अधिकार के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिये।
अधिकारों का विभाजन (Classification of Rights )
(1) प्राकृतिक अधिकार (Natural Rights )- प्राकृतिक अधिकारों के अर्थ के विषय में विभिन्न विद्वानों के पृथक-पृथक विचार है। कुछ लोग प्राकृतिक अधिकार मनुष्य की उन सुविधाओं को कहते हैं जो उसे समाज की उत्पत्ति से पूर्व भौतिक जगत के उपयोग के लिए उपलब्ध थीं। इस प्रकार सामाजिक संगठन से पूर्व मनुष्य अपनी इच्छानुसार जिन-जिन सुविधाओं का प्रयोग करता था और उस समय जो कार्यक्षमता उसमें थी, उन्हें ही प्राकृतिक अधिकार का नाम दिया गया।
जो विद्वान् प्राकृतिक अधिकारों का अर्थ इस प्रकार करते हैं, वे यह बात भूल जाते हैं कि समाज के बाहर अधिकारों का कोई लाभ और अर्थ नहीं होता। वास्तव में प्राकृतिक अधिकार उन अधिकारों को कहते है जो किसी भी समाज में व्यक्तियों के पूर्ण तथा सर्वोच्च विकास के लिए आवश्यक होते हैं। ऐसे अधिकारों का पालन केवल एक ऐसे ही समाज में हो सका है जो न्याय, सत्ता और व्यक्तियों के पूर्ण विकास की भावना पर अवलम्बित हो। इसलिये हम कह सकते है कि प्राकृतिक अधिकार वे आदर्श अधिकार है जो प्रत्येक देश में नागरिकों को प्रदान किये जाने चाहिए, क्योंकि व्यक्ति के सुखद जीवन एवं व्यक्तित्व के विकास के लिए वे अत्यन्त आवश्यक होते हैं।
(2) नैतिक अधिकार (Moral Rights) – वे अधिकार जो कानून पर आधारित न होकर नैतिकता पर निर्भर रहते हैं, नैतिक अधिकार कहलाते हैं। नैतिक अधिकारों पर यदि कोई कुठाराघात करे तो हम कानून तथा आदलत द्वारा वापिस नहीं ले सकते। ये अधिकार तो पूर्णतया मनुष्य की नैतिकता के विकास पर निर्भर होते हैं। निर्धन का धनी से आर्थिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार, वृद्ध माँ-बाप का अपने पुत्र से पालन-पोषण में सहायता लेने का अधिकार, शिक्षक का अपने शिष्यों से आदर प्राप्त करने का अधिकार ये सभी अधिकार नैतिक अधिकारों में सम्मिलित है। लीकॉक (Leacock) के शब्दों में— “नैतिक अधिकारों का क्षेत्र आचार-व्यवहार है और उनसे उन सब कार्यों के करने का अधिकार निर्देश होता है जिन्हें करना हमारा नैतिक कर्त्तव्य है।”
(3) वैधानिक अधिकार (Legal Rights) – वे अधिकार जिन्हें राज्य सरकारी कानून द्वारा नागरिकों को प्रदान करता है, वैधानिक अधिकार कहलाते हैं। इन अधिकारों में वे सब अधिकार सम्मिलित है जो राज्य द्वारा मान लिये जाते हैं तथा जिनके अतिक्रमण पर हम अदालत में कानून के द्वारा उन्हें वापस ले सकते हैं। साधारणतः वैधानिक अधिकार दो प्रकार के होते हैं-
(क) सामाजिक अधिकार ( Social Rights ) – सामाजिक जीवन की सुविधाओं के लिए जो अधिकार प्रदान किये जाते हैं वे सामाजिक अधिकार कहलाते हैं। जीवन, धर्म, संस्कृति, शिक्षा, सम्पत्ति, भाषण तथा परिवार आदि के अधिकार इसी श्रेणी में आते हैं। ये अधिकार सामाजिक जीवन की सम्पन्नता एवं सुखद जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं। ये जीवन की सुविधाएँ प्रदान करते हैं तथा सांस्कृतिक विकास एवं उन्नतिशील व्यक्तित्व के निर्माण में सहायता प्रदान करते हैं।
(ख) राजनीतिक अधिकार ( Political Rights ) – राज्य के प्रशासन से सक्रिय भाग लेने के लिए जो अधिकार नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं, वे राजनीतिक अधिकार कहलाते हैं। मत देना, निर्वाचित होने आदि के अधिकार इस वर्ग में शामिल हैं। इन अधिकारों का प्रादुर्भाव प्रजातन्त्र के प्रसार के कारण हुआ और इससे जनता को प्रशासन में सक्रिय भाग लेने का अधिकार प्राप्त होता है। आधुनिक युग की जनतान्त्रिक प्रणाली में इन राजनीतिक अधिकारों का अत्यधिक महत्व है।
( 4 ) मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) – वे अधिकार जो संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और जिन्हें कानून भी नहीं छीन सकता, मौलिक अधिकार कहलाते हैं। यदि मौलिक अधिकारों को कोई व्यक्ति छीनता है तो न्यायपालिका में दावा करके उन्हें वापिस लिया जा सकता है। आधुनिक प्रजातान्त्रिक युग लगभग प्रत्येक संविधान मौलिक अधिकारों की व्यवस्था करता है। ये सामाजिक विकास एवं मानवीय कल्याण के लिये अत्यन्त आवश्यक परिस्थितियाँ है और इनके अभाव में सामाजिक कल्याण, सुखद जीवन एवं सम्पन्नता प्रायः असम्भव है। जीवन की बुनियाद के लिये भी इन अधिकारों की अत्यधिक आवश्यकता होती है और इन्हें पूर्णतया मौलिक मान्यता प्रादन की जाती है तथा इन्हें छीना जाना सम्भव नहीं होता है।
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