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सृजनात्मकता का अर्थ, परिभाषा, प्रकृति तथा विशेषताएँ

सृजनात्मकता का अर्थ
सृजनात्मकता का अर्थ

सृजनात्मकता का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Creativity)

सृजनात्मकता क्या है, इस सम्बन्ध में विभिन्न विद्वान एकमत नहीं हैं। साधारण शब्दों में सृजनात्मकता का तात्पर्य है-सृजन अथवा रचना सम्बन्धी योग्यता। आरम्भ में इस योग्यता का सम्बन्ध केवल कल्पनात्मक रचनाओं से माना जाता था परन्तु आधुनिक मनोविज्ञान ने इसके क्षेत्र को व्यापक बना दिया है। अब सृजनात्मकता का सम्बन्ध मात्र विभिन्न कल्पनाओं से नहीं बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बन्धित माना जाता है। विभिन्न विचारकों ने सृजनात्मकता शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में किया है।

 व्यापक अर्थ में इस शब्द का प्रयोग ज्ञान अथवा सूचना के सम्पूर्ण क्षेत्र से सम्बन्धित करके किया जाता है।  इस तथ्य का सम्बन्ध अन्वेषण प्रवृत्ति के लोगों, अन्वेषण कार्यों और नवीन उत्पादनों से है। कुछ विद्वान सृजनात्मक का सम्बन्ध काव्य रचना, कलात्मक कार्य एवं वैज्ञानिक सिद्धान्तों से मानते हैं और कुछ इसके उपयोगी परिणाम पर बल देते हैं। यह दोनों बातें तकनीकी दृष्टि से भले ही उचित हों परन्तु मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सर्वथा उचित नहीं हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से तो कोई भी मानसिक क्रिया, जो अन्वेषण के दृष्टिकोण से उन्मुख हो, चाहे अन्वेषण उपयोगी हो अथवा अनुपयोगी, समान है। अन्वेषण कला, विद्वान अथवा तकनीकी में ही नहीं होता, जीवन के किसी क्षेत्र, साहित्य, कला सभी के अन्तर्गत हो सकता है। सृजनात्मकता का अर्थ स्पष्ट करते हुए प्रो. रूश का विचार है- “सृजनात्मकता, मौलिकता है जो वास्तव में किसी भी कार्य में घटित हो सकती है।”

“Creativity is originality which actually can occur in any kind of activity.”  – Prof. Ruch

इस परिभाषा के आधार पर प्रो. रूश ने यह विचार व्यक्त किए हैं कि वे लोग जो किसी स्थिति विशेष के तत्त्वों अथवा घटकों में आदर्श सामंजस्य स्थापित करने में अपनी मौलिक क्षमता दिखलाते हैं सभी सृजनात्मक जीवन व्यतीत करते हैं। कुछ अन्य विद्वानों ने भी सृजनात्मकता के अर्थ को स्पष्ट करते हुए उसकी परिभाषाएँ दी हैं। यहाँ कुछ परिभाषाएँ दी जा रही हैं-

(1) सी. वी. गुड – “सृजनात्मकता विचार का वह स्वरूप है जो कि किसी समूह में, विस्तृत सातत्य को निर्मित करता है। सृजनात्मकता के कारकों में साहचर्य, वैचारिक तीव्रता, मौलिक अनुकूलनशीलता, सात्यक, लोच तथा तार्किक उद्विकास की योग्यता की विवेचना की जा सकती है।”

(2) मेडनिक- “सृजनात्मक चिन्तन में, साहचर्य के तत्त्व सम्मिलित रहते हैं जो किसी विशिष्ट आवश्यकता या किसी अन्य लाभ के लिए संयोगशील रहते हैं। नवीन संयोग के तत्त्व परस्पर जितने ही कम होंगे, प्रक्रिया या समाधान उतना ही अधिक सृजनशील होगा। “

(3) स्टेन- “जब किसी कार्य के नवीन परिणाम प्राप्त हों, जो किसी समय में समूह द्वारा उपयोगी स्वीकार किया जाय, तो ऐसा कार्य सृजनात्मक कहलाता है। “

(4) क्रो एवं क्रो- “सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।”

(5) जेम्स ड्रेवर- “सृजनात्मकता मुख्यतः नवीन रचना या उत्पादन में होती है।”

(6) कोल एवं ब्रूस- “सृजनात्मकता एक मौलिक उत्पादन के रूप में मानव-मन की ग्रहण करने, अभिव्यक्त करने और गुणांकन करने की योग्यता एवं क्रिया है।”

इस तरह सृजनात्मकता किसी-न-किसी रूप में उत्पादन से अथवा नवीन रचना से सम्बन्धित है। यह उत्पादन मूर्त अथवा किसी भी रूप में हो सकता है। विज्ञान, कला, तकनीकी आदि के क्षेत्र में सृजनात्मक उत्पादन का रूप मूर्त होता है जबकि साहित्यिक रचनाओं आदि के क्षेत्र में इसका रूप अमूर्त होता है।

इन परिभाषाओं और विचारों से स्पष्ट है कि सृजनात्मकता में विभिन्न वस्तुओं के संयोग से नवीनता उत्पन्न की जाय, वह उपयोगी हो और उसे समाज द्वारा मान्यता प्राप्त हो।

सृजनात्मकता की प्रकृति तथा विशेषताएँ (Nature and Characteristics of Creativity)

सृजनात्मकता के तत्त्वों तथा विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर सृजनात्मकता की प्रकृति तथा उसकी विशेषताओं का निम्नलिखित रूप से उल्लेख किया जा सकता है-

(1) सृजनात्मकता सार्वभौमिकता होती है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ-न-कुछ मात्रा में सृजनात्मकता अवश्य पाई जाती है।

(2) सृजनात्मकता में मौलिकता तथा नवीनता पाई जाती है।

(3) यद्यपि सृजनात्मक योग्यताएँ प्रकृति प्रदत्त होती हैं, परन्तु शिक्षण व प्रशिक्षण द्वारा उनको विकसित किया जा सकता है।

(4) यह परिणामों को अभिव्यक्त करने की एक नवीन प्रक्रिया है ।

(5) इसमें नवीन उत्पादन होता है।

(6) सृजनात्मकता में अपूर्वता पाई जाती है।

(7) इसमें अभिसारी चिन्तन (Convergent Thinking) पाया जाता है।

(8) यह मौलिक उत्पादन के मूल्यांकन की योग्यता है।

(9) यह एक साहसिक चिन्तन है।

(10) यह एक प्रकार का केन्द्रविमुख चिन्तन है।

(11) यह लक्ष्य निर्देशित होती है।

(12) इस प्रक्रिया में सूचनाओं को एकत्र किया जाता है।

(13) कोई भी सृजनात्मकता अभिव्यक्ति सृजक के लिए आनन्द या संतुष्टि का स्रोत होती है, सृजक जो देखता या अनुभव करता है, उसे अपने तरीके से प्रकट करता है। 

(14) सृजक अपनी रचना द्वारा अपने आपकी अभिव्यक्ति करता है।

(15) सृजनात्मक चिंतन ‘बँधा हुआ चिंतन’ नहीं होता है। इसमें अगिनत विकल्पों तथा इच्छित कार्य प्रणाली को चुनने की पूर्ण स्वतन्त्रता रहती है।

(16) सृजनात्मकता का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता है। वैज्ञानिक आविष्कार, कहानी, कविता और नाटक निर्माण, नृत्य, संगीत, कला चित्रकला, शिल्पकला, अन्य विविध हस्तकलाएँ, सामाजिक-राजनैतिक आदि में से कोई भी क्षेत्र इस प्रकार की अभिव्यक्ति का आधार बन सकता है।

सृजनात्मकता का आधार (Basis of Creativity)

सृजनात्मकता का आधार चिन्तन है। यदि हम यह प्रश्न करें कि दो और दो कितने होते हैं तो इसका सीधा-सा उत्तर होगा चार इस तरह का चिन्तन सरल तथा यान्त्रिक होता है। दूसरे तरह का चिन्तन भिन्नता लिए होता है। इसके अन्तर्गत सोचने का पर्याप्त अवसर होता है। अपसारी (Divergent) चिन्तन का विशेष लक्ष्य होता है। जिस चिन्तन के अन्तर्गत प्रत्यक्षतः यान्त्रिकता रहती है उसे अभिसारी (Convergent) चिन्तन कहा जाता है। चिन्तन सृजन के सन्दर्भ में पहली बार गिलफोर्ड द्वारा विचार किया गया। व्यक्ति अपने उद्देश्य की प्राप्ति के हेतु प्रयास करता है और उसकी सन्तुष्टि होने पर वह भविष्य में भी प्रयास करता है। सन्तुष्टि की जाँच मूल्यांकन द्वारा होती है। अपसारी चिन्तन और मूल्यांकन के साथ अभिसारी चिन्तन सृजनात्मक शक्ति का तीसरा पक्ष है। प्रायः यह देखा जाता है कि स्काउट्स द्वारा साधनों के अभाव में कामचलाऊ स्ट्रेचर लाठियों से बना लिया जाता है। किसी वस्तु के अभाव में हम दूसरी वस्तु से काम चला लेते हैं। इसका सीधा-सा तात्पर्य यह है कि व्यक्ति में परिस्थिति की पुनः व्याख्या की शक्ति आवश्यक है। इसे कार्यात्मक सुदृढ़ता भी कहा जाता है।

शिक्षा में सृजनात्मकता एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। समस्त छात्रों के लिए यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। सृजनात्मकता के स्तर प्रत्येक बालक के हेतु भिन्न हो सकते हैं। छात्रों को सृजन का अवसर दिया जाना चाहिए। सृजनात्मकता के अवसर कक्षागत परिस्थितियों में दिये जाने चाहिए। इस तरह के अवसरों में लोच, स्वतन्त्रता एवं उत्साह के गुण होने चाहिए। समस्त कक्षा शिक्षण सृजनात्मक होना चाहिए। सृजनात्मकता के अन्तर्गत रटने की प्रणाली का बहिष्कार किया जाता है। सत्य तो यह है कि सृजनात्मकता वह गुण है जिसे बोधगम्य होना चाहिए और उसका अनुकरण करना चाहिए।

अपसारी-अभिसारी चिन्तन का मूल्यांकन सृजनात्मकता के अध्ययन हेतु किया जा सकता है। गिलफोर्ड द्वारा अभिसारी चिन्तन हेतु अनेक परीक्षण निर्मित किए गए। सामान्यतः बुद्धि परीक्षण अपसारी चिन्तन का परीक्षण नहीं है। सृजनात्मकता के परीक्षण हेतु इनका परीक्षण किया गया है।

सृजनात्मकता की पहचान के लिए गिलफोर्ड ने निम्न तथ्य बतलाए हैं-

(1) तात्कालिक स्थिति से परे जाने की योग्यता- जो छात्र तात्कालिक सन्दर्भ में तथा परिस्थितियों के आधार पर उससे आगे जाकर चिन्तन मनन और अभिव्यक्ति करते हैं उनमें सृजनात्मकता के लक्षण पाये जाते हैं।

(2) समस्या अथवा उसके अंश की पुनर्व्याख्या- जिन छात्रों में किसी तथ्य, समस्या की सम्पूर्ण अथवा आंशिक रूप से पुनर्व्याख्या करने की क्षमता होती है वे सृजनात्मक शक्तियों से पूर्ण होते हैं।

(3) असामान्य एवं प्रासंगिक विचारों का सामंजस्य- ऐसे बालक जो चिन्तन, तर्क, कल्पना द्वारा प्रासंगिक परन्तु असामान्य विचारों के साथ सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं वे सृजनशील होते हैं। इस तरह के बालक आत्माभिव्यक्ति हेतु चुनौती को स्वीकार कर लेते हैं तथा आत्मनिविष्ट होकर क्रियाशील हो जाते हैं।

(4) अन्य व्यक्ति के विचारों में परिवर्तन करना- तर्क, चिन्तन और प्रमाणों के माध्यम से मौलिक और तर्कसंगत अभिव्यक्ति के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के विचार, विश्वास एवं धारणा में परिवर्तन करने वाले व्यक्ति सृजनशील होते हैं।

सृजनात्मकता और बुद्धि का सम्बन्ध (Relationship between Creativity and Intelligence)

सृजनात्मकता और बुद्धि में क्या सम्बन्ध है? इस सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि सृजनात्मकता एवं प्रतिभा एक वस्तु नहीं है। प्रायः यह देखा जाता है कि सृजनात्मक व्यक्ति प्रतिभावान होते हैं परन्तु ऐसा सदैव नहीं होता। यह भी पाया गया है कि उच्च बुद्धि-लब्धि (I. Q.) के व्यक्ति सृजनात्मकता के क्षेत्र में नीचे देखे गये। मनोवैज्ञानिक गेटजल और जैक्सन ने सृजनात्मकता और बुद्धि के सम्बन्ध को ज्ञात करने हेतु सृजनात्मक बालक तथा उच्च बुद्धि-लब्धि के सृजनात्मक बालक का परीक्षण किया। इस परीक्षण में उसने यह पाया कि उच्च बुद्धि-लब्धि के सृजनात्मक बालकों की अपेक्षा सृजनात्मक बालक अधिक स्वावलम्बी, अधिक कल्पनाशील और अधिकारियों के प्रति कम आदर भाव रखने वाले होते हैं।

कुछ मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ कि यह आवश्यक नहीं है कि सृजनशील व्यक्ति अधिक बुद्धिमान हो। हाईस्कूल के विद्यार्थियों पर गेटजल और जैक्सन द्वारा किए गए अध्ययन में, जिसमें उच्च सृजनशील औसत बुद्धि-लब्धि वाले बालक और उच्च बुद्धि-लब्धि के बालक थे, ज्ञानार्जन में समान पाये गये और उच्च बुद्धि वाले बालकों का समूह शिक्षकों द्वारा कक्षा में अधिक पसन्द किया जाता था। इन दोनों समूहों में से सृजनशील ने हँसी-मजाक के गुण को क्रम में दूसरा स्थान दिया जबकि उच्च बुद्धि-लब्धि (I. Q.) के समूह ने इसे सबसे नीचा स्थान दिया। टोरेन्स द्वारा इस प्रकार किए गए अध्ययन में बुद्धि-लब्धि (I. Q.) और सृजनशीलता में निम्न सह सम्बन्ध (Low Correlation) पाया गया, परन्तु यह भी पाया गया कि उच्च सृजनशील विद्यार्थी निम्न सृजनशील विद्यार्थी से ज्ञानार्जन अथवा उपलब्धि परीक्षा में उच्च होते हैं।

अनेकानेक मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि सृजनशील परीक्षणों द्वारा मापी जाने वाली सृजनशीलता बुद्धि से स्वतन्त्र होती है और जो शिक्षक द्वारा मूल्यांकन की जाती है वह बुद्धि से सम्बन्धित होती हैं। इस तरह शैक्षिक दृष्टि से सृजनशीलता एवं ज्ञानोपार्जन में सम्बन्ध दिखलाई देता है।

सृजनात्मकता और बुद्धि में अन्तर (Difference between Creativity and Intelligence)

सृजनात्मकता और बुद्धि में कुछ समानताएँ दिखलाई देने के फलस्वरूप यह भ्रम होता है. कि दोनों में समानता है। दोनों एक प्रकार की बौद्धिक क्षमताएँ हैं तथा व्यक्ति के सभी व्यवहारों में परिलक्षित होती हैं। दोनों ही जन्मजात हैं तथा दोनों का व्यक्तित्व निर्माण में प्रभाव पड़ता है। दोनों के अन्तर्गत समानता के कुछ बिन्दु होते हुए भी उनमें मूलभूत अन्तर हैं जिसे यहाँ स्पष्ट किया जा रहा है-

सृजनात्मकता बुद्धि
1. सृजनात्मकता नवीन प्रकार के कार्य करने की क्षमता और शक्ति है। 1. बुद्धि किसी समस्या का सम्पूर्ण हल प्राप्त करने की क्षमता है।
2. यह तभी सार्थक मानी जाती है जब वह गुण समाज में स्वीकृत हो । 2. यह व्यक्ति विशेष में एक विशेष गुण के रूप में पाई जाती है।
3. सृजनात्मकता की मात्रा विभिन्न विकासात्मक अवस्था में भिन्न-भिन्न होती है। 3. विभिन्न विकासात्मक अवस्था में बुद्धि लब्धि एक जैसी रहती है।
4. सृजनात्मकता पर वातावरण, अधिगम और अभिवृद्धि का प्रभाव पड़ सकता है। 4. बुद्धि पर वातावरण, अधिगम और अभिवृद्धि का प्रभाव नहीं पड़ता।
5. सृजनात्मकता का विकास निरन्तर हो सकता है। 5. प्रायः यह देखा जाता है कि बुद्धि का विकास नहीं होता परन्तु विशिष्ट उपायों से उसे थोड़ी मात्रा में बढ़ाया जा सकता है
6. सृजनात्मकता का विभाजन निर्माणात्मक, ध्वंसात्मक रूप में किया जाता है। 6. बुद्धि का विभाजन बुद्धि-लब्धि के आधार पर औसत से कम, औसत और औसत से अधिक, के रूप में किया जाता है।
7. अधिक सृजनशील व्यक्ति अधिक अथवा कम बुद्धि वाला भी हो सकता है। 7. कम बुद्धि वाला व्यक्ति सृजनशील हो सकता है।

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