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बुद्धि का स्वरूप : अर्थ एवं परिभाषा एवं प्रकार

बुद्धि का स्वरूप
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बुद्धि का स्वरूप : अर्थ एवं परिभाषा (Nature of Intelligence : Meaning & Definition)

बुद्धि के स्वरूप के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों का एक मत नहीं है। अतः बुद्धि एक विवादग्रस्त समस्या बन गयी है। जिस प्रकार विद्युत एक शक्ति है, उसके स्वरूप को औपचारिक भाषा में व्यक्त करना कठिन है और विद्युत को हम उसके कार्यों; यथा- ताप उत्पादन, प्रकाश, चुम्बकीय क्षेत्र इत्यादि द्वारा जानते हैं, ठीक उसी प्रकार बुद्धि भी एक शक्ति है, जो जटिल मानसिक क्रियाओं; यथा- प्रत्यक्षीकरण, स्मृति, चिन्तन, कल्पना तथा तर्क इत्यादि के रूप में अभिव्यक्त होती है तथा इसका मापन किसी परीक्षा या परिवेश में व्यक्ति के कार्य को परिमाणात्मक विवरण या फलांकों के आधार पर किया जाता है।

बुद्धि के स्वरूप को समझने और व्याख्या करने का प्रयास प्राचीन काल से ही होता चला आ रहा है और उसके सम्बन्ध में वैज्ञानिक तथ्यों के विकास के साथ-साथ अनेक रूढ़िगत बातें भी जुड़ी रही हैं; जैसे- बड़े सिर और चौड़े ललाट वाला व्यक्ति बुद्धिमान होता है, पुरुषों में स्त्रियों की अपेक्षा अधिक बुद्धि होती है या पहलवानों में बुद्धि कम होती है। 18वीं सदी में आकृति सामुद्रिक (Paystognomy) तथा मस्तिष्क-विज्ञान (Phrenology) पर जनसाधारण का काफी विश्वास था जिसमें चेहरे की आकृति तथा खोपड़ी के आकार तथा उभारों के आधार पर बुद्धि की व्याख्या करने का प्रयास किया गया। प्राचीन यूनानी दार्शनिकों के सिद्धान्त-शक्ति मनोविज्ञान (Faculty Psychology) के अनुसार, प्रत्येक मनुष्य के मन में अनेक शक्तियाँ (Faculties), जैसे- कल्पना, स्मृति, चिन्तन इत्यादि होते हैं जो मस्तिष्क के विभिन्न भागों में स्थित होती हैं और उसे अनेक कार्यों को करने के योग्य बनाती हैं, परन्तु अब शक्ति मनोविज्ञान तथा मस्तिष्क विज्ञान का कोई महत्त्व नहीं रहा और इन्हें त्याग दिया गया है।

अध्ययन के फ्रांसिस गाल्टन ने शारीरिक अवयवों (जैसे- मध्यम उँगली की लम्बाई) के आधार पर बुद्धि की व्याख्या करने का प्रयास किया पर कार्ल पियर्सन ने 1906 में यह स्पष्ट कर दिया कि सिर की बनावट, मुखाकृति एवं शारीरिक अवयवों का मानसिक योग्यता से कोई सम्बन्ध नहीं है।

डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत से यह स्पष्ट हो गया कि पशुओं तथा मनुष्य के व्यवहार में आधारभूत समानता होती है तथा पशुओं में भी बुद्धि होती है जबकि पहले पशुओं को बुद्धिहीन और मूल प्रवृत्यात्मक तथा मनुष्य को विचारवान माना जाता था।

बीसवीं सदी में बुद्धि के मापन पर विशेष ध्यान दिया गया और उसके आधार पर बुद्धि के स्वरूप को समझने की चेष्टा की गयी जिसमें बिने, टरमैन, स्टर्न, थार्नडाइक, वेल्स, बिनेट, गाल्टन, बकिंघम एवं मैक्डूगल इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से बुद्धि की परिभाषा दी है। इन परिभाषाओं में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है. परन्तु आत्मा सबकी एक ही है। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

स्टर्न- “बुद्धि एक सामान्य योग्यता है जिसके द्वारा व्यक्ति नई परिस्थितियों में अपने विचारों को जान-बूझकर समायोजित कर लेता है।”

वेल्स – “संक्षेप में बुद्धि वह शक्ति है जो हमारे व्यवहार के ढंगों को इस प्रकार संयोजित करती है कि हम नवीन परिस्थितियों में अच्छी तरह कार्य कर लेते हैं।”

गाल्टन – “बुद्धि पहचानने तथा सीखने की शक्ति है।”

टरमैन– “बुद्धि अमूर्त वस्तुओं के विषय में सोचने की योग्यता है।”

थार्नडाइक- “वास्तविक परिस्थितियों के अनुसार अपेक्षित प्रतिक्रिया करने की योग्यता बुद्धि है।”

विभिन्न विद्वानों में मतभेद होने के कारण बुद्धि का स्वरूप निश्चित करना बहुत ही कठिन है। बेलार्ड महोदय का कथन है कि बुद्धि की विभिन्न परिभाषाओं को हम तीन श्रेणियों में रख सकते हैं।

(i) बुद्धि दो या तीन विभिन्न योग्यताओं का समूह है।

(ii) बुद्धि तभी योग्यता है जो सभी मानसिक प्रक्रियाओं में सहायता करती है।

(iii) बुद्धि सभी विशिष्ट योग्यताओं का निचोड़ है।

(अ) प्रथम सिद्धान्त- बुद्धि एक सामान्य योग्यता है। इस परिभाषा का समर्थन उपर्युक्त दी हुई स्पियरमैन और स्टर्न की परिभाषा से होता है। बर्ट महोदय भी बुद्धि को स्वाभाविक, जन्मजात एवं सर्वव्यापक मानसिक योग्यता मानते हैं। डॉ० जॉनसन महोदय ने भी इसका समर्थन किया है। विडरो महोदय ने भी बुद्धि को योग्यता प्राप्त करने की शक्ति बताया है। यह सिद्धान्त ठीक प्रतीत नहीं होता है क्योंकि कोई बालक सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठ नहीं हो सकता है।

(ब) द्वितीय सिद्धान्त- ‘बुद्धि दो या तीन योग्यताओं’ का समूह है। ब्रिटेन नामक वैज्ञानिक ने इस परिभाषा का समर्थन किया। इसके अनुसार-

1. बुद्धि निश्चित दिशा की ओर आने की प्रवृत्ति है,

2. सुव्यवस्थित होकर विशेष ध्यान पर पहुँचने की योग्यता है तथा,

3. आत्म- प्रालोचना करने की शक्ति है।

वास्तव में यह सिद्धान्त भी अपूर्ण है क्योंकि इसमें कल्पना, मनन, स्मृति और विचार सभी शक्तियों को बुद्धि में निहित मान लिया गया है। हम देखते हैं कि बालक की कल्पना-शक्ति कुछ विषयों में प्रबल हो जाती है और कुछ विषयों के संबंध में वह किंचित् कल्पना नहीं कर सकता है। अगर कल्पना एक शक्ति है तो प्रत्येक कार्य में सदैव होनी चाहिए।

(स) तृतीय सिद्धान्त- ‘बुद्धि सभी विशिष्ट योग्यताओं का निचोड़ है’ तीसरे सिद्धान्त का समर्थन थार्नडाइक महोदय ने किया है। थामस महोदय का कथन है कि बुद्धि वंश या परम्परागत प्राप्त विभिन्न गुणों का निचोड़ है। थार्नडाइक महोदय का कथन है कि बुद्धि अनेक प्रकार की विशेष योग्यताओं से बनी है जिसमें स्वतन्त्र योग्यताओं का भी समावेश है।

निष्कर्ष – इस प्रकार मनोवैज्ञानिक के भिन्न-भिन्न विचार हैं परन्तु आधुनिक मनोवैज्ञानिक बुद्धि का निम्नलिखित स्वरूप स्वीकार करते हैं-

1. बुद्धि एक मानसिक सामान्य योग्यता है जिसकी क्रिया के विभिन्न रूप हैं।

2. उच्चकोटि की मानसिक प्रक्रियाओं में निम्न प्रक्रियाओं की अपेक्षा यह अधिक क्रियाशील रहती है।

3. नवीन परिस्थितियों के आगमन पर बुद्धि का बल अच्छी प्रकार दिखाई पड़ता है।

4. बुद्धि का कार्य संस्कारों को केवल ग्रहण करना ही नहीं है वरन् अनुभव के विभिन्न अंगों की परीक्षा कर उन्हें आवश्यकतानुसार सुव्यवस्थित करना भी है।

बर्ट के अनुसार, “बुद्धि सापेक्ष के रूप में नवीन परिस्थितियों में अभिनियोजित करने की जन्मजात योग्यता है।”

वुडवर्थ के मतानुसार बुद्धि के चार तत्त्व होते हैं-

1. अतीत अनुभवों का प्रयोग ( Use of past experiences).

2. नवीन परिस्थितियों में समायोजन (Adjustment to new situations),

3. परिस्थितियों का समझना (To understand the situations).

4. क्रियाओं को व्यापक दृष्टिकोण से देखना (To see the situations with a broad. vision)।

स्पियरमैन के अनुसार, “बुद्धि एक समान भक्त है जो समस्त मानसिक व्यवसाय में सामान्य रूप से विद्यमान रहती है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि बुद्धि एक सामान्य योग्यता है जिसके द्वारा व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों को समझकर उसके अनुसार अपने व्यवहार में परिवर्तन करता है।

बुद्धि के प्रकार (Types of Intelligence)

थार्नडाइक के अनुसार बुद्धि तीन प्रकार की होती है-

(1) अमूर्त बुद्धि

अमूर्त बुद्धि का कार्य सूक्ष्म तथा अमूर्त प्रश्नों को चिन्तन के माध्यम से हल करना होता है। इस बुद्धि का सम्बन्ध पुस्तकीय ज्ञान से होता है। इस प्रकार की बुद्धि में शब्द, अंकों तथा प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है। शिक्षक, वकील, डॉक्टर, दार्शनिक, कवि तथा चित्रकार अपने विचारों को इसी माध्यम से व्यक्त करते हैं।

(2) मूर्त बुद्धि 

किसी वस्तु या तथ्य को समझाने और उसके अनुसार कार्य करने में इसी बुद्धि का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार की बुद्धि को गत्यात्मक या यान्त्रिक बुद्धि भी कहते हैं। इस प्रकार की बुद्धि का प्रयोग उन कार्यों के लिये किया जाता है जिनमें कुछ उद्देश्य निहित होता है। वे व्यक्ति जिनमें यह बुद्धि होती है, यन्त्रों एवं मशीनों से सम्बन्धित कार्यों में विशेष रुचि लेते हैं। मूर्त वस्तुओं से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान ऐसी बुद्धि के व्यक्तियों के द्वारा सरलता से कर लिया जाता है।

मूर्त बुद्धि का दूसरा स्वरूप शारीरिक शिक्षा से सम्बन्धित होता है। इस कारण इसको गामक या गत्यात्मक बुद्धि भी कहते हैं । इस प्रकार की बुद्धि में गत्यात्मक योग्यता निहित होती है। अतः इस बुद्धि के व्यक्ति अच्छे कारीगर, मैकेनिक, टैक्नीशियन, इंजीनियर तथा औद्योगिक कार्यकर्त्ता होते हैं।

(3) सामाजिक बुद्धि

इस बुद्धि का सम्बन्ध किसी व्यक्ति की उस योग्यता से होता है जिससे समाज में अनुकूलन की क्षमता उत्पन्न होती है । अतः इस बुद्धि का प्रयोग सामाजिक और व्यक्तिगत कार्यों में होता है। इस प्रकार की बुद्धि के व्यक्ति सामाजिक तथा व्यक्तिगत कार्यों में रुचि लेने वाले होते हैं। व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। इसी कारण उसे समाज से समायोजन करना आवश्यक होता है। जिन व्यक्तियों में इस प्रकार की बुद्धि नहीं होती, वे जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर पाते। जिन व्यक्तियों में इस प्रकार की बुद्धि होती है, उनमें व्यवहार- कौशल होता है। साधारणतया अमूर्त और सामाजिक बुद्धि साथ-साथ चलती है। अतः इस बुद्धि के व्यक्ति कू.र्न तिज्ञ, व्यवसायी और सामाजिक कार्यकर्त्ता होते हैं।

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