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अच्छे परीक्षण के गुण | अच्छे परीक्षण की विशेषताएँ | Good Test in Hindi

अच्छे परीक्षण के गुण
अच्छे परीक्षण के गुण

अच्छे परीक्षण के गुण अथवा विशेषताएँ

मूल्यांकन की दृष्टि से एक अच्छी परीक्षा में सामान्यतः निम्नलिखित गुण होने चाहिये

(1) विश्वसनीयता

(2) वैधता

(3) वस्तुनिष्ठता

(4) विभेदीकरण

(5) कठिनाई स्तर

(6) व्यापकता

(7) सहजता

(1) विश्वसनीयता

” It refers to the conistency of the measurement” अर्थात् यदि किसी परीक्षा के परिणाम समान परिस्थितियों में एक समान बने रहते हैं तो उस परीक्षा को विश्वसनीय माना जाता है। इस प्रकार किसी परीक्षा की विश्वसनीयता परीक्षा में न्यादर्श की मात्रा तथा अंकों की वस्तुनिष्ठता पर निर्भर करती है।

इसी प्रकार कोई प्रश्न तभी विश्वसनीय कहा जायेगा जब उसके स्तर विद्यार्थी की सही उपलब्धि अथवा स्तर का ज्ञान करायें अर्थात् परिणामी अंक त्रुटियों की सम्भावना से मुक्त हों। त्रुटियों की सम्भावना प्रायः निर्देशों की अस्पष्टता के कारण होती है। यह दो स्तरों पर हो सकती है प्रथम, जब विद्यार्थी प्रश्न का उत्तर दे रहा है और दूसरा, जब परीक्षक उत्तर का मूल्यांकन कर.. रहा है।

रिजलैंड ने विश्वसनीय को निम्नलिखित प्रकार परिभाषित किया है-

“विश्वसनीयता उस विश्वास को प्रकट करती है जो की एक परीक्षा में स्थापित की जा, सकती है।”

शेक्सपीयर ने कहा है, “प्रकृति में जहाँ कहीं भी एकरूपता है, वहाँ विश्वसनीयता अवश्य समाहित हो जाता है।”

( 2 ) वैधता

“Validity means truthfulness of the test or purposiveness of a test.”

इसका आशय यह है कि यदि कोई परीक्षण वही मापन करता है जिसके मापन के लिए इसका निर्माण हुआ है तो वह परीक्षण वैध कहलाता है। इस प्रकार, वैधता गुणक यह सूचित करता है कि किसी परीक्षण ने वस्तुतः उसी विशेषता का मापन किस सीमा तक किया है जिसका मापन करने के लिये वह दावा करता है। उदाहरणार्थ, गणित की परीक्षा को वैध तभी कहेंगे जबकि उसके द्वारा हम गणित की योग्यता का ही मापन करें। इसके अतिरिक्त भाषा की योग्यता स्वच्छता अथवा सामान्य बुद्धि का नहीं।

गुलिकसन- ने निश्चित शब्दों में बैधता को इस प्रकार व्यक्त किया है

“It is the correlation of the test with some criteria.

किसी परीक्षण की भाँति कोई प्रश्न अपनी वैधता उसी सीमा तक खो देता है जिस सीमा तक वह अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल नहीं होता। कोई आइटम वैध नहीं कहलायेगा यदि वह पाठ्यक्रम से सम्बन्धित न हो जैसे- हम आमतौर पर कहते हैं कि यह पाठ्यक्रम के बाहर हैं अथवा इसमें कुछ ऐसी अवांछित सामग्री है जिसके मापन का हमारा उद्देश्य नहीं है।

सी० वी० गुड के अनुसार “ वैधता वह सीमा अथवा विस्तार है, जिस तक परीक्षा उसे मापती है, जिसे वह मापना चाहती है।”

रिजलैंड के अनुसार-” वैधता एक मापन-साधन को मापने वाला गुण होती है जिसे वह मापना चाहती है।”

ग्रीन महोदय ने वैधता को इस प्रकार परिभाषित किया है-

“वैधता उस मात्रा की एक अभिव्यक्ति का नाम है जहाँ तक एक परीक्षा उन गुणों, योग्यताओं कौशलों तथा सूचानाओं को मापती है जिन्हें मापने के लिए वह वाँछित होती हैं।”

( 3 ) वस्तुनिष्ठता

जिस परीक्षा पर परीक्षक का व्यक्तिगत प्रभाव नहीं पड़ता है, वह परीक्षा वस्तुनिष्ठ कहलाती है। किसी भी परीक्षा के लिये वस्तुनिष्ठ होना “बहुत जरूरी है, क्योंकि इसका विश्वसनीयता तथा वैधता पर बहुत प्रभाव पड़ता है। एक बार स्कोरिंग कुंजी बन जाने पर यह प्रश्न ही नहीं उठाना चाहिये कि प्रश्न अस्पष्ट तो नहीं है या उसके उत्तर के बारे में ठीक से निर्णय नहीं लिया जा सकता। अब मूल्यांकन कोई भी करे छात्र को सदैव उतने ही अंक मिलने चाहिये, इसी को वस्तुनिष्ठता कहते हैं। निबन्धात्मक परीक्षाओं में यह बात नहीं होती। इसमें कापियों का मूल्यांकन करते समय परीक्षक का व्यक्तिगत निर्णय अधिक महत्व रखता है। यही कारण है कि इन परीक्षाओं के स्थान पर हम नवीन परीक्षा प्रणाली को अधिक प्रयोग में लाते हैं।

( 4 ) विभेदीकरण

विभेदीकरण से तात्पर्य परीक्षण के उस गुण से होता है जिसके द्वारा पढ़ने में तेज, सामान्य एवं पिछड़े हुये छात्रों के मध्य काफी सीमा तक भेद किया जा सके।

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