विधानसभा व विधान परिषद की शक्तियों की तुलना
राज्य विधानमण्डल के इन दोनों सदनों की शक्तियों का तुलनात्मक अध्ययन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है:
साधारण विधेयक के सम्बन्ध में- यद्यपि साधारण विधेयक राज्य विधानमण्डल के किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जा सकते हैं तथा विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होनी चाहिए, परन्तु यदि विधानसभा द्वारा पारित होने के पश्चात् विधानपरिषद् द्वारा उसे अस्वीकृत कर दिया जाता है या परिषद् के समक्ष विधेयक रखे जाने की तिथि से तीन माह बाद तक विधेयक पारित नहीं किया जाता है या परिषद् विधेयक में ऐसे संशोधन करती है जो विधानसभा को स्वीकार्य नहीं होते, तो विधानसभा उस विधेयक को पुनः स्वीकृत करके विधानपरिषद् को भेजती है। तब यदि विधेयक को पुनः अस्वीकृत कर देती है अथवा विधेयक रखे जाने की तिथि से एक माह बाद तक विधेयक पास नहीं करती या परिषद् विधेयक में पुनः ऐसे संशोधन करती है जो विधानसभा को स्वीकार नहीं होते, तो विधेयक विधानपरिषद् द्वारा पारित किए जाने के बिना ही दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है। इस प्रकार विधानपरिषद् किसी साधारण विधेयक को केवल चार माह रोक सकती है। इस प्रकार साधारण विधेयक के सम्बन्ध में भी राज्यों में विधान परिषद् विधानसभा के समान नहीं, वरन् कम शक्तिशाली है।
वित्त विधेयकों के सम्बन्ध में- वित्त विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तावित – किए जा सकते हैं। विधानसभा द्वारा अस्वीकृत होने पर जब कोई वित्त विधेयक परिषद् को भेजा जाता है तथा परिषद् 14 दिन के भीतर विधेयक संशोधन सहित वापस कर देती है तो उन संशोधन को स्वीकार करने अथवा न करने का अधिकार विधानसभा को प्राप्त है। यदि विधानपरिषद् 14 दिन के भीतर विधेयक नहीं लौटाती, तो विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है। अनुदान मांगों पर मतदान भी केवल विधानसभा में ही होता है। इस दृष्टि से राज्य में विधानपरिषद् को वैसी ही स्थिति प्राप्त है, जैसी स्थिति केन्द्र में राज्यसभा की है।
कार्यपालिका पर नियन्त्रण के सम्बन्ध में- राज्य का मन्त्रिमण्डल भी केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल की भांति निम्न सदन अर्थात् विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। विधानपरिषद केवल प्रश्न और पूरक प्रश्न पूछने तथा स्थगन प्रस्ताव उपस्थित कर मन्त्रिमण्डल के कार्यों की जांच और आलोचना कर सकती है। मन्त्रिपरिषद् के विरूद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास कर उसे पदच्युत करने का कार्य विधानसभा द्वारा ही किया जा सकता है।
राष्ट्रपति के चुनाव में भी केवल विधानसभा के ही निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं। विधानसभा तथा विधानपरिषद् की शक्तियों के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि विधानसभा विधानपरिषद् की तुलना में अधिक शक्तिसम्पन्न है। यह स्वाभाविक और उचित भी है क्योंकि विधानसभा राज्य की जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होती है, जबकि विधानपरिषद् का चुनाव परोक्ष रूप से होता है।
कानून निर्माण की प्रक्रिया
साधारण विधेयकों के सम्बन्ध में- साधारण विधेयक मन्त्रिपरिषद् कि किसी सदस्य या विधानमण्डल के किसी भी सदस्य द्वारा विधानमण्डल के किसी भी सदन में रखे जा सकते हैं। यदि विधेयक मन्त्रिपरिषद् के किसी सदस्य द्वारा रखा जाता है तो इसे ‘सरकारी विधेयक’ (public bill) और यदि राज्य विधानमण्डल के किसी अन्य सदस्य द्वारा रखा जाता है तो इसे ‘निजी सदस्य विधेयक’ (Private member’s bill) कहा जाता है। राज्य विधानमण्डल को भी कानून निर्माण के लिए लगभग वैसी ही प्रक्रिया अपनानी होती है, जैसी प्रक्रिया संसद के द्वारा अपनायी जाती है। ऐसे विधेयक को कानून का रूप ग्रहण करने के लिए निम्नलिखित अवस्थाओं से गुजरना होता है :
( 1 ) विधेयकों की प्रस्तुति तथा प्रथम वाचन- सरकारी विधेयकों के लिए पूर्व सूचना (notice) देने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु निजी सदस्य विधेयकों के लिए एक महीने की पूर्व सूचना देना जरूरी है। सरकारी विधेयक साधारणतया सरकारी बजट में छाप दिया जाता है और इस पर किसी भी समय आवश्यकतानुसार विचार किया जा सकता है। ‘निजी सदस्य विधेयक’ को प्रस्तुत करने के लिए तारीख निश्चित कर दी जाती है। निश्चित तिथि को विधेयक पेश करने वाला सदस्य अपने स्थान पर खड़ा होकर उस विधेयक को पेश करने के लिए सदन से आज्ञा मांगता है और उसके बाद विधेयक के शीर्षक को पढ़ता है। यदि विधेयक बहुत महत्वपूर्ण है तो विधेयक पेश करने वाला सदस्य विधेयक पर एक संक्षिप्त भाषण भी दे सकता है। यदि उस सदन में उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्य बहुमत से विधेयक का समर्थन करते है, तो विधेयक सरकारी गजट में छाप दिया जाता है। यही विधेयक का प्रथम वाचन समझा जाता है।
( 2 ) द्वितीय वाचन- प्रथम वाचन के बाद विधेयक प्रस्तावित करने वाला सदस्य, प्रस्ताव रखता है कि उसके विधेयक का द्वितीय वाचन किया जाए। इस अवस्था में विधेयक के सामान्य सिद्धान्तों पर ही वाद-विवाद होता है, उसकी एक-एक धारा पर बहस नहीं होती है। जब इस प्रकार के वाद-विवाद के बाद कोई विधेयक पारित हो जाता है, तो उसे ‘प्रवर समिति’ (Select Committee) के पास भेज दिया जाता है।
( 3 ) प्रवर समिति अवस्था- दूसरे वाचन के बाद विवादपूर्ण विधेयकों को प्रवर समिति के पास भेज दिया जाता है। इसमें विधानमण्डल 25 तक सदस्य होते है। इस अवस्था में विधेयक की प्रत्येक धारा पर गहन विचार किया जाता है। अनेक प्रकार के सुझाव इस अवस्था में रखे जाते हैं और अन्त में एक प्रतिवेदन तैयार किया जाता है। इस प्रतिवेदन को सदन के सम्मुख पेश किया जाता है।
( 4 ) प्रतिवेदन (Report) अवस्था – अब प्रवर समिति द्वारा प्रस्तुत किए गये प्रतिवेदन पर सदन के द्वारा विचार किया जाता हैं। इस अवस्था में सदन के सदस्यों को भी अपने संशोधन और सुझाव प्रस्तुत करने का अधिकार होता है। समिति द्वारा रखे गये प्रत्येक सुझाव पर सदन में मतदान होता है। यदि कोई सुझाव पास न हो तो मूल धारा का मतदान लिया जाता है। इस तरह विधेयक की प्रत्येक धारा पर विचार और वाद-विवाद करके उसे स्वीकार किया जाता है। विधि निर्माण की समस्त प्रक्रिया में यह अवस्था सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती हैं।
(5) तृतीय वाचन- प्रतिवेदन अवस्था की समाप्ति के कुछ समय बाद उसका – तृतीय वाचन प्रारम्भ होता है। इस अवस्था में विधेयक के साधारण सिद्धान्तों फिर से बहस की जाती है और विधेयक में भाषा सम्बन्धी सुधार किए जाते हैं। इस अवस्था में विधेयक की धारा में काई परिवर्तन नहीं किया जा सकता, या तो सम्पूर्ण विधेयक को स्वीकार कर लिया जाता है या अस्वीकार। इसके बाद मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा स्वीकृत होने पर इसे सदन द्वारा स्वीकृत समझा जाता है।
विधेयक दूसरे सदन में- एक सदन द्वारा विधेयक स्वीकार कर लिए जाने पर, – जिन राज्यों में विधानमण्डल का एक ही सदन है, वहां विधेयक राज्यपाल के पास भेज दिया जाता है और जिन राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं, वहां विधेयक दूसरे सदन में भेज दिया जाता है। द्वितीय सदन में भी विधेयक को उन्हीं अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है, जिन अवस्थाओं से होकर विधेयक प्रथम सदन से गुजरा था। यदि विधेयक विधानसभा द्वारा पारित होने के पश्चात् विधानपरिषद् द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाता है या परिषद् तीन महीने तक विधेयक पर विचार पूरा कर पाती या परिषद् में ऐसे संशोधन करती है जो विधानसभा को स्वीकार्य नहीं होते तो विधानसभा उस विधेयक को पुनः स्वीकृत करके परिषद् के पास भेजती है। तब यदि परिषद् पुनः विधेयक को अस्वीकृत कर देती है अथवा दुबारा विधेयक पास नहीं करती या परिषद् विधेयक में पुनः ऐसे संशोधन करती है जो विधानसभा को स्वीकार्य नहीं होते तो विधेयक विधानपरिषद् द्वारा पारित किए जाने के बिना ही दोनों सदनों द्वारा पास हुआ समझ लिया जाता है।
राज्यपाल की स्वीकृति- विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने पर राज्यपाल की – स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राज्यपाल या यतो उस विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे देता है अथवा कुछ प्रस्तावों सहित विधानमण्डल के पास दुबारा भेज सकता है। यदि राज्य विधानमण्डल उस विधेयक को राज्यपाल द्वारा सुझाए गए संशोधनों सहित या रहित रूप से दुबारा पास कर देता है तो राज्यपाल को विधेयक पर अपनी स्वीकृति देनी होगी। राज्यपाल की स्वीकृति के बाद यह विधेयक कानून बन जाएगा। अनेक बार राज्यपाल कुछ विशेष प्रकार के विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज देता है, ऐसे विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करने के बाद कानून बन जाते हैं।
इसे भी पढ़े…
- राज्यपाल की शक्तियां और कार्य क्या है?
- राज्य शासन में राज्यपाल की स्थिति का वर्णन कीजिए।
- राज्य शासन क्या है? राज्य शासन में राज्यपाल की नियुक्ति एवं पद का उल्लेख कीजिए।
- राज्यपाल की शक्तियां | राज्यपाल के स्वविवेकी कार्य
- धर्म और राजनीति में पारस्परिक क्रियाओं का उल्लेख कीजिए।
- सिख धर्म की प्रमुख विशेषताएं | Characteristics of Sikhism in Hindi
- भारतीय समाज में धर्म एवं लौकिकता का वर्णन कीजिए।
- हिन्दू धर्म एवं हिन्दू धर्म के मूल सिद्धान्त
- भारत में इस्लाम धर्म का उल्लेख कीजिए एवं इस्लाम धर्म की विशेषताएँ को स्पष्ट कीजिए।
- इसाई धर्म क्या है? ईसाई धर्म की विशेषताएं
- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
- मानवाधिकार की परिभाषा | मानव अधिकारों की उत्पत्ति एवं विकास
- मानवाधिकार के विभिन्न सिद्धान्त | Principles of Human Rights in Hindi
- मानवाधिकार का वर्गीकरण की विवेचना कीजिये।