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मापन क्या है?| शिक्षा के क्षेत्र में मापन एवं मूल्यांकन की आवश्यकता- in Hindi

मापन क्या है?

मापन क्या है?

मापन क्या है? शिक्षा के क्षेत्र में मापन एवं मूल्यांकन की आवश्यकता वर्णन कीजिए।

मापन का अर्थ एवं परिभाषा

मापन क्या है ? 

आधुनिक युग में हमारे जीवन में मापन का महत्वपूर्ण स्थान है। जन्म से मृत्यु तक व्यक्ति का जीवन मापदण्ड द्वारा मापा जाता है। जन्म के समय नवजात शिशु के स्वास्थ्य का मापन करने के लिए उसके शारीरिक भार को मापा जाता है। उसकी शारीरिक वृद्धि के साथ-साथ उसके भोजन की मात्रा निर्धारित की जाती है। विभिन्न विज्ञानों के विकास में मापन विधियों का योग रहा है। मानव शरीर के तापक्रम, रक्तचाप, नाड़ी की गति व दिल की धड़कन के मापन की विधियों के कारण ही चिकित्सा विज्ञान का विकास हुआ। कृषि विज्ञान का विकास भी मिट्टी, बीज के गुण विभिन्न उपजों के लिए जल, वायु की सही मात्रा के मापन के कारण हुआ। बालक की शिक्षा योजना बमाते समय उसके मानसिक स्तर और क्षमताओं को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। उनके सर्वांगीण विकास के लिए शैक्षिक उपलब्धि एवं व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं का मापन एवं मूल्यांकन करना आवश्यक होता है। मापन की सहायता से बालक में उन गुणों का विकास सम्भव है जो उसे अपने स्वयं के और समाज के कल्याण में सहायक हों।

वास्तव में मापन से अभिप्राय मात्रात्मक मूल्य से होता है। इसमें वस्तु, घटना, निरीक्षण तथा सामान्य व्यवहार का वर्णन अंकों के द्वारा करते हैं।

स्टीवेन्स के अनुसार- “मापन किन्हीं निश्चित स्वीकृत नियमों के अनुसार वस्तुओं को अंक प्रदान करने की प्रक्रिया है।”

हेल्मस्टेडलर के अनुसार- “मापन को एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें किसी व्यक्ति या पदार्थ में निहित विशेषताओं का आंकिक वर्णन होता है।”

गिलफोर्ड के मतानुसार- “मापन वस्तुओं या घटनाओं को तर्कपूर्ण ढंग से संख्या प्रदान करने की क्रिया है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि मापन का अर्थ है किन्हीं निश्चित इकाइयों में किसी वस्तु या गुण के परिमाण का पता लगाना। शिक्षा के क्षेत्र में जब हम एक विद्यार्थी की योग्यता या विशेषता की मात्रा को गणितीय इकाइयों में व्यक्त करते हैं, तो वह मापन कहलाता है।

शिक्षा में मापन एवं मूल्यांकन की आवश्यकता

यह ठीक है कि मापन और मूल्यांकन में अन्तर है परन्तु शिक्षा के क्षेत्र में मापन और मूल्यांकन दोनों का ही महत्व और उपयोगिता है। मापन के बिना मूल्यांकन सम्भव नहीं है। यहां हम शिक्षा में मापन और मूल्यांकन के महत्व एवं उपयोगिता की चर्चा संक्षेप में कर रहे हैं-

(1) बालक के सम्बन्ध में आवश्यक सूचनाएँ-

मापन और मूल्यांकन के द्वारा ही बालक के सम्बन्ध में आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। इसके द्वारा ही बालक की विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक योग्यताओं, अभिरुचियों, निष्पत्तियों आदि के सम्बन्ध में विश्वसनीय सूचनाएँ प्राप्त होती हैं, जिनके अभाव में शिक्षण कार्य पूर्ण नहीं हो सकता है। बालक के सम्बन्ध में विश्वसनीय एवं वांछनीय सूचनाओं के आधार पर ही उनका श्रेणीकरण एवं निर्देशन किया जाता है। इसके द्वारा अध्यापक छात्रों की समस्याओं का समाधान भी कर सकता है।

(2) शिक्षण विधि में सुधार-

शिक्षण की सफलता या असफलता की जानकारी मापन और मूल्यांकन से ही होती है। मापन और मूल्यांकन से ही यह पता लगता है कि शिक्षा के निर्धारित लक्ष्यों को कहाँ तक प्राप्त किया जा सकता है। किसी भी स्थिति में यदि शिक्षण प्रणाली असफल होती है तो उसमें वांछित सुधार और परिवर्तन भी किया जा सकता है। मापन और मूल्यांकन में शिक्षण तकनीक प्रणाली के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसके द्वारा ही यह शिक्षण और तकनीकी प्रणाली की सफलता और असफलता ज्ञात होती है और उनमें समयानुसार सुधार की सम्भावनाएँ बनी रहती हैं।

(3) पाठचर्या में सुधार-

पाठचर्या में सुधार और विकास में भी मापन और मूल्यांकन विशेष योगदान देता है। यदि अधिगम मापन, सूक्षता से सही-सही नहीं किया जा सके तब भी पाठचर्या-विकास हेतु मूल्यांकन एक सशक्त साधन बना हुआ है।

(4) व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान-

छात्र की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान एक अध्यापक के लिए अत्यन्त आवश्यक है और इस ज्ञान के अभाव में वह न तो अपने दायित्व का ठीक निर्वाह कर सकता है और न छात्र के साथ न्याय। विभिन्न मापन एवं परीक्षणों के द्वारा बालक की शारीरिक एवं बौद्धिक योग्यता, अभरुचि, रुचियों एवं प्रेरणाओं का सही मापन करके विश्वसनीय परिणाम निकाले जा सकते हैं और उनके आधार पर छात्रों का श्रेणीकरण किया जाता. है। व्यक्तिगत भिन्नता के आधार पर इनके हेतु उद्देश्य, अनुभव और शिक्षा प्रणाली की व्यवस्था की जाती है।

(5) विद्यालय संगठन एवं प्रशासन में सुधार-

विद्यालय संगठन और प्रशासन की सफलता भी इस तथ्य पर निर्भर करती है कि बालक के व्यवहार में परिवर्तन किस सीमा तक हो रहा है। अत: विद्यालय संगठन और प्रशासन तो मनोवैज्ञानिक मान्यताओं पर आधारित हैं जो परीक्षणों एवं मूल्यांकनों के परिणाम हैं। आज के संगठन की मूल समस्याएँ अनुशासनहीनता दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली, अनुचित साधनों का उपयोग, गिरता हुआ शिक्षा स्तर, नवीन कार्यक्रमों के प्रति छात्रों, अध्यापकों एवं अभिभावकों की उदासीनता आदि । मूल्यांकन और मापन के आधार पर ही उनके सम्बन्ध में रचनात्मक कार्यक्रम बनाये जा सकते हैं।

(6) वर्ग विभाजन एवं कक्षोन्नयन में सहयोग-

छात्र की प्रगति का मापन एवं मूल्यांकन करके ही हम उनमें वर्ग विभाजन कर सकते हैं और इस स्तर पर ही कक्षोन्नयन किया जा सकता है। परीक्षा प्रणाली के अभाव में वर्तमान शिक्षा की जो दुर्गति हो रही है उसे मापन और मूल्यांकन द्वारा ही रोका जा सकता है।

(7) निदान एवं उपचार में सहायक-

छात्रों में कुछ दुर्बलताएँ प्रत्येक को देखने को मिलती हैं। यह दुर्बलताएँ अक्सर भयंकर रूप ले लेती हैं। यदि अध्यापक इनकी उपेक्षा करता है या उनके प्रति उदासीनता बरतता है तो यह निरन्तर बढ़ती रहती हैं। छात्रों का कक्षा से पलायन, गृह-कार्य ठीक से न करता, लिखने में वर्तनी-सम्बन्धी दोष, बोलने में हकलाहट, आदि ऐसी समस्याएँ हैं, जिनकी जानकारी मापन के द्वारा ही होती है। मूल्यांकन द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर अध्यापक बालकों को सही रास्ते पर ला सकता है। इस प्रकार मापन निदान एवं उपचार में भी सहायक है।

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