भारत एवं आसियान के मध्य संबंधों की विवेचना
अक्टूबर 2003 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आसियान देशों की यात्रा के साथ ही भारत के आसियान के साथ सम्बन्ध एक नए मोड़ पर आ गए हैं। वस्तुतः वर्तमान समय में भारत-आसियान सम्बन्ध भारत की विदेश नीति का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष बन गया है। लगभग एक दशक पहले भारत पूर्वोन्मुखी नीति का अनुगमन किया था। तब से निरन्तर आसियान के साथ भारत के सम्बन्धों में मजबूती आई है। यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के समय से अब तक भारत की आसियान देशों के प्रति नीति में एक निरन्तरता रही है। न केवल यह अपितु वाजपेयी सरकार ने इस नीति को और अधिक ठोस धरातल पर ला खड़ा किया। एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत की पूर्वोन्मुखी नीति पर एक राष्ट्रीय सहमति रही है तथा इसका विरोध नहीं हुआ है। यह कहना असंगत नहीं होगा कि पं. नेहरू के काल में जिस एशियाई एकता का सपना भारत ने देखा था भारत आज उस ओर धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है।
1990 के पश्चात् वैश्वीकरण व उदारीकरण के प्रभाव में जब क्षेत्रीय आर्थिक गठबन्धनों पर जोर दिया जाने लगा तो भारत ने पूर्वोन्मुखी नीति को प्राथमिकता देना प्रारम्भ किया। इस नीति की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि भारत का आसियान में प्रवेश रही है। भारत को 1992 में आसियान में सेक्टोरल डायलॉग पार्टनर का दर्जा मिला। 1995 में उसको फुल डायलॉग पार्टनर का दर्जा मिला। 1996 में भारत को आसियान क्षेत्रीय फोरम की सदस्यता मिली। नवम्बर 2002 में भारत को कम्बोडिया में शिखर वार्ता में सम्मिलित होने का अवसर मिला तथा इस बार अक्टूबर, 2003 में बाली में भारत आसियान के साथ समझौता करने की स्थिति में आया। भारत की आसियान शिखर वार्ता तक की यात्रा काफी महत्त्वपूर्ण रही है।
2011 में नौवीं भारत-आसियान शिखर बैठक में भारत और आसियान के बीच सम्बन्धों की विस्तृत समीक्षा की गई तथा क्षेत्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर गहन चर्चा हुई। बैठक सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सम्पर्क स्थापित करने से लेकर नौवहन सुरक्षा, आतंकवाद से मुकाबला, प्रशिक्षण, अभ्यासों और आपदा प्रबन्धन सहित सुरक्षा मुद्दों पर सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आसियान के साथ हमारी भागीदारी हमारी विदेश नीति का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है और हमारी ‘पूर्व की ओर देखो नीति’ (Look East Policy) की नींव भी है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि वैश्विक आर्थिक मंदी के मद्देनजर भारत-आसियान भागीदारी की आवश्यकता और भी बढ़ गई है। उन्होंने मार्च 2012 तक वाणिज्यिक रूप से सार्थक सेवाओं और निवेश समझौते की वकालत की ताकि समग्र आर्थिक सहयोग समझौते के कार्यान्वयन के लिए सकारात्मक माहौल बन सके। भारत ने वर्ष 2012-15 के लिए ’82 बिन्दुओं वाली आसियान-भारत कार्य योजना’ और पांच करोड़ डालर के आसियान-भारत सहयोग के तहत कई सहकारी परियोजनाएं शुरू की हैं। इस मामले में ‘आसियान’ के रुख की भारत को प्रतीक्षा है। भारत एवं आसियान के बीच आधारिक संरचना का विस्तार करना भारत का सामरिक उद्देश्य है। भारत की ओर से किये गये प्रस्तावों में मुख्य रूप से भारत-म्यांमार-थाइलैण्ड राजमार्ग का निर्माण, जिसका विस्तार लाओस व कम्बोडिया तक हो तथा वियतनाम को जोड़ने वाले एक नये सड़क राजमार्ग का निर्माण शामिल है। भारत ने मेकांग-भारत इकोनॉमिक कॉरिडोर के निर्माण से सम्बन्धित अध्ययन की बात भी कही जिससे भारत के उत्तर- र-पूर्वी राज्यों में पूर्वी एशियाई क्षेत्र को जोड़ा जा सके।
मनमोहन सिंह ने अपनी अपील पर आसियान देशों की तरफ से मुक्त व्यापार समझौता लागू करने की दिशा में आगे बढ़ने के वादे पर आभार व्यक्त किया। भारत-आसियान के बीच व्यापार में 2010-11 के दौरान 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 50 बिलियन डालर को भी पार कर गया। इस स्तर की वृद्धि दर बने रहने पर वर्ष 2012 में 70 अरब डॉलर का व्यापार लक्ष्य प्राप्त करने का अनुमान लगाया गया है।
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