राजनीति विज्ञान / Political Science

मुख्यमंत्री और राज्यपाल के मध्य सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।

मुख्यमंत्री और राज्यपाल के मध्य सम्बन्ध
मुख्यमंत्री और राज्यपाल के मध्य सम्बन्ध

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मुख्यमंत्री और राज्यपाल के मध्य सम्बन्ध

संविधान के अनुच्छेद 163 में कहा गया है कि, “राज्यपाल को उसके कार्यों के सम्पादन में सहायता और परामर्श देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होगी जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होगा।” किन्तु यह सब सैद्धान्तिक हैं। सरकार में मन्त्रिपरिषद् राज्य की वास्तविक कार्यपालिका सत्ता होती है। यद्यपि प्रशासन राज्य के नाम से ही किया जाता है किन्तु अधिकांश मामलों में वास्तविक निर्णय मन्त्रिपरिषद् द्वारा ही लिये जाते हैं। सामान्य परिस्थितियों में राज्यपाल से मन्त्रियों की मन्त्रणा के आधार पर ही कार्य करने की आशा की जाती है। यदि राज्यपाल ऐसी मन्त्रिपरिषद् की सलाह को अस्वीकार कर दें, जिसे विधानसभा का विश्वास प्राप्त है तो मन्त्रिपरिषद् विशेष स्वरूप त्याग-पत्र दे सकती है। ऐसा होने पर राज्यपाल कठिन स्थिति में पढ़ सकता है।

संविधान के अनुच्छेद 164 के अनुसार, “मुख्यमन्त्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा तथा मन्त्री राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त ही अपने पद धारण करेंगे।” परन्तु व्यवहार में वास्तविकता यह है कि राज्यपाल विधानसभा के बहुमत प्राप्त दल के नेता को ही मुख्यमन्त्री पद के लिए आमन्त्रित करता है और मुख्यमन्त्री अपने पद की शपथ ग्रहण करने के पश्चात् अन्य मन्त्रियों के नामों की सूची राज्य राज्यपाल को प्रस्तुत करता है। साधारणतया राज्यपाल उसी सूची को अपनी स्वीकृति प्रदान कर देता है। यदि राज्यपाल को उस सूची में सम्मिलित किसी नाम पर आपत्ति होती है तो वह मुख्यमन्त्री से उस नाम को सूची से निकाल देने के लिए अनुरोध कर सकता है। वैसे राज्यपाल को मुख्यमन्त्री की इच्छा के विरूद्ध किसी व्यक्ति के नाम को अस्वीकृत करने का अधिकार नहीं है।

यद्यपि राज्यपाल को संविधान द्वारा किसी भी मन्त्री को पदच्युत करने का अधिकार प्रदान किया गया है परन्तु व्यवहार में वह मुख्यमन्त्री के परामर्श के बिना ऐसा नहीं कर सकता। उसके द्वारा ऐसा किये जाने पर मुख्यमन्त्री अपने त्याग-पत्र द्वारा उसके सम्मुख संवैधानिक संकट उत्पन्न कर सकता है। अतएव कोई राज्यपाल मुख्यमन्त्री की इच्छा के विरूद्ध चलकर अपने लिए संवैधानिक संकट को निमन्त्रण नहीं देता। वह मन्त्रिपरिषद् के परामर्श को मानते हुए मात्र संवैधानिक प्रधान के रूप में ही कार्य करता है।

इस प्रकार राज्य प्रशासन की वास्तविक शक्ति राज्यपाल के हाथ में न होकर मन्त्रिपरिषद् अर्थात् मुख्यमन्त्री के हाथ में ही होती है। अतः राज्य के शासन का वास्तविक प्रधान मन्त्रिपरिषद् या मुख्यमन्त्री ही होता है।

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