शिक्षा के क्षेत्र में मापन का अर्थ (Meaning of Measurement in the Field of Education)
शिक्षा के क्षेत्र में जब हम एक विद्यार्थी की योग्यताओं एवं विशेषताओं की गणना गणितीय इकाइयों में निश्चित करते हैं तो वह मापन कहलाती है। उदाहरण-छात्रों की विषय सम्बन्धी उपलब्धियों का आकलन संख्यात्मक अंकों में प्रकट करना इसे मापन कहते हैं। मापन उपलब्धि के एकाकी पक्ष पर बल देता है। इसी परिप्रेक्ष्य में गैरिसन तथा अन्य (Garrison & Others) ने कहा है- “मापन मूलरूप से मूल्यांकन के एक भाग के रूप में उस प्रक्रिया से सम्बन्धित है से जिसके द्वारा शिक्षक एक छात्र की किसी विशेषता को एक क्रम या अन्य संख्यात्मक मूल्य प्रदान करता है।”
इन विचारों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट है कि मापन के द्वारा विभिन्न निरीक्षणों, वस्तुओं एवं घटनाओं का मात्रात्मक रूप में वर्णन किया जाता है। मापन में परिष्करण (Refinement) के सभी अंशों का प्रतिनिधित्व होता है। कुछ मापन ठोस एवं संक्षिप्त होते हैं, है परन्तु कुछ अपरिष्कृत होते हैं। थार्नडाइक एवं हेगेन ने मापन के परिष्करण के विषय में निम्नलिखित चार बिन्दु बतायें हैं-
(1) दोनों में से एक जैसे एक छात्र या तो लड़का या लड़की होता है। वह या तो पास या फेल हो सकता है। इस स्तर पर सम्भावना व्यक्त की जाती है। यहाँ पर निश्चितता का अभाव पाया जाता है।
(2) गुणात्मक दृष्टिकोण से वर्णित अंश (Qualitatively described degrees) जैसे किसी अध्यापक के विषय में कहा जा सकता है कि वह सामान्य ढंग से भाषण देता है। संख्या के स्थान पर गुण व्यक्त किया जाता है।
(3) एक समूह में क्रम (Rank in a group) इसमें समूह के सभी लोगों को प्राप्त अंकों के आधार पर उच्चतम से निम्नतम क्रम में रखते हैं।
(4) पूर्व स्थापित एक रूप इकाइयों में व्यक्त मात्रा ( Amount expressed in uniform established unit) इसमें मापन ठोस एवं संक्षिप्त होता है जैसे किसी बालक का वजन 40 किग्रा है। उसकी लम्बाई 5 फीट 2 इंच है।
शैक्षिक मापन की विशेषताएँ (Characteristics of Educational Measurement)
मापन की आवश्यक विशेषताओं के विषय में कुछ अनुमान इसके स्वभाव को जानने के पश्चात् लगाया जा सकता है। नोल (Noll) ने इस सन्दर्भ में निम्न विशेषताओं का जिक्र किया है-
(1) शैक्षिक मापन संख्यात्मक होता है- शैक्षिक मापन संख्या से सम्बन्धित होता है अन्यथा इसे मापन की संज्ञा मिल ही नहीं सकती है। शैक्षिक मापन के उपयोग से एक को अंकों, मानकों, औसत आदि प्राप्त होते हैं।
(2) मापन को सदैव स्थिर इकाइयों में व्यक्त किया जाता है- शिक्षा के क्षेत्र में तुलनात्मक अध्ययन के लिए वास्तविक फलांकों (Raw scores) को किसी समान आदर- व्युत्पन्न फलांकों (Derived scores) में परिवर्तित कर लेते हैं। प्रमाणित फलांक (Standard scores) तथा टी० फलांकों द्वारा (T. Scores) व्युत्पन्न फलांकों के उदाहरण हैं।
(3) शैक्षिक मापन में अशुद्धियों की उपस्थिति रहती है- अन्य क्षेत्रों के समान शैक्षिक मापन में भी अशुद्धियों की उपस्थिति रहती है। इस कमी को सभी लोग मानते हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण त्रुटियाँ इस प्रकार हैं-
(i) आकस्मिक त्रुटियाँ- यह त्रुटियाँ परिस्थितियों के अचानक उपस्थित होने के कारण उत्पन्न होती हैं जैसे किसी परीक्षार्थी के शरीर में एकाएक पीड़ा होने से परिणाम में अशुद्धता आ जाती है।
(ii) क्रमिक त्रुटियाँ- व्यक्तिगत पक्षपात एवं पूर्वाग्रहों के कारण परिणाम में शुद्धता नहीं रहती है।
(iii) व्यक्तिगत त्रुटियाँ- व्यक्तिगत त्रुटियों का जन्म परीक्षा से विषयीगत तत्त्वों (Subjective elements) के प्रभाव के कारण होता है। इसमें परीक्षक अपनी व्यक्तिगत विचारधाराओं से प्रभावित होता है। इसी कारण दो परीक्षकों के द्वारा किसी एक छात्र के विषय में दिये गये निर्णयों में प्रायः अन्तर होता है।
(iv) मानक त्रुटियाँ- यह एक ऐसा मान है जो यह बताता है कि प्रतिदर्श का मध्यमान मूलक जनसंख्या में वास्तविक मध्यमान से कितना कम अथवा अधिक है।
इन त्रुटियों का जन्म मुख्यतः परीक्षकों के दोषों, मापन के औजारों की कमियों तथा जिनका मापन होता है इनमें एकरूपता के अभाव आदि के कारण होता है।
(4) शैक्षिक मापन सामान्यतया अप्रत्यक्ष होता है, प्रत्यक्ष नहीं- शैक्षिक मापन में निरपेक्ष रूप से मापून नहीं होता है। उदाहरण के लिए किसी आदमी की लम्बाई प्रत्यक्ष रूप से मापी जा सकती है, परन्तु किसी व्यक्ति की बुद्धि प्रत्यक्ष रूप से नहीं मापी जा सकती है। उसके द्वारा किये गये कुछ कार्यों एवं व्यवहारों के आधार पर केवल इस सन्दर्भ में अनुमान ही लगाया जा सकता है। अनुमान के आधार पर किसी की बुद्धि के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। के के
(5) शैक्षिक मापन सापेक्ष होता है, निरपेक्ष नहीं- शैक्षिक मापन के द्वारा प्राप्त अंकों या आँकड़ों का तुलनात्मक रूप में अध्ययन करने पर ही कोई न कोई अर्थ प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए अगर कोई छात्र गणित में 100 में 80 अंक प्राप्त करता है। इस छात्र की स्थिति का सही ढंग से मूल्यांकन करने के लिए इस कक्षा या इस उम्र के अन्य छात्रों के प्राप्तांकों का औसत जानना पड़ेगा। इस प्रकार तुलना करके किसी फलांक या स्थिति के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। इसी कारण शैक्षिक मूल्यांकन में निरपेक्ष मापन के स्थान पर सापेक्ष महत्त्व को प्राथमिकता दी जाती है।
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