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बुद्धि का स्वरूप, अर्थ और परिभाषा | बुद्धि के सिद्धान्त

बुद्धि का स्वरूप, अर्थ और परिभाषा
बुद्धि का स्वरूप, अर्थ और परिभाषा

बुद्धि के स्वरूप की विवेचना कीजिए। बुद्धि के स्वरूप के सम्बन्ध में प्रतिपादित किए गए प्रमुख सिद्धान्तों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए ?

प्रस्तावना – प्राचीन काल से ही मानव क्षमताओं में बुद्धि का विशेष महत्व रहा है। मानव जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर निर्भर करता है। आज भी बाल कथाओं पहेलियों और गुप्तचर कथाओं में अनेक कुशलता और चतुराई से सम्बन्धित आख्यान मिलते हैं तथा उस बालक को बुद्धिमान कहा जाता है जो सभी पहेलियों को समझ सके। सामान्य व्यक्ति की दृष्टि में वही व्यक्ति बुद्धिमान है जो साक्षर या ज्ञानी है।

बुद्धि का स्वरूप, अर्थ और परिभाषा

बुद्धि के स्वरूप के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिक का एकमत नहीं हैं। अतः बुद्धि एक विवादग्रस्त समस्या बन गयी है। जिस प्रकार विद्युत एक शक्ति है। उसके स्वरूप को औपचारिक भाषा में व्यक्त करना कठिन है और विद्युत को हम उसके कार्यों यथा ताप उत्पादन, प्रकाश, चुम्बकीय क्षेत्र इत्यादि द्वारा जानते हैं, ठीक उसी प्रकार बुद्धि भी एक शक्ति है जो जटिल मानसिक क्रियाओं यथा प्रत्यक्षीकरण, स्मृति चिन्तन, कल्पना तथा तर्क इत्यादि के रूप में अभिव्यक्त होती है और इसका किसी परीक्षा या परिवेश में व्यक्ति के कार्य के परिणामत्मक विवरण या फलांकों के आधार पर किया जाता है।

बुद्धि के स्वरूप को समझने और व्याख्या करने का प्रयास प्राचीन काल से ही होता चला आ रहा है और इसके सम्बन्ध में वैज्ञानिक तथ्यों के विकास के साथ-साथ अनेक रूढ़िगत बाते भी जुड़ी रही हैं जैसे- “बड़े सिर और चौड़े ललाट वाला व्यक्ति बुद्धिमान होता है” “पुरुषों में स्त्रियों की अपेक्षा अधिक बुद्धि होती है” या पहलवानों में बुद्धि कम होती है”। 18 वीं सदी में आकृति सामुद्रिक तथा मस्तिष्क विज्ञान पर जनसाधारण का काफी विश्वास था जिसमें चेहरे की आकृति एवं खोपड़ी के आकार तथा उभारों के आधार पर बुद्धि की व्याख्या करने का प्रयास किया गया। प्राचीन यूनानी दार्शनिकों ने सिद्धान्त शक्ति मनोविज्ञान के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के मन में अनेक शक्तियाँ जैसे कल्पना, स्मृति चिन्तन इत्यादि होती हैं जो मस्तिष्क के विभिन्न ‘भागों में स्थिति होती हैं और उसे अनेक कार्यों को करने के योग्य बनाती हैं परन्तु अब शक्ति मनोविज्ञान तथा मस्तिष्क विज्ञान का कोई महत्व नहीं रहा और इन्हें त्याग दिया गया है।

फ्रांसिस गाल्टन ने शारीरिक अवयवों के अध्ययन के आधार पर बुद्धि की व्याख्या -> करने का प्रयास किया पर “कार्ल पियर्सन” ने 1906 ई० में यह स्पष्ट कर दिया कि सिर की बनावट, मुखाकृति एवं शारीरिक अवयवों का मानसिक योग्यता से कोई सम्बन्ध नहीं है।

डार्विन – के विकासवाद के सिद्धान्त से यह स्पष्ट हो गया कि पशुओं और मनुष्यों के व्यवहार में आधारभूत समानता होती है तथा पशुओं में भी बुद्धि होती है जबकि पहले पशुओं को में बुद्धिहीन और मूल प्रवृत्यात्मक तथा मनुष्य को विचारवान माना जाता था।

बीसवी सदी में बुद्धि के मापन पर विशेष ध्यान दिया गया और उसके आधार पर बुद्धि के स्वरूप को समझने की चेष्टा की गयी। जिसमें बिने टरमन, स्टर्न, थार्नडाइक, वर्ट बेश्लर, स्पीयरमैन, गिलफोर्ड इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अपने अपने दृष्टिकोण से बुद्धि की परिभाषा दी है। इन परिभाषाओं में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है परन्तु आत्मा सबकी एक ही है।

कुछ मुख्य परिभाषाएं इस प्रकार हैं

1. बिने- “बुद्धि की आवश्यक क्रियाऐं हैं उचित निर्णय, ठीक से समझना और ठीक से तर्क करना”

2. स्टार्न जीवन की नवीन समस्याओं और परिस्थितियों के प्रति सामान्य अभियोजनशीलता ही बुद्धि है।

“Intelligence is a general adaptation to new problems and conditions of life.” -Stern

3. स्पीयरमैन सम्बन्धित चिन्तन ही बुद्धि है। “Intelligence is relation thinking.” – Spearman

4. वर्ट बुद्धि की अपेक्षाकृत नवीन परिस्थितियों में समायोजन करने की क्षमता है। – “Intelligence is the capacity to adapt to relatively new situations.” – Burt

5. टरमन बुद्धि अमूर्त वस्तुओं के विषय में चिन्तन करने की योग्यता है”

“The ability to carry out abstract thinking” – Turman

6. थार्नडाइक – “वास्तविक तथ्य के अनुरूप उपयुक्त प्रतिक्रिया ही शक्ति ही बुद्धि है।”

“The power of good response from the point of view of truth or fact.” – Thorndike

बुद्धि की प्रत्येक परिभाषाएं एक विशेष दशा की ओर संकेत करती है। यद्यपि उसका दृष्टि कोण भिन्न भिन्न है परन्तु सबकी अपनी एक अलग उपयोगिता है।

अतः बुद्धि एक सामान्य योग्यता है जो जटिल मानसिक क्रियाओं के रूप में व्यक्त होती है तथा व्यक्ति को प्रत्येक परिस्थिति और क्षेत्र में समायोजन करने में सहायता करती है। यह जन्मजात क्षमता होती है जो विद्या या ज्ञान से भिन्न होती है। बुद्धि अर्जित नहीं की जाती जबकि ज्ञानार्जन बुद्धि पर ही निर्भर करता है।

बुद्धि के सिद्धान्त (Theories of Intelligence)

बुद्धि के स्वरूप को समझने का अनेक मनोवैज्ञानिकों ने प्रयत्न किया है जो कई सिद्धान्तों पर आधारित है। शक्ति मनोविज्ञान के अनुसार मन में अनेक शक्तियां ज्ञान, अनुभव करना, निर्णय, स्मरण, तथा कल्पना इत्यादि हैं एक दूसरे से स्वतन्त्र जो 18 वीं सदी में रीड ने मन की शक्तियों का तथा अन्य दार्शनिक ने इससे अधिक शक्तियों का उल्लेख किया। परन्तु यह मुख्यतः अनुभात्मात्मक था।

बुद्धि के मुख्य सिद्धान्त निम्न हैं-

1. एक खण्ड सिद्धान्त

3. त्रिखण्ड सिद्धान्त

2. द्विखण्ड सिद्धान्त

4. बहुखण्ड सिद्धान्त

1. एक खण्ड सिद्धान्त ( Unifactor Theory )

बिने, टरमैन एवं स्टर्न आदि मनोवैज्ञानिक बुद्धि को एक अविभाज्य इकाई या पूर्णखण्ड के रूप में मानते हैं।

इनके अनुसार बुद्धि विभिन्न प्रभावों की एक इकाई के रूप में व्यक्त करने की क्षमता है। बिने के अनुसार “सम्यक निर्णय की योग्यता परन्तु इस सिद्धान्त की आलोचना हुई किन्तु भिन्न मानसिक योग्यताओं के लिए भिन्न भिन्न प्रकार की बुद्धि परीक्षायें ली जाती है और इन विभिन्न योग्यता परीक्षाओं में कोई सम्बन्ध नहीं होता। अतः बुद्धि एक अविभाज्य इकाई नहीं हो सकती है।

2. द्विखण्ड सिद्धान्त (Two factor Theory )

सन् 1904 ई० में ‘स्पीयरमैन’ ने बुद्धि को दो तत्वों के रूप में माना इनका मानना है कि बुद्धि में सामान्य रूप से दो तत्व होते हैं

1. सामान्य, 2. विशिष्ट

इन तत्वों को स्पियरमैन ने g factor’s factor कहा

3. त्रिखण्ड सिद्धान्त (Three factor theory )

स्पीयरमैन ने जी (g) एस (s) तत्वों के साथ साथ आगे चलकर सामूहिक तत्वों जैसे- ‘यान्त्रिक योग्यता’ ‘मानसिक गति’ इत्यादि को पता लगाया जो (सामान्य) और (विशिष्ट) योग्यताओं की खाई को पाट सके। इन्होंने 1927 ई० में यह संकेत किया की (जी) के अतिरिक्त अन्य सामान्य तत्व विचार प्रक्रिया में गति तथा निष्क्रियता से मुक्ति इत्यादि से तथा का आत्मनियन्त्रण, संकल्प शक्ति अथवा संलग्नता की शक्ति इत्यादि से है। कुछ परीक्षणों में अधिक सामान्य योग्यता की आवश्यकता पड़ती है।

स्पीयरमैन के सिद्धान्त की कड़ी आलोचना हुई उसके अनुसार प्रत्येक कार्य में कुछ सामान्य योग्यता तथा अलग अलग विशिष्ट योग्यता होनी चाहिए। परन्तु फोरमैन, मेकेनिक एवं इंजीनियर के कार्य में साधारणतया एक ही प्रकार के योग्यता की आवश्यकता पड़ती है।

4. बहुखण्ड सिद्धान्त (Multifactor Theory)

थर्सटन ने अपने शिष्यों के सहयोग से तत्व विश्लेषण के आधार पर बुद्धि की 9 प्रारम्भिक मानसिक योग्यताओं का पता लगाया जो इस प्रकार है। – 1. शब्द योग्यता (Verbal ability), 2. शब्द प्रवाह (Word Fluency), 3. संख्यात्मक योग्यता (Numerical Ability), 4. वस्तु प्रेक्षण या स्थान सम्बन्धी योग्यता (Perceptual Ability), 5. आगमन तर्क (Inductive Reasoning), 6. निगमन तर्क (Deductive Reasoning), 7. समस्या हल करने की योग्यता (Ability to solve prob lems) I

थसर्टन के अनुसार- किसी भी कार्य को सम्पन्न करने में यथा साहित्य के अध्ययन, कविता के रसास्वादन या गणित की समस्या को हल करने में उपयुक्त 7 प्राथमिक मानसिक योग्यताओं की आवश्यकता पड़ती है।

अमेरिका में स्टैफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टरसन महोदय ने 1916 ई० में तथा मेरिल के साथ 1973 ई० में संशोधन किये जो कि अमेरिका में अधिक लोकप्रिय तथा प्रचलित हुई। आज के बुद्धि परीक्षणों में बेल्वयू तथ थर्सटन द्वारा निर्मित परीक्षण भी अधिक लोकप्रिय और प्रमाणिक है।

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