आधुनिक सभ्य राज्यों में नागरिकों के प्रमुख अधिकार का उल्लेख कीजिये।
सभ्य राज्य में नागरिकों के प्रमुख अधिकार (Particular Rights of Citizens )
आधुनिक युग में प्रत्येक राज्य के नागरिकों को दो प्रकार के अधिकार प्रदान किये है। प्रथम सामाजिक अधिकार-जिनका प्रयोग करके नागरिक समाज में अपनी सामाजिक स्थिति को ऊंचा उठाता है। द्वितीय राजनीतिक अधिकार जो व्यक्ति को राज्य की ओर से प्रदान किये जाते हैं और जिनका प्रयोग करके व्यक्ति शासन के कार्यों में अपनी भूमिका निभाता है। इन दोनों प्रकार के अधिकारों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-
सामाजिक अधिकार
(1) सामाजिक सुरक्षा का अधिकार- व्यक्ति को राज्य एवं समाज की ओर से विभिन्न अधिकार प्रदान करने की व्यवस्था की जाती है, किन्तु उसके अधिकार केवल उसी समय उपयोगी हो सकते हैं, जबकि उसको जीवित रहने का अधिकार हो। इसलिये सभी राजनीतिज्ञों ने सभ्य समाजों में नागरिकों को जीवित रहने और अपने जीवन की सुरक्षा करने का अधिकार प्रदान किया है। यहाँ तक कि कुछ विद्वानों ने राज्य को भी यह अधिकार नहीं दिया। किसी अपराध के लिए अपराधी को मृत्यु-दण्ड दे। गाँधी जी ने कहा था कि, “जब व्यक्ति एक बार मार दिया गया तो दण्ड पूर्वागमन तथा क्षतिपूर्ति से परे हो गया है। डॉ० सेठना ने भी कहा है, “जिसने अपराध किया उसे आप उसके कार्यों का फल दे रहे हो, किन्तु उसको मारकर उसकी पत्नी-बच्चों, माता-पिता व अन्य सम्बन्धी मित्रों को किस बात के लिए दण्ड दे रहे हैं।” टैफ्ट ने भी कहा था. “वह समाज जो जीवन की कद्र करता है, उसे तत्परता के साथ जीवन नहीं लेना चाहिए।”
(2) वैयक्तिक स्वतन्त्रता का अधिकार – वैयक्तिक स्वतन्त्रता के अधिकार का आशय यह है कि व्यक्ति को राज्य भर में आने जाने की पूर्ण स्वतन्त्रता है। वह इच्छानुसार कहीं भी आ-जा सकता है। जब नागरिक को इधर-उधर जाने की स्वतन्त्रता होगी तो वह अपने अस्तित्व का विकास आसानी से कर सकेगा। इस सम्बन्ध में गिलक्राइस्ट ने लिखा भी है कि. “गतिविहीन जीवन निरर्थक होगा और मानव शक्तियों का पूर्ण उपयोग किये बिना वह पशुओं के धरातल से ऊँचा नहीं उठेगा।”
( 3 ) स्वतन्त्र भाषण व अभिव्यक्ति का अधिकार – नागरिक को अपने विचारों को व्यक्त करने का पूरा-पूरा अधिकार प्रदान किया गया है। नागरिक अपने विचारों को भाषण द्वारा सभाओं में व्यक्त कर सकता है अथवा समाचार पत्रों में छपवा सकता है। इस प्रकार के अधिकार पर सरकार केवल घोर संकट उपस्थित होने पर ही प्रतिबन्ध लगा सकती है।
(4) संगठन बनाने का अधिकार – अकेला व्यक्ति अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने के सफल नहीं हो सकता। वह समान उद्देश्य रखने वाले व्यक्तियों के साथ अपना सम्पर्क बढ़ाता है और उनके साथ मिलकर संगठन की व्यवस्था समिति के रूप में करता है। इस प्रकार के संगठनों के अधिकारों का उपयोग करके ही नागरिक अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है।”
(5) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार – प्रत्येक नागरिक को उसकी इच्छानुसार धार्मिक सम्प्रदाय का अनुसरण करने का अधिकार है। इस सुविधा के क्षेत्र में कोई बन्धन नहीं है। राज्य धर्म निरपेक्षता में विश्वास करता है। धर्म-निरपेक्षता का सम्बन्ध में श्री वेंकटरमन ने लिखा है, “धर्म-निरपेक्ष राज्य न धार्मिक होता है, न अधार्मिक होता है, न धर्म विरोधी होता है, प्रत्युत • धार्मिक रूढ़ियों से सर्वया विमुक्त रहता है और इस प्रकार धार्मिक मामलों में उसके क्रियाकलाप पूर्णतया तटस्थ होते हैं।”
( 6 ) समझौता करने का अधिकार – सहयोग जीवन का एक मुख्य भाग है। बिना सहयोग के कोई भी व्यक्ति सामाजिक जीवन में सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। कोई भी काम व्यक्ति करे उसको दूसरे व्यक्तियों से सहयोग लेना होगा और समझौता करना होगा। अतएव सभ्य राज्यों में नागरिकों को एक-दूसरे से समझौता करने का भी पूरा-पूरा अधिकार है। गिलक्राइस्ट का कथन है, “अनुबन्ध एक व्यापार निसमें किसी विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दो या दो से अधिक व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह स्वतन्त्रतापूर्वक परस्पर कुछ कर्त्तव्य ग्रहण करते हैं।”
(7) शिक्षा व संस्कृति का अधिकार – शिक्षा व संस्कृति जीवन में बहुत महत्व है। संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कुछ विद्वानों ने लिखा है, “संस्कृति समाज एकता के सूत्र में प्रन्थित रखती है और व्यक्ति के जीवन में सन्तुलन लाती है। जीवन में जो कुछ सत्य, शिव, सुन्दर है उन सबका समुदाय समन्वय ही संस्कृति है।” इस दृष्टि से राज्य व समाज की ओर से प्रत्येक नागरिक को शिक्षा व संस्कृति प्राप्त करने का अधिकार है।
( 8 ) कुटुम्ब का अधिकार – प्रत्येक नागरिक को स्वतन्त्र रूप से विवाह करने, पति पत्नी के साथ रहने, बाल-बच्चों का पालन आदि के अधिकार स्वतन्त्र रूप से मिलने चाहिए। इन अधिकारों में राज्य को केवल उसी समय हस्तक्षेप करना चाहिये, जब पारस्परिक तनाव के कारण नागरिक का पारिवारिक जीवन संकट में पड़ जाये।
(9) समता का अधिकार- सामाजिक दृष्टि से सभी नागरिक समान है। अतएव सभी नागरिकों को एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति तथा प्रेम रखना चाहिये। नागरिक पारस्परिक प्रेम व सहानुभूति के आधार पर एक-दूसरे का सहयोग ले सकते हैं और उनको समाज मे समान स्थिति भी प्रदान की जा सकती है। नैसर्गिक दृष्टि से सभी व्यक्ति समान उत्पन्न होते हैं, इसलिये सभी नागरिकों को चाहिये कि वे एक-दूसरे के प्रति उचित व्यवहार करें।
(10) सम्पत्ति का अधिकार – व्यक्ति के जीवन में धन का विशेष महत्व है। प्रत्येक व्यक्ति को भोजन, वस्त्र तथा आवास की व्यवस्था अनिवार्य रूप से करनी पड़ती है। अतएव प्रत्येक नागरिक को सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार अनिवार्य रूप से मिलने चाहिए। नागरिक को अधिकार है कि वह अपनी भौतिक आवश्यकाओं की पूर्ति करने के लिए उचित साधनों कमाएँ। इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि सम्पत्ति के अधिकार की आड़ लेकर व्यक्ति किसी का धन शोषण न करे। इस संबंध में लॉस्की का मत है, “यदि सम्पत्ति मनुष्य की यथासम्भव उन्नति के लिए आवश्यक है तो इस अधिकार का अस्तित्व स्पष्ट ही है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि इस प्रकार अधिकार पर बड़े कठोर प्रतिबन्ध लगे हुये हैं।”
(11) राज्य का विरोध करने का अधिकार- राज्य का उद्देश्य अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम हित करना है। यदि राज्य इस उद्देश्य की पूर्ति न करे और नागरिकों के जीवन की सुरक्षा न करे तो नागरिक को अधिकार है कि वह राज्यों की आज्ञा का उल्लंघन कर सकता है। इस सम्बन्ध में हॉस्क का लेख है, “व्यक्ति के लिए शासक की आज्ञा का पालन करना उसी समय तक उचित है, जब तक शासक उसके प्राणों की रक्षा करता है।” इस सम्बन्ध में टी. एच. ग्रीन ने भी लिखा है, “व्यक्ति को सामान्य परिस्थितियों में राज्य के कानूनों का पालन अवश्य ही करना चाहिये लेकिन यदि राज्य व्यक्ति के हितों के प्रति बलपूर्वक कानून बनाये, उन कानूनों को व्यक्ति वैधानिक रूप से न बदल सके तो अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्ति की क्रान्ति का आश्रय लेना चाहिये।” इस प्रकार के मतों का सार यह है कि विषम परिस्थितियों में व्यक्तियों को राज्य की आज्ञा का उल्लंघन करने में संकोच नहीं करना चाहिये।
राजनीतिक अधिकार
( 1 ) पद पाने का अधिकार – प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि वह अपनी योग्यता व क्षमता के आधार पर सरकारी पद प्राप्त करे। इस प्रकार के सरकारी पदों पर नागरिकों की नियुक्ति उनके गुणों व उनकी क्षमता के आधार पर की जायेगी। किसी नागरिक को उनके रंग, वर्ण या उसकी जाति या उसके धर्म के आधार पर उच्च पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकेगा। इस प्रकार पद पाने का अधिकार सभ्य राज्यों में व्यक्ति के गुणों पर प्रदान किया गया है।
( 2 ) मतदान करने का अधिकार- आधुनिक युग प्रजातन्त्र शासन प्राणाली का युग है। इस युग में नागरिकों को शासन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेने का अवसर प्रदान किया जाता है। इस अवसर का व्यक्ति उसी समय लाभ उठा सकता है जबकि उसे निर्वाचन में मत प्रदान करने का अधिकार मिले। इसीलिये सभ्य राज्यों में नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया गया है। मताधिकार भी सभी वयस्क नागरिकों को प्रदान किया गया है, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, वर्ण या धर्म के मानने वाले हों।
( 3 ) निर्वाचित होने का अधिकार- राज्य की ओर से सभ्य राज्यों में नागरिकों को यह अधिकार भी दिया गया है कि वे निर्वाचन के समय किसी भी पद के लिए निर्धारित योग्यता व नियमों का पालन करते हुए चुनाव लड़ सकते हैं और चुनाव में विधिवत् विजयी होकर जनता के प्रतिनिधि के रूप में शासन कार्यों में भाग ले सकते हैं।
( 4 ) प्रार्थना का अधिकार- यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का अपहरण किया गया हो तो उस नागरिक का अधिकार है कि वह न्यायालय के सम्मुख अधिकारों की रक्षा के लिए प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करे उस दशा में नागरिकों को न्यायालय द्वारा रक्षा प्रदान की जायेगी।
निष्कर्ष – उक्त वर्णन से विदित है कि शासन प्रणाली में नागरिकों को सामाजिक व राजनीतिक अधिकार प्रदान किये गये हैं ताकि नागरिक अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकें।
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