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महात्मा गाँधी का संक्षिप्त परिचय | Brief Introduction of Mahatma Gandhi

महात्मा गाँधी का संक्षिप्त परिचय

महात्मा गाँधी का संक्षिप्त परिचय

महात्मा गाँधी का संक्षिप्त परिचय

संक्षिप्त परिचय (1869-1948)- सत्य एवं अहिंसा के पुजारी मोहनदास करमचन्द गाँधी का जन्म गुजरात के पोरबन्दर में 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ था। आपके पिता का नाम करमचन्द गाँधी एवं माता का नाम पुतलीबाई था। महात्मा गाँधी ने बैरिस्ट्री इंग्लैण्ड से उत्तीर्ण की थी। अत्याचार के विरुद्ध उन्होंने सत्य और अहिंसा को अपना अमोघ अस्त्र बनाया और इसी अस्त्र से लड़ते हुए उन्होंने अपने देश को आजाद कराया तथा इसी अस्त्र से अनेक देशों को भी स्वतन्त्रता प्राप्त हुई।

मोहनदास करमचन्द गाँधी वास्तविक नाम वाले इस महान् व्यक्ति के अन्य नाम थे—’गाँधी जी’, ‘महात्मा गाँधी’, ‘राष्ट्रपिता’, ‘बापू’ तथा ‘बापू जी’। बाल्यकाल से लेकर मृत्यु तक के उनके जीवन में प्रेरणादायक प्रसंगों की भरमार है। आइए, उनके जीवन के तीन प्रेरक प्रसंगों का वर्णन करें-

(1) बाल्यकाल का प्रसंग- मोहनदास का एक मित्र था उका। उका अछूत समझा जाता था, क्योंकि उसके पिता झाडू लगाने का काम करते थे। एक बार मोहनदास को कुछ मिठाइयाँ खाने के लिए घर पर दी गईं। वे उन मिठाइयों को अपने मित्र उका के साथ मिल-बैठकर खाने के लिए उसके घर दौड़ पड़े।

उका ने जब मोहनदास को अपने समीप आते देखा तो वह लगभग चीख पड़ा, “श्रीमान् जी, आप से समीप मत आइए, मुझे मत छुइये।”

चकित हो गाँधी जी ने उससे पूछा, “क्यों ? मैं तुम्हारे समीप क्यों न आऊँ ?”

उका का उत्तर था, “क्योंकि मैं अछूत हूँ।” उका के शब्दों को अनसुना करके, मोहनदास ने अपने मित्र को अपनी ओर खींचा तथा उसके हाथ मिठाई से भर दिए।

मोहनदास की माता, पुतलीबाई यह सब देख रही थीं, उन्होंने मोहनदास को आवाज देकर घर पर बुलाया और बोली, “क्या तुम्हें यह नहीं मालूम कि ऊँची जाति वालों को अछूतों को नहीं छूना चाहिए ?” “पर क्यों नहीं?” मोहनदास ने प्रश्न किया। माँ ने उत्तर दिया, “हमारी हिन्दू प्रथा इसको निषेध मानती है।”

मोहनदास का उत्तर था, “मैं ऐसी प्रथा को स्वीकार नहीं कर सकता। उका को छूने से मुझे कोई हानि नहीं हो सकती। क्या वह मेरी तरह एक बालक नहीं है? मुझमें और उसमें आपको क्या अन्तर दिखाई देता है?”

पुतलीबाई के पास इस निष्कपट व भोले-भाले बालक के प्रश्न का कोई उत्तर न था।

(2) दक्षिण अफ्रीका का प्रसंग- सन् 1893 और 1915 ई० के मध्य गाँधी जी तीन बार दक्षिण अफ्रीका गए। वहाँ उनको अनेक कटु अनुभव हुए। इन अनुभवों ने गाँधी जी की राजनीतिक स्वतन्त्रता, जातीय पूर्वाग्रह, सामाजिक अन्याय तथा धार्मिक दुराग्रह से सम्बन्धित विचारधारा को बहुत प्रभावित किया। दक्षिण अफ्रीका में ही सर्वप्रथम उन्होंने अपने अस्त्र ‘सत्याग्रह’ को परखा। वे आश्वस्त थे कि उनका यह अस्त्र अहिंसा तथा अत्याचार के विरुद्ध कारगर है।

गाँधी जी को प्रथम लज्जाजनक अनुभव तब हुआ जब उनको खून जमा देने वाली सर्दी की एक रात एक निर्जन रेलवे स्टेशन पर गुजारनी पड़ी।

हुआ यूँ कि यद्यपि गाँधी जी के पास प्रथम श्रेणी के रेलवे डिब्बे का टिकट था, तथापि उनको एक पुलिस वाले ने बड़ी निर्दयतापूर्वक डिब्बे से खींचकर बाहर कर दिया। उसी डिब्बे में एक यूरोपवासी यात्रा कर रहा था और उसी के आदेश पर पुलिस वाले ने ऐसा किया। यूरोपवासी का कहना था कि ‘कुली’ सा दिखने वाला आदमी उसके डिब्बे में यात्रा करने का साहस कैसे कर सकता था?

यह घटना गाँधी जी के जीवन को एक नया मोड़ देने वाली सिद्ध हुई। तभी उन्होंने शपथ ली कि वे ‘सत्याग्रह’ के बल पर हर प्रकार के भेद-भाव के विरुद्ध लड़ाई लड़ेंगे।

(3) भारत का एक प्रसंग – सन् 1916 का किस्सा है। बनारस विश्वविद्यालय का शिलान्यास होने का कार्यक्रम था। दिल्ली से वायसराय वहाँ पधारे थे। साथ ही अनेक भारतीय नरेश भी उपस्थित थे। सभी ने बेशकीमती जेवरात पहने हुए थे तथा उनके शरीर से भव्यता तथा धन परिलक्षित हो रहे थे। वहाँ भाषण हो रहे था। थे कि भारत की गरीबी कैसे दूर की जाए तथा गरीबों का उत्थान कैसे किया जाए?

गाँधी जी की भाषण देने की बारी आई। उनका वेष अत्यन्त साधारण तथा एक निर्धन भारतीय जैसा था।

गाँधी जी बड़ी सहजता परन्तु निडरता से बोले, “आप लोग भारत की निर्धनता तथा भारतीय निर्धनों के उत्थान पर भाषण दे रहे हैं, जबकि आप सब में अपनी भव्यता तथा अपने धन को प्रदर्शित करने की होड़ लगी हुई है। आपने एक-दूसरे से अधिक मूल्यवान जेवरात धारण किए हुए हैं। जब तक आप स्वयं को इस प्रकार की सनक से मुक्त नहीं करते, निर्धनों उत्थान कैसे कर सकते हो?”

गाँधी जी का यह पहला राजनीतिक भाषण था जो उन्होंने भारतीय जनता के बीच दिया। इस भाषण ने श्रोताओं पर एक अमिट छाप छोड़ी तथा उनमें देशभक्ति व त्याग की भावना जाग्रत की।

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