राजनीति विज्ञान / Political Science

भारत के प्रमुख राजनीतिक दल | Political Parties of India in Hindi

भारत के प्रमुख राजनीतिक दल
भारत के प्रमुख राजनीतिक दल

भारत के प्रमुख राजनीतिक दल

भारत के प्रमुख राजनीतिक दल निम्नलिखित है-

भारतीय साम्यवादी दल ( C.P.I. )

भारतीय साम्यवादी दल, जिसकी स्थापना 1922ई0 में हुई थी, भारत-चीन सीमा विवाद और अन्य दलीय नीतियों के सम्बन्ध में मत भिन्नता के कारण 1964 ई0 में विधिवत रूप दो दलों में बंट गया— भारतीय साम्यवादी दल (दक्षिणपंथी) और भारतीय साम्यवादी दल (वामपंथी या मार्क्सवादी)। इनमें से सामान्यतया प्रथम को साम्यवादी दल और द्वितीय को मार्क्सवादी दल कहा जाता है।

1978 ई0 में साम्यवादी दल और मार्क्सवादी दल में आपसी विरोध की स्थिति समाप्त हो गई और अब भारतीय साम्यवादी दल ने इस बात पर जोर देना शुरु किया कि देश के प्रगतशील वामपन्थी तत्वों के द्वारा मिलकर एक ऐसा राष्ट्रीय विकल्प तैयार किया जाना चाहिए जिसका उद्देश्य साम्प्रदायिकता, प्रतिक्रियावादिता और तानाशाही प्रवृत्तियों का विरोध करना हो।

इस नीति के परिणामस्वरूप भारतीय साम्यवादी दल और मार्क्सवादी दल एक-दूसरे के समीप आए और आगे के वर्षों में भी इनके बीच यह निकटता, लेकिन साथ ही दो पृथक-पृथक दलों की स्थिति बनी रही।

ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं और चौदाहवीं लोकसभा के चुनाव और भारतीय साम्यवादी दल – भारतीय साम्यवादी दल ने 1991-2003 के वर्षों में भारत सरकार की उदारवादी आर्थिक नीतियों का प्रबल विरोध किया और चुनाव के समय में जारी घोषणा पत्र में कहा गया कि पार्टी निर्बाध उदारीकरण की नीति का त्याग कर देगी, सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण रोक देगी और जीवन के लिए आवश्यक 14 वस्तुएं सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत लगभग 50 प्रतिशत कम मूल्य पर उपलब्ध कराएगी। चुनाव सुधार, भ्रष्टाचार निवारण, लोकपाल की स्थापना, अल्पसंख्यकों के जीवन तथा अधिकारों की रक्षा भूमि सुधार कानूनों की कमियों को दूर कर उन्हें लागू करने तथा केन्द्र में संसाधनों के अति केन्द्रीयकरण को रोकने आदि बातें कहीं गईं। उद्योगों के प्रबन्ध में मजदूरों की भागीदारी सुनिश्चित करने और भूमि, सम्पत्ति तथा जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक दिलाने की बात भी कहीं गई है।

चौदहवीं लोकसभा में भारतीय साम्यवादी दल ने मार्क्सवादी दल और अन्य वामपंथी दलों के साथ जुड़कर अपनी शक्ति में वृद्धि की है। अब इसे लोकसभा में 10 स्थान प्राप्त हैं। वामपंथी दलों ने सामूहिक रूप से निर्णय लिया कि केन्द्र सरकार में भागीदारी न करते हुए सरकार को बाहर से समर्थन दिया जाए। साम्यवादी दल इस निर्णय से जुड़ा है। वर्तमान में ए०बी० वर्धन इस दल के महासचिव हैं।

भारतीय साम्यवादी दल (मार्क्सवादी) या मार्क्सवादी दल

मार्क्सवादी दल पुराने साम्यवादी दल का अपेक्षाकृत उग्रवादी पक्ष है।

1966-99 के लोकसभा चुनाव (ग्यारहवीं बारहवीं और तेरहवीं लोकसभा) और मार्क्सवादी दल का चुनाव घोषणा पत्र – मार्क्सवादी दल ने इन लोकसभा चुनावों में जारी किए गए घोषणा पत्र में कहा कि वह सत्ता में आने पर 1991 में प्रारम्भ की गई निर्बाध उदारीकरण की नीति को त्याग देगी, सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण रोक देगी, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत जीवन के लिए आवश्यक 14 वस्तुएं 50 प्रतिशत कम कीमत पर उपलब्ध कराएगी, पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों को क्रियान्वित करेगी, संसद तथा विधानमण्डलों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित कराएगी, सभी गांवों में पेयजल उपलब्ध कराएगी, राष्ट्रीय बजट का 10 प्रतिशत और राज्य के बजट का 30 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करेगी, रोजगार तथा आवास को मूल अधिकार का दर्जा देगी था धर्मान्तरण कर ईसाई बने दलितों को अनुसूचित जातियों को मिलने वाली सुविधाएं प्रदान करेगी और जम्मू-कश्मीर को अधिकतम स्वायत्तता देगी।

चौदहवीं लोकसभा चुनाव के प्रसंग में नीति और चुनाव घोषणापत्र – एक लम्बे समय तक मार्क्सवादी दल भाजपा और कांग्रेस दोनों के प्रति ‘समान दूरी की नीति’ पर बल देता रहा है, लेकिन 1998 से मार्क्सवादी दल ने समान दूरी की नीति का त्याग करते हुए भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस को समर्थन देने की नीति घोषित कर दी तथा 1999 में ही यह भी घोषित कर दिया कि उन्हें ‘सोनिया गांधी के प्रधानमन्त्री पद ग्रहण करने पर कोई ऐतराज नहीं है। अप्रैल 2005 ई0 में सम्पन्न 18वीं कांग्रेस में पार्टी ने भाजपा सहित साम्प्रदायिक ताकतों को दुश्मन न० 1 घोषित करके और कांग्रेस को धर्मनिरपेक्ष बताकर अपनी राजनीतिक प्राथमिकताएं निर्धारित की हैं। पार्टी ने परोक्ष में यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों का समर्थन किया है।

चौदहवीं लोकसभा के प्रसंग में घोषित चुनाव घोषणापत्र में मार्क्सवादी दल ने तीन मुद्दों पर सबसे अधिक जोर दिया था प्रथम, राजग को केन्द्रीय सत्ता से दूर करना, द्वितीय, केन्द्र में धर्म-निरपेक्ष सरकार का गठन करना और तृतीय वाम दलों को शक्तिशाली बनाना।

तीनों ही मुद्दों पर वामपंथ के गढ़ तीन राज्यों पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में जनता ने माकपा के अनुकूल जनादेश दिया है। आज माकपा को लोकसभा में 43 स्थान प्राप्त हैं और वाम मोर्चा के कुल सदस्यों की संख्या 61 है। स्वतन्त्र भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। वामपंथी सरकार में भागीदारी नहीं कर रहे हैं, वे सरकार को ‘बाहर से समर्थन दे रहे हैं। 1997 तथा इसके पूर्व से ही मार्क्सवादी दल इस चेष्टा में संलग्न हैं कि अपने प्रभाव क्षेत्र को व्यापक किया जाय, लेकिन अब तक इसे इसमें कोई सफलता नहीं मिली है। 18वीं पार्टी कांग्रेस से लम्बे समय बाद दल के नेतृत्व में परिवर्तन आया है। अब वयोवृद्ध कामरेड सुरजीत के स्थान पर युवा प्रकाश भारत को दल का महासचिव बनाया गया है।।

नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी )

कांग्रेस से निकाले गए तीन नेताओं (पवार संगमा और तारिक अनवर) ने नई पार्टी का गठन कर अपनी पार्टी का नाम ‘नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी रखा है। कांग्रेस से निकाले गए इन नेताओं का मुख्य मुद्रा था। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री जैसे उच्च पदों पर आसीन होने का अधिकार केवल उन्हीं व्यक्तियों को होना चाहिए, जो भारत के ‘जन्मतः नागरिक (मूल नागरिक) हैं। नई पार्टी के गठन के समय कहा गया है कि ‘यह मुद्दों हमारी राष्ट्रीय पहचान और प्रतिष्ठा से जुड़ा है। इस पर किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता।’

पार्टी के राष्ट्रीय एजेण्डा (21 सूत्रीय उद्देश्यों) की कुछ अन्य प्रमुख बातें हैं भारतीय पहचान, भारतीय भावना और भारतीय प्रतिष्ठा को बनाए रखना, राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को मजबूत करना, लोकतन्त्र को मजबूत बनाना, सामाजिक न्याय के संघर्ष को जारी रखना और देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को बनाएं रखना आदि। यह भी कहा गया है कि उनकी पार्टी भाजपा और कांग्रेस से समान दूरी बनाकर चलेगी। पार्टी धर्मनिरपेक्ष दलों से सहयोग कर सकती है। शरद पवार इस पार्टी के अध्यक्ष हुए और संगमा तथा तारिक

अनवर महासचिव – तेरहवीं लोकसभा के चुनावों में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने चार राज्यों (महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और मेघालय) में चार प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त क राष्ट्रीय दल का दर्जा पाने की शर्त पूरी कर दी; अतः 1999 के अन्त में इस पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा दे दिया है। चुनाव आयोग ने

चौदहवीं लोकसभा के चुनाव दल की मूल नीति में परिवर्तन और दल में विभाजन- व्यावहारिक राजनीति की बाध्यताएं दलों को अपनी मूल नीति में परिवर्तन के लिए बाध्य कर देती हैं, यह बात 2004 ई० में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पर लागू हुई। 2004 ई० तक आते आते शरद पवार ने इस विचार को अपना लिया कि ‘हमारी पहली प्राथमिकता साम्प्रदायिकता का विरोध है, राजग को सत्ताच्युत किया जाना आवश्यक है। अतः विदेशी मुद्दे को एकतरफ करते हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबन्धन किया जाना चाहिए। मूल के शरद पवार द्वारा अपनाए गए इस दृष्टिकोण के कारण राकापा के संस्थापक तीन राजनीतिज्ञों में से एक पी०ए० संगमा राकापा से अलग हो गए। चुनाव आयोग ने राकापा का उत्तराधिकारी शरद पवार की पार्टी को माना और संगमा ने तृणमूल कांग्रेस के साथ जुड़कर ‘राष्ट्रवादी तृणमूल ने कांग्रेस’ बना ली।

शरद पवार और राकापा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन के आधार पर चुनाव लड़ने और लोकसभा के 9 स्थान प्राप्त किए हैं। राकापा कांग्रेस के नेतृत्व में गठित ‘संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन’ की सरकार में एक भागीदार है। सकापा का प्रभाव क्षेत्र महाराष्ट्र राज्य है।

बहुजन समाज पार्टी (बसपा)

इस पार्टी की स्थापना 14 अप्रैल, 1984 (अम्बेडकर जन्म दिवस) को उत्तर प्रदेश में हुई थी। उस समय से लेकर अब तक इस पार्टी के सबसे प्रमुख नेता हैं कांशीराम और मायावती । कांशीराम के अनुसार ‘हमारा उद्देश्य सार्वजनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में उच्च जातियों के प्रभुत्व को समाप्त करना और दलितों ( 85 प्रतिशत) को संख्या के अनुपात में सत्ता में भागीदारी दिलाना है।”

एक पार्टी के रूप में बसपा के पास न कोई श्रृंखलाबद्ध संगठनिक ढांचा है और न ही कोई संविधान। दलितों को आरक्षण नहीं, अनुकम्पा नहीं, वरन् सत्ता में भागीदारी चाहिए। मूल बात यह है कि अब तक दलितों और पिछड़ों को आरक्षण देकर उन्हें ऊंचा उठाने का प्रयास किया गया है, लेकिन कांशीराम ने इस वर्ग में शासक बनाने की ललक पैदा कर दी है।

बसपा में चुनावी नीति के रूप में एक परिवर्तन यह आया है कि 1998 तक कांशीराम और मायावती दलित हितों की पूरी प्रबलता के साथ नुमायन्दगी के अलावा सवर्ण, हिन्दू वर्ग का खुला अपमानजनक विरोध’ करने में जुटे हुए थे। लेकिन तेरहवीं लोकसभा के चुनाव तथा उसके बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव (फरवरी 2002) अभियान में कांशीराम और विशेषतया मायावती ने ‘सवर्ण हिन्दू वर्ग के प्रति खुले विरोध भाव’ का त्याग कर दिया। चुनाव अभियान में मायावती ने ‘सर्व समाज’ का नारा लगाया और विविध जातियों के बीच ‘जाति जोड़ों अभियान’ और ‘भाईचारा अभियान चलाने की बात कही। 2005 ई० में पार्टी तिलक (ब्राह्मण वर्ग) तराजू (वैश्य वर्ग) और तलवार (राजपूत वर्ग) इन तीनों जाति वर्गों को अपने निकट लाने के लिए अभियान चलाया तथा इसमें वह सफल रही।

बसपा अपनी राजनीतिक शक्ति में निरन्तर वृद्धि कर रही है। बारहवीं लोकसभा में इस 5 तेरहवीं लोकसभा में 14, चौदहवीं लोकसभा के चुनावों में 19 स्थान प्राप्त किए। पार्टी सरकार से बाहर रहकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार को अपना समर्थन दे रही है। पार्टी को उत्तर प्रदेश में ठोस समर्थन प्राप्त रहा है तथा मई 2007 ई० में उत्तर प्रदेश

विधानसभा के जो चुनाव हुए उनमें पार्टी ने 402 में से 206 स्थान (विधानसभा में स्पष्ट बहुमत) प्राप्त कर स्पष्ट कर दिया है कि वह उत्तर प्रदेश में अन्य सभी दलों से बहुत आगे है। पार्टी की सर्वोच्च और एकमात्र नेता मायावती समाज के सभी वर्गों-बहुसंख्यक समाज और अल्पसंख्यक समाज का समर्थन प्राप्त करने में सफल रही है। मायावती के नेतृत्व में पार्टी ने ‘बहुजन से सर्वजन’ की यात्रा तय कर ली है तथा आज पार्टी न केवल दलितों, वरन सभी वर्गों का विश्वास प्राप्त करने में सफल रही है। उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मध्य प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र राजस्थान तथा बिहार में भी पार्टी को कुछ समर्थन प्राप्त रहा है। आज सभी पक्षों की दृष्टि पन्द्रहवीं लोकसभा के चुनावों में पार्टी के कदमों और संभावित स्थिति पर है।

इसे भी पढ़े…

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment