वस्तुनिष्ठ परीक्षा से आप क्या समझते हैं?
निबन्धात्मक परीक्षाओं में व्याप्त कमियों, दोषों अथवा सीमाओं को देखते हुए, वस्तु परीक्षा को विकसित किया गया। वस्तुनिष्ठ परीक्षण को नवीन परीक्षण भी कहा जाता है। यद्यपि वस्तुनिष्ठ परीक्षण पूर्ण रूप से दोषमुक्त नहीं है, परन्तु फिर भी इस परीक्षण का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाने लगा है। यहाँ तक कि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में एवं अभ्यर्थियों के चयन हेतु वस्तुनिष्ठ परीक्षण पर आधारित पदों का प्रयोग किया जा रहा है। वर्तमान युग में, प्रत्येक शिक्षक के इसके गुण, स्वरुप एवं उद्देश्यों को जानना आवश्यक है।
वस्तुनिष्ठ परीक्षण का अर्थ
शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों की उपलब्धि एवं विकास के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने ‘ की दृष्टि से, वस्तुनिष्ठ परीक्षण महत्वपूर्ण है। इन परीक्षणों के द्वारा विद्यार्थियों की बुद्धि, अभिवृत्ति तथा ज्ञानार्जन के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है। वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का निर्माण सर्वप्रथम होरासमैन के द्वारा किया गया। होरासमैन के पश्चात् थार्नडाइक आदि विद्वानों ने भी विभिन्न प्रकार के वस्तुनिष्ठ परीक्षाणों का निर्माण किया। जे० एन० एम० राइस इलियट व स्टार्च के योगदान के फलस्वरूप इन परीक्षणों को विकसित किया गया।
मूल्यांकन की दृष्टि से एवं विद्यार्थियों के उत्तरों की जाँच करने में वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का विशेष महत्व है। इनके माध्यम से वैध एवं विश्वसनीय अंकों को प्राप्त किया जा सकता है। वस्तुनिष्ठ परीक्षण की एक विशेषता यह है कि इस परीक्षण के अन्तर्गत दिये गये प्रश्नों के उत्तरों को विभिन्न परीक्षकों द्वारा जँचवाया जाये तो प्रत्येक परीक्षक द्वारा उन उत्तरों पर समान अंक प्रदान किये जायेगें। दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि एक ही उत्तर का अंकन करने वाले विभिन्न परीक्षण मूल्यांकन करने में समान निष्कर्ष पर पहुँचते हैं।
डागलस व हॉलैण्ड के शब्दों में “वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का उद्देश्य, सापेक्ष रूप से – आत्मनिष्ठ तत्वों से प्रभावित हुए बिना, अंक एवं ग्रेड प्राप्त करना है। “
सी० वी० गुड के अनुसार ” वस्तुनिष्ठ परीक्षण प्रायः बहुविकल्पीय, मिलानात्मक रिक्त स्थान पूर्ति पद के प्रश्नों पर आधारित होता है और सही उत्तरों की कुंजी के द्वारा अंकित किया जाता है। यदि कोई उत्तर कुंजी के विपरीत है तो उसे अशुद्ध माना जाता है।
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