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भारत में इस्लाम धर्म का उल्लेख कीजिए एवं इस्लाम धर्म की विशेषताएँ को स्पष्ट कीजिए।

भारत में इस्लाम धर्म
भारत में इस्लाम धर्म

भारत में इस्लाम धर्म का उल्लेख कीजिए

भारत में इस्लाम धर्म का प्रारम्भ मुख्यतः तेरहवीं शताब्दी से माना जाता है जब यहाँ पहला मुस्लिम राज्य स्थापित हुआ। आक्रान्ता के रूप में भारत में प्रवेश पाने वाला यह पहला विदेशी धर्म था जिसने भारतीय समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया। मुस्लिम शासकों ने अपने शासनकाल में जोर-जबरदस्ती, प्रलोभन, प्रचार और तलवार की नोंक पर भारतीयों को इस्लाम का अनुयायी बनाया और आज इस्लाम के अनुयायियों की संख्या हिन्दुओं के बाद सर्वाधिक है जो 1991 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या का लगभग 12 प्रतिशत है। अनुमान है कि सम्पूर्ण विश्व की जनसंख्या का लगभग 1/7 भाग इस्लाम धर्म के अनुयायियों का है।

इस्लाम धर्म का जन्म सातवीं सदी में अरब देश में हुआ। इस धर्म के संस्थापक और प्रवर्तक हजरत मोहम्मद साहब थे। इनका जन्म अरब के मक्का शहर में 570 ई. में हुआ। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहान्त हो गया, अतः इनका लालन-पालन इनके दादा ने किया। जिस समय मोहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म की नींव रखी, उससे पूर्व अरब के लोग प्राचीन अरबी धर्म का पालन करते थे और अरबी समाज बर्बरता के युग में था। मक्का में कोई स्थायी राज्य या शासन नहीं था। लोगों में जुआ खेलने एवं नशा खेलने एवं नशा करने की बुरी आदतें फैली हुई थीं, वैवाहिक सम्बन्धों में भी स्थायित्व नहीं था तथा बहुदेववाद प्रचलित था। ऐनी बेसेण्ट के अनुसार, यह मनुष्यों का नर्क था जिसमें लालसा, कामवासना, कत्ल और अपराधों का साम्राज्य था।

कहा जाता है कि मोहम्मद साहब ने 15 वर्षों तक एक गुफा में रहकर चिन्तन एवं मनन किया और उन्हें अल्लाह के दर्शन हुए और अल्लाह ने उन्हें आदेश दिया कि जाओ और अल्लाह के बन्दों को रास्ता दिखाओ। मोहम्मद साहब ने अपने को अल्लाह का दूत (पैगम्बर) कहा और अल्लाह के द्वारा बताये गये मार्ग को लोगों के समक्ष रखा। उन्होंने खादिजा नामक एक 45 वर्षीय धनी विधवा के साथ कार्य करना प्रारम्भ किया। यह महिला ही विश्व की वह प्रथम महिला है जिसने मोहम्मद साहब के नवीन इस्लाम धर्म को स्वीकार किया। बाद में मोहम्मद साहब ने खादिजा से विवाह भी कर लिया था, दोनों की आयु में बहुत अन्तर था। खादिजा 45 वर्ष की थी और मोहम्मद साहब 25 वर्ष के मोहम्मद साहब ने ग्यारह और विवाह भी किये थे।

इस्लाम एकेश्वरवाद में विश्वास करता है और यह मानता है कि जो लोग एक ईश्वर में विश्वास करते हैं, वे ही स्वर्ग के अधिकारी हैं। प्रलय के बाद सभी लोगों को अल्लाह के सामने जाना पड़ेगा और अपने अच्छे-बुरे कर्मों के अनुसार ही उन्हें स्वर्ग या नर्क प्राप्त होगा। मोहम्मद साहब ने बहुदेववाद का भी विरोध किया। मोहम्मद साहब का धर्म प्राचीन अरबी धर्म का विरोधी था, अतः लोगों ने उनकी मजाक उड़ायी और कई लोग उनके विरोधी भी हो गये। फलस्वरूप मोहम्मद साहब को भागकर मदीना में शरण लेनी पड़ी। यह घटना 24 सितम्बर 622 ई. की है, अतः इसी दिन के मुसलमानों का हिजरी संवत् प्रारम्भ होता है। मदीना में मोहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म को एक व्यवस्थित स्वरूप प्रदान किया, साथ ही अपने विरोधियों का भी उन्होंने डटकर मुकाबला किया। इस्लाम धर्म के दो ग्रन्थ प्रमुख हैं- कुरान तथा हदीस कुरान में वह ज्ञान संग्रहीत है जो ईश्वर ने अपने दूत मोहम्मद साहब को दिआय और हदीसा में स्वयं मोहम्मद साहब के द्वारा दिये गये उपदेशों का संग्रह है।

कुरान (Quran)

इस्लाम धर्म में मोहम्मद साहब को अल्लाह का रसूल (पैगम्बर) माना जाता है। कुरान में वह सारा ज्ञान संग्रहीत है जो अल्लाह ने पथ-भ्रष्ट मानवता को मार्ग दिखाने के लिए मोहम्मद साहब को दिया था। कुरान शब्द ‘करयान’ से बना जिसका तात्पर्य है पाठ करना। अतः इस्लाम के अनुयायी कुरान की आयतों का प्रतिदिन पठन करते हैं। ऐसी मन्यता है कि मूल बातें कुछ तख्तियों पर लिखी हुई हैं और वे सातवें आसमान पर रखी हुई हैं। कुरान में जो है की कुरान कुछ लिखा हुआ है, वह अल्लाह के आदेश से जबरील नामक देवदूत ने पैगम्बर मोहम्मद को सुनाया और मोहम्मद ने कुरान के रूप में लोगों के सामने प्रस्तुत किया। कुरान में कुल 114 अध्याय हैं जिनमें से 90 का संग्रह मक्का में और शेख 24 का मदीना में किया गया। कुरान अल्लाह और उसके द्वारा पृथ्वी तथा मानव की रचना, कयामत का दिन, नजात (मुक्ति), सामाजिक कानूनों, मानव के कर्तव्यों, अच्छे-बुरे आचरण एवं दण्ड आदि विषयों पर विस्तार से में चर्चा की गयी है।

इस्लाम के अनुयायियों में कुरान के प्रति विशेष आदर, श्रद्धा और सम्मान के भाव पाये जाते हैं क्योंकि उनकी मान्यता है कि इसका प्रत्येक शब्द ईश्वर के द्वारा बोला गया है। इस्लाम के अनुयायी कुरान को सार्वभौमिक एवं शाश्वत सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। उनकी मान्यता है कि कुरान में लिखे गये सभी सत्य समस्त मानव जाति के भले के लिए हैं।

इस्लाम धर्म की विशेषताएँ (Characteristics of Islam)

इस्लाम धर्म की प्रमुख विशेषताएं (मुख्य स्तम्भ) निम्नांकित हैं-

(1) एकेश्वरवाद इस्लाम धर्म में एक ही ईश्वर को मान्यता प्रदान की गयी है। मोहम्मद साहब के पूर्व अरब में बहुदेववाद प्रचलित था। इसके स्थान पर उन्होंने एक ही ईश्वर में विश्वास करने की बात कही। वही कयामत के बाद रोजेशुमार (निर्णय के दिन) लोगों के अच्छे बुरे कार्यों का लेखा-जोखा करेगा और उन्हें उसी के अनुसार जन्नत (स्वर्ग) या दोजक (नर्क) में भेजेगा।

(2) समानता- इस्लाम धर्म समानता के सिद्धान्त पर आधारित है। यह जन्म, लिंग, जाति, व्यवसाय और अन्य आधारों पर कोई भेदभाव नहीं करता है।

(3) पैगम्बर की परम्परा – इस्लाम धर्म एक ही ईश्वर में विश्वास करता है। पथ भ्रष्ट मानवता को वह समय-समय पर सही मार्ग बताने के लिए अपने पैगम्बर भेजता रहता है।

(4) विश्वास एवं समर्पण– ‘विश्वास’ सभी धर्मों का मूल आधार है। इस्लाम धर्म अपने अनुयायियों को पवित्र धर्मग्रन्थ कुरान में विश्वास करने का आदेश देता है, उनमें लिखी बातों पर तर्क की अनुमति नहीं देता।

(5) कर्त्तव्यों की महानता- इस्लाम का मत है कि कुरान में लिखे निर्देशों को स्वीकार करना, उन पर विश्वास करना और उनके अनुसार आचरण करना प्रत्येक मुसलमान का अनिवार्य कर्तव्य है।

(6) मूर्ति-पूजा का विरोधी- इस्लाम धर्म में मूर्ति पूजा का विरोध किया गया है क्योंकि वह निराकार ईश्वर में विश्वास करता है।

(7) पुनर्जन्म में विश्वास नहीं- इस्लाम धर्म हिन्दुओं की भांति पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता है, वरन् यह मानता है कि प्रलय के बाद रोजेशुमार के दिन खुदा सभी मरे हुए प्राणियों के अच्छे-बुरे कार्यों का हिसाब करेगा और उसी के अनुसार उन्हें स्वर्ग या नर्क देगा।

(8) मानवीय स्वतन्त्रता में अविश्वास- इस्लाम मानवीय स्वतन्त्रता में विश्वास नहीं करता, वह यह मानता है कि मनुष्य पूरी तरह से ईश्वर इच्छा के अधीन है।

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