सृजनात्मकता के प्रमुख आयाम (Various Componant of Creativity)
सृजनात्मकता का विवेचन बहुत-से आयामों पर किया जा सकता है। कुछ महत्त्वपूर्ण आयामों का उल्लेख यहाँ संक्षेप में किया जा रहा है-
(1) संवेदनशीलता- विद्वानों का विचार है कि अपने वातावरण और परिस्थितियों से सदैव सतर्क रहने वाला व्यक्ति ही सृजनात्मक हो सकता है। संवेदनशीलता का गुण सृजनात्मकता का एक आवश्यक अंग है।
(2) विशिष्टता- सृजनात्मकता का एक प्रमुख आवश्यक अंग विशिष्टता है। पारस्परिक चिन्तन विधि से हटकर भिन्न विधि से सोचने-विचारने की क्षमता, सृजनात्मक चिन्तन में जिज्ञासा, कल्पनाशीलता, खोज तथा ग्रहणशीलता और नये प्रकार के तौर-तरीके सम्मिलित हैं।
(3) मौलिकता- सृजनात्मकता के लिए मौलिकता और नये ढंग से कार्य करने की योग्यता अपेक्षित होती है। सृजनात्मकता का गुण तभी माना जायेगा जब मौलिक कार्य हो और प्रचलित तरीकों से हटकर नये ढंग से किया गया हो।
(4) व्यावहारिकता- उपयोगी नवीनतम तरीकों को समझना और उसी के अनुरूप व्यवहार करना सृजनात्मकता है। व्यक्ति की सृजनात्मकता का आभास उसके व्यवहार के ढंग से हो जाता है।
(5) परिणाम- विद्वानों के विचार से कोई भी कार्य सृजनात्मक तब तक नहीं होता जब तक हम उसके परिणाम को नहीं देख लेते हैं। जो कुछ सामने दिखाई पड़ता है वह केवल परिणाम है अतः परिणाम के आधार पर ही सृजनात्मक प्रक्रिया का अनुमान लगाया जा सकता है।
( 6 ) परिणाम और प्रक्रिया – सृजनात्मकता का एक प्रमुख आधार परिणाम और प्रक्रिया है। प्रक्रिया करने के बाद ही परिणाम की आशा की जा सकती है। प्रक्रिया के अभाव में परिणाम दिवास्वप्न मात्र रहता है। अतः सृजनात्मकता परिणाम और प्रक्रिया दोनों का ही प्रतिफल है।
संक्षेप में सृजनात्मकता चिन्तन करने का एक नवीनतम तरीका है जिसे कार्य रूप में परिणित किया जा सके। यह एक योग्यता है, बुद्धि अथवा सीखने का पर्यायवाची नहीं है। वास्तव में इसका प्रस्फुटन चिन्तन के फलस्वरूप होता है। अपने प्राप्त अनुभवों को पुनर्गठितं करने और सरलतम करने की गत्यात्मक प्रक्रिया है। नवीन परिस्थितियों में अपनी विशिष्टताओं और आवश्यकताओं के अनुसार सामंजस्य स्थापित करना है। सृजनात्मकता का स्वरूप चाहे मौखिक हो अथवा लिखित, मूर्त हो या अमूर्त, प्रत्येक स्थिति में व्यक्ति के लिए अभूतपूर्व होती है। यह किसी नये अथवा अनोखे उत्पादन का मार्ग निर्देशन करती है। यह एक प्रकार की नियन्त्रित कल्पना है, रचनात्मक योगदान है, व्यक्ति के व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब है जिसके द्वारा वह अपनी क्षमता को प्रकट करता है। सृजनात्मक प्रक्रिया का एक सुनिश्चित लक्ष्य होता है। वह या तो व्यक्तिगत रूप से उपयोगी होती है अथवा फिर समूह या समाज के लिए उपयोगी होती है।
सृजनात्मकता का मापन (Measurement of Creativity)
शैक्षिक दृष्टि से सृजनशीलता की माप और पहचान करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है परन्तु यह एक अत्यन्त जटिल कार्य है। मनोवैज्ञानिकों ने कुछ परीक्षणों के आधार पर इस दिशा में ने कार्य किए जिनकी सहायता से सृजनात्मक छात्रों की पहचान की जा सके। मनोवैज्ञानिकों ने सृजनात्मकता के मापन हेतु जिन परीक्षणों को किया उनमें गिलफोर्ड और टोरेन्स द्वारा किए गए परीक्षण विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
टोरेन्स ने दस-दस मिनट के चार परीक्षणों की एक श्रृंखला का निर्माण, सृजनात्मकता के मापन हेतु किया। शृंखला में दो परीक्षण मौखिक और दो शाब्दिक हैं। ये परीक्षण इस प्रकार है-
(1) चित्रपूर्ति परीक्षण (Figure Completion Task) – इसमें अपूर्ण चित्र के आधार पर नवीन मौलिक चित्र बनाने हेतु परीक्षार्थी को कहा जाता है। इसके अतिरिक्त इस चित्र के आधार पर एक कहानी लिखने व उसका शीर्षक देने का भी निर्देश इस परीक्षण में दिया जाता है।
(2) वृत्त कार्य परीक्षण (Circle Task) – यह परीक्षण भी चित्रपूर्ति परीक्षण कार्य की ही भाँति है, अन्तर केवल यह है कि इसमें एक वृत्त के अन्तर्गत चित्र बनाने का निर्देश परीक्षार्थी को दिया जाता है।
(3) उत्पादन सुधार कार्य परीक्षण (Product Improvement Task)-इस परीक्षण में खिलौनों के चित्र, परीक्षार्थी के सम्मुख प्रस्तुत किए जाते हैं तथा चित्र की त्रुटियों में सुधार के उपाय सुझाने का निर्देश दिया जाता है।
(4) टिन डिब्बों का कार्य परीक्षण (Unusual uses of Tin Cans) – इस परीक्षण में परीक्षार्थी को टिन के डिब्बों को एक नवीन रूप में संयोजित करने को कहा जाता है।
टोरेन्स के अतिरिक्त मेडनिक, फ्लैन्गन तथा बेरन बैल्श के सृजनात्मक परीक्षण भी विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। मनोविश्लेषणवादी ने सृजनात्मकता के मापन हेतु “रोर्शा परीक्षणों” का उपयोग किया है। इस प्रकार के परीक्षणों में विशेष गणना कोहन, पाइन तथा हाल्ट, हैमर तथा बैरंन के परीक्षणों से की जाती है।
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