पाठ्यक्रम का अर्थ (Meaning of Curriculum)
‘Curriculum’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘क्यूरे’ (Currere) शब्द से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- ‘दौड़ के मैदान’ (Race course) अर्थात् किसी बालक या व्यक्ति द्वारा अपने ध्येय की प्राप्ति हेतु दौड़ लगानी पड़ती है। प्राचीन समय में बालक के द्वारा कक्षा में पढ़े जाने वाले विषयों पर अधिक बल दिया जाता था, लेकिन आज वर्तमान समय में पाठ्यक्रम शब्द का अर्थ व्यापक हो गया है। आज पाठ्यक्रम में बालक द्वारा कक्षा में पढ़ाई किये जाने वाले विषयों के अतिरिक्त अन्य सभी क्रियाओं को व अनुभवों को भी पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाने लगा है। वर्तमान में अब पाठ्यक्रम में वे सभी क्रियाएँ आती है जो कि अतिरिक्त पाठ्यक्रम क्रियाओं के नाम से जानी जाती है अर्थात् इनके अन्तर्गत बालक की वे समस्त क्रियाएँ एवं अनुभव सम्मिलित होते हैं जिनकी बालक के द्वारा कहीं भी तथा किसी भी समय प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार आधुनिक परिभाषाओं में पाठ्यक्रम का एक व्यापक रूप दिखाई देने लगा है।
पाठ्यक्रम की परिभाषाएँ (Definition of Curriculum)
पाठ्यक्रम (Curriculum) शिक्षा के प्रत्येक लक्ष्य की प्राप्ति करने के लिए अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। पाठ्यक्रम में प्रत्येक का अपना स्थान है। विभिन्न अध्ययन, संगठित क्रियाएँ, पाठ्यक्रम एवं अतिरिक्त पाठ्यक्रम क्रियाएँ और विद्यालय का सम्पूर्ण सामाजिक जीवन और वातावरण पाठ्यक्रम में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है अर्थात् पाठ्यक्रम के अन्तर्गत उन समस्त क्रियाओं को स्थान दिया जाता है जिनको बालक कभी भी किसी भी समय प्राप्त करने में समर्थ हो।
पाठ्यक्रम की सबसे लोकप्रिय परिभाषा कनिंघम (Cunnigham) के द्वारा दी गई है, “पाठ्यक्रम अध्यापक रूपी कलाकार (Artist) के हाथ में वह साधन (Tool) है जिसके माध्यम से वह अपने पदार्थ रूपी छात्र (Material) को अपनी कलागृह रूपी स्कूल (Studio) में अपने उद्देश्य के अनुसार, विकसित अथवा रूप (Mould) प्रदान करता है।” इस परिभाषा के द्वारा यह प्रदर्शित किया गया है कि कलाकार को अपने आदर्शों के अनुरूप ढालने की स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। प्राचीन युग में आवश्यकता अथवा साधन दोनों ही अत्यन्त सीमित थे। अध्यापक को अपने छात्रों को नया रूप देने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त थी, परन्तु आज के युग में बदलती हुई परिस्थितियों में अध्यापक की महत्ता बहुत घट गई है। आज वर्तमान में अध्यापक के हाथ में पाठ्यक्रम अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अवधारणा है।
विद्वानों ने पाठ्यक्रम विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। पाठ्यक्रम की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्न हैं-
1. मुनरो के अनुसार- “पाठ्यक्रम में वे समस्त अनुभव निहित हैं जिनको विद्यालय द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग में लाया जाता है।”
2. शिक्षा आयोग के अनुसार “विद्यालय की देखभाल में उसके अन्दर तथा बाहर अनेक प्रकार के कार्यकलापों से छात्रों को विभिन्न अध्ययन अनुभव प्राप्त होते हैं। हम विद्यालय पाठ्यक्रम को इस अध्ययन अनुभवों की समष्टि मानते हैं।”
3. क्रो एवं क्रो के अनुसार- “पाठ्यक्रम को सीखने वाले या बालक के वे सभी अनुभव निहित हैं, जिन्हें वह विद्यालय या उसके बाहर प्राप्त करता है। वे समस्त अनुभव एक कार्यक्रम में निहित किए जाते हैं, जो उनको मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक, सामाजिक, आध्यात्मिक एवं नैतिक रूप से विकास होने में सहायता देता है।”
4. एनन के अनुसार- “पाठ्यक्रम पर्यावरण में होने वाली क्रियाओं का योग है।”
5. वाल्टर सी. के अनुसार- “पाठ्यक्रम पर्यावरण में वे समस्त अनुभव सम्मिलित हैं जिनको बालक विद्यालय के निर्देशन में प्राप्त करता है। इसके अन्तर्गत की क्रियाएँ तथा उसके बाहर के समस्त कार्य एवं खेल सम्मिलित हैं।”
6. पेने के अनुसार- “पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वे सभी परिस्थितियाँ आती हैं, जिनका प्रत्यक्ष संगठन और चयन बालकों के व्यक्तित्व में विकास लाने तथा व्यवहार से परिवर्तन लाने हेतु विद्यालय करता है।”
7. हेनरी जे. आटों के अनुसार- “पाठ्यक्रम वह साधन है, जिसके द्वारा हम बच्चों की शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के योग बनाने की आशा करते हैं।”
पाठ्यक्रम की प्रकृति (Nature of Curriculum )
सामान्य रूप से विद्यालयों में विद्यार्थियों को शिक्षित करने के लिए जो कुछ किया जाता है, उसे पाठ्यक्रम के नाम सम्बोधित किया जाता है। शिक्षाशास्त्रियों के द्वारा पाठ्यक्रम को कुछ निश्चित शब्दों में सम्मिलित करने अथवा परिभाषित करने का प्रयत्न भी किया है किन्तु पाठ्यक्रम के विस्तार क्षेत्र की सीमाएँ सुनिश्चित कर पाना अत्यन्त कठिन कार्य है, लेकिन फिर भी कतिपय मानवीय शैक्षिक तथा सामाजिक प्रवृत्तियों के आधार पर पाठ्यक्रम के विस्तार क्षेत्र की सीमाओं को निश्चित करने का प्रयास किया गया है।
पाठ्यक्रम के इतिहास पर यदि एक दृष्टि डाला जाय तो स्पष्ट रूप से पता चलता है कि पाठ्यक्रम के अन्तर्गत सम्मिलित किये जाने वाले ज्ञान का स्वरूप एवं विस्तार अनिवार्य रूप से सम्बन्धित समाज द्वारा मान्य शैक्षिक उद्देश्यों पर ही निर्भर करता है। इसीलिए देश और काल की परिस्थिति एवं भिन्नता के अनुसार, वहाँ के पाठ्यक्रमों में भिन्नता भी दृष्टिगोचर होती है। भारतीय सन्दर्भ में यदि हम वैदिक काल की शिक्षा पर दृष्टिपात करें तो हम यह देखते हैं कि वैदिक काल में भारतीय शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य ईश्वर भक्ति एवं धार्मिक भावना को सुदृढ़ करना, बालकों का चरित्र निर्माण एवं उनके व्यक्तित्व का विकास करना तथा सामाजिक कुशलता में वृद्धि करना था। इस दृष्टिकोण से उस समय का पाठ्यक्रम भी अत्यन्त विस्तृत था उसमें ‘परा ‘विद्या’ अर्थात् धार्मिक साहित्य का अध्ययन तथा ‘अपरा विद्या’ अर्थात् लौकिक एवं सांसारिक ज्ञान दोनों का ही समावेश वैदिक काल में शिक्षा का कार्य गुरुकुलों में होता था। शिक्षार्थी सम्पूर्ण शिक्षाकाल में गुरुकुल या गुरु-परिवार के सदस्य के रूप में रहता था। वह गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ गुरु-पत्नी की सेवा आश्रम की सफाई, पशुओं की देखभाल तथा भिक्षाटन के माध्यम से कर्त्तव्यपालन की भावना, सेवाभाव, विनयशीलता तथा अन्य चरित्रिक गुणों की शिक्षा ग्रहण करता था। कभी-कभी शिक्षा प्राप्त करने हेतु शिष्यों को देशाटन पर भी निकलना पड़ता था। इस प्रकार हम देखते हैं कि वैदिककालीन पाठ्यक्रम में पठन-पाठन के साथ-साथ विद्यार्थियों को व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने के समुचित अवसर भी प्राप्त होते थे तथा उसका सम्पादन भी अध्ययन कक्षों और समय के घण्टों में सीमित नहीं था।
पाठ्यक्रम का महत्त्व (Signification of the Curriculum)
वास्तव में पाठ्यक्रम को शिक्षा का प्रमुख आधार माना जाता है। पाठ्यक्रम का स्थान शिक्षण एवं शिक्षा हेतु अत्यन्त प्रभावपूर्ण होता है। पाठ्यक्रम इस प्रकार का होना चाहिए जो बालक की सम्पूर्ण आवश्यकताओं की निरन्तर पूर्ति करता है क्योंकि पाठ्यक्रम बालक के सम्पूर्ण विकास में सहायक होता है। पाठ्यक्रम छात्रों के जीवन काल में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। पाठ्यक्रम के महत्त्व को निम्न सन्दर्भों में स्पष्ट कर सकते हैं
1. पाठ्यक्रम से शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति होती है अर्थात् बालक के विकास (ज्ञानात्मक ) से सम्बन्धित सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर उसके विकास में शारीरिक सहायता प्रदान करने का कार्य सम्पन्न करता है।
2. पाठ्यक्रम का छात्र के जीवन में बहुत ही विशद महत्त्व है जिसके द्वारा हृष्ट-पुष्ट बालकों का निर्माण किया जा सकता है तथा बालकों में उपयुक्त मानसिक एवं शारीरिक दृष्टिकोण व आदतों का विकास किया जाता है।
3. शैक्षिक क्षेत्र में एवं सामाजिक तथा अन्य सभी क्षेत्रों में पाठ्यक्रम द्वारा छात्रों की ‘जीवन कला’ (Art of living) में प्रशिक्षण के अवसर प्राप्त होते हैं अर्थात् कौन-सा छात्र किस प्रकार अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ हो सकता है। अवसर की प्राप्ति छात्र को पाठ्यक्रम के अनुसार कार्य करने पर ही होती है।
4. पाठ्यक्रम के द्वारा छात्र अथवा अध्यापक के सम्बन्धों को दृढ़ता प्राप्त होती है, जिसमें छात्र के द्वारा अध्यापक पाठ्यक्रम से सम्बन्धित विभिन्न क्रियाएँ करवाता है। उसे प्रशिक्षित करता है।
5. पाठ्यक्रम लक्ष्य निर्धारण में सहायक है। पाठ्यक्रम के द्वारा अध्यापकों को दिशा-निर्देश प्राप्त होता है। छात्रों के लिए लक्ष्य निर्धारित होने से उनमें एकाग्रता आती है तथा वे नियमित रहकर कार्य करते हैं।
6. पाठ्यक्रम एक प्रकार से अध्यापक के पश्चात् छात्रों के लिए पथ-प्रदर्शक होता है। पाठ्यक्रम में पाठविषयों के साथ-साथ स्कूल के सारे कार्य सम्मिलित किए जाते हैं।
7. अध्यापक पाठ्यक्रम के द्वारा छात्रों के मानसिक, शारीरिक, नैतिक, सांस्कृतिक, संवेगात्मक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक विकास के लिए प्रयास करता है। उसे आगे बढ़ने का पूर्ण अवसर प्रदान करता है। अतः हम कह सकते हैं कि पाठ्यक्रम विद्यार्थियों / शिक्षार्थियों के सर्वांगीण विकास हेतु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
- मापन और मूल्यांकन में अंतर
- मापन का महत्व
- मापन की विशेषताएँ
- व्यक्तित्व का अर्थ एवं स्वरूप | व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताएं
- व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक
- व्यक्तित्व क्या है? | व्यक्तित्व के शीलगुण सिद्धान्त
- व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ और स्वरूप
- व्यक्तिगत विभिन्नता अर्थ और प्रकृति
- व्यक्तिगत विभिन्नता का क्षेत्र और प्रकार
Important Links
- परिवार का अर्थ एवं परिभाषा | परिवार के प्रकार | परिवार के कार्य
- संयुक्त परिवार का अर्थ, परिभाषा विशेषताएं एवं संयुक्त परिवार में आधुनिक परिवर्तन
- परिवार की विशेषताएँ | Characteristics of Family in Hindi
- परिवार में आधुनिक परिवर्तन | Modern Changes in Family in Hindi
- परिवार की उत्पत्ति का उद्विकासीय सिद्धान्त
- जीववाद अथवा आत्मावाद | Animism in Hindi
- हिन्दू धर्म की प्रकृति | हिन्दू धर्म की प्रमुख मान्यताएँ | हिन्दू धर्म स्वरूप
- भारतीय समाज पर हिन्दू धर्म का प्रभाव | Impact of Hindusim on Indian Society in Hindi
- धार्मिक बहुलवाद | Religious Plyralism in Hindi
- जादू और विज्ञान में संबंध | जादू और विज्ञान में समानताएँ
- जादू की परिभाषा | जादू के प्रकार | Magic in Hindi