होती हैं। ये दस्ताना कठपुतलियों का विस्तरित रूप है। यह बाँस के भारी डंडों पर खड़ी की जाती हैं। कठपुतली प्रदर्शक इन्हें अपनी बाँहों से बाँध लेता है। इन्हें त्रिआयामी गत्यात्मक पुतलियाँ कहा जाता है। यह दंडों के सहारे प्रदर्शित की जाती हैं। इन्हें बंगाल में पुत्तल नाच कहा जाता है। दंड पुतली के अन्य उदाहरण बिहार का यमपुरी, ओडिशा का कथी कुंडेई अधिक प्रसिद्ध है।
4. छाया कठपुतलिया
इस तरह की कठपुतलियों के प्रदर्शन में श्वेत-श्याम छाया का प्रयोग होता है। पारदर्शी सतह पर सामान्य चमड़े से बनी कठपुतलियाँ धीरे से टिकाई जाती हैं।. पीछे प्रकाश की व्यवस्था होती हैं। इस तरह पुतली व दर्शक के बीच स्क्रीन बाधा का काम करती है। दृश्य विकसित होता चला जाता है। अंधेरे में बैठे दर्शकों पर इसका नाटकीय असर पड़ता रहता है। एक साधारण शीट होती है और वह वहनीय ढाँचे से व्यवस्थित की जाती है। इस तरह की कठपुतलियों के उदाहरण तोगुलु गोम्बेयट्ठा और आंध्र प्रदेश का घोलु बोमालाटा है।
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