शिक्षण की समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method of Teaching)
समस्या समाधान विधि अध्यापन की एक प्रचलित विधि है। इसमें अध्यापक विद्यार्थियों के समक्ष समस्याओं को प्रस्तुत करता है तथा विद्यार्थी सीखे हुए नियमों, सिद्धान्तों तथा प्रत्ययों की सहायता से कक्षा समस्या का हल ज्ञात करते हैं। अंकगणित, बीजगणित तथा ज्यामिति में समस्याओं के माध्यम से अध्यापन किया जाता है। वाणिज्य की पुस्तकों में भी प्रयोग उपविषय में सम्बन्धित समस्याओं का संकलन होता है तथा विद्यार्थी इनके हल ज्ञात करते हैं और इस प्रक्रिया द्वारा इस विषय को सीखते हैं। समस्याओं में विभिन्न तथ्य एवं परिस्थितियाँ होती हैं और इनका संकलन इनकी कठिनता के स्तर को ध्यान में रखकर किया जाता है। प्रत्येक समस्या में नवीनता होती है जिसके कारण विद्यार्थियों को हल ज्ञात करने की प्रेरणा मिलती है। इस विधि की सफलता समस्याओं में नवीनता एवं उन्हें निर्माण करने की क्षमता पर निर्भर करती है। एक कुशल अध्यापक स्वयं तथ्यों का संकलन कर विद्यार्थियों की क्षमताओं को ध्यान में रखकर समस्याओं का निर्माण करता है तथा उन्हें कक्षा में हल करने के लिए प्रस्तुत करता है। विद्यार्थी समस्या में दी हुई परिस्थिति का अध्ययन कर आवश्यकतानुसार गणना, माप आदि करते हैं तथा उसके उत्तर को प्राप्त करते हैं। प्रत्येक समस्या का सफल हल विद्यार्थियों को नये अनुभव प्रदान करता है तथा उनको आगे के उपविषयों में आने वाली समस्याओं को हल करने की क्षमता पैदा करता है।
पाठ्य-पुस्तकों में दी हुई परम्परागत समस्याएँ इस विधि के सफल संचालन में मदद नहीं करती क्योंकि उनके तथ्य एवं परिस्थितियों में नवीनता एवं सत्यता नहीं होती। ऐसी परम्परागत समस्याएँ विद्यार्थियों को हल ज्ञात करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करतीं तथा उनको गणित सीखने में अधिक सहायक सिद्ध नहीं होतीं। एक विद्यार्थी समस्या को हल करने के लिए तभी प्रेरित होता है जब वह समस्या में निहित परिस्थितियों को स्वयं के वातावरण से सफलतापूर्वक सम्बन्धित करता है तथा समस्या हल को ज्ञात करने के लिए प्रेरित होता है। गणित की अधिकांश पुस्तकों में छपी समस्याओं को जीवन के तथ्यों पर आधारित नहीं माना जा सकता क्योंकि ये उलथ्य विद्यार्थी के जीवन से सम्बन्धित नहीं होते।
समस्या प्रस्तुत करने के नियम (Rules of Problems Representation)
1. समस्या में निहित सामाजिक परिस्थिति ऐसी हो जिसे विद्यार्थी को समझने में कठिनाई उपस्थित नहीं हो।
2. समस्या बालक के जीवन से सम्बन्धित होनी चाहिए तथा उनमें दिये गये तथ्य बालको को अपरिचित होने चाहिए।
3. समस्या की भाषा सरल एवं बोधगम्य होनी चाहिए।
4. समस्या में क्या ज्ञात करना है- यह बात स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होनी चाहिए।
5. समस्याओं का निर्माण करते समय बालकों की आयु एवं रुचियों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
6. समस्या को हल करने की विधि आदि विद्यार्थियों को स्पष्ट होनी चाहिए जिससे वे समस्या का हल ज्ञात करने में उसका दक्षता के साथ प्रयोग कर सकें।
7. समस्या को स्पष्ट करने के लिए यदि किसी चित्र, संकेत या सारिणी की आवश्यकता हो तो उन्हें समस्या के साथ दे देना चाहिए।
8. समस्या के आँकड़े इस प्रकार के हों कि बालक उनके साथ आवश्यक क्रियाएँ कर सकता हो।
9. अध्यापक को स्वयं को समस्या के निर्माण प्रक्रिया में दक्ष होना चाहिए जिससे वह आवश्यकतानुसार नवीन समस्या का निर्माण कर सके।
10. यदि समस्या बहुत लम्बी हो तो उसके दो या तीन भाग कर देने चाहिए जिससे कि बालकों को उसे समझने में सुविधा हो।
11. समस्या लपेट श्यामपट पर लिखकर प्रस्तुत की जाय जिससे विद्यार्थी हल ज्ञात करते समय समस्या को पढ़ सकें तथा कक्षा का श्यामपट अध्यापक स्वयं हल को स्पष्ट करने के लिए काम में ले सकता है।
12. रंगीन चाक आदि के समुचित प्रयोग द्वारा समस्या के विशिष्ट पक्षों की ओर विद्यार्थियों का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है।
13. जब भी कोई नवीन उपविषय पढ़ाया जाय तो उसे अवश्य जीवन पर आधारित समस्याओं के द्वारा प्रस्तुत किया जाय। पाठ्य-पुस्तकों में छपी समस्याओं का उपयोग अभ्यास के लिए किया जा सकता है।
14. समस्या को कक्षा में जबानी न प्रस्तुत किया जाय।
15. समस्या के हल करने के पश्चात् विद्यार्थी इस बात की जाँच करें कि दी हुई परिस्थितियों में क्या यह उत्तर तर्कसंगत है।
समस्या हल करने के पद (Terms of Problem Solving)
1. समस्या में दिये गये तथ्यों तथा उनके सम्बन्धों को समझना- समस्या को प्रस्तुत करने के बाद अध्यापक के लिए आवश्यक है कि कक्षा को इतना समय दे जिससे कि प्रत्येक विद्यार्थी समस्या का भलीभाँति अध्ययन कर सके। इससे प्रत्येक विद्यार्थी को यह जानकारी प्राप्त सकेगी कि समस्या में क्या दिया हुआ है तथा क्या ज्ञात करना है ?
2. समस्या का विश्लेषण- कक्षा में समस्या को प्रस्तुत करने के पश्चात् समस्या का प्रश्नोत्तर विधि द्वारा विश्लेषण करना चाहिए तथा विद्यार्थियों की सहायता से यह स्पष्ट करना चाहिए कि समस्या में दिये गये तथ्यों में परस्पर क्या सम्बन्ध है तथा सम्पूर्ण परिस्थिति में उनका क्या महत्त्व है। इस पद में विद्यार्थी यह समझ सकेंगे कि कौन-से तथ्य अनावश्यक हैं तथा कौन-से आवश्यक हैं। इस प्रकार विद्यार्थी में समस्या का विश्लेषण करने की आदत पड़ जायेगी जो समस्या को सफलतापूर्वक हल करने के लिए अनिवार्य है। जिन विद्यार्थियों में समस्या का विश्लेषण करने की क्षमता का विकास नहीं होता है, समस्या को अधिकांशतः आत्मविश्वास के साथ हल नहीं कर सकते।
3. सम्भावित हल खोजना- विश्लेषण के पश्चात् विद्यार्थी यह भली प्रकार समझ सकेगा कि जो हल ज्ञात करना है उसे प्राप्त करने के लिए गणित के कौन-से नियम, सूत्र, सिद्धान्त आदि का प्रयोग आवश्यक है। यहाँ पर विद्यार्थी यह निर्णय कर सकेगा कि ज्ञातव्य हल को प्राप्त करने के लिए किस विशेष विधि को काम में लाना अपेक्षित है तथा यदि कोई वैकल्पिक विधि हो तो उस पर भी यह विचार करेगा ।
4. हल को प्राप्त करने के लिए सही गणना करना- यह देखा गया है कि विद्यार्थी हल करने की विधि को जानते हुए भी समस्या का सही उत्तर प्राप्त नहीं कर पाते। वे गणना करने में बहुधा साधारण त्रुटियाँ करते हैं। छात्रों में सही तथा शीघ्र गणना करने की क्षमता का होना आवश्यक है। अध्यापक अलग से गणना करने का अभ्यास करा सकता है जिससे गणना करने में छात्रों को कठिनाई न हो। यह देखा गया है कि अधिकांश छात्र दशमलव के गुणा तथा भाग करते समय त्रुटियाँ करते हैं।
5. समस्या का हल ज्ञात करना एवं पुनः जाँच करना- समस्या का हल ज्ञात करने पश्चात् के प्रत्येक विद्यार्थी को उत्तर की पुनः जाँच करना चाहिए जिससे हल में गणना या विधि सम्बन्धी त्रुटियों को ठीक किया जा सके। छात्रों में उत्तर की पुनः जाँच करने की आदत होना आवश्यक है क्योंकि त्रुटियों को ढूँढ निकालना इसके बिना सम्भव नहीं है। जो उत्तर प्राप्त हो उसकी तर्कसंगतता के बारे में भी विद्यार्थी को विचार करना चाहिए।
समस्या समाधान विधि के गुण (Merits of Problem Solving Methods)
इस विधि के निम्नलिखित गुण हैं-
1. समस्या के द्वारा हम विद्यार्थियों को जीवन से सम्बन्धित परिस्थितियों की सही जानकारी दे सकते हैं। इस प्रकार वाणिज्य विषय के सामाजिक महत्त्व को हम कक्षा में प्रस्तुत कर सकते हैं।
2. विद्यार्थियों में समस्या का विश्लेषण करने की क्षमता का विकास होता है तथा आवश्यक एवं अनावश्यक तथ्यों में विभेद कर सकता है। कभी-कभी समस्या में अपूर्ण तथ्य दिये होते हैं तथा इसका हल ज्ञात करना सम्भव नहीं। इसकी जानकारी समस्या के सही विश्लेषण पर निर्भर करती है।
3. बालकों में आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता का विकास होता है।
4. समस्या निवारण विधि के प्रयोग से बालकों में समस्या से जूझने की आदत पड़ जाती है जो जीवन में सफलता की प्राप्ति के लिए आवश्यक है।
5. इस विधि से बालकों में सही चिन्तन तथा तर्क का समुचित प्रयोग करने की आदत पड़ जाती है।
6. यह विधि उच्च गणित के अध्ययन में सहायक है।
समस्या समाधान विधि के दोष (Demerits of Problem Solving Methods)
इस विधि में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं-
1. जीवन पर आधारित समस्याओं का निर्माण प्रत्येक अध्यापक के लिए सम्भव नहीं।
2. पुस्तकों में अधिकांशतः परम्परागत समस्याओं का संकलन होता है।
3. कभी-कभी समस्याओं की भाषा अधिक कठिन एवं लम्बी होती है जो बालकों के लिए कठिनाइयाँ प्रस्तुत करती है।
4. जीवन की परिस्थितियों में इतनी तेजी से परिवर्तन आ रहे हैं कि सही तथ्यों का संकलन सम्भव नहीं है।
5. बीजगणित तथा ज्यामिति में ऐसे अनेक उपविषय हैं जिसमें जीवन से सम्बन्धित समस्याओं का निर्माण सम्भव नहीं।
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