1980 से वर्तमान तक भारत-चीन सम्बन्ध
1980-90 के दशक में दोनों देशों के बीच सीमा सम्बन्धी मामलों को हल करने के लिए नई दिल्ली और बीजिंग में वार्ता के 8 दौर भिन्न-भिन्न समयों में हुए भारत व चीन के बीच सीमावार्ता का आठवां दौर 17 नवम्बर, 1987 को नई दिल्ली में समाप्त हुआ। वार्ता समाप्ति के बाद जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि जहाँ तक सीमा के प्रश्न का सम्बन्ध है दोनों पक्षों के बीच यथास्थिति बनी हुई है।
प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की चीन यात्रा (दिसम्बर 1988) और सीमा विवाद हल करने के लिए संयुक्त कार्यदल का गठन
19-23 दिसम्बर, 1988 को भारत के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने 5 दिन के लिए चीन की यात्रा की। पिछले 34 वर्ष में भारत के किसी प्रधानमंत्री की यह पहली चीन यात्रा है। राजीव गाँधी की चीन के राष्ट्रपति यांग शानकुन, चीन के प्रधानमंत्री लीग पेंग तथा चीन के शीर्ष नेता देंग शियाओपिंग से लम्बी बातचीत हुई। टेंग ने प्रधानमंत्री राजीव गाँधी से कहा कि “आपकी बीजिंग यात्रा से अब हमें अतीत भूलकर आपसी सम्बन्धों में एक नई शुरुआत करनी चाहिए।” राजीव गाँधी के अनुसार “हमने चीन के साथ अपने सम्बन्धों को नए सिरे से शुरू करके मैत्री को सुदृढ़ करने का निश्चय किया है।”
प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की चीन यात्रा की एक और बड़ी उपलब्धि आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी व सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने के लिए संयुक्त आयोग का गठन है। इसे भारत-चीन सम्बन्धों के सुधार में एक महत्त्वपूर्ण कदम माना गया। दोनों के बीच एक संयुक्त समिति भी गठित करने का फैसला किया गया जो कि विज्ञान-प्रौद्योगिकी तथा आर्थिक क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग की सम्भावना का पता लगाएगी।
चीनी विदेशमंत्री की भारत यात्रा
चीन के विदेश मंत्री छियेन छी ने सं 24 मार्च, 1990 तक भारत की चार दिवसीय यात्रा की। भारत ने चीन को आश्वासन दिया कि दोनों देशों में मधुर सम्बन्ध स्थापित करने के लिए व्यापार और तटकर पर आम सहमति – गैट नामक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की सदस्यता हासिल करने में भारत चीन का समर्थन करेगा।
चीनी प्रधानमंत्री की भारत यात्रा
11 सितम्बर, 1991 को चीन के प्रधानमंत्री श्री फांग एक उच्चस्तरीय दल के साथ 6 दिवसीय यात्रा पर नई दिल्ली आये। वे 31 वर्ष बाद भारत आने वाले प्रथम चीनी प्रधानमंत्री थे। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच तीन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। ये समझौते हैं- शंघाई तथा बम्बई में वाणिज्य दूतावास खोलना, दोनों देशों के बीच सीमा व्यापार शुरू करना तथा चीन व भारत द्वारा अन्तरिक्ष अनुसंधान, विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग करना।
राष्ट्रपति वेंकटरमन की चीन यात्रा
17 मई, 1992 को भारत के राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमन चीन के राष्ट्रपति श्री यांग शांकुन के निमंत्रण पर 6 दिन की सरकारी यात्रा पर चीन गये। श्री वेंकटारमन पहले भारतीय राष्ट्राध्यक्ष थे जो चीन की यात्रा पर गये। उल्लेखनीय है कि चीनी राष्ट्रपति श्री यांग ने श्री वेंकटरमन से बातचीत के दौरान ‘हिन्दी- चीनी भाई-भाई’ युग की याद दिलाई और भारतीय राष्ट्रपति को आश्वासन दिया कि चीन गहरी और अटूट मित्रता निभायेगा।
प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव की चीन यात्रा ( सितम्बर 1993 ) और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शान्ति बनाये रखने का समझौता
सितम्बर, 1993 में प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव की चीन यात्रा से द्विपक्षीय सम्बन्धों की रचनात्मक प्रवृत्ति को बल मिला। इस यात्रा की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शान्ति और अमन बनाये रखने के सम्बन्ध में हुआ समझौता है। यह एक ऐसा समझौता है जिसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शान्ति और समरसता सुनिश्चित करने की एक रूपरेखा निर्धारित है।
चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन की भारत यात्रा
दिसम्बर 1996 में चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन भारत की यात्रा पर आये। दोनों देशों सीमा पर तनाव कम करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए एक-दूसरे पर हमला नहीं करने या वास्तविक नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण नहीं करने तथा सीमा पर फोजों तथा हथियारों की संख्या कम करने का संकल्प लिया।
राष्ट्रपति के.आर. नारायणन की चीन यात्रा (मई-जून 2000)
भारत के राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने चीन के साथ सम्बन्धों को और मजबूत बनाने के उद्देश्य से मई जून 2000 में चीन की छः दिवसीय राजकीय यात्रा की। दोनों देशों ने उलझे हुए सीमा विवाद के तर्कसंगत हल पर सहमति व्यक्त करते हुए द्विपक्षीय सम्बन्धों के विस्तार के लिए विशिष्टजन दल गठित करने का फैसला किया।
भारतीय एवं चीनी नौसेनाओं का पहला संयुक्त सैन्य अभ्यास
सैन्य मामलों में पारस्परिक विश्वास सृजन की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए 15-18 सितम्बर, 2000 को 210 वर्ग मील भूमि मिली। यह युद्ध भारत-पाकिस्तान के कटु सम्बन्धों की अन्तिम परिणति थी।
ताशकन्द समझौता
सोवियत प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति अय्यूब खाँ और भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को वार्ता के लिए ताशकन्द में आमन्त्रित किया। 4 जनवरी, 1966 को यह प्रसिद्ध सम्मेलन प्रारम्भ हुआ और सोवियत संघ के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप . 10 जनवरी, 1966 को प्रसिद्ध ताशकन्द समझौते पर हस्ताक्षर हुए। समझौते के अन्तर्गत भारतीय प्रधानमंत्री एवं पाकिस्तान के राष्ट्रपति सहमत हुए कि-
(1) दोनों पक्ष जोरदार प्रयत्न करेंगे कि संयुक्त घोषणा पत्र के अनुसार भारत और पाकिस्तान में अच्छे पड़ोसियों का सम्बन्ध निर्मित हो। वे राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र के अन्तर्गत पुनः दोहराते हैं कि बल-प्रयोग का सहारा न लेंगे और विवादों को शान्तिपूर्ण तरीकों से सुलझायेंगे।
(2) दोनों देशों के सभी सशस्त्र सैनिक 25 फरवरी, 1966 के पूर्व उस स्थान पर वापस चले जायेंगे, जहाँ वे 5 अगस्त, 1965 के पूर्व थे और दोनों पक्ष युद्धविराम की शर्तों का पालन करेंगे।
(3) दोनों देशों के परस्पर सम्बन्ध एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति पर आधारित रहेंगे।
(4) दोनों देश एक-दूसरे के विरुद्ध होने वाले प्रचार को निरुत्साहित करेंगे और दोनों देशों के मध्य मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की वृद्धि करने वाले प्रचार को प्रोत्साहन देंगे।
(5) दोनों देशों के मध्य राजनयिक सम्बन्ध पुनः सामान्य रूप से स्थापित किये जाएंगे। दोनों देशों में एक-दूसरे के उच्चायुक्त अपने पदों पर वापस जायेंगे।
(6) दोनों देशों के मध्य आर्थिक एवं व्यापारिक सम्बन्ध पुनः सामान्य रूप से स्थापित किये जायेंगे।
(7) दोनों देश युद्ध-बन्दियों का प्रत्यावर्तन करेंगे। एक-दूसरे की हस्तगत की हुई सम्पत्ति की वापसी पर भी विचार करेंगे।
(8) दोनों देश सन्धि से सम्बन्धित मामलों पर विचार करने के लिए सर्वोच्च स्तर पर एवं अन्य स्तरों पर आपस में मिलते रहेंगे।
यद्यपि इस समझौते के कारण भारत को वह सब प्रदेश पाकिस्तान को वापस देना पड़ा, जो उसने अपार धन एवं जन की हानि उठाकर प्राप्त किया था, तथापि यह समझौता निश्चित रूप से भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों में एक शान्तिपूर्ण मोड़ आने का प्रतीक बन गया।
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