मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा के दोष (muslim shiksha ke dosh)
मुस्लिम युग में यद्यपि शिक्षा का प्रचार हुआ, इतना होने पर भी यह शिक्षा दोषों से मुक्त नहीं थी। मुगल सल्तनत के पतन, नादिर तथा अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों से इस शिक्षा में शिथिलता भी आ गयी थी। अतः मुस्लिम शिक्षा के दोष इस प्रकार थे-
1. भौतिक पक्ष पर बल- इस युग में शिक्षा के भौतिक पक्ष पर बहुत अधिक बल दिया गया। यद्यपि धार्मिक शिक्षा पाठ्यक्रम का एक अंग थी परन्तु जीवन के भौतिक पक्ष की ओर अधिक ध्यान दिया जाता था।
2. अमनोवैज्ञानिक शिक्षा – शिक्षा अमनोवैज्ञानिक थी । बालकों को पहले पढ़ना और फिर उन्हें लिखना सिखाया जाता था। फलत: बालकों के लिखने एवं पढ़ने का समान विकास नहीं हो पाता था।
3. हिन्दी की उपेक्षा- इस युग में अरबी तथा फारसी भाषा शिक्षण का प्रभाव अधिक था। अकबर ने हिन्दी के लिये प्रयत्न किये किन्तु उसका यह प्रयत्न एवं नीति सफल न हुई और उर्दू का जन्म हुआ ।
4. अमीरों के लिये शिक्षा- इस युग में साधन सम्पन्न ही शिक्षा प्राप्त करते थे। जन शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी। शिक्षा नगरों तक सीमित थी। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा नहीं के बराबर थी।
5. नारी शिक्षा की उपेक्षा- इस युग में नारी शिक्षा की पूर्णत: उपेक्षा की गयी। राजघराने की बालिकाओं की शिक्षा के लिये अलग व्यवस्था थी। इस समय असुरक्षा की भावना भी अधिक थी। इसलिये नारी शिक्षा की प्रगति नहीं के बराबर थी ।
6. पढ़ने लिखने पर बल – इस युग में सर्वांगीण विकास पर बल नहीं दिया गया। इस युग में पढ़ने तथा लिखने पर विशेष बल दिया जाता था।
7. विलासिता- इस युग में स्वाध्याय पर बल नहीं दिया जाता था। छात्रों में भी स्वाध्याय के स्थान पर विलासिता पायी जाती थी। व्यर्थ की विडम्बनाओं में छात्र तथा अध्यापक रहते थे।
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