आतंकवाद के प्रमुख कारण
विश्व समुदाय आतंकवाद से अत्यधिक त्रस्त है तथा विभिन्न देशों में आतंकवाद के पृथक्-पृथक् कारण हैं। आतंकवाद तथा आतंकवादी गतिविधियों के अनेक कारक हैं। इनमें से प्रमुख हैं- आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक, कानूनी, न्यायिक तथा पुलिस से सम्बन्धित ।
1. आर्थिक कारण- आर्थिक समस्याएँ केवल व्यक्ति की आर्थिक ही नहीं अपितु उसकी मानसिक स्थिति को भी प्रभावित करती हैं। सम्पत्ति का असमान वितरण होने के कारण आतंकवादी इसे प्रमुख मुद्दा बना लेते हैं। आर्थिक दृष्टि से शोषित वर्ग इनके बहकावे में आ जाता है तथा अशिक्षित एवं अज्ञानी लोग यहाँ तक कि शिक्षित लोग भी बेरोजगारी से तंग आकर आतंकवादी गतिविधियों से संलग्न हो जाते हैं।
2. सामाजिक-सांस्कृति कारण- सांस्कृतिक परिवर्तन के अनुपात में सामाजिक जीवन में भी परिवर्तन आता है। यदि सामाजिक जीवन में द्रुतगति से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों का लाभ समाज में किसी एक ही वर्ग को प्राप्त होता है इससे समाज के दूसरे वर्ग अविकसित रह जाते हैं। अतएव समाज में असंतुलन स्थापित हो जाता इससे समाज के विभिन्न वर्गों में संघर्ष की स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
संस्कृति के प्रमुख तत्त्व होते हैं उनका अतीत, भाषा, रूढ़ियाँ तथा परम्पराएँ, कला, साहित्य जो कि किसी देश में एकता तथा अखण्डता की स्थापना करते हैं। इन तत्त्वों में यदि एकता के बंधन टूटने लगते हैं तो परिणाम प्रतिकूल होते हैं।
उपर्युक्त असमानताओं के परिणामस्वरूप अराजकता, हिंसा की घटनाएँ घटित होती है जिससे सामाजिक एकता तथा समरसता समाप्त हो जाती है।
यह एक तथ्य है कि सत्ता के गलियारे में शोषित वर्ग की आवाज की कोई चिन्ता नहीं की जाती और जब तक विस्फोट न हो शासक आँखें मूंदे रहते हैं। इस प्रकार समस्त परिस्थितियों में आतंकवादी सही अथवा गलत रूप में सामान्य जनता को यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न करते हैं कि वे आतंकवादी नहीं अपितु अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वाले जुझारू लड़ाके हैं और जब कभी आतंकवादी ऐसा विश्वास दिलाने में सफल हो जाते हैं उनकी शक्ति में अतिशय वृद्धि हो जाती है।
3. मनोवैज्ञानिक कारण- यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि वे लोग जो स्वयं को सही, श्रेष्ठ, सकारात्मक, सृजनशील व्यक्ति के रूप में अभिव्यक्त नहीं कर पाते वे अपनी चिन्ताओं, संघर्षमय तथा खीज को हिंसक तथा विध्वंसकारी गतिविधियाँ द्वारा प्रकट करने का प्रयास करते हैं।
वे लोग जो अल्पसंख्यक हैं यह अनुभव करने लगते हैं कि उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। वे यह सोचने लगते हैं कि जो शासनकर्त्ता हैं वे अन्यायी, पूर्वाग्रह से पीड़ित तथा उनके विरोधी हैं। यही कारण है कि उनमें अल्पसंख्यकों के प्रति अविश्वास की भावना है। उनका व्यवहार अत्यधिक कठोर तथा आक्रामक हो जाता है तथा वे आतंकवादी गतिविधियों में तीव्र हो जाते हैं।
4. नवयुवक वर्ग में बेरोजगारी तथा संतोष- शिक्षित बेरोजगारी ने नवयुवकों को आतंकवाद की ओर आकर्षित करने का कार्य किया है। जब शिक्षित नवयुवक को यह अनुभव होता है कि योग्यता के बावजूद भी नौकरी प्राप्त कर लेना उसके लिए कठिन कार्य है। इसके विपरीत तस्कर तथा मादक पदार्थों के व्यापारी विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं तो वे इन कार्यों की ओर आकर्षित होते हैं। तथ्य तो यह है कि इन व्यवसायों का आतंकवाद से सीधा सम्बन्ध है। हैरोइन तथा अन्य नशीले पदार्थों के व्यसन से त्रस्त नवयुवक आतंकवादियों के हाथ की कठपुतली बन जाते हैं तथा आतंकवादी गतिविधियों में सम्मिलित हो जाते हैं।
5. अवैध शस्त्र निर्माण एवं शस्त्र भण्डार- आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि का प्रमुख कारण यह है कि अचानक तथा आधुनिकतम अवैध रूप से शस्त्र प्राप्त कर लेना बहुत आसान हो गया है।
6. शासक और शासित वर्ग में संवादहीनता तथा शासक वर्ग की संवेदनहीनता- लोकतंत्र में शासकों तथा शासितों के बीच जीवन्त सम्पर्क भी आवश्यक होता है। यह देखा गया है कि विशाल जनसमूह यदि कोई मांग शान्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करता है तो उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता और यदि एक छोटा सा समूह भी यदि आतंकवादी भाषा में कोई मांग प्रस्तुत करता है तो उसकी पूर्ति तत्काल कर दी जाती है। शासन के इस दृष्टिकोण के कारण लोग शान्तिपूर्ण वैधानिक मार्ग से हटकर आतंकवादी साधनों का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।
7. कानून तथा न्याय व्यवस्था की कमियाँ- वर्तमान कानून व्यवस्था अत्यधिक जटिल एवं न्याय व्यवस्था अत्यधिक विलम्बकारी है। साधन सम्पन्न अपराधी के लिए कानून तथा न्याय की शिकायतों से मुक्ति पा लेना बहुत आसान है। यह स्थिति उग्र स्वभाव वाले असंतुष्ट नवयुवकों को आतंकवाद का मार्ग अपनाने से नहीं रोक पाती। वर्तमान में विश्व के अधिकांश देश यहाँ तक कि अमेरिका आतंकवाद से पीड़ित है। ऐसी स्थिति में होना यह चाहिए कि सम्पूर्ण विश्व की सरकारों को आतंकवाद के विरुद्ध एक जुट होकर खड़ा हो जाना चाहिए तथा दानवों के दमन के लिए पारस्परिक सहयोग करना चाहिए किन्तु स्थिति इसके विपरीत है अनेक देशों की सरकारें आतंकवादियों को सैनिक प्रशिक्षण, शस्त्र सामग्री, शरण स्थलों आदि की सहायता देकर आतंकवाद को प्रोत्साहित कर रही हैं।
आतंकवाद की विशेषताएं
1. आतंकवाद अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हिंसा और बल प्रयोग में विश्वास रखता है।
2. आतंकवाद का उद्देश्य हिंसा के द्वारा सामान्य जनता में भय और असुरक्षा की भावना उत्पन्न करता है।
3. असुरक्षा की भावना के द्वारा आतंकवाद समाज में अस्थिरता उत्पन्न करना चाहता है जिससे शासन के प्रति अविश्वास की भावना उत्पन्न हो सके।
4. आतंकवाद राजनीतिक उद्देश्यों अथवा कार्यों की पूर्ति की एक पद्धति है।
5. आतंकवाद की पद्धति असंवैधानिक, असामाजिक एवं अवांछनीय है ।
6. आतंकवादी क्रियाओं का लक्ष्य भय, आतंक एवं प्रभाव उत्पन्न करना होता है।
7. आतंकवादी क्रियाएँ सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित होती हैं।
8. आतंकवाद किसी संगठन अथवा राष्ट्र द्वारा आयोजत ऐसी हिंसा, जान-माल की क्षति या उत्पीड़न है जो किसी राजनीतिक या अर्द्धराजनीतिक उद्देश्य से किया जाता है।
9. आतंकवाद की प्रकृति व्यक्तिगत एवं सामूहिक हिंसा से भिन्न होती है।
10. आतंकवाद आंतरिक एवं बाह्य दोनों तरह का हो सकता है।
आतंकवाद के प्रकार
विद्वानों ने इसे तीन प्रमुख वर्गों में विभाजित किया है-
(1) राज्य द्वारा आयोजित आतंकवाद – राज्य द्वारा आयोजित आतंकवाद वह है जो एक देश द्वारा किसी दूसरे देश को कमजोर बनाने हेतु आयोजित किया जाता है। साधारणतया एक कमजोर देश द्वारा अपने से अधिक शक्तिशाली देश के विरुद्ध ऐसे सहारा लिया जाता है।
(2) अलगाववादी गुट द्वारा आयोजित आतंकवाद – अलगाववादी गुट द्वारा आयोजित आतंकवाद देश के ही किसी भाग पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने हेतु किसी ऐसे गुट या संगठन द्वारा फैलाया जाता है जिसे चुनाव में जनता का समर्थन प्राप्त नहीं हो पाता।
(3) आर्थिक आतंकवाद- आर्थिक आतंकवाद का उद्देश्य किसी क्षेत्र में आतंकवाद फैलाकर इस तरह अव्यवस्था फैलाना है जिससे कोई देश या संगठन मादक पदार्थों की तस्करी या दूसरी कानून-विरोधी गतिविधियों के द्वारा आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकें।
आतंकवाद के दुष्परिणाम
आतंकवाद के दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-
(1.) जनसाधारण के जान-माल की क्षति- आतंकवाद का एक प्रमुख दुष्परिणाम जनसाधारण के जान-माल का भारी नुकसान होना है। बम्बई में 12 मार्च, 1993 को आतंकवादियों ने तीन घण्टों के अन्दर 11 स्थानों पर जो बम विस्फोट किये, उनमें 235 व्यक्तियों की मृत्यु हुई तथा -1,200 से अधिक लोग घायल हो गये। अनेक प्रमुख व्यापारिक प्रतिष्ठानों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ। इसी तरह कलकत्ता में 1993 में होने वाले बम विस्फोट में 86 लोग मारे गये। कश्मीर, असम, नागालैण्ड, मिजोरम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के साथ बिहार में भी आतंकवादी घटनाओं के कारण होने वाले जान-माल के नुकसान को सरलता से समझा जा सकता है।
( 2 ) जनता में असुरक्षा की भावना- आतंकवाद से किसी सामाजिक व्यवस्था को पूरी तरह तोड़ा नहीं जा सकता है और न ही आतंकवादियों द्वारा कीद जाने वाली हत्याओं से राजनीतिक ढाँचे में आमूल परिवर्तन होता है। यह सार्वजनिक जीवन को असुरक्षित बनाने में बड़ी भूमिका निभाती है। आतंकवाद बढ़ने से अधिकांश व्यक्तियों का सरकार और प्रशासन के प्रति अविश्वास बढ़ने लगता है। कानून और व्यवस्था का प्रभाव कम होने से अपराधी और अराजक तत्त्वों को अपने स्वार्थ पूरा करने के लिए अवसर मिल जाते हैं।
( 3 ) सत्ता का अनुचित प्रयोग- जब कोई लोकतंत्र दुर्बल होता है तो सत्ता में बने रहने के लिए शासक वर्ग द्वारा आतंकवादी संगठनों से साठ-गाँठ या इस तरह समझौता किया जाने लगता है जिससे जनता के बढ़ते हुए असंतोष को दबाए रखा जा सके। अनेक राजनीतिक दल वोट पाने के लिए उन समुदायों का समर्थन करने लगते हैं जिनकी आतंकवाद में विशेष भूमिका होती है। उदाहरण के लिए पाकिस्तान सैनिक सरकारों ने सत्ता पर कब्जा करने और बाद में अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए लादेन के अलकायदा तथा तालिबानी आतंकवादी संगठनों की सहायता ली तथा इसके बदले में उन्हें हथियारों तथा धन से भारी मदद दी। इस प्रकार सत्ता का अनुचित प्रयोग किया गया।
(4) वैयक्तिक स्वतंत्रता का उल्लंघन- वैयक्तिक स्वतंत्रता लोगों का मौलिक अधिकार है। आतंकवाद वैयक्तिक स्वतंत्रता का विरोधी है। किसी समाज में जब आतंकवाद में वृद्धि होती है तो अधिकांश लोगों को अपनी इच्छा के विरुद्ध आतंकवादी संगठनों द्वारा दिए गये निर्देशों का पालन करना आवश्यक जाता है। आतंकवादियों द्वारा औद्योगिक प्रतिष्ठान तथा सम्पन्न लोगों से भारी रकम वसूलने के कारण उनके सम्पत्ति अधिकार बाधित होने लगते हैं। निरंकुश राज्यों में आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ने से लोगों को मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है। संकट के बहाने पुलिस को भी मनमानी करने और निरपराध लोगों को यातनाएँ देने का अवसर मिल जाता है।
( 5 ) युद्ध की सम्भावना- आन्तरिक आतंकवाद से जहाँ विद्रोह की सम्भावना रहती है, वहीं बाह्य आतंकवाद के फलस्वरूप युद्ध की आशंका भी पैदा हो जाती है। वर्तमान युग में, जब अनेक देशों के पास परमाणु आयुद्ध है, एक छोटा सा युद्ध भी लाखों लोगों के सामने अस्तित्व का खतरा पैदा कर सकता है। तालिबान आतंकवाद के कारण अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान के खिलाफ की जाने वाली सैनिक कार्यवाही में हजारों निरपराध अफगानी नागरिक मारे गये। लाखों अफगानियों को सीमावर्ती पाकिस्तान के बीच अनेक बार युद्ध का खतरा पैदा हो चुका है। इजराइल तथा फिलिस्तीन के बीच होने वाला युद्ध भी आतंकवाद की ही देन है।
आतंकवाद की कार्यप्रणाली
विश्व के प्रत्येक जगह एक समान होती है। आतंकवाद के स्वरूप में भिन्नता होने पर भी उनके तरीकों तथा तकनीकों में पर्याप्त समानता पाई जाती है। इनकी कार्यप्रणाली मुख्यतः चार साधनों पर आधारित होती है
( 1 ) व्यक्ति अपहरण- इसके अन्तर्गत अतिमहत्त्वपूर्ण व्यक्तियों (वी0आई0पी0) राजनयिकों का अपहरण करके सम्बन्धित सरकारों से अपनी माँग मनवाने के लिए दबाव डाला जाता है।
( 2 ) विमान अपहरण- आतंकवादी विमान-कर्मियों को आतंकित करके विमानों को अवैध तरीके से ऐसे स्थान पर ले जाते हैं जहाँ से आतंकवादी अपने आपको सुरक्षित रखकर किसी विशिष्ट देश की सरकार पर दबाव डालकर अपनी माँगों की पूर्ति करवाने का प्रयास करते हैं।
( 3 ) हत्या- सार्वजनिक नेताओं की हत्या सुनियोजित ढंग से की जाती है। कभी कभी आतंक में वृद्धि करने के लिए सामान्य व्यक्तियों की सामूहिक हत्यायें भी की जाती हैं।
(4) तोड़-फोड़ तथा बम विस्फोट- तोड़-फोड़ की कार्यवाही द्वारा सार्वजनिक सम्पत्ति तथा सामान्यजन को नुकसान पहुँचाने का कार्य किया जाता है। बमों के विस्फोट के द्वारा जान-माल की हानि पहुँचाकर जनसाधारण में आतंक फैलाने का प्रयास किया जाता है।
- आतंकवाद की परिभाषा तथा आतंकवाद का स्वरूप एवं समाधान
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