Levels or Scales of Measurement in Hindi मापन के स्तर व मापनियाँ
मापन का प्रमुख उद्देश्य, विभिन्न चरों को मात्रांकित करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु ही मापन की प्रविधियों को प्रयुक्त किया जाता है, परन्तु मापन की समस्त प्रविधियाँ अथवा प्रदत्तों की विश्लेषण प्रक्रिया हेतु प्रयुक्त की जाने वाली समस्त सांख्यिकीय प्रविधियाँ परिणाम की दृष्टि से पर्याप्त भिन्नता रखती हैं। मापन हेतु प्रयुक्त समस्त परीक्षण अथवा सांख्यिकीय गणनाएँ, प्रयोग उद्देश्य व मात्रांकन की शुद्धता की दृष्टि से समान नहीं होतीं। इनमें से निम्नतर स्तर की मापनियाँ, यद्यपि प्रयुक्त करने की दृष्टि से सुगम होती हैं, परन्तु उनसे प्राप्त परिणाम, अधिक शुद्ध नहीं होते, इसके विपरीत उच्च स्तर की मापनियों का प्रयोग जटिल होता है, परन्तु उनसे प्राप्त परिणाम, अधिक शुद्ध एवं विश्वसनीय होते हैं। प्रयोग की सुगमता अथवा जटिलता तथा परिणाम की शुद्धता अथवा अशुद्धता के आधार पर ही, सन् 1946 में स्टीवेन्स के द्वारा मापन के चार स्तरों का निर्धारण किया गया है। चार स्तर अथवा मापनियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) शाब्दिक स्तर या मापनी (Nominal)- मापन के इस स्तर को वर्गीकरण स्तर अथवा नाम सम्बन्धी स्तर के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। इस स्तर के अन्तर्गत किन्हीं वस्तुओं अथवा व्यक्तियों को विभित्र वर्गों में प्रस्तुत किया जाता है। वर्गीकरण अथवा समूहीकरण की यह प्रक्रिया वस्तुओं अथवा व्यक्तियों के गुणों के आधार पर सम्पन्न की जाती है। यह ध्यान रखा जाता है कि एक वर्ग अथवा समूह के व्यक्तियों एवं वस्तुओं में किसी न किसी प्रकार की समानता अवश्य हो। इस प्रकार का प्रत्येक समूह एक-दूसरे से भिन्न होता है परन्त प्रत्येक समूह के समस्त सदस्यों में किसी न किसी प्रकार की समानता होती है। निवास, रंग, व्यवसाय उपलब्धि, लिंग आदि के आधार पर यह वर्गीकरण किया जाता है। उदाहरणार्थ काले व गोरे, शहरी व ग्रामीण, सेवाकर्मी व व्यापारी, पुरुष व स्त्रियाँ, इतिहास व नागरिकशास्त्र के विद्यार्थी आदि अनेक ऐसे आधार हैं, जिनको लक्ष्य बनाकर वर्गीकरण किया जा सकता है। इसी प्रकार किसी टीम के सदस्यों की कमीजों पर संख्याएँ लिखकर अथवा उनकी कमीज के रंगों को सुनिश्चित करके भी उनकी पहचान एवं वर्गीकरण किया जा सकता है। संख्याओं के अतिरिक्त नाम एवं कोड शब्दों को भी पहचान हेतु प्रयुक्त किया जा सकता है। इस प्रकार इस स्तर पर किन्हीं तथ्यों का केवल दो या दो से अधिक वर्गों में विभाजन ही सम्भव है। इस प्रकार के विभाजन से किसी प्रकार के परिणामों का बोध नहीं होता है।
इस स्तर मापन हेतु, प्रश्नावली व निरीक्षण प्रविधि को प्रयुक्त किया जाता है। गणितीय संक्रियाओं के आधार पर इस स्तर पर, मात्र गणना ही सम्भव होती है। प्रदत्तों के विश्लेषण हेतु- बहुलांक, प्रतिशत, काई वर्ग तथा सह-सम्बन्ध प्रविधियों को प्रयुक्त किया जा सकता है।
(2) क्रमसूचक स्तर (Ordinal)- इस स्तर को शाब्दिक स्तर की अपेक्षा शुद्ध एवं उच्च माना जाता है। क्रमसूचक के अन्तर्गत, विभिन्न व्यक्तियों, वस्तुओं आदि को किसी भी सुनिश्चित विशेषता के आधार पर एक क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। यह क्रम, उच्चतम से निम्नतम की दिशा में निर्धारित होता है तथा क्रम में व्यवस्थित तथ्य क्रमसूचक अंकों से प्रदर्शित किये जाते हैं। व्यवसाय, वेतन, योग्यता अथवा उपलब्धि आदि के आधार पर यह क्रम एवं क्रमांक दिया जा सकता है। योग्यता के आधार पर रोजगार हेतु आवेदन करने वाले प्रत्याशियों का चयन करना खेल प्रदर्शन के आधार पर खिलाड़ियों को प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि घोषित कर स्वर्ण, रजत व लौह पदक प्रदान करना अथवा परीक्षण प्राप्तांकों के आधार पर विद्यार्थियों की क्रमसूची तैयार करना इसी स्तर के अन्तर्गत आता है। यह क्रम निरीक्षण एवं तर्क के आधार पर ही निर्धारित किया जाता है। यद्यपि क्रमसूचक स्तर पूर्व स्तर की अपेक्षा उच्च स्तर है, परन्तु इस स्तर से क्रमों के अनन्तर निहित दूरी का बोध नहीं हो पाता है। इस स्तर पर क्रम प्रदान करने हेतु दो विधियों को प्रयुक्त किया जाता है। प्रथम विधि पंक्ति क्रम विधि है, जिसमें किसी भी आधार पर वस्तुओं आदि को क्रम दिया जाता है तथा क्रमांकन हेतु प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि स्थान. प्रदर्शित किया जाता द्वितीय विधि-युग्म तुलना विधि है, जिसके अन्तर्गत समूह के समस्त पदार्थों, सदस्यों आदि की युग्म अथवा जोड़ों के रूप में तुलना की जाती है। किसी समूह के
सदस्यों के युग्मों का निर्धारण करने हेतु nc2 = n(n-1) / 2 सूत्र को प्रयुक्त किया जाता है।
क्रमसूचक स्तर के मापन हेतु निरीक्षण एवं स्तर सूची का प्रयोग किया जाता है। क्रम एवं अंकन हेतु सामान्य गणितीय संक्रियाओं यथा जोड़, गुणा, भाग आदि के स्थान पर सांख्यिकीय विधियों को ही प्रयुक्त किया जाता है। नाम सम्बन्धी स्तर पर प्रदत्त केवल आवृत्ति में ही प्राप्त होते हैं, परन्तु इस स्तर पर आवृत्तियों को क्रम में रखा जाता है। सांख्यिकीय विधियों की दृष्टि से इस स्तर पर बहुलांक एवं शतांशीय मान, सहसम्बन्ध ज्ञात करने हेतु, स्पीयरमैन सहसम्बन्ध रैंक विधि तथा अन्तरों का विश्लेषण करने हेतु काई वर्ग का उपयोग किया जा सकता है।
(3) अन्तराल स्तर (Interval Level)- इस स्तर में प्रथम दो प्रकार की मापनियों की विशेषता के अतिरिक्त एक विशेषता यह भी निहित होती है कि इसके अन्तर्गत दो चरों की दूरी भी प्रदर्शित की जाती है। इस स्तर में शून्य माना हुआ होता है तथा छात्रों की परीक्षा में अंक दिये जाते हैं शिक्षा एवं मनोविज्ञान के क्षेत्र में इस स्तर का बहुलता के साथ प्रयोग होता है मापन की दृष्टि से यह स्तर नाम सम्बन्धी स्तर एवं क्रमसूचक की अपेक्षा अधिक शुद्ध होता है। इस मापनी के द्वारा यद्यपि दो अंकों की दूरी अथवा अन्तर का ज्ञान तो होता है, परन्तु यह ज्ञात है. नहीं हो पाता है कि प्रत्येक अंक शून्य से कितनी दूर है। इसका कारण है कि इस मापनी में कोई वास्तविक शून्य बिन्दु नहीं होता है। यही कारण है कि इसके माध्यम से केवल सापेक्षिक मापन ही किया जा सकता है। प्रत्येक अंक के मात्र समान दूरी पर होने तथा वास्तविक शून्य बिन्दु के न होने की स्थिति में मापन को पूर्णतया शुद्ध अथवा उद्देश्य युक्त बनाना कठिन होता है। उदाहरण के लिए यदि किसी उपलब्धि परीक्षण में किसी छात्र के द्वारा मात्र शून्य प्राप्तांक प्राप्त किया गा हो तो इसका यह अर्थ नहीं है कि वह छात्र मात्र शून्य प्राप्तांक की ही योग्यता रखता है। इस प्रकार मापक्रम बनाने हेतु प्रयुक्त किए जाने वाले थर्मामीटर पर समस्त तापक्रम बिन्दु समान दूरी पर प्रदर्शित किए जाते हैं तथा तापक्रम नापने पर यदि किसी व्यक्ति का तापक्रम शून्य अथवा माः 94 पर ही पाया जाए तो इसका यह अर्थ नहीं है कि तापक्रम भी शून्य है। समान आवान्तर अथवा अन्तराल स्तर पर विशेषतः उपलब्धि परीक्षणों का ही प्रयोग किया जाता है तथा परीक्षण से प्राप्त अंकों के विश्लेषण हेतु मध्यमान, प्रामाणिक विचलन, सह-सम्बन्ध गुणक, टी० परीक्षण आदि सांख्यिकीय प्रविधियों को प्रयुक्त किया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षकों के द्वारा अधिकांशतः इसी मापन स्तर का प्रयोग किया जाता है तथा इस स्तर के प्रयोग से प्राप्त अंकों एवं सांख्यिकीय गणनाओं के आधार पर उद्देश्यों के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाता है।
(4) अनुपात स्तर ( Ratio level)— यह मापन का सर्वाधिक शुद्ध स्तर होता है तथा शिक्षा एवं मनोविज्ञान की अपेक्षा भौतिक विज्ञान में इस स्तर का अधिक प्रयोग होता है, इस स्तर की इकाइयाँ समान होती हैं तथा इसमें शून्य को भी महत्त्व दिया जाता है। इसी कारण यह मापनी अधिकाधिक वैज्ञानिकतापूर्ण, शुद्ध एवं उच्चस्तरीय मानी जाती है। इस मापनी में अन्तराल स्तर की भी समस्त विशेषताएँ निहित होती हैं। इस स्तर पर निरपेक्ष शून्य बिन्दु से ही मापन प्रारम्भ किया जाता है। शून्य बिन्दु के आधार पर विभिन्न दूरियों का अनुपात ज्ञात करने में सुविधा रहती है। अंकों के आधार पर शुद्ध अनुपात दूरी का ज्ञान कराने के कारण को इस स्तर का अनुपात स्तर कहा जाता है। सांख्यिकीय प्रक्रियाओं की अपेक्षा इसमें गणित की संक्रियाओं का ही व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।
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