लघु उत्तरीय परीक्षण
लघु उत्तरीय परीक्षणों का स्वरूप
वे परीक्षण जिनमें छोटे-छोटे प्रश्न पूछे जाते हैं, ऐसे प्रश्न कि उनका उत्तर निबन्धात्मक प्रश्नों की अपेक्षा लघु रूप में दिया जाता है, लघु उत्तरीय परीक्षण कहे जाते हैं। लघु उत्तरीय प्रश्न सामान्यतः दो प्रकार के होते हैं-लघु उत्तरीय और अतिलघु उत्तरीय। यहाँ इन दोनों प्रकार के प्रश्नों के कुछ उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं ।
1. लघु उत्तरीय प्रश्न- वे प्रश्न जिनका उत्तर निबन्धात्मक प्रश्नों की अपेक्षा कम समय में दिया जाता है, लघु उत्तरीय प्रश्न कहे जाते हैं। जितने समय में एक निबन्धात्मक प्रश्न का उत्तर दिया जाता है उतने ही समय में लगभग 4-6 लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर दिये जा सकते हैं।
उदाहरण प्रस्तुत हैं-
(1) साहित्य की गद्य और पद्य विधा में क्या अन्तर है?
(2) नाटक के मुख्य तत्व क्या होते हैं?
(3) उपसर्ग और प्रत्यय से आप क्या समझते हैं? उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करें।
(4) छायावाद की किन्हीं दो विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
(5) हिन्दी साहित्य में कौन-कौन से रस होते हैं?
2. अतिलघु उत्तरीय प्रश्न – वे प्रश्न जिनका उत्तर निबन्धात्मक प्रश्नों की अपेक्षा और अधिक कम समय में दिया जाता है, अति लघुउत्तरीय प्रश्न कहे जाते हैं। जितने समय में एक निबन्धात्मक अथवा 4-6 लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर दिये जाते हैं उतने समय में 8-10 अति लघुउत्तरीय प्रश्नों के उत्तर दिये जा सकते हैं। यहाँ अति लघुउत्तरीय प्रश्नों के उदाहरण प्रस्तुत हैं
(1) कहानी के मुख्य तत्वों का उल्लेख कीजिए।
( 2 ) छायावादी कविता की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(3) कोई पाँच उपसर्ग और उनसे बने एक-एक शब्द लिखिए।
(4) यमक और श्लेष अलंकार का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
(5) रस की उपयुक्ततम परिभाषा दीजिए।
मौखिक परीक्षणों में तो इस प्रकार के प्रश्न पहले से ही पूछे जाते रहे हैं, अब लिखित परीक्षणों में भी पूछे जाने लगे हैं। इस प्रकार के परीक्षणों से निबन्धात्मक परीक्षणों की अनेक कमियों को दूर किया जा सकता है। यहाँ इन परीक्षणों के गुण-दोषों का विवेचन प्रस्तुत है।
लघुउत्तरीय परीक्षणों के गुण अथवा विशेषताएँ
लघुउत्तरीय परीक्षण कई अर्थों में निबन्धात्मक परीक्षणों से अच्छे माने जाते हैं। इनमें निम्नलिखित गुण होते हैं।
1. सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर प्रश्न पूछना सम्भव- लघुउत्तरीय प्रश्न निबन्धात्मक प्रश्नों की तुलना में बहुत छोटे होते हैं, जितने समय में एक निबन्धात्मक प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है उतने समय में 4-6 लघुउत्तरीय अथवा 8-10 अति लघुउत्तरीय प्रश्नों के उत्तर दि सकते हैं। तब पूरे पाठ्यक्रम पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं। .
2. निबन्धात्मक परीक्षणों की अपेक्षा अधिक वैध- परीक्षणों का प्रयोग सामान्यतः छात्रों के ज्ञानात्मक, क्रियात्मक और भावात्मक पक्षों में होने वाले परिवर्तन का मापन करने के लिए किया जाता है। यूँ लघुउत्तरीय परीक्षणों द्वारा मुख्य रूप से ज्ञानात्मक पक्ष का ही मापन हो पाता है परन्तु वह इतने व्यापक रूप में होता है कि वे निबन्धात्मक परीक्षणों की अपेक्षा अधिक वैध होते हैं।
3. निबन्धात्मक परीक्षणों की अपेक्षा अधिक विश्वसनीय- लघुउत्तरीय प्रश्नों के उत्तर निश्चित प्रायः होते हैं तब इनका मापन लगभग वस्तुनिष्ठ होना चाहिए और प्रायः होता भी है। साफ जाहिर है कि ये परीक्षण निबन्धात्मक परीक्षणों की अपेक्षा अधिक विश्वसनीय होते हैं।
4. निबन्धात्मक परीक्षणों की अपेक्षा अधिक वस्तुनिष्ठ- निबन्धात्मक प्रश्नों की रचना में कितनी भी सावधानियाँ बरती जाएँ और उनके उत्तरों का मूल्यांकन भी चाहे जितनी सावधानी से किया जाए फिर भी वह व्यक्तिनिष्ठ अधिक होते हैं परन्तु लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर निश्चित प्रायः होते हैं इसलिए इनका मूल्यांकन भी प्रायः वस्तुनिष्ठ होता है, कम से कम निबन्धात्मक परीक्षणों की तुलना में तो बहुत अधिक।
5. निबन्धात्मक परीक्षणों की अपेक्षा अधिक व्यापक- लघु उत्तरीय परीक्षणों में निबन्धात्मक परीक्षणों की अपेक्षा पाठयक्रम से अधिक भाग पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं, लगभग पूरे पाठ्यक्रम पर, इसलिए ये परीक्षण निबन्धात्मक परीक्षणों की अपेक्षा अधिक व्यापक होते हैं और तद्नुकूल अपेक्षाकृत अधिक वैध और अधिक विश्वसनीय ।
6. निबन्धात्मक परीक्षणों की अपेक्षा अधिक विभेदक- इन परीक्षणों में निबन्धात्मक परीक्षणों की अपेक्षा अधिक प्रश्न पूछे जा सकते हैं, पूरे पाठ्यक्रम पर पूछे जा सकते हैं इसलिए छात्रों को सब कुछ स्मरण पड़ता है, तब कुछ समझना पड़ता है और और छात्र जितना अधिक समझ पाता है उसे उतना ही ऊँचा रैंक मिल पाता है। इस प्रकार इन परीक्षणों के आधार पर परीक्षार्थियों का विभेदीकरण किया जा सकता है।
7. प्रशासन सरल- इनका प्रशासन ठीक निबन्धात्मक परीक्षणों की भाँति किया जाता है। शिक्षा जगत के जो व्यक्ति निबन्धात्मक परीक्षणों का सम्पादन करते हैं, वे इन परीक्षणों का भी कर सकते हैं।
लघुउत्तरीय परीक्षणों के दोष अथवा कमियाँ
इन परीक्षणों का निर्माण निबन्धात्मक परीक्षणों के दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है। और ये उनके कुछ दोषों को दूर करने में सफल भी हुए हैं परन्तु साथ ही ये निबन्धात्म परीक्षणों के गुणों से दूर हैं, उन्हें ही हम इनके दोष अथवा कमियाँ कहते हैं। इन परीक्षणों में निम्नलिखित दोष अथवा कमियाँ हैं-
1. कौशल और अभिवृत्तियों के मापन में अक्षम- लघु उत्तरीय परीक्षणों में प्रायः तथ्यों की जानकारी की जाती है, कौशल और अभिवृत्तियों की नहीं वैसे भी इनके उत्तर देने में छात्रों की पूरी स्वतन्त्रता नहीं होती इसलिए उनकी अभिवृत्तियों का मापन नहीं किया जा सकता।
2. भाषा-शैली एवं अभिव्यक्ति शक्ति के मापन में अक्षम- लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त रूप में देने होते हैं इसलिए इनके उत्तरों के द्वारा छात्रों की भाषा-शैली एवं अभिव्यक्ति शक्ति का मापन उतने अच्छे ढंग से नहीं किया जा सकता जितने अच्छे ढंग से निबन्धात्मक परीक्षणों द्वारा किया जा सकता है।
3. तर्क आदि उच्च मानसिक शक्तियों के मापन मे अक्षम- लघु उत्तरीय प्रश्न प्रायः सूचना प्रधान होते हैं। इनका स्तर देने में छात्रों को न तर्क प्रस्तुत करने पड़ते हैं और न अपने मत के समर्थन में उदाहरण प्रस्तुत करने पड़ते हैं इसलिए इनके द्वारा छात्रों की तर्क एवं निर्णय आदि शक्तियों का मापन नहीं किया जा सकता।
4. अन्तर्दृष्टि और दूरदृष्टि के मापन मे अक्षम- छात्रों की किसी क्षेत्र में कितनी अन्तर्दृष्टि और दूरदृष्टि विकसित हुई है इसके लिए तो उनसे आलोचनात्मक एवं समस्यात्मक प्रश्न पूछने होते हैं और लघु उत्तरीय प्रश्नों में इस प्रकार के प्रश्न पूछना सम्भव नहीं जिनमें छात्रों को किसी समस्या पर विस्तार से विचार करना पड़े और फिर विस्तार से अपने सुझाव तब इनसे छात्रों की अन्तर्दृष्टि और दूरदृष्टि का मापन कैसे किया जा सकता है। देने पड़े।
5. व्यक्तित्व के मापन में कम सहायक- प्रथम बात तो यह है कि इस प्रकार के परीक्षणों में बच्चों की रुचि और अभिवृत्ति सम्बन्धी प्रश्न कम पूछे जाते हैं और दूसरी बात यह है कि इन प्रश्नों के उत्तर निश्चित प्रायः होते हैं, उनके उत्तर देने में छात्रों को स्वतन्त्रता नहीं होती। अतः इनके द्वारा छात्रों के व्यक्तित्व का मापन सही ढंग से नहीं किया जा सकता।
6. तथ्यों को रटने पर बल- लघुउत्तरीय परीक्षणों में प्रायः तथ्यों पर बल रहता है। इनके द्वारा मुख्य रूप से ज्ञान की परख की जाती है। अतः छात्र तथ्यों को रटने को प्रवृत्त होते हैं।
7. पूर्णतया न वैध, न विश्वसनीय और न वस्तुनिष्ठ- यह बात सही है कि इन परीक्षणों में निबन्धात्मक परीक्षणों की अपेक्षा पाठ्यक्रम के लगभग पूरे भाग पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं, पर सम्पूर्ण पर नही। यह बात भी सही है कि इन प्रश्नों के उत्तरों का मूल्यांकन निबन्धात्मक प्रश्नों की अपेक्षा वस्तुनिष्ठा होता है। परन्तु पूर्णतया वस्तुनिष्ठा नहीं। तब साफ जाहिर है कि ये परीक्षण पूर्णरूप से न वैध होते हैं, न विश्वसनीय और न वस्तुनिष्ठ ।
अभिमत- सामान्यतः किसी परीक्षण में छह गुण होने चाहिए- वैधता, विश्वसनीयता, वस्तुनिष्ठता व्यापकता, विभेदीकारिता और व्यावहारिकता। यूँ लघुउत्तरीय परीक्षणों में ये सभी गुण निबन्धात्मक परीक्षणों की अपेक्षा अधिक होते हैं पर फिर भी ये अपने में पूर्णरूप से न वैध होते हैं, न विश्वसनीय और न वस्तुनिष्ठ। ये निबन्धात्मक परीक्षणों के दोषों को तो दूर सक्षम सकता है। परन्तु करने में उनके गुण इनमें नहीं हैं। तब इस प्रकार के परीक्षणों पर निर्भर कैसे रहा जा
लघुउत्तरीय परीक्षणों में सुधार के सुझाव
यूँ लघुउत्तरीय परीक्षण अपने में पूर्णरूप से वैध, विश्वसनीय और वस्तुनिष्ठ तो नहीं हो परन्तु हम उन्हें अधिक वैध, विश्वसनीय एवं वस्तुनिष्ठ बनाने के लिए कुछ सुझाव देना सकते आवश्यक समझते हैं। यथा-
(1) लघु उत्तरीय प्रश्न पूरे पाठ्यक्रम पर बनाए जाएँ।
(2) इनकी भाषा सरल, स्पष्ट और एक अर्थी होनी चाहिए।
(3) ये प्रश्न इस प्रकार बनाए जाएँ कि उनके उत्तर निश्चित हों।
(4) ये प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनके नमूने के उत्तरों की सहायता से मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ बनाया जा सके।
(5) इनं प्रश्नों को हल करने के सम्बन्ध में निश्चित निर्देश होने चाहिए।
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