राजनीति विज्ञान / Political Science

भारतीय समाज में धर्म एवं लौकिकता का वर्णन कीजिए।

भारतीय समाज में धर्म एवं लौकिकता का वर्णन कीजिए।
भारतीय समाज में धर्म एवं लौकिकता का वर्णन कीजिए।

अनुक्रम (Contents)

भारतीय समाज में धर्म एवं लौकिकता

धार्मिक और लौकिक दोनों का ही प्रभाव भारतीय समाज में देखने को मिलता है। किसी समय भारतीय समाज में धर्म का इतना अधिक प्रभाव था कि जीवन की सभी क्रियाओं का सम्पादन प्रमुखतः धार्मिक संस्कार, पूजा-पाठ, यज्ञ, मन्त्रोचारण, या अनुष्ठान के बाद ही होता था, चाहे जीवन-पथ के संस्कार हों, चाहे मकान बनवाना हो, कोई व्यापारिक संस्थान प्रारम्भ करना हो, कोई कल कारखाना स्थापित करना हो, प्रत्येक के पूर्व धार्मिक अनुष्ठान आवश्यक था। जन्म, विवाह, मृत्यु आदि के अवसर पर तो धार्मिक क्रिया सम्पादित की जाती थी। धर्म निरपेक्षता का क्या अर्थ है, यह समझ लेना भी यहां आवश्यक है।

वर्तमान समय में भारतीय समाज के आधुनिक आधार के रूप में धर्म निरपेक्षता का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। भारत अनेक धर्मों का न केवल उद्गम स्थल बल्कि संगम स्थल भी रहा है। भारतीय समाज एक धर्मप्राण समाज है। यहां हिन्दू धर्म के अलावा इस्लाम, ईसाई, जान, बौद्ध तथा पारसी धर्म के अनुयायियों की संख्या भी काफी है। यहां सभी देशवासियों के जीवन में धर्म के लोग साथ-साथ रहते हों, वहां समाज को संगठित रखने की दृष्टि से धार्मिक सहिष्णुता का होना अत्यन्त आवश्यक है। भारतीय समाज में यह विशेषता प्रमुखतः पायी जाती है। आदिकाल से ही भारतवासी धार्मिक दृष्टि से सहिष्णु रहे हैं, अन्य धर्मों के प्रति आदर का भाव रखते रहे हैं। यहां धर्म के अन्तर्गत कर्तव्यपालन पर काफी जोर दिया जाता है। लोग अपने वर्ण, आश्रम और जाति से सम्बन्धित धर्म का पालन करते रहे हैं, कर्तव्यों को निभाते रहे हैं, इस देश में धार्मिक सहिष्णुता ने लोगों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाने और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को विशेष महत्त्व देने में काफी योग दिया है।

आज से करीब 2300 वर्ष पूर्व सम्राट अशोक ने घोषणा की थी कि राज्य किसी भी धर्म या सम्प्रदाय को नहीं सतायेगा, राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान हैं, कोई किसी भी धर्म को मान सकात है। अशोक ने यहां तक कहा कि लोगों को अन्य धर्मों के ग्रन्थों के अध्ययन के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया। न केवल भारतीय सभ्यता के बल्कि सम्पूर्ण मानव सभ्यता के इतिहास में अशोक का धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण एक युगान्तकारी घटना है। इस दृष्टि से एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटना इस समय घटित हुई जब ईसा मसीह ने कहा कि सीजर की वस्तुएं सीजर को अर्पित कर दो और ईश्वर की वस्तुएं ईश्वर को इस कथन का तात्पर्य यही है कि राज्य और चर्च एक-दूसरे से पृथक् हैं। सम्राट अशोक की घोषणा से धर्मनिरपेक्षता के एक महत्त्वपूर्ण पहलू ‘सहिष्णुता’ (Tolerance) का आधार तैयार हुआ और ईसामसीह की घोषणा से एक अन्य पहलू ‘राज्य और धर्म एक दूसरे से पृथक् होने’ का आधार निर्मित हुआ।

धर्मनिरपेक्षता के उपर्युक्त दो पक्षों के अतिरिक्त दो अन्य पक्षों का विकास आधुनिक समय में 15वीं व 16वीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप में ‘पुनर्जागरण तथा सुधार’ (Renaissance and Reformation) तथा 18वीं व 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution) के कारण हुआ। पुनर्जागरण ने धर्मनिरपेक्षता के तीसरे पहलू मानवतावादी दृष्टिकोण (Humanistic Outlook) पर जोर दिया जिसमें परलोक के बजाय इस लोक को विशेष महत्त्व दिया। औद्योगिक क्रान्ति ने धर्मनिरपेक्षता के एक अन्य पहलू विज्ञान और प्रौद्योगिकी (Science and Technology) के जीवन की समस्याओं को हल करने में प्रयोग पर जोर दिया। इससे बड़ी-बड़ी मशीनों का निर्माण हुआ और मानव व पशु शक्ति के बजाय ऊर्जा के अन्य स्रोतों को काम में लिया जाने लगा। परिणामस्वरूप उत्पादन को बढ़ाने में काफी योग मिला।

इस 20वीं शताब्दी में भारतीय समाज में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण परिवर्तन यह आ रहा है कि यह एक ‘पवित्र समाज’ (Sacred Society) से अपने को एक ‘धर्मनिरपेक्ष समाज’ (Secular Society) में बदलता जा रहा है। जब एक परम्परावादी कृषि प्रधान समाज अपने को आधुनिक औद्योगिक समाज में बदलता है तो उसे अपने को पवित्र से धर्मनिरपेक्ष समाज की। दिशा में भी बदलना पड़ता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अधिकांश भारतवासी धार्मिक सहिष्णुता के बावजूद भी अपने दृष्टिकोण में काफी धार्मिक हैं। यदाकदा व्यक्त की जाने वाली। धार्मिक कट्टरता और कुछ लोगों की धार्मिक असहिष्णुता तथा अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के कारण ही देश का विभाजन हुआ और एक इस्लामी राज्य के रूप में पाकिस्तान का जन्म हुआ। फिर भी यह सही है कि अधिकतर भारतवासियों में धार्मिक सहिष्णुता पायी जाती है। इस शताब्दी में अनेक विद्वानों, समाज सुधारकों एवं राजनेताओं ने यह स्पष्टतः महसूस किया कि विभिन्न धर्मों वाले देश भारत में ‘धर्म निरपेक्षता’ (Secularism) ही समाज का एक सुदृढ़ आधार हो सकता है। इसी आधार पर समाज को सुसंगठित किया जा सकता है, आधुनिकीकरण (Modermization) की दिशा में आगे बढ़ाया जा सकता है और प्रगति की जा सकती है। धर्मनिरपेक्षता जीवन का एक ढंग है, संसार के प्रति एक विशेष दृष्टिकोण है जिसमें परलोक के बजाय इस लोक पर विशेष ध्यान दिया जाता है। जब हम भारतीय समाज के आधुनिक आधार के रूप में धर्मनिरपेक्षता पर विचार करते हैं पाते हैं कि यह तटस्थता की एक ऐसी स्थिति है जिसमें राज्य किसी भी धर्म को प्रोत्साहित नहीं करता, राज्य का कोई धर्म नहीं होता है, धर्म के आधार पर राज्य किसी के साथ कोई भेद-भाव नहीं करता, सभी को समान समझता है और धार्मिक दृष्टि से सबको स्वतन्त्रता प्रदान करता है। धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य यही है कि राज्य सभी धार्मिक समूहों एवं धार्मिक विश्वासों को पूर्णतः समान मानता है, सबके प्रति निष्पक्ष दृष्टिकोणव रखता है। यहां निरपेक्षता का अर्थ तटस्थता या समानता के भाव से ही है। राज्य सभी धर्मों को समानता की दृष्टि से देखता, किसी के प्रति कोई पक्षपातपूर्ण रवैया नहीं अपनाता है। वर्मनिरपेक्षता का अर्थ ऐसी नीति या सिद्धान्त में विश्वास है जिसके अन्तर्गत लोगों को किसी धर्म विशेष को मानने के लिए बाध्य नहीं करके सबसे प्रति समभाव रखने पर जोर दिया जाता है।

धर्मनिरपेक्ष होने का तात्पर्य जीवन के विभिन्न पक्षों में धर्म के प्रभाव के क्षीण होने से भी लिया जाता है। उदाहरण के रूप में वर्तमान भारत में विभिन्न धार्मिक संस्कारों का संक्षिप्तीकरण हो रहा है, तीर्थ यात्राओं का मनोरंजनात्मक दृष्टि से महत्त्व बढ़ता जा रहा है, विवाह में एक धार्मिक संस्कार के बजाय सामाजिक समझौते से तत्त्व जुड़ते जा रहे हैं। स्त्रियों के नौकरी करने को अब बुरा नहीं समझा जाता है। आजकल शिक्षा धर्म के प्रभाव से प्रायः मुक्त हो चुकी है। आजकल ब्राह्ममों का महत्त्व कुछ धार्मिक अनुष्ठानों के सम्पादन एवं पूजा-पाठ तक ही सीमित है। आक्सफोर्ड डिक्शनरी में बताया गया है कि धर्मनिरपेक्षता वह सिद्धान्त है जिसमें विश्वास से सम्बन्धित सभी विचारों को पृथक् करके नैतिकता को वर्मतान में मनुष्य के कल्याण से पूर्णतः सम्बन्धित माना गया है। चैम्बर डिक्शनरी में धर्मनिरपेक्षता को ऐसे विश्वास के रूप में मांना जाता गया है जिसमें राज्य, नैतिकताएं, शिक्षा आदि धर्म से स्वतन्त्र होते हैं।

भारतीय समाज के सन्दर्भ में विचार करने पर हम पाते हैं कि धर्म निरपेक्षता एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसके अनुसार विभिन्न धर्मों के लोग सहिष्णुता, सह-अस्तित्व एवं समानता के आधार पर एक-दूसरे के धार्मिक विश्वासों में किसी प्रकार की बाधा डाले बिना, कल्याणकारी राज्य की स्थापना में योग देते हैं। ऐसे राज्य का अपना कोई निश्चित धर्म नहीं होता और उसकी दृष्टि में सभी धर्म समान होते हैं। इतना अवश्य है कि यहां संविधान के अनुसार राज्य को यह अधिकार दिया गया है कि वह देश में विभिन्न धार्मिक समूहों के सांस्कृतिक विकास, शान्तिमय सह-अस्तित्व औ हितों की रक्षा के उद्देश्य से उनके धार्मिक जीवन में हस्तक्षेप कर सकता है। राज्य को इस प्रकार के अधिकार दिए जाने का कारण यह है कि यहां अन्य देशों के समन चर्च जैसी कोई संगठित धार्मिक संस्था नहीं है जो बदलती हुई परिस्थितियों के समान धार्मिक रूढ़ियों या कर्मकाण्डों में कोई सुधार कर सके। ऐसी स्थिति में राज्य को ही यह कार्य करना पड़ता है। इसके अलावा भारतीय समाज में अनेक अन्धविश्वास और सामाजिक कुरीतियां पायी जाती हैं। जिनसे राज्य के हस्तक्षेप के बिना छुटकारा प्राप्त करना सम्भव नहीं है।

धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण वाला व्यक्ति विभिन्न विषयों पर धार्मिक दृष्टि से विचार नहीं करके सांसारिक दृष्टि से विचार करता है। ऐसा व्यक्ति मानवीय कल्याण हेतु नैतिकता को विशेष महत्त्व देता है। ऐसा व्यक्ति यह मानता है कि सार्वजनिक शिक्षा या अन्य मामलों में धर्म को किसी भी प्रकार का कोई स्थान नहीं दिया जाना चाहिए। धर्मनिरपेक्षवादी व्यक्ति धार्मिक दृष्टि से सहिष्णु और उदार होता है, वह अन्य धर्मों का भी आदर और सभी की धार्मिक स्वतन्त्रता में विश्वास करता है। उसका ध्यान परलोक की बजाय इस लोक पर अधिक होता है। धर्म निरपेक्षता के अर्थ को स्पष्ट करते हुए डॉ. आर. एन. सक्सेना ने बताया है कि धर्मनिरपेक्षता वह नीति अथवा सिद्धान्त है, जो धार्मिक नैतिकता एवं सहिष्णुता पर आधारित है तथा जो अपने सभी सदस्यों को उनके वर्ण, जाति, लिंग, धर्म, विश्वास तथा अन्य भेदों पर विचार किए बिना सभी को एक उचित सीमा तक अपने धर्म और विश्वास की स्वतन्त्रता प्रदान करता है।

इसे भी पढ़े…

 

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment