मुख्यमंत्री के कार्य एवं शक्तियां
मुख्यमंत्री के कार्य एवं शक्तियां– राज्य की वास्तविक कार्यपालिका का प्रधान होने के कारण मुख्यमन्त्री ही राज्य के प्रशासन का सर्वाधिक शक्तिशाली पदाधिकारी होता है। इसलिए उसे राज्यरूपी नाव का चालक कहा जाता है। मुख्यमन्त्री की प्रमुख शक्तियां एवं कर्तव्य निम्नलिखित हैं :
( 1 ) मन्त्रिपरिषद् का गठन – मुख्यमन्त्री का सर्वप्रथम प्रमुख कार्य राज्य मन्त्रिपरिषद् का गठन करना होता है। मुख्यमन्त्री मन्त्रियों का चयन करके उनके नामों की सूची राज्यपाल को सौंप देता है, जिसे राज्यपाल स्वीकार कर लेता है। मुख्यमन्त्री ही मन्त्रियों की संख्या निर्धारित करता है। वह इस प्रकार मन्त्रिपरिषद् के गठन में पूरी तरह स्वतन्त्र है। वह विधानमण्डल के बाहर के व्यक्ति को भी मन्त्रि पद पर नियुक्त कर सकता है परन्तु ऐसे व्यक्ति को अपनी नियुक्ति की तिथि से 6 माह में राज्य विधानमण्डल के किसी सदन का सदस्य बन जाता अनिवार्य होता है. अन्यथा इसे अपने पद से त्याग-पत्र देना चाहता हैं। अतः मन्त्रिमण्डल के गठन के साथ-साथ मुख्यमन्त्री मन्त्रिमण्डल का नेतृत्व और संचालन भी करता है।
(2) विधानसभा एवं राज्य का नेतृत्व करना- मुख्यमन्त्री विधानसभा के बहुमत प्राप्त दल का नेता होने के कारण विधानसभा का भी नेता होता है। वह शासन की महत्वपूर्ण नीतियों की सदन में घोषणा करता है और अपने मन्त्रियों द्वारा दिये भाषणों का स्पष्टीकरण करता है। वह राज्यपाल को परामर्श देकर विधानसभा को भंग भी करा सकता हैं इसके अतिरिक्त वह राज्य का मार्गदर्शन भी करता है क्योंकि राज्य का वही वास्तविक शासन होता है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों तथा मुख्यमन्त्री सम्मेलनों में वह राज्य का प्रतिनिधित्व करता है।
( 3 ) मन्त्रियों में कार्य का विभाजन और उनमें परिवर्तन करना- मुख्यमन्त्री मन्त्रिपरिषद् का गठन करने के पश्चात् मन्त्रियों की योग्याताओं एवं अनुभव का ध्यान रखते हुए अपने सहयोगियों के बीच विभागों का बँटवारा करता है। मुख्यमन्त्री अपनी इच्छानुसार चाहे जब उनके विभागों में परिवर्तन भी कर सकता है और कोई भी मन्त्री परिवर्तन के परिणामस्वरूप मिले हुए विभागों को लेने से इन्कार नहीं कर सकता। इस प्रकार मन्त्रियों के बीच विभागों का बँटवारा एवं उनमें परिवर्तन का महत्वपूर्ण अधिकार मुख्यमन्त्री को ही प्रदान किया गया है।
( 4 ) मन्त्रियों के विभागों और कार्यों में हस्तक्षेप करना- यद्यपि सभी मन्त्री अपने विभागों से सम्बन्धित कार्यों को शासन की नीतियों के अनुरूप ही सम्पादित करते हैं परन्तु मुख्यमन्त्री आवश्यकतानुसार उनके कार्यों में हस्तक्षेप करके उन्हें दिशा निर्देश देता रहता है। मुख्यमन्त्री का वह एक महत्वपूर्ण कार्य है।
( 5 ) मन्त्रिपरिषद् की बैठकों की अध्यक्षता करना- मुख्यमन्त्री मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष होने के कारण मन्त्रिपरिषद् की बैठकों की अध्यक्षता करता है। मन्त्रिपरिषद् की बैठकें बुलाना और उनमें उत्पन्न हुए विवादों को हल करने के लिए निर्णय लेना भी मुख्यमन्त्री का कार्य – हैं। मन्त्रिपरिषद् के सभी निर्णय मुख्यमन्त्री से प्रभावित होते है।
( 6 ) मन्त्रियों और उनके विभागों में सामंजस्य स्थापित करना- कभी दो या दो से अधिक मन्त्रियों के बीच किसी विषय पर मतभेद उत्पन्न हो जाता है तो मुख्यमन्त्री मध्यस्थता करके उस मतभेद को समाप्त करता है। इसके अतिरिक्त शासन की नीतियों को क्रियान्वित करने के लिए विभिन्न विभागों में सामंजस्य स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य भी मुख्यमन्त्री ही करता है।
( 7 ) मन्त्रियों को पदच्युत करना- मुख्यमन्त्री न केवल अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करने का कार्य करता है वरन् किसी मन्त्री द्वारा शासन की नीतियों का विरोध करने, मुख्यमन्त्री का विश्वासपात्र न रहने तथा मुख्यमन्त्री या मन्त्री के मध्य मतभेद हो जाने की स्थिति में या अन्य कारणों से वह सम्बन्धित मन्त्री से त्याग-पत्र माँग सकता है और उस मन्त्री को त्याग पत्र देना पड़ता है। यदि मन्त्री त्याग-पत्र न दे तो मुख्यमन्त्री राज्यपाल से सिफारिश करके उसे अपदस्थ करा सकता है।
(8) मन्त्रिपरिषद् और राज्यपाल के मध्य कड़ी का काम करना अथवा सम्बन्ध स्थापित करना- संविधान के अनुसार मुख्यमन्त्री का यह दायित्व है कि वह मन्त्रिपरिषद् और राज्यपाल के बीच सम्पर्क स्थापित करे। वह मन्त्रिमण्डल के निर्णयों की सूचना राज्यपाल को देता है और राज्यपाल के विचार या आदेश मन्त्रिमण्डल तक पहुँचाता है। सामान्यतया कोई मन्त्री मुख्यमन्त्री को सूचित किये बिना राज्यपाल से नहीं मिल सकता है। इस प्रकार मुख्यमन्त्री, मन्त्रिपरिषद् और राज्य के मध्य एक सेतुफल का कार्य करता है।
( 9 ) राज्यपाल को परामर्श देना- राज्यपाल के स्वविवेक से निर्णय लेने सम्बन्धी विषयों छोड़कर अन्य सभी विषयों पर राज्यपाल को परामर्श देना मुख्यमन्त्री का संवैधानिक कर्तव्य है। मुख्यमन्त्री द्वारा दिये गये परामर्श को प्रायः राज्यपाल स्वीकार नहीं कर लेता है।
( 10 ) राज्य सरकार का प्रधान प्रवक्ता- मुख्यमन्त्री राज्य का प्रधान प्रवक्ता होता हैं। सरकार की ओर से अधिकृत घोषणा मुख्यमन्त्री द्वारा ही की जाती हैं। मुख्यमन्त्री ही राज्य सरकार का प्रधान प्रवक्ता एवं सरकार का संचालक होता हैं। मुख्यमन्त्री ही राज्य की आन्तरिक नीति निर्धारित करता है और सरकार की नीतियों की अधिकृत घोषणा भी करता है, जो मुख्यमन्त्री का महत्वपूर्ण कार्य है।
(11) राज्य की समस्त शासन व्यवस्था पर नियन्त्रण- मुख्यमन्त्री राज्य की शासन व्यवस्था पर सर्वोच्च और अन्तिम नियन्त्रण रखता है चाहे शान्ति और व्यवस्था का प्रश्न हो, चाहे कृषि, सिंचाई, स्वास्थ्य और शिक्षा के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण निर्णय लेना हो और चाहे कोई विकास सम्बन्धी प्रश्न हो, अन्तिम निर्णय मुख्यमन्त्री पर ही निर्भर करता है। मुख्यमन्त्री मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों को उनके विभागों के सम्बन्ध में आदेश दे सकता हैं। मन्त्रिपरिषद् के सदस्य विभिन्न विभागों के प्रधान होते हैं किन्तु अन्तिम रूप में यदि किसी एक व्यक्ति को राज्य के प्रशासन की अच्छाई या बुराई क लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है तो वह निश्चित रूप से मुख्यमन्त्री ही होता है।
राज्य के प्रशासन में मुख्यमन्त्री का स्थान
राज्य के प्रशासन में मुख्यमन्त्री का विशिष्ट स्थान है। केन्द्र में प्रधानमन्त्री की भाँति ही वह ऐसा प्रमुख अधिकारी है जो मन्त्रियों को नियुक्त व पदच्युत कर सकता है। वह सूर्य के समान है जिसके चारों और मन्त्री रूपी नक्षत्र घूमते रहते हैं। मन्त्रिपरिषद् का प्रधान होने के कारण राज्यपाल उसके परमर्शानुसार ही अन्य मस्त्रियों की नियुक्ति करता हैं। सभी मन्त्री उसकी इच्छा पर्यन्त ही अपने पद पर बने रह सकते हैं। कोई भी मन्त्री उसकी इच्छा के विरूद्ध कोई कार्य नहीं कर सकता। यदि वह ऐसा करता है तो उसे अपने पद से त्याग-पत्र देना पड़ता मुख्यमन्त्री अपनी मन्त्रिपरिषद् सहित विधानसभा के प्रति उत्तरदापी होता है। उसका त्याग-पत्र सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् का त्याग-पत्र समझा जाता है। इस प्रकार मुख्यमन्त्री मन्त्रिपरिषद् रूपी भवन की आधारशिला है। राज्य के प्रशासन में मुख्यमन्त्री के स्थान को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है:
(1) मुख्यमन्त्री विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता है। वह राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का परामर्श दे सकता है।
(2) मुख्यमन्त्री मन्त्रिपरिषद् के गठन, जीवन और मरण का केन्द्रबिन्दु है।
(3) मुख्यमन्त्री मन्त्रिमण्डल की बैठको की अध्यक्षता करता है। उसकी अनुपस्थिति में कोई अन्य वरिष्ठ मन्त्री मन्त्रिमण्डल की अध्यक्षता करता है।
(4) मुख्यमन्त्री मन्त्रियों के मध्य विभागों का बँटवारा करता है और अपनी इच्छानुसार मन्त्रियों के विभागों में जब चाहे परिवर्तन कर सकता है।
(5) मुख्यमन्त्री आवश्यकतानुसार अन्य मन्त्रियों के विभागों और उनके कार्यों में हस्तक्षेप कर सकता है। वह चाहे जिस विभागों को अपने हाथ में ले सकता है।
(6) मुख्यमन्त्री न केवल मन्त्रिमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता करता है वरन् मन्त्रिपरिषद् और राज्यपाल के मध्य एक सम्पर्क सूत्र स्थापित करने का कार्य करता है। मन्त्रिमण्डल के निर्णय की सूचना वह स्वयं राज्यपाल को देता है।
(7) मुख्यमन्त्री मन्त्रियों के पारस्परिक मतभेदों को दूर करके विभिन्न विभागों में पारस्परिक सामंजस्य बनाये रखता है।
(8) मुख्यमन्त्री शासन की नीति का प्रधान प्रवक्ता होता है। वह राज्य की आन्तरिक नीतियों का निर्धारण करता है।
(9) मुख्यमन्त्री के परामर्श पर ही राज्यपाल, राज्य के मताधिकार, लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति करता है।
(10) मुख्यमन्त्री अपने राज्य का नेतृत्व करता है और विधानमण्डल में शासन का प्रतिनिधित्व करते हुए शासकीय नीतियों की अधिकृत घोषणा करता है।
इस प्रकार मुख्यमन्त्री की स्थिति के सम्बन्ध में यह स्पष्ट है कि एक दलीय सरकार में मुख्यमन्त्री अधिक शक्तिशाली होता है। मुख्यमन्त्री राज्य के शासन का प्रधान है किन्तु किसी भी रूप में उसे राज्य के शासन का तानाशाह नहीं कहा जा सकता है। उसे राज्य का सर्वाधिक लोकप्रिय जननेता कहा जा सकता है।
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