जवाहरलाल नेहरू का संक्षिप्त परिचय
संक्षिप्त परिचय- पं० जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर, 1889 ई० में हुआ था। आपके पिता पं० मोती लाल नेहरू उस समय के प्रसिद्ध व धनी वकील थे। आपका लालन-पालन राजकुमारों की तरह हुआ था। आप उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड गये।
बी०ए०, एम०ए० और बैरिस्ट्री पास कर आप इलाहाबाद लौट आये। 15 अगस्त, 1947 में देश के स्वतन्त्र होने पर वे देश के प्रथम प्रधानमन्त्री बने और आजीवन इस पद पर रहकर देश सेवा करते रहे। आपके नेतृत्व में देश में आर्थिक, वैज्ञानिक व औद्योगिक क्षेत्र में भारी विकास हुआ। 27 मई, 1964 को हृदय गति रुक जाने के कारण अचानक ही पं० चाचा नेहरू का देहान्त हो गया। सर्वपल्ली डॉ० राधाकृष्णन् के शब्दों में, “नेहरू हमारी पीढ़ी के एक महानतम् व्यक्ति थे। वे स्वतन्त्रता संग्राम के यशस्वी योद्धा थे और आधुनिक भारत के निर्माण के लिए उनका अंशदान अभूतपूर्व था।”
जवाहर लाल नेहरू अपने धनवान पिता के एकमात्र पुत्र थे। उनसे लगभग 11 वर्ष छोटी उनकी एक बहन विजयलक्ष्मी थी जबकि दूसरी बहन उनसे करीब 18 वर्ष छोटी थी।
(1) विनोदी स्वभाव-
उनकी आयु 11 वर्ष की रही होगी। वे एक घोड़े की पीठ पर सवार थे जोकि चौकड़ी भर रहा था। घोड़े के अचानक रुक जाने से, जवाहर नीचे गिर गए और घोड़ा बिना सवार के घर लौट आया।
घर के नौकर डरे सहमे से चिल्लाए कि जवाहर कहाँ है ? शोर सुनकर माँ स्वरूप रानी बाहर आई और जवाहर को गायब देख वे भी रोने लगी।
आनन-फानन में घर के नौकर, मित्र, घर के सभी सदस्य जवाहर की खोज में जुट गए। लेकिन वह नहीं मिला। उधर दरवाजे पर जवाहर खड़े मुस्करा रहे थे। सब लोगों को उनकी तलाश में दौड़ता-भागता देख उन्हें बड़ा मजा आ रहा था। यह प्रसंग उनके विनोदी स्वभाव को दर्शाता है।
(2) करनी-कथनी एक हो-
इंग्लैण्ड में शिक्षा पूरी करके भारत में लौटते ही जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। वे सन् 1912 के कांग्रेस अधिवेशन में सम्मिलित होकर जब इलाहाबाद वापस आए तो मोती लाल नेहरू ने उनसे कांग्रेस अधिवेशन के विषय में उनका विचार जानना चाहा। उनका उत्तर था, “पिताजी, वहाँ जितने भी सदस्य उपस्थित थे, उन सभी ने मुझे बहुत निराश किया। उन सभी ने अंग्रेजी वस्त्र धारण किए हुए थे और वे अंग्रेजी में बातें कर रहे थे। उनका भारत के साधारण नागरिक से कुछ लेना-देना नहीं था।”
उनका विचार था कि कांग्रेस क्योंकि एक जन-पार्टी है, अत: इसके सदस्यों को जनता जैसे वस्त्र पहनने चाहिए थे तथा आम हिन्दुस्तानी भाषा का प्रयोग करना चाहिए था।
(3) कर्त्तव्यपरायणता-
जवाहर लाल नेहरू देश के स्वतन्त्रता संघर्ष में जी-जान से लगे हुए थे। अभी-अभी वे तथा उनके पिता जेल से छूटकर आए थे। उधर उनकी पत्नी कमला बीमार चल रही थीं।
एक दिन वे अपने पिता से बोले, “मेरा हृदय तथा मेरी आत्मा देश की आजादी की लड़ाई में अटकी पड़ी है, लेकिन परिवार के प्रति भी मेरा कुछ कर्त्तव्य है। कमला ने टी० बी० की बीमारी के कारण बिस्तर पकड़ लिया है और दिन-पर-दिन कमजोर होती जा रही हैं। पिताजी, बताइए मैं क्या करूँ?”
पिता का सुझाव था कि कमला को इलाज के लिए स्विट्जरलैण्ड ले जाना चाहिए। जवाहर लाल नेहरू अपनी पत्नी के प्रति अपना कर्त्तव्यपालन करते हुए उन्हें स्विट्जरलैण्ड ले गए। उनको वहाँ क्षय-निवारण आश्रम में भर्ती करा दिया। अभी वे पूरी तरह ठीक भी नहीं हुई थीं कि देश-सेवा के लिए वहाँ से चल पड़े। वहाँ से लौटते ही वे फिर स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े।
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