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सृजनशीलता को प्रोत्साहित करने की विधियाँ | Methods to Promote Creativity in Hindi

सृजनशीलता को प्रोत्साहित करने की विधियाँ
सृजनशीलता को प्रोत्साहित करने की विधियाँ

सृजनशीलता को प्रोत्साहित करने की विधियाँ ( Methods to Promote Creativity)

सृजनशीलता को प्रोत्साहित करने के लिए गिलफोर्ड-आसबार्न आदि मनोवैज्ञानिको द्वारा अनेक सुझाव दिये गये हैं। सृजनशीलता के प्रशिक्षण हेतु विभिन्न विद्वानों द्वारा जो उपाय बताये गए हैं उनके आधार पर शैक्षिक प्रावधानों का वर्णन निम्न रूप में किया जा सकता है-

(1) छात्रों में सृजनात्मकता का विकास करने हेतु शिक्षक को स्वयं भी सृजनात्मक प्रवृत्ति का होना चाहिए। उसे चाहिए कि वह स्वयं भी साहित्य, विज्ञान, कला आदि के क्षेत्र में सृजन कार्य करे तथा छात्रों को समुचित उदाहरण प्रस्तुत करे इससे छात्रों को प्रेरणा और प्रोत्साहन प्राप्त होता है।

(2) अध्यापक को चाहिए कि वह छात्रों को विभिन्न सृजनात्मक कार्यों की नवीनतम् सूचनाओं को संग्रह करने का अवसर तथा सुविधा प्रदान करे। छात्रों को सृजनात्मक चिन्तन के साधनों एवं सिद्धान्तों को बताया जाय तथा किसी आविष्कार विशेष में सृजनात्मक अंशों की ओर संकेत किया जाय।

(3) छात्रों के अन्तर्गत नवीन विचारों को ग्रहण करने और उनका सम्मान करने की रुचि जागृत की जाय तथा उन्हें आत्म-विश्वास के विकास का अवसर प्रदान किया जाय। अध्यापक का यह भी कर्त्तव्य है कि वह छात्रों की रचना की प्रशंसा करे, उनमें स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का विकास करे तथा सृजनात्मक कार्यों के अभ्यास का अवसर प्रदान करे।

(4) कला शिक्षण के समय छात्रों के सामने समस्यात्मक प्रश्न अथवा परिस्थिति रखकर उनकी प्रतिक्रियाओं को शिक्षक को आमन्त्रित करना चाहिए और उनका उचित मूल्यांकन करना चाहिए।

(5) शिक्षकों द्वारा छात्रों हेतु ऐसा वातावरण प्रस्तुत किया जाना चाहिए जो प्रोत्साहित करने वाला हो तथा क्रियाशीलता और नम्यता की शिक्षा देने वाला हो ।

(6) शिक्षक को उत्पादन; चिन्तन और मूल्यांकन को प्रोत्साहित करना चाहिए।

(7) जीवन के विभिन्न क्षेत्रों, यथा सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं वैज्ञानिक, तकनीकी तथा शैक्षिक आदि समस्याओं के समाधान की योजना प्रस्तुत करके छात्रों से हल कराने का प्रयास किया जाय।

(8) छात्रों को सुधार, निर्माण, खोज एवं आविष्कार की क्रियाओं में लगाया जाय। इसके द्वारा उनमें सृजनात्मकता का विकास होता हैं।

(9) सृजनात्मकता के विकास तथा प्रशिक्षण हेतु किसी कार्य में उनकी रुचि एवं अभ्यास को बनाये रखना चाहिए तथा यथासम्भव अभ्यास द्वारा उन्हें दृढ़ होने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। स्थायीकरण के लिए उन्हें कभी-कभी वाचिक अथवा वस्तुगत रूप से पुरस्कृत भी किया जाना चाहिए।

(10) अध्यापक हेतु यह उचित होगा कि वह छात्रों को विभिन्न स्रोतों से ज्ञान, कौशल तथा अन्य सूचनाएँ ग्रहण करने तथा संग्रह करने हेतु प्रेरित करें। उसे छात्रों को महान अन्वेषकों की जीवन-कथा से परिचित कराना चाहिए जिससे कि छात्रों को सृजनात्मकता की प्रेरणा प्राप्त हो।

(11) छात्रों को उनके दैनिक जीवन की समस्याओं की कठिनाई स्तर को समझने का अवसर दिया जाना चाहिए। ये समस्याएँ उसके विद्यालय के कार्य अथवा विद्यालय के बाहर के कार्य से सम्बन्धित हो सकती हैं, परन्तु इस कठिनाई के स्तर को समझना स्वयंमेव नहीं हो जायेगा। यह तो कार्य करके अनुभव द्वारा ही सीखा जा सकता है। फलस्वरूप विद्यालय के कार्य, समस्या समाधान की योजना से युक्त होने चाहिए। समस्याएँ विद्यालय के कार्य, घर, सामाजिक सम्बन्ध एवं राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय कार्यों से सम्बन्धित हो सकती हैं।

(12) सृजनात्मक के शिक्षण तथा विकास के लिए आवश्यक है कि छात्रों को समस्या समाधान के सन्दर्भ में तथ्यों का ज्ञान हो। इसके हेतु विद्यालय में छात्रों को पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन, छात्र संघ, विद्यालय, कृषि फार्म, विद्यालय जल-पान गृह अथवा उपभोक्ता भण्डार आदि के कार्यों में भाग लेने का अवसर तथा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

(13) सृजनात्मकता के प्रशिक्षण तथा विकास के लिए छात्रों को मौलिकता की ओर अग्रसर होने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके हेतु आवश्यक है कि शिक्षक छात्र के सम्मुख इस तरह की समस्या उत्पन्न करें जिसमें वह अपने पूर्व ज्ञान तथा तथ्यों के ज्ञान का स्थानान्तरण करते हुए कुछ मौलिक समाधान प्रस्तुत कर सके।

(14) छात्रों में सृजनात्मकता के प्रशिक्षण तथा विकास हेतु उन्हें अपने निश्चय का खुद ही यथार्थ मूल्यांकन करने हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि जिस समस्या के समाधान अथवा नवीन रचना के हेतु छात्र ने जिन तथ्यों को लागू करने का प्रयास किया है, उसका वह स्वयं ही मूल्यांकन करे कि क्या वह उस समस्या के समाधान अथवा रचना में सहायक होंगे।

(15) यथार्थ मूल्यांकन के साथ ही उन तथ्यों अथवा विचारों का परीक्षण भी आवश्यक होता है। इसके हेतु वैज्ञानिक विधि को अपनाना चाहिए। यहाँ वैज्ञानिक विधि का अर्थ किसी प्रयोगशाला में परीक्षण से नहीं बल्कि केवल तथ्यों की सत्यता की जाँच से है। इसलिए छात्रों को वह समस्त सुविधाएँ तथा अवसर प्रदान किये जायें जहाँ वे अपने विचारों अथवा तथ्यों का उचित मूल्यांकन और जाँच कर सकें।

उपर्युक्त विशेषताओं से स्पष्ट होता है कि भिन्न-भिन्न बालकों में भिन्न-भिन्न प्रकार की सृजनात्मक विशेषताएँ पाई जाती हैं। अतः बालकों के शिक्षण के लिए जो पाठ्यक्रम निर्मित किए जाएँ उनमें ऐसे तत्त्वों का समावेश किया जाय जिससे उनमें सृजनात्मक गुणों का विकास सम्भव हो सके।

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