राज्य विधानमंडल की रचना
संविधान के द्वारा भारत के प्रत्येक राज्य में एक विधानमण्डल की व्यवस्था की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 168 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमण्डल होगा जो राज्यपाल तथा कुछ राज्यों में दो सदन में तथा कुछ में एक सदन में मिलकर बनेगा। जिन राज्यों में दो सदन होंगे, उनके नाम क्रमशः विधानसभा और विधान परिषद् होंगें। प्रत्येक राज्य में जनता द्वारा वयस्क रूप से निर्वाचित प्रतिनिधियों का एक सदन होता है, विधानमण्डल के इस प्रथम सदन को विधानसभा कहते हैं । जिन राज्यों में विधानमण्डल का दूसरा सदन है, उसे ‘विधानपरिषद्’ कहते हैं। राज्यों का विधानमण्डल एकसदनात्मक हो या द्विसदनात्मक, इस बात के निर्णय का अधिकार राज्य में निर्वाचित प्रतिनिधियों और भारतीय संसद को ही है। संविधान के अनुच्छेद 169 के अनुसार, संसद को अधिकार प्राप्त है कि राज्यों में विधानपरिषद् की स्थापाना अथवा अन्त कर है, यदि सम्बन्धित राज्य की विधानसभा अपने कुछ बहुमत व उपस्थित और वरदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पास करें। वर्तमान समय में भारतीय संघ के केवल 5 राज्यों : उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, कर्नाटक और बिहार राज्यों में द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका व शेष राज्यों में एकसदनात्मक व्यवस्थापिका है।
विधानपरिषद् वाले 5 राज्यों में राज्य विधानमण्डल में निम्न अंग है :
(1) राज्यपाल (Governor )
(2) विधानसभा (Legislative Assembly ), जिसे प्रथम या निम्न सदन कहते हैं।
(3) विधान परिषद् (Legislative Council ), जिसे द्वितीय या उच्च सदन कहते हैं।
(1) सदस्य संख्या संविधान में राज्य की विधानसभा के सदस्यों की केवल न्यूनतम और अधिकतम संख्या निश्चित की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 170 के अनुसार राज्य की विधानसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 और न्यूनत संख्या 60 होगी। चुनाव के लिए प्रत्येक राज्य को भौगोलिक आधार पर अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित किया जाता है कि विधानसभा का प्रत्येक सदस्य कम से कम 75 हजार जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करें। इस नियम का अपवाद केवल असम के स्वाधीन जिले शिलांग की छावनी और नगरपालिका के क्षेत्र, सिक्किम और मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश है।
अनुच्छेद 170 (3) में कहा गया है कि प्रत्येक जनगणना विधानसभा की सदस्य संख्या पुनः निश्चित की जाएगी। वर्तमान समय में विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं की सदस्य संख्या अग्र तालिका में बतायी गयी है :
84वें संवैधानिक संशोधन 2002 (91 में संविधान संशोधन विधेयक) के आधार पर राज्य विधानसभाओं में स्थानों (सीटों) की संख्या 2026 ई. तक यथावत् रखने का निर्णय लिया गया है।
शेष संघीय क्षेत्रों में विधानसभाएं नहीं हैं वरन् उन्हें केवल लोकसभा में ही प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है। संघीय क्षेत्रों की विधानसभाओं की शक्तियां राज्य की विधानसभाओं की शक्तियों से कम है।
सदस्यों की योग्यताएं और कार्यकाल
विधानसभा की सदस्यता के लिए व्यक्ति को निम्न योग्यताएं प्राप्त होनी चाहिए :
(1) वह भारत का नागरिक हो।
(2) उसकी आयु कम से कम 25 वर्ष हो ।
(3) भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन लाभ का पद धारण किये हुए न हो।
(4) वह संसद और राज्य के विधामण्डल द्वारा निर्धारित शर्तों की पूर्ति करता हो ।
कोई भी व्यक्ति राज्य के विधानमण्डल के तीनों सदनों का एक साथ सदस्य नहीं हो सकता। न ही वह दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डलों का सदस्य हो सकता है। कोई भी सदस्य यदि विधानमण्डल के किसी सदन की बैठक में 60 दिन तक सदन की आज्ञा बिना अनुपस्थित रहता है, तो सदन उसका स्थान रिक्त घोषित कर सकता है।
राज्य विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष है। राज्यपाल द्वारा इसे समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है, परन्तु यदि संकटकाल की घोषणा प्रवर्तन में हो, तो संसद विधि द्वारा विधानसभा का कार्यकाल बढ़ा सकती है, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगा तथा किसी भी अवस्था में संकटकाल की घोषणा का अन्त हो जाने के पश्चात् 6 माह की अवधि से अधिक नहीं होगा।
विधानसभा की गणपूर्ति (Quorum) 10 या कुल सदस्य संख्या का 100 जो भी अधिक हो, वही होगी।
विधानपरिषद्
सदस्य संख्या का गठन- राज्य के विधानमण्डल का द्वितीय या उच्च सदन विधानपरिषद् इस दृष्टि से स्थायी संस्था है कि पूरी विधानपरिषद् कभी भी भंग नहीं होती और इसे अवधि के पूर्व भंग नहीं किया जा सकता। विधानपरिषद् के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष है। प्रति दो वर्ष पश्चात् एक-तिहाई (1/3) सदस्य अपना पद छोड़ देते हैं और उनके स्थान के लिए नये निर्वाचन होते है। संविधान में व्यवस्था की गयी है कि प्रत्येक राज्य की विधानपरिषद् के सदस्यों की संख्या उनकी विधानसभा के सदस्यों की संख्या के 1/3 से अधिक न होगी, पर साथ ही यह भी कहा गया है कि किसी भी दशा में उसकी सदस्य संख्या 40 के कम नहीं होनी चाहिए। जम्मू कश्मीर इस सम्बन्ध में अपवाद है।
विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में सदस्य संख्या
क्र. सं. | राज्य/केन्द्रशासित प्रदेश | सदस्य संख्या |
---|---|---|
1. | उत्तर प्रदेश | 403 |
2. | पश्चिम बंगाल | 294 |
3. | महाराष्ट्र | 288 |
4. | बिहार | 243 |
5. | तमिलनाडु | 234 |
6. | मध्य प्रदेश | 230 |
7. | कर्नाटक | 224 |
8. | राजस्थान | 200 |
9. | गुजरात | 182 |
10. | आंध्र प्रदेश | 175 |
11. | ओडिशा | 147 |
12. | केरल | 140 |
13. | असम | 126 |
14. | तेलंगाना | 119 |
15. | पंजाब | 117 |
16. | छत्तीसगढ़ | 90 |
17. | हरियाणा | 90 |
18. | झारखण्ड | 81 |
19. | जम्मू एवं कश्मीर | 76* |
20. | उत्तराखण्ड | 70 |
21. | दिल्ली | 70 |
22. | हिमाचल प्रदेश | 68 |
23. | अरुणाचल प्रदेश | 60 |
24. | मणिपुर | 60 |
25. | मेघालय | 60 |
26. | नागालैंड | 60 |
27. | त्रिपुरा | 60 |
28. | गोवा | 40 |
29. | मिजोरम | 40 |
30. | सिक्किम | 32 |
31. | पुदुचेरी | 30 |
विधानपरिषद् के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है तथा उसके कुछ सदस्यों को मनोनीत किया जाता है। निम्नलिखित निर्वाचक मण्डल विधानपरिषद् का चुनाव करते है :
(1) स्थानीय संस्थाओं का निर्णायक मण्डल- परिषद् की कुल सदस्य संख्या – का यथाशक्य निकटतम (As nearly as may be) एक-तिहाई उस राज्य की नगरपालिकाओं, जिला परिषदों और ऐसी अन्य स्थानीय संस्थाओं द्वारा चुना जाता है जैसा कि संसद कानून द्वारा निर्धारित करें।
(2) विधानसभा का निर्णायक मण्डल- कुल संख्या के यथाशाक्य निकटतम 1/3 सदस्यों का निर्वाचन विधानसभा के सदस्य ऐसे व्यक्तियों से करते हैं, जो विधानसभा के सदस्य न हों।
( 3 ) स्नातकों (Graduates) का निर्वाचक मण्डल- यह ऐसे शिक्षित व्यक्तियों का निर्वाचक मण्डल होता है तो इस समय राज्य में रहते हों, जिन्होंने स्नातक स्तर की परीक्षा पास कर ली हो और जिन्हें वह परीक्षा पास किये हुए 3 वर्ष से अधिक हो चुके हों। यह निर्वाचक मण्डल कुछ सदस्यों के यथाशक्य निकटतम 1/12 भाग को चुनता है।
(4) अध्यापकों का निर्वाचक मण्डल – इसमें वे अध्यापक होते हैं जो राज्य के अन्तर्गत किसी माध्यमिक पाठशाला या इससे उच्च शिक्षण संस्था में 3 वर्ष से पढ़ा रहे हों। यह निर्वाचक मण्डल कुल सदस्यों के यथाशाक्य निकटतमक 1/12 भाग को चुनता है।
राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्य- उपर्युक्त प्रकार के कुल संख्या के लगभग 5/6 सदस्यों को तो निर्वाचित किया जाता है, शेष अर्थात् कुल संख्या के लगभग 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा उन व्यक्तियों में से मनोनीत किये जाते हैं जो साहित्य, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष रूचि रखते हों।
निर्वाचक मण्डलों द्वारा विधानपरिषद् के सदस्यों का यह निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत पद्धति के अनुसार होता है। विधानसभा के निर्वाचक मण्डल के अतिरिक्त अन्य तीनों निर्वाचक मण्डल संसद कानून द्वारा निश्चित करती है।
वर्तमान समय में भारतीय संघ के 6 राज्यों में विधानपरिषदें हैं इन विधानपरिषदों की सदस्य संख्या इस प्रकार है: उत्तर प्रदेश 100, बिहार 75, महाराष्ट्र 78, कर्नाटक 63, जम्मू कश्मीर 36 और आन्ध्र प्रदेश 90।
विधानपरिषद की सदस्यता के लिए भी वे ही योग्यताएं हैं जो विधानसभा की सदस्यता के लिए हैं, अन्तर केवल यह है कि विधानपरिषद् की सदस्यता के लिए आयु 30 वर्ष होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त निर्वाचित सदस्य को उस राज्य की विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्र का निर्वाचक होना चाहिए एवं नियुक्त किये जाने वाले सदस्य को उस राज्य का निवासी होना चाहिए जिसकी विधानपरिषद् का वह सदस्य होना चाहता है।
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