सृजनात्मकता के विशिष्ट तत्त्व (Special Factors of Creativity)
सृजनात्मकता के लिए मनोवैज्ञानिकों ने निम्नलिखित आवश्यक तत्त्वों को महत्त्वपूर्ण माना है-
(1) मौलिकता एवं नवीनता- सृजनात्मकता के लिए मौलिक चिन्तन नये ढंग के कार्य करने की योग्यता का होना आवश्यक है। बौद्धिक स्तर कितना ही उच्च क्यों न हो परन्तु य़दि कार्य का ढंग रूढ़िगत एवं परम्परागत है, उसमें कोई परिवर्तन या सुधार नहीं किया गया, कोई नवीनता नहीं दिखाई देती तो उसे सृजनात्मक नहीं कहेंगे। सृजनात्मकता तो तभी कहा जायेगा जब कार्य मौलिक हो अर्थात् उसमें वास्तविकता एवं नवीनता की झलक हो, परम्परागत ढंग से हटकर किसी नये ढंग से किया गया हो।
(2) उच्च बौद्धिक स्तर- वास्तविकता तो यह है कि सृजनात्मकता चिन्तन करने का एक ढंग है। यह बुद्धि का पर्याय नहीं है, परन्तु बिना उच्च बौद्धिक स्तर के सृजनात्मक शक्ति का विकास सम्भव नहीं है, परन्तु कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि किसी व्यक्ति में उच्च सृजनात्मकता होती है परन्तु उनका बौद्धिक स्तर निम्न होता है। अतः यह कोई जरूरी नहीं है कि जिनका बौद्धिक स्तर उच्च हो उनमें सृजनात्मकता भी उच्च स्तर की हो। बैरोन के अध्ययनों से पता चला है कि सृजनात्मकता और बुद्धिमत्ता दोनों में धनात्मक सह-सम्बन्ध है, यद्यपि यह सम्बन्ध उच्च कोटि का नहीं होता। सृजनात्मकता के लिए बुद्धिमत्ता के अतिरिक्त अन्य तत्त्वों की आवश्यकता होती है। इसके पूर्व अर्जित ज्ञान का उपयोग होता है और इस उपयोग का सम्बन्ध बौद्धिक क्षमताओं से होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि बुद्धिमत्ता और सृजनात्मकता सह सम्बन्धित होते हैं ।
(3) माध्यम की आवश्यकता- सृजनात्मकता की प्रक्रिया शून्य में नहीं होती वरन् उसका कोई-न-कोई माध्यम अवश्य होता है और व्यक्ति उसी माध्यम का सहारा लेकर अपनी सर्जकता का प्रदर्शन करता है। उदाहरण के लिए जिज्ञासा, खोज, कल्पना, तर्क, स्थूल कार्य, लेखन, वाचन, अध्यापन या अन्य किसी क्रिया के माध्यम से व्यक्ति अपनी सर्जकता का प्रदर्शन करता है। इन्हीं माध्यमों के द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि व्यक्ति में सृजनात्मकता शक्ति कितनी है।
(4) मापन योग्य व्यवहार- सृजनात्मकता के माध्यम से व्यक्ति के व्यवहारों का मापन सम्भव हो जाता है। व्यक्ति के वे व्यवहार चाहे किसी विचार के रूप में हों या कार्य रूप में, उनके द्वारा उस व्यक्ति की सृजनात्मक शक्ति का आभास मिल जाता है, परन्तु वही व्यवहार मान्य होंगे जिनका मापन किसी विश्वसनीय और वैध विधि द्वारा किया जा सके।
(5) दक्षता- दक्षता सृजनात्मकता का महत्त्वपूर्ण आवश्यक गुण है। व्यक्ति अपने कार्य, व्यवहार, चिन्तन, जिज्ञासा, तर्क, कल्पना और खोज में प्रसन्न नहीं होता जब तक वह सृजनात्मक कार्य नहीं कर सकता। दक्षता प्राप्त व्यक्ति ही मौलिक एवं नवीन कार्य तथा चिन्तन कर सकता है। दक्षता के अभाव में सृजनात्मकता शून्य होती है।
(6) सामाजिक मान्यता- व्यक्ति के कार्यों एवं विचारों को तब तक सृजनात्मक नहीं माना जायेगा जब तक समाज उसे अपनी स्वीकृति या मान्यता प्रदान नहीं कर देता। एक नकलची विद्यार्थी बिल्कुल मौलिक एवं नये तरीके से नकल करता है परन्तु उसके कार्य को सृजनात्मक नहीं कहा जायेगा क्योंकि प्रबुद्ध समाज इसे अपनी स्वीकृति नहीं प्रदान नहीं करेगा।
(7) पर्याप्त साहस- सर्जकता का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व पर्याप्त साहस का होना है क्योंकि मौलिक चिन्तन तथा नये ढंग से सोचने एवं कार्य करने वाले व्यक्ति को कदम कदम पर कठिनाइयों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। अतः नये ढंग से कार्य करने का साहस जुटाना, सामाजिक आलोचनाओं का सामना करने का साहस, कार्य करने के रास्ते में आने वाली बाधाओं को मुकाबला करने का साहस, असफलताओं से विचलित न होने का साहस आदि बातों का सामना करने का साहस जब तक व्यक्ति में नहीं होगा तब तक वह मौलिक एवं नवीन चिन्तन या कार्य नहीं कर सकता और न ही सृजनात्मक बन सकता है।
(8) उपयुक्त स्थान तथा वातावरण- कोई व्यक्ति अपनी सृजनात्मकता का प्रदर्शन शून्य में नहीं करता। उसके लिए उपयुक्त स्थान तथा वातावरण का होना अत्यन्त आवश्यक है। एक ज्ञानी व्यक्ति की मौलिकता का महत्त्व विद्वानों के बीच में ही होता है, मूर्ख लोग उसके महत्त्व को क्या जानें। इसी प्रकार एक अच्छे कार्यकर्ता की सर्जकता की पहचान उपयुक्त स्थान और वातावरण मिलने पर सम्भव होती है। स्थान और उपयुक्त वातावरण के अभाव में व्यक्ति की सृजनात्मकता का भास नहीं हो पाता।
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