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पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता एवं महत्त्व | पाठ्यवस्तु तथा पाठ्य-पुस्तक में अन्तर्सम्बन्ध

पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता एवं महत्त्व
पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता एवं महत्त्व

पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of Text-Books)

पाठ्य पुस्तक के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए क्रॉनबैक (Cronback) ने कहा है कि “अमेरिका में आज के शैक्षिक चित्र का केन्द्र बिन्दु पाठ्य पुस्तक है। इसका विद्यालय में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसका अतीत में भी अधिक महत्त्व था आज भी है। इसको जनसामान्य की भी लोकप्रियता प्राप्त होती है, क्योंकि पाठ्य-पुस्तक विद्यालय या कक्षा में छात्रों तथा शिक्षकों के लिए विशेष रूप से तैयार की जाती है जो किसी एक विषय या सम्बन्धित विषयों की पाठ्यवस्तु का प्रस्तुतीकरण करती है।”

पाठ्य-पुस्तक की आवश्यकता एवं महत्त्व को निम्नांकित कारणों से स्वीकार किया जाता है-

(1) छात्रों का मानसिक स्तर इतना ऊँचा नहीं होता है कि वे विद्यालय में पढ़ाई गई विषयवस्तु को एक ही बार में आत्मसात् कर सकें। उन्हें विषयवस्तु को कई बार पढ़ना एवं दुहराना पड़ता है। अतः पाठ्य पुस्तक की आवश्यकता होती है।

(2) पाठ्य-पुस्तकों के माध्यम से स्वाध्याय द्वारा ज्ञान प्राप्त करने में छात्रों को प्रेरणा प्राप्त होती है।

(3) योग्य शिक्षकों का ज्ञान भी अव्यवस्थित होता है। अतः उसे व्यवस्थित करने में पाठ्य-पुस्तक सहायक होती है। इसी प्रकार छात्रों के अपूर्ण ज्ञान को परिवर्धित एवं पूर्णता प्रदान करने के लिए यह सहायक होती है।

(4) पाठ्य-पुस्तक में निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार विषय का संगठित ज्ञान एक स्थान पर मिल जाता है।

(5) पाठ्य-पुस्तकें शिक्षकों एवं छात्रों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती हैं।

(6) पाठ्य पुस्तकों के द्वारा छात्रों एवं शिक्षकों को यह जानकारी मिलती है कि किसी कक्षा-स्तर के लिए कितनी विषयवस्तु का अध्ययन अध्यापन करना है।

(7) इनके द्वारा छात्रों एवं शिक्षकों के समय की बचत होती है।

(8) पाठ्य पुस्तक के आधार पर कक्षा-कार्य तथा मूल्यांकन सम्भव होता है।

(9) पाठ्य पुस्तक के आधार पर प्रत्येक कक्षा में एक निश्चित पाठ्यवस्तु का अध्यापन सम्भव होता है तथा इससे छात्रों का मूल्यांकन सामूहिक रूप से किया जा सकता है।

(10) पाठ्य पुस्तक कक्षा-शिक्षण की अनेक कमियों को भी दूर करती है। कक्षा-शिक्षण के समय शिक्षक सभी छात्रों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान नहीं दे पाता है (अतः पाठ्य पुस्तकों की सहायता से छात्र व्यक्तिगत रुचि एवं गति के साथ अध्ययन कर सकते हैं)।

(11) पाठ्य-पुस्तक में विषयवस्तु को तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है जिससे छात्रों के लिए विषयवस्तु सरल एवं सुगम हो जाती है।

(12) पाठ्य-पुस्तकें शिक्षक को कक्षा स्तर के अनुसार शिक्षण कार्य करने का बोध कराती  हैं।

(13) ये परीक्षा के समय छात्रों की सहायक होती हैं।

(14) पाठ्य-पुस्तकें छात्रों को विषयवस्तु को संकलित करने में सहायता प्रदान करती हैं।

(15) इनके माध्यम से छात्रों की स्मरण एवं तर्क शक्ति का विकास होता है

(16) पाठ्य-पुस्तकें मन्दबुद्धि तथा प्रतिभाशाली दोनों प्रकार के बालकों के लिए उपयोगी होती हैं।

(17) विभिन्न शिक्षा आयोगों द्वारा भी पाठ्य पुस्तकों की आवश्यकता एवं महत्त्व को स्वीकार किया गया है।

(18) पाठ्य-पुस्तकों में विषय के पाठ्यक्रम की सम्पूर्ण रूप में व्याख्या की जाती है जिससे शिक्षक उपयुक्त अधिगम अनुभव प्रदान कर सकता है।

(19) पाठ्य पुस्तकों से अध्ययन अध्यापन में एकरूपता आती है।

(20) पाठ्य पुस्तकें शिक्षकों तथा छात्रों को विद्वानों के बहुमूल्य विचारों एवं उपयोगी अनुभवों को प्रदान करती हैं जिससे वे इन अनुभवों का लाभ उठाने में समर्थ हो सकते हैं।

पाठ्यवस्तु तथा पाठ्य-पुस्तक में अन्तर्सम्बन्ध (Interrelationship Between Syllabus and Text-Book)

पाठ्यवस्तु तथा पाठ्य-पुस्तक एक-दूसरे के बगैर अधूरे हैं। पाठ्यवस्तु के बगैर पाठ्य-पुस्तक का निर्माण नहीं किया जाता है। जहाँ पाठ्यवस्तु निर्धारित पाठ्य-विषयों के शिक्षण के लिए अन्तर्वस्तु उसके ज्ञान की सीमा, छात्रों द्वारा प्राप्त किये जाने वाले कौशल को निश्चित करता है तथा शैक्षिक सत्र में पढ़ाये जाने वाले व्यक्तिगत पहलुओं एवं निष्कर्षों की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है, जबकि पाठ्य-पुस्तक विषयों के ज्ञान को एक स्थान पर पुस्तक के रूप में संगठित ढंग से प्रस्तुत करने का काम करती है। यह शिक्षकों एवं छात्रों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती है तथा छात्रों एवं शिक्षकों को जानकारी प्राप्त होती है कि विषयवस्तु का अध्यापन किस प्रकार करना चाहिए। इसलिए पाठ्यवस्तु के बगैर पाठ्य पुस्तक की कल्पना निराधार है।

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