कवि-लेखक

पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली

पद्मसिंह शर्मा 'कमलेश' का जीवन परिचय
पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ का जीवन परिचय

डॉ. पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’

साहित्यिक परिचय

डॉ. पद्मसिंह शर्मा कमलेश का जन्म 22 जनवरी, सन् 1915 में उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में ‘बरीका नगला’ नामक गांव में हुआ। इनके पिता का नाम श्री किशनलाल शर्मा तथा माता का नाम धर्मवती था। बचपन में ही इनके पिता की मृत्यु के पश्चात् इनका पालन-पोषण अत्यन्त कठिनता से हुआ | अनेक आर्थिक कठिनाइयों से जूझते हुए भी इन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा । इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से एम. ए. प्रथम श्रेणी से करने के बाद इसी विश्वविद्यालय से ही पी-एच. डी. की उपाधि ग्रहण की। अपनी लगन और कठिन परिश्रम के परिणामस्वरूप ये कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में प्रोफैसर के पद पर प्रतिष्ठित हुए । यद्यपि ये अधिकतर समय पंजाब, दक्षिण भारत, गुजरात और आगरा में रहे किन्तु इनके जीवन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण काल हरियाणा में ही बीता। इनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए भाषा-विभाग, हरियाणा ने इन्हें अनेक बार सम्मानित किया। 5 फरवरी, 1974 को हृदयगति रुकने से इनका आकस्मिक निधन हो गया।

रचनाएँ-

डॉ. पद्मसिंह शर्मा कमलेश’ बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न थे। ये एक सफल कवि, लेखक, निबन्धकार होने के साथ-साथ साक्षात्कार विधा के जन्मदाता भी हैं। इनकी प्रसिद्ध रचनाएं निम्नलिखित हैं-

काव्य संग्रह – ‘तू युवक है’, ‘दूब के आंसू’, ‘धरती पर उतरो’, ‘एक युग बीत गया।

निबन्ध संग्रह – ‘साहित्यिक निबन्ध मणि’, साहित्य : ‘संदर्भ और दिशाएं।

खण्डकाव्य- ‘दिग्विजय।

इन रचनाओं के अतिरिक्त कमलेश जी ने हिन्दी के साहित्यकारों से साक्षात्कार करके उन्हे लिपिबद्ध किया है तथा मैं इनसे मिला नाम से दो भागों में प्रकाशित करवाया है।

साहित्यिक विशेषताएँ-

डॉ. पद्मसिंह शर्मा कमलेश को विशेष प्रसिद्धि एक संवेदनशील कवि के रूप में मिली है। उनका ‘एक युग बीत गया’ काव्य संग्रह उत्कृष्ट कोटि का है। इनके साहित्य में मानव प्रेम और क्रांति के दो स्वरों को स्पष्ट देखा जा सकता है। इन्होंने क्रांति का प्रचार-प्रसार जन सामान्य से किया। देश को एकता के सूत्र में बाँधने का स्वर इनकी रचनाओं से मिलता है। इन्होंने अपने ‘दिग्विजय खंड काव्य में राष्ट्र की एकता को राष्ट्र की जीवनी शक्ति माना है।

डॉ. कमलेश एक सफल प्राध्यापक के साथ-साथ एक अच्छे समीक्षक एवं शोधकर्ता थे। इनके द्वारा लिखित ‘हिन्दी गद्य विधाएं और विकास’ इनके समय का श्रेष्ठ शोध प्रबन्ध है। ये सरस साहित्य के सर्जक होने के साथ-साथ एक सफल अनुवादक भी थे। इन्होंने अंग्रेजी और गुजराती के अनेक ग्रंथों का अनुवाद किया। इन्हें हिन्दी गद्य की साक्षात्कार विधा का जन्मदाता माना जाता है। हिन्दी के शीर्ष साहित्यकारों से साक्षात्कार करके उनके बाह्य जीवन, विचार और साहित्य सम्बन्धी अनेक प्रश्नों व उत्तरों को लिपिबद्ध करके इन्होंने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है। मै इनसे मिला’ नामक इनके साक्षात्कार संग्रह की साहित्य जगत् में पर्याप्त चर्चा हुई है। समीक्षा के क्षेत्र में भी इनकी देन अद्वितीय है। कमलेश जी की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट है । इनकी भाषा में प्रवाहमयता और लयात्मकता विद्यमान है । भाषा में सरसता और उसका भावानुकूल होना इनकी भाषा की अपनी विशेषता है। कमलेश जी को भाषा का शिल्पी कहा गया है।

पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए?

पद्मसिंह शर्मा कमलेश को भाषा का शिल्पी कहा जाता है। उनकी भाषा-शैली में सरलता, स्पष्टता और व्यावहारिकता है। उनकी भाषा-शैली की निम्नलिखित विशेषताएं हैं–

1.चित्रात्मकता- कमलेश जी की भाषा में चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। वे शब्दों के माध्यम से चित्र प्रस्तुत करने में निपुण हैं । प्रस्तुत साक्षात्कार की भाषा में भी चित्रात्मकता स्पष्ट दिखाई देती है। उदाहरणस्वरूप-“मैने एक दिन दुछत्ती में पहुंचने के लिए रस्सी बाँधी और ऊपर चढ़ गया। जल्दी में एक पुस्तक हाथ लगी-लल्लूलाला जी का ‘प्रेमसागर’ । उसे लेकर मैं नीचे उतर आया और बस्ते में ज्यों-त्यों जमा दिए।”

2. प्रवाहमयता – डॉ. पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश की भाषा में प्रवाहमयता एक ऐसा गुण है जो आरम्भ से अन्त तक विद्यमान है। प्रवाहमयता होने से पूरा विषय परस्पर गुंथा हुआ प्रतीत होता है। श्री माखनलाल चतुर्वेदी साक्षात्कार में भी यह प्रवाहमयता दिखाई देती है। उदाहरणस्वरूप–“उनके शब्दों में जादू का असर है। शब्द निकलते है और सुनने वाले के हृदय को व्यंजना के पंखों पर उठाकर किसी सुदूरलोक में ले जाते हैं। उनका व्याख्यान, जिन्होंने सुना है, वे जानते हैं कि वह साहित्य बोलते हैं । फिर, कविता-पाठ का तो कहना ही क्या ? जब मैं चला तो उनकी पंक्तियाँ मेरे मानस-पट पर अंकित थीं।”

3. मिश्रित शब्दावली- कमलेश जी का शब्द-भंडार विपुल है। इनकी भाषा में तत्सम, तद्भव, देशज तथा विदेशी शब्दों की बहुलता है। अंग्रेज़ी तथा उर्दू-फारसी के शब्दों का भी उन्होंने प्रयोग किया है। भिन्न-भिन्न शब्दों को एक सूत्र में पिरोकर उन्होंने जो माला प्रस्तुत की है वह अत्यन्त प्रभावशाली एवं विषय को रोचक बनाने में सक्षम है।

4. सरसता- कमलेश जी की भाषा में सरसता और सहजता है। उन्होंने विषय को अत्यन्त सरस ढंग से प्रस्तुत किया है। माखनलाल चतुर्वेदी जी के विषय में वे लिखते हैं–“यह जैसे इनके छलकते हृदय का सार है। तभी तो आज भी जो कविताएं वे लिखते हैं, उन्हें पढ़कर किशोर और तरुण कवि भी दांतों तले अंगुली दबाते हैं।”

5. शैली – कमलेश जी की शैली अत्यन्त आकर्षक एवं प्रभावोत्पादक है। उनकी शैली में सरसता और रोचकता निरन्तर विद्यमान रहती है। श्री माखनलाल चतुर्वेदी’ साक्षात्कार में इनकी शैली वर्णनात्मक तथा संवादात्मक हैं। शैली में नाटकीयता का पुट भी है।

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