विश्वसनीयता का अर्थ
कोई भी मापन विधि उस सीमा तक विश्वसनीय होती है, जिस सीमा तक वह बराबर प्रयोग करने पर भी एक से परिणाम प्रदान करें। एक से परिणामों से तात्पर्य यह है कि किसी व्यक्ति को उस परीक्षण पर करीब-करीब वही अंक प्राप्त हो जो प्रथम बार हुए थे या समूह में उसका स्थान वही बना रहे जो प्रथम प्रयास में परीक्षण द्वारा इंगित किया गया था। विश्वसनीयता किसी परीक्षण पर व्यक्ति के प्राप्तांकों की संगति है।
परीक्षण की विश्वसनीयता हमें यह बताती है कि किस सीमा तक फलांकों की व्यक्तिक भिन्नता को मापना की अनयास त्रुटि के कारण उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। विश्वसनीयता बताता है कि किस सीमा तक शीलगुणों की वास्तविक भिन्नता को इन वैयक्तिक भिन्नताओं का कारण ठहराया जा सकता है। तकनीकी भाषा में हम कह सकते हैं कि परीक्षण विश्वसनीयता का हर माप हमें बताता है कि परीक्षण प्राप्तांकों के कुछ प्रसरण का कौन सा अनुपास त्रुटि प्रसरण है।
यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि वह कारक जिन्हें एक परिस्थित में त्रुटि प्रसरण के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, दूसरी परिस्थिति में वास्तविक प्रसरण के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
हर परीक्षण में विश्वसनीयता किसी न किसी मात्रा में अवश्य पायी जाती है। किसी भी परीक्षण की शून्य विश्वसनीयता नहीं होती।
एनेस्टासी ने विश्वसनीयता को इस प्रकार परिभाषित किया है- “विश्वसनीयता प्राप्तांकों की उस संगति की ओर इंगित करती है जो एक ही व्यक्तियों को विभिन्न अवसरों पर उसी परीक्षण से मापने पर प्राप्त होते हैं।
विश्वसनीयता की यह परिभाषा मापन की त्रुटि की गणना के महत्व को कम करके आँकती है।
गैरिट के शब्दों में ” एक परीक्षण या मानसिक मापन यन्त्र की विश्वसनीयता उस संगति पर निर्भर करती है जो कि उन व्यक्तियों की योग्यता का अनुमान लगाती है जिनके लिए उसका प्रयोग होता है। “
परीक्षण प्राप्तांकों में प्रसरण के सम्भावित स्रोत
जो वर्ग यहाँ दिये जा रहे हैं वे सभी सम्भावित वर्ग नहीं हैं। यह केवल वही वर्ग है जो हमें यह निर्णय लेने में सहायक होते हैं कि प्रसरण के किन अंशों को वास्तविक प्रसरण समझा जाये और किन अंशों को त्रुटि प्रसरण समझा जाये। यह सम्भावित वर्ग केवल चार होते हैं जिनका वर्णन आगे दिया गया है।
(1) व्यक्ति की स्थायी और सामान्य विशेषताएँ- किसी भी परीक्षण पर निष्पादन कुछ अंशों में सामान्य क्षमताओं पर निर्भर करता है, जैसे-शाब्दिक बोध-विस्तार और निगमनात्मक तार्किक क्षमता आदि। यह स्पष्ट रूप से नियमित प्रसरण है और विश्वसनीयता का निश्चय करते समय इसी रूप में ध्यान रखना चाहिए। परीक्षण में अन्य सामान्य कारक, परीक्षण बुद्धिमान और निर्देश समझने की क्षमता है। ये सभी कारक उन सभी परीक्षण निर्माताओं के लिए चुनौती प्रदान करते हैं, जो इन्हें कम करने की चेष्टा करते हैं, सिवाय उन परिस्थितियों के जहाँ स्पष्ट और विस्तृत निर्देशों और गौण संकेतों को न्यूनतम रखकर विशेष रूप से इनकी उपस्थिति वांछित होती है।
(अ) सामान्य कुशलता (उदाहरणार्थ, पढ़ना)।
(ब) परीक्षण बुद्धिमत्ता, परीक्षा देने की विधि तथा निर्देशों को समझने की सामान्य क्षमता।
(स) परीक्षण में प्रस्तुत सामान्य प्रकार की समस्याओं को हल करने की क्षमता।
(द) अभिवृत्तियाँ, संवेग प्रतिक्रियाएँ या आदतें जो कि प्रायः परीक्षण परिस्थितियों में पायी जाती हैं (जैसे, आत्म-विश्वास) ।
2. व्यक्ति की विशेष और स्थायी विशेषताएँ- हर परीक्षण में कुछ प्रसरण सतत् विशेषताओं के कारण उत्पन्न होता है परन्तु तब भी अध्ययन किये जाने वाले क्षेत्र के लिए विशेष होता है, उदाहरणार्थ आंकिक गणना और हिज्जे करना। यदि दो ऐसे परीक्षण दिये जायें जिनके पदों का चयन पदों के एक ही समग्र से, एक ही विधि द्वारा स्वतन्त्र रूप से किया गया हो, तो एक व्यक्ति दोनों परीक्षणों पर समान अंक पाने में असफल रहेगा क्योंकि उन पदों में, जिनके लिए व्यक्ति में वांछित कुशलता है विचलन होता है।
व्यक्तिगत क्षमता का स्तर, जो एक परीक्षण में वाँछित होता है परन्तु दूसरे में नहीं, निश्चित रूप से नियमित सत्य प्रसरण है। अतः विश्वसनीयता के निर्धारण के लिए कोई भी योजना इस प्रकार बनानी चाहिए कि इस प्रकार के प्रसरण को नियमित प्रसरण के रूप में ही उपचार किया जाये।
अध्ययन किये जाने वाले क्षेत्र के लिए आवश्यक विशेष क्षमता और विशेष प्रकार के परीक्षण के लिए आवश्यक विशेष ज्ञान और कुशलता से उत्पन्न होने वाले प्रसरण को नियमित प्रसरण के रूप में ही उपचार दिया जाता है लेकिन निष्पादन में परीक्षण पदों के विशेष न्यादर्श से उठने वाले प्रसरण को त्रुटि प्रसरण के रूप में ही उपचार दिया जाता है।
(अ) परीक्षण की विशेष समस्याओं को हल करने के लिए ज्ञान और कुशलता की आवश्यकता होती है।
(ब) विशेष परीक्षण उत्तेजक से सम्बन्धित मनोवृत्तियाँ, संवेगात्मक प्रतिक्रियाएँ या आदतें (उदाहरणार्थ, श्रेणी प्राप्त करने का भय )
( 3 ) व्यक्ति की अस्थायी और सामान्य विशेषताएँ- स्वास्थ्य, थकान, चिन्ता, व्यवधान, प्रकाश, मौसम आदि ऐसे कारण हैं, जो व्यक्ति के मूड और कार्य पर उसकी प्रवीणता को प्रभावित करते हैं। कुछ लोगों में हर मिनट परिवर्तन होता है तथा अन्य कुछ में रोज हर परिवर्तन होता है। परीक्षण के कुछ ऐसे उद्देश्य हो सकते हैं जिनमें व्यक्ति के हर मिनट के निष्पादन की सूचना आवश्यक हो, तब अन्य परीक्षण के लिए नित्य प्रति के निष्पादन की आवश्यक हो सकती है। शाब्दिक योग्यता के साधारण शक्ति परीक्षण में बहुत कम प्रसरण, इस सूचना प्रकार की अस्थायी विशेषताओं के आधार पर उत्पन्न होता है परन्तु शारीरिक चयापचरिक परीक्षण में इन कारकों द्वारा काफी प्रसरण उत्पन्न हो सकता है।
वे कारक जो व्यक्ति के एक दिन और दूसरे दिन के निष्पादन में अन्तर उत्पन्न करते हैं, सामान्यतः त्रुटि के स्त्रोत होते हैं जैसे
(अ) स्वास्थ्य, थकान और संवेगात्मक तनाव,
(ब) अभिप्रेरणा और परीक्षण के सामरस्य ।
(स) गर्मी, प्रकाश आदि का प्रभाव।
(द) इस प्रकार के परीक्षणों में वांछित अभ्यास का स्तर ।
(य) अस्थायी संवेगात्मक अवस्था, आदत की शक्ति आदि।
विश्वसनीयता ज्ञात करने की विधियाँ
परीक्षण को व्यापक रूप से समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम यह ज्ञात करें कि प्रसरण का मौन-सा अनुपात, प्राप्तांकों के प्रसरण के चार सम्भावित स्रोतों में से हरेक के कारण हैं। इसके लिए हमें हर व्यक्ति के दो या अधिक मापन प्राप्त करने होते हैं और प्रदत्तों को सह सम्बन्धित करना पड़ता है या प्रसरण विश्लेषण करना पड़ता है। हर प्रकार के प्रसरण को मापने के लिए भिन्न प्रयोग करने होते हैं। हर प्रयोग किसी न किसी प्रसरण का “त्रुटि” के रूप में उपाचार करता है। इसके लिए चार विधियों का प्रयोग सामान्य रूप से किया जाता है। इन चार विधियों को विश्वसनीयता प्राप्त करने की विधियाँ भी कहा जाता है। ये इस प्रकार हैं-
(1) पुनर्परीक्षण विधि
(2) समानान्तर प्रारूप विधि,
(3) अर्द्ध-विच्छेद विधि,
(4) वर्क-युक्त समानता विधि।
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