प्लेटो के सम्पत्ति के साम्यवाद की आलोचनाएँ
प्लेटो के सम्पत्ति के साम्यवाद की आलोचनाएँ
(Criticisms of Communism of Property)
प्लेटो के सम्पत्ति सम्बन्धी साम्यवाद की सेवाइन, बार्कर, पोपर व अरस्तू द्वारा अनेक आलोचनाएँ की गई हैं :- (क) अरस्तू द्वारा की गई आलोचनाएँ (Aristotle’s Criticisms), (ख) अन्य विद्वानों द्वारा की गई आलोचनाएँ (Criticisms Advocated by others)
(क) अरस्तू द्वारा की गई आलोचनाएँ (Aristotle’s Criticisms)
1. यह धारणा मानवीय प्रकृति की मूलभूत प्रवृतियों की अवहेलना करती है। प्रत्येक मानव में निजी सम्पनि प्राप्त करना उसकी स्वाभाविक प्रवत्ति है और अगर उसे इस अधिकार से वंचित रखने की कोशिश की जाती है तो यह उसकी प्रकृति के प्रतिकूल बात होगी।
2. अरस्तू साम्यवाद को जीवन के सामान्य अनुभव के विरुद्ध मानता है।
3. अरस्तू का यह भी कहना है कि सम्पत्ति की साँझी व्यवस्था कभी भी सामाजिक कल्याण में वृद्धि नहीं कर सकती।
4. अरस्तू का यह भी कहना है कि वैयक्तिक सम्पत्ति की प्रथा का विकास हमारी सभ्यता के विकास का प्रतीक है। वैयक्तिक सम्पत्ति का अभाव प्रगति के मार्ग को रोकता है।
5. इससे परोपकार और उदारता की श्रेष्ठ मानवीय सम्भावनाएँ नष्ट हो जाएँगी क्योंकि व्यक्ति परोपकार सम्बन्धी कार्य निजी सम्पत्ति के आधार पर ही करता है।
6. अरस्तू ने यह विचार प्रस्तुत किया है कि यह अधिक अच्छा होगा कि सम्पत्ति निजी हो परन्तु उसका प्रयोग सामूहिक हो। इससे राज्य तथा व्यक्ति दोनों का भला हो सकता है।
7. व्यक्तिगत सम्पत्ति के लिए उत्साह और लगन के कारण ही मनुष्य दूसरों के साथ प्रतियोगिता करता है तथा अपने सर्वोत्तम गुणों का विकास करता है परन्तु निजी सम्पत्ति के न होने पर ऐसा नहीं होगा। प्लेटो की यह योजना बहुमत को शामिल नहीं करती है और इसलिए यह असफल होकर रहेगी तथा इससे राज्य में विभाजन होगा तथा फूट, ईर्ष्या व कलह की सम्भावना प्रबल होगी। अरस्तू मानना है कि बिना सम्पत्ति के अभिभावक वर्ग सुखी नहीं रहेगा और जिस राज्य में शासक वर्ग ही सुखी नहीं रहेगा उसमें भला प्रजा कैसे सुखी रह सकती है। अतः प्लेटो का साम्यवादी राज्य एक दुःखपूर्ण राज्य होगा।
10. राज्य में एकता को उचित शिक्षा द्वारा ही बढ़ाया जाना चाहिए. साम्यवाद नहीं। प्लेटो स्वर्ष आत्मिक उपाय को भौतिक उपाय से अधिक महत्त्व देते हैं। अतः साम्यवाद एक गौण उपाय है।
11. प्लेटो आवश्यकता से अधिक एकता लाने की प्रव त्ति पर कायम है। वह राज्य की वेदी पर व्यक्तियों की इच्छाओं का बलिदान कर देता है।
(ख) अन्य विद्वानों द्वारा की गई आलोचनाएँ (Criticisms Advocated by others)
1. सदगुणों के विकास में बाधक (Obstacle in the development of the virtue) : निजी सम्पत्ति की व्यवस्था अनेक सद्गुणों के विकारा में सहायक होती है, जैरो दान, दया, परोपकार, अतिशय आदि के सदगुण। किन्तु प्लेटो ने निजी सम्पत्ति के अवगुणों की ओर ध्यान देकर संरक्षक वर्ग को इससे वंचित कर दिया है, जो अनुचित है।
2. मानव स्वभाव के प्रतिकूल (Against Human Nature) : प्लेटो ने निजी सम्पत्ति का अन्त करके मानव स्वभाव के विपरीत कार्य किया है। सम्पत्ति अर्जित करना मानव की स्वाभाविक प्रवृति है। इससे व्यक्ति के अनेक उदार गुण विकसित होते हैं। अतः प्लेटो ने मानव स्वभाव के विपरीत कार्य किया है।
3. न्यायपूर्ण वितरण की समत्या (Problem of Just Distribution) : निजी सम्पत्ति के अभाव में यह बताना कठिन होगा कि किस व्यक्ति का समाज में कितना योगदान है। इससे न्यायपूर्ण वितरण की अनेक समस्याएँ खड़ी होंगी जो समाज की एकता को नष्ट कर देगी।
4. व्यक्ति की प्रेरणा शक्ति का हास (Elect Incentive ta Work) : निजी सम्पत्ति के समर्थकों का मानना है कि सम्पत्ति आकर्षण व्यक्ति को अधिक से अधिक कार्य करने की प्रेरणा प्रदान इसी प्रेरणा से व्यक्ति अनेक नए-नए आविष्कार करता है, परिश्रम करता है। इसके अभाव में प्रेरणादायक शक्ति का हास हो जाएगा।
5. अमनोवैज्ञानिक (unpsychological) : निजी सम्पत्ति की संख्या मानव स्वभाव के अनुकूल है। व्यक्ति सम्पति अर्जन करने के लिए ही सारे क्रियाकलाप करता है। प्लेटो अभिभावक वर्ग को इससे वंचित करके मानव प्रकृति के विरुद्ध चला जाता है। अत: प्लेटो का सम्पत्ति का सिद्धान्त अमनोवैज्ञानिक है।
6. अर्थ-साम्यवाद (Hall-Communism) : प्लेटो सम्पूर्ण सामाजिक इकाई की बजाय एक वर्ग विशेष को ही इस व्यवस्था में शामिल करता है। प्लेटो का साम्यवाद केवल शासक और सैनिक (संरक्षक) वर्ग के लिए ही है। अगर व्यक्तिगत सम्पत्ति मतभेद, अनेकता, लोभ व मोह को जन्म देती है तो उत्पादक वर्ग को इसका अधिकार देना विवेकपूर्ण नहीं है। मानव
7. स्वतन्त्रता की बलि चढ़ाना : प्लेटो ने साम्यवाद के नाम पर मानव-श्वतन्त्रता का दमन किया है। प्लेटो की साम्यवाद व्यवस्था में केवल वही कार्य करने का अधिकार होगा जो राज्य चाहेगा। प्लेटो ने व्यक्ति को एक साधनमात्र मानकर व्यक्ति के अधिकार व स्वतन्त्रताओं पर कुठाराघात किया है।
8. सम्पत्ति से वंचित शासकों की कठिनाइयाँ : प्लेटो के संरक्षक वर्ग के सदस्य व्यक्तिगत सम्पत्ति से सम्बन्धित समस्याओं और प्रेरणाओं के ज्ञान से भी वंचित रहेंगे जिसके कारण उन्हें साधारण लोगों की सम्पत्ति से जुड़ी समस्याओं का निपटारा करने में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। शासक उत्पादक वर्ग की व्यक्तिगत सम्पत्ति को तभी नियन्त्रित कर सकता है, जबकि वह स्वयं निजी सम्पत्ति के गुण-दोषों के बारे में ज्ञान रखता हो।
9. आध्यात्मिक रोगों के लिए भौतिक उपचार अनुचित : प्लेटो ने आध्यात्मिक रोगों को रोकने के लिए कोई आध्यात्मिक औषधि न ढूँढकर भौतिक साधनों का सहारा लिया है। संसार की भौतिक वस्तुएँ आध्यात्मिक वस्तुओं के साथ लगी हुई हैं, जिनके निराकरण से यदि बुराई दूर होती है तो उनके द्वारा जो हित होता है. यह भी दूर हो जाएगा। भौतिकतर आध्यात्मिकता का आधार है और उसके लिए साधन भी। भौतिकता को दूर करने का तात्पर्य होगा इन साधनों का अन्त।
10. तपस्यात्मक ( Ascetic) : सम्पत्ति के साम्यवाद की योजना सार्वजनिक हित के नाम पर अभिभावक वर्ग को सम्पत्तिहीन रखती है और सम्पत्ति सम्बन्धी स्वतन्त्रता का अन्त करती है तथा तपस्वी का जीवन व्यतीत करने पर बाध्य करती है। प्लेटो के साम्यवाद में व्यक्ति का जीवन त्याग का जीवन है, भौतिक सुखों का भोग नहीं। प्लेटो का साम्यवाद साधुवादी है जिसमें राज्य के श्रेष्ठ व्यक्ति आर्थिक सुख-सुविधाओं का त्याग करते हैं। अतः साम्यवाद तपस्यात्मक है।
11. दास-प्रथा का जिक्र नहीं (Silent on Slavery System) : प्लेटो ने अपने व्यक्तिगत सम्पत्ति के सिद्धान्त में दास-प्रथा जैसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त की चर्चा नहीं की है। प्लेटो ने किसी ऐसे कार्य का उल्लेख नहीं किया है जो दासों द्वारा किया जाए। प्लेटो का दास-प्रथा को महत्त्वहीन समझना उसे स्वयं को ही महत्वहीन बना देता है।
12. सम्पत्ति पर एक पक्षीय विचार (One sided Views on Property) : प्लेटो सम्पत्ति के अवगुणों के आधार पर ही अपने सम्पत्ति के साम्यवादी सिद्धान्त को खड़ा करता हैं उसने सम्पत्ति के गुणों की अनदेखी करने की भारी भूल की है। अनेक आलोचनाओं के बावजूद यह मानना ही पड़ेगा कि प्लेटो का सम्पत्ति का साम्यवादी सिद्धान्त व्यावहारिक, तर्कपूर्ण एवं उपयोगी है। यह उनके न्याय सिद्धान्त का तर्कसंगत निष्कर्ष है। सम्पत्ति का लालच समाज में भ्रष्टाचार व अराजकता को जन्म देता है।
आज के सामाजिक वैमनस्य के लिए सम्पत्ति की चाह ही जिम्मेदार हैं प्लेटो ने तत्कालीन एथेन्स की सामाजिक बुराइयों को बहुत करीब से देखा था और उन दोषों को दूर करने के लिए उसने अपना यह सिद्धान्त खड़ा किया। यद्यपि उसकी कुछ आलोचनाएँ तर्कपूर्ण हैं लेकिन आज भी यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि प्लेटो का साम्यवादी सिद्धान्त बहुत महत्त्वपूर्ण देन है।
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