सृजनात्मकता की परिभाषा (Definition of Creativity)
डीहान तथा हेविंगहर्स्ट के अनुसार- “सृजनात्मकता वह विशेषता है, जो किसी नवीन व वांछित वस्तु के उत्पाद की ओर प्रवृत्त करें। यह नवीन वस्तु सम्पूर्ण समाज के लिए नवीन हो सकती है तथा उस व्यक्ति के लिए नवीन हो सकती है जिसने उसे प्रस्तुत किया है ।”
ड्रैवहल के अनुसार- “सृजनात्मकता वह मानवीय योग्यता है जिसके द्वारा वह नवीन रचना या विचारों को प्रस्तुत करता है।”
क्रो एवं क्रो के अनुसार- “सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने की एक मानसिक प्रक्रिया है।”
सृजनात्मकता को पोषित करने की विधियाँ एवं तकनीकियाँ (Techniques and Mathods of fastering Creativity)
सृजनात्मकता को पोषित करने की प्रमुख विधियाँ एवं तकनीकियाँ निम्नलिखित हैं-
मस्तिष्क हलचल या विप्लव व्यूह रचना (Brain Storming Strategy)
व्यूह रचना के रूप में इसे प्रतिष्ठित करने का श्रेय ए० एफ० ऑसबॉर्न (A. F. Osborn) को जाता है जिन्होंने अपनी रचना Applied Imagination के द्वारा 1963 में इसे सबके सामने रखा।
यह व्यूह-रचना एक ऐसी व्यूह रचना है जिसमें ऐसे साधन प्रयोग किये जाते हैं जो छात्रों के मस्तिष्क में ज्ञान प्राप्ति तथा चिन्तन के प्रति हलचल मचा देते हैं। इसमें छात्रों के समक्ष एक समस्या प्रस्तुत की जाती है जिस पर सभी छात्र स्वतन्त्रतापूर्वक विचार करते हैं, वार्तालाप तथा वाद-विवाद करते हैं। शिक्षक सभी विचारों को श्यामपट्ट पर लिखता चला जाता है। वाद-विवाद और चिन्तन तथा वार्तालाप करते करते एक ऐसा बिन्दु या अवस्था आ जाती है जब छात्र एकदम समस्या को हल कर देते हैं।
शिक्षण की समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method of Teaching)
समस्या समाधान विधि अध्यापन की एक प्रचलित विधि है। इसमें अध्यापक विद्यार्थियों के समक्ष समस्याओं को प्रस्तुत करता है तथा विद्यार्थी सीखे हुए नियमों, सिद्धान्तों तथा प्रत्ययों की सहायता से कक्षा में समस्या का हल ज्ञात करते हैं। अंकगणित, बीजगणित तथा ज्यामिति में समस्याओं के माध्यम से अध्यापन किया जाता है।
समूह परिचर्चा या सामूहिक वाद विवाद विधि (Group Discussion Method)
समूह परिचर्चा प्रमुख रूप से एक समूह का सामूहिक तरीके से सोचने का संयुक्त प्रयास है। सामूहिक वाद-विवाद वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से छात्र अपनी समस्याओं का समाधान विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार-विमर्श करके ढूँढ निकालते हैं।
शिक्षा में खेल-प्रणाली (Play-way in Education)
खेल-प्रणाली को शिक्षा में स्थान दिलाने का श्रेय कॉल्डवेल कुक महोदय को है। इसके पूर्व भी बहुत-से शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा की प्राचीन प्रणाली का विरोध किया था और बालक की अभिव्यक्ति के लिए स्वतन्त्र अवसर देने की बात कही थी। बाल मनोविज्ञान के विकास ने इस दृष्टिकोण को और अधिक बल प्रदान किया। शिक्षा में बालक को केन्द्रीय स्थान देने की बात स्वीकार की जाने लगी। इस विचारधारा के परिणामस्वरूप शिक्षा में खेल प्रणाली के प्रसार को और अधिक प्रोत्साहन मिला।
क्विज अथवा प्रश्नोत्तरी विधि क्या है ?
क्विज एक ऐसी प्रविधि है जो सृजनात्मकता के विकास एवं उन्नयन हेतु बहुत उपयोगी है। इस प्रविधि में छात्रों को उनके ज्ञान की जाँच करने के लिए प्रश्नों का प्रयोग क्विज के माध्यम से करते हैं। इसे वर्तमान समय में प्रतियोगिता का रूप दे दिया गया है। क्विज प्रविधि में प्रश्नों का संकलन कर छात्रों के सम्मुख रखे जाते हैं एवं छात्रों से यह अपेक्षा की जाती है कि छात्र प्रश्नों का उत्तर अपने ज्ञान के अनुसार दें। इससे उनके द्वारा प्राप्त ज्ञान की परख हो जाती है। विद्यार्थियों को उनके ज्ञान प्राप्ति में अभाव से सम्बन्धित कठिनाइयों की जानकारी हो जाती है एवं उनका निवारण हो जाता है।
मस्तिष्क हलचल या विप्लव व्यूह रचना (Brain Storming Strategy )
यह व्यूह रचना पूर्णरूप से प्रजातांत्रिक है इसकी धारणा है कि एक व्यक्ति की अपेक्षा उनका समूह अधिक अच्छा विचार दे सकता है।
मस्तिष्क हलचल या उद्वेलन का शाब्दिक अर्थ है- मस्तिष्क को उद्वेलित करना, उसमें उथल-पुथल मचाना, यानी विचारों की ऐसी आँधी लाना जिसमें किसी वस्तु, व्यक्ति, प्रक्रिया या संप्रत्यय के बारे में अनगिनत विचार तथा सोच एक साथ अनायास ही उनकी अच्छाई-बुराई, औचित्य – अनौचित्य की परवाह किये बिना मस्तिष्क पटल पर उभर जाएँ। व्यूह रचना के रूप में इसे प्रतिष्ठित करने का श्रेय ए० एफ० ऑसबॉर्न (A. F. Osborn) को जाता है जिन्होंने अपनी रचना Applied Imagination के द्वारा 1963 में इसे सबके सामने रखा।
यह व्यूह-रचना एक ऐसी व्यूह रचना है जिसमें ऐसे साधन प्रयोग किये जाते हैं जो छात्रों के मस्तिष्क में ज्ञान प्राप्ति तथा चिन्तन के प्रति हलचल मचा देते हैं। इसमें छात्रों के समक्ष एक समस्या प्रस्तुत की जाती है जिस पर सभी छात्र स्वतन्त्रतापूर्वक विचार करते हैं, वार्तालाप तथा वाद-विवाद करते हैं। शिक्षक सभी विचारों को श्यामपट्ट पर लिखता चला जाता है। वाद-विवाद और चिन्तन तथा वार्तालाप करते-करते एक ऐसा बिन्दु या अवस्था आ जाती है जब छात्र एकदम समस्या को हल कर देते हैं।
यह व्यूह-रचना विशेष रूप से उच्च संज्ञानात्मक योग्यताओं के विकास तथा चिन्तन स्तर के अधिगम, सृजनशील कार्यों और समस्या अधिगम अर्जन के एक प्रभावपूर्ण सहायक के रूप में अधिक उपयोगी सिद्ध होती है। यह छात्रों में चिन्तन करने की क्षमता विकसित करती है और उन्हें समस्या के विश्लेषण, संश्लेषण तथा मूल्यांकन में प्रशिक्षण प्रदान करती है।
मस्तिष्क हलचल व्यूह रचना के सोपान (Steps of Brain Storming Strategy)
विल्सन महोदय ने सन् 1987 में इसके आठ सोपान बताए थे-
1. परिचय (Introduction)— इसमें अध्यापक सामान्य निर्देश देता है; यथा-
(i) सक्रिय सहभागिता (ii) आलोचना (iii) विचार अभिव्यक्ति (iv) संख्या
(v) तारतम्यता करना ।
2. हिमभंजक (Ice Breaker) – प्रचलित विचारों को तोड़ते हुए नये विचारों को उत्पन्न करना ।
3. समस्या का परिभाषीकरण (Statement of the Problem)- इसके अन्तर्गत एक स्पष्ट कथन के रूप में समस्या को प्रस्तुत किया जाता है।
4. समस्या पर संकेन्द्रण (Attention on problem)- इसके अन्तर्गत छात्रों से समस्या के बारे में पूछा जाता है।
5. संकेन्द्रित कथन का चुनाव (Selection of Centralized Statement)– इसके अन्तर्गत शिक्षक लोकतांत्रिक विधि से छात्रों की सहायता से संकेन्द्रित कथन का चुनाव करता है।
6. मस्तिष्क हलचल (Brain Storming)- इसमें अध्यापक छात्रों से संकेन्द्रित कथन के संदर्भ में विचार जानने का प्रयास करता है। ये विचार ही समाधान का विकास करते हैं।
7. सुझाव (Suggestion)- इसके अन्तर्गत सुझाव का चयन एवं सुझाव को उपयोगी बनाने पर बल दिया जाता है।
8. मूल्यांकन (Evaluation)- इसके अन्तर्गत सत्र की समाप्ति के उपरान्त बहुत से ऐसे विचार एवं सुझाव शेष रह जाते हैं जिनका मूल्यांकन ही नहीं हो पाता है। इसके लिए कुछ समय बाद मूल्यांकन किया जाता है।
मस्तिष्क हलचल व्यूह रचना की विशेषताएँ (Characteristics of Brain Storming Strategy)
इस व्यूह रचना की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. इस व्यूह रचना में छात्र का मस्तिष्क पूरी तरह से सक्रिय रहता है।
2. इससे छात्रों की मानसिक शक्तियों का विकास होता है।
3. यह व्यूह रचना बालक के संज्ञानात्मक पक्ष के विकास में अधिक सहायक है।
4. इसकी सहायता से छात्रों में आत्मविश्वास, मौलिकता एवं सृजनात्मकता आदि गुणों का विकास करने में सहायता मिलती
5. यह व्यूह रचना शैक्षिक तथा मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है।
6. यह छात्रों को स्वतंत्रतापूर्वक चिन्तन के लिए प्रेरित करती है। 7. इस व्यूह रचना द्वारा छात्रों के भावात्मक पक्ष का भी विकास होता है।
8. इस व्यूह रचना से छात्रों में सामूहिक रूप से चिन्तन तथा कार्य करने की आदत का विकास होता है।
9. इस व्यूह रचना में समस्या समाधान के गुणों का विकास होता है।
मस्तिष्क हलचल व्यूह रचना की सीमाएँ (Limitations of Brain Storming Strategy)
मस्तिष्क हलचल व्यूह रचना की निम्न सीमाएँ हैं-
1. यह व्यूह रचना किसी विषय के अध्ययन की सुव्यवस्थित विधि नहीं है।
2. इसमें मूल्यांकन कार्य कठिन होता है।
3. इसमें परिणामों की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
4. इसके अन्तर्गत मूल्यांकन में अधिक समय लगता है।
5. इसमें कुछ छात्र सहभागिता (प्रतिभागी ) करने में उदासीन रहते हैं।
6. इसमें छात्रों का नियंत्रण करना एक कठिन कार्य है।
7. इसमें पिछड़े छात्र को लाभ नहीं मिल पाता है।
8. इसके द्वारा समस्त विषयों का ज्ञान नहीं प्रदान किया जा सकता है।
9. यह खर्चीली शिक्षण व्यूह-रचना है।
मस्तिष्क हलचल व्यूह रचना की उपयोगिता (Advantage of Brain Storming Strategy)
1. इस व्यूह-रचना में विद्यार्थी शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेकर स्वयं अपने प्रयत्नों से समस्या समाधान करने का प्रयत्न करते हैं, रटे-रटाये विचारों एवं हल को शिक्षक उन पर नहीं थोपते हैं।
2. इस व्यूह-रचना में विद्यार्थियों को सोचने-विचारने और संश्लेषण करने तथा निष्कर्ष पर पहुँचने की क्षमता को विकसित करने का भली-भाँति अवसर मिलता है, जिसके फलस्वरूप उनमें उच्च संज्ञानात्मक क्षमताओं के विकास का मार्ग आसानी से प्रशस्त हो जाता है।
3. इस व्यूह रचना का लाभ विद्यार्थियों की सृजनात्मक और रचनात्मक क्षमताओं के उचित निदान, पल्लवन और पोषण को लेकर है। यहाँ शिक्षण-अधिगम का आयोजन स्मृति और बोध स्तर के स्थान पर चिन्तन स्तर पर सम्पन्न होता है तथा विद्यार्थियों को अपने विचार तथा समाधान काफी खुलकर बिना किसी संकोच के प्रकट करने का अवसर दिया जाता है।
4. इस व्यूह रचना में विद्यार्थी एक समूह के रूप में इकट्ठे विचार-विमर्श द्वारा किसी समस्या समाधान के लिए कार्य कर रहे होते हैं। अतः इसका प्रयोग विद्यार्थियों में सहकारिता, समूह भाव तथा सामाजिक गुणों के समुचित विकास हेतु आसानी से किया जा सकता है।
5. इस व्यूह-रचना के द्वारा सीखा ज्ञान स्थायी होता है।
6. यह व्यूह-रचना उच्च कक्षाओं के लिए विशेष उपयोगी है।
7. इस व्यूह-रचना के प्रयोग से ज्ञानात्मक व भावात्मक पक्षों का विकास आसानी से किया जा सकता है।
8. यह छात्रों को चिन्तन तथा समस्या समाधान करने के क्षेत्र में उत्साहित करती है।
9. छात्रों में स्वतन्त्रतापूर्वक विचार करने के लिए प्रेरित करती है।
10. यह शिक्षण की सृजनात्मक व्यूह-रचना तथा मौलिक विचारों को बढ़ावा देती है।
Important Links…
- ब्रूनर का खोज अधिगम सिद्धान्त
- गैने के सीखने के सिद्धान्त
- थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त
- अधिगम का गेस्टाल्ट सिद्धान्त
- उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त या S-R अधिगम सिद्धान्त
- स्किनर का सक्रिय अनुबन्धन का सिद्धान्त
- पैवलोव का सम्बद्ध अनुक्रिया सिद्धान्त
- थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम
- सीखने की प्रक्रिया
- सीखने की प्रक्रिया में सहायक कारक
- अधिगम के क्षेत्र एवं व्यावहारिक परिणाम
- अधिगम के सिद्धांत
- अधिगम के प्रकार
- शिक्षण का अर्थ
- शिक्षण की परिभाषाएँ
- शिक्षण और अधिगम में सम्बन्ध