कारगिल संघर्ष एवं उसके बाद भारत-पाक सम्बन्ध
कारगिल संघर्ष एवं उसके बाद भारत-पाक सम्बन्ध की विवेचना निम्न है-
कारगिल क्षेत्र में पाक सेना समर्थित घुसपैठियों के हमले- जम्मू कश्मीर के द्रास-कारगिल-बटालिक क्षेत्र में पाकिस्तान समर्थक उग्रवादियों ने हमले करके मई 1999 में भारतीय सेना को व्यापक क्षति पहुँचाई। इन घुसपैठियों ने पूर्व निर्धारित योजना के तहत 9 मई को हमला करते हुए भारतीय सेना के आयुध भण्डार को क्षतिग्रस्त कर दिया तथा क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर अपना अधिकार जमा लिया।
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, अफगानिस्तान, मध्य एशिया और पाक अधिकृत कश्मीर के ‘नार्दन एरियाज’ में रहने वाले मुजाहिदीनों को घुसपैठियों के रूप में भेजा गया। घुसपैठियों में पाकिस्तानी सेना के जवान भी थे। घुसपैठियों को उच्च प्रशिक्षण दिया गया और पाकिस्तान ने ‘इस्लामिक जेहाद’ के नाम पर उनको भड़काया। घुसपैठ के इस अभियान में सऊदी अरब के आतंकवादी नेता ओसामा बिन लादेन के लोगों का हाथ होने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। लादेन ने पूर्व में चेतावनी भी दी थी कि उसका अगला निशाना कश्मीर होगा।
वस्तुतः कारगिल के भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करके पाकिस्तान ने अपने लिए संकट कर लिया। अमरीका और चीन जैसे उसके सहयोगी बने देश भी उसके मौजूदा संकट में उसका साथ देने के लिए तैयार दिखाई नहीं दिये। भारतीय सेना की भारी सफलता और जबरदस्त अन्तर्राष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 5 जुलाई, 1999 को अमरीकी राष्ट्रपति क्लिंटन को आश्वासन दिया कि वे भारतीय भूमि से पाकिस्तानी सैनिकों और मुजाहिदीन को वापस बुला लेंगे तथा नियंत्रण रेखा का पूरी तरह सम्मान करेंगे।
आई.सी. 814 का अपहरण- 24 दिसम्बर, 1999 को पाँच व्यक्ति इंडियन एयर लाइन्स के विमान का अपहरण कर कंधार ले गए। सरकार तीन आतंकवादियों, जिनमें पाकिस्तानी राष्ट्रिक भी था, के बदले में विमान यात्रियों, कर्मीदल और विमान की सुरक्षित एक डापसी में सफल हुई। यह अपहरण अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का सबसे घिनौना उदाहरण है। इस के स्पष्ट साक्ष्य हैं कि यह योजना पाकिस्तान तथा उन कट्टरवादी समूहों की है जो पाकिस्तान दे रह रहे हैं और यह उसके कमाण्ड तथा नियंत्रण से बाहर हैं। अपहरणकर्ताओं की पहचान करने पर पता लगा कि वे सभी पाकिस्तानी हैं।
जनरल परवेज मुशर्रफ और भारत- एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत 12 | अक्टूबर, 1999 को पाकिस्तान के थल सेना अध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ सरकार का तख्ता पलटकर स्वयं को देश का मुख्य अधिशासी घोषित कर दिया। उनका यह वक्तव्य गौर करने लायक है कि “दक्षिण एशिया में कश्मीर मसले पर परमाणु हथियारों का इस्तेमाल सम्भव है।”
आगरा में वाजपेयी-मुशर्रफ शिखर वार्ता को झटका ( 14-16 जुलाई, 2001)- प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निमंत्रण पर भारत-पाकिस्तान शिखर वार्ता के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ 14 जुलाई, 2001 को तीन दिवसीय यात्रा के लिए नई दिल्ली पहुँचे। आगरा में सम्पन्न भारत-पाक शिखर वार्ता को 16 जुलाई रात चार दौर पूरे होने के बाद तब झटका लगा जबकि घोषणा पत्र सहमति के बिना पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ इस्लामाबाद रवाना हो गये। मुशर्रफ ने कश्मीर पर चर्चा को अपनी मजबूरी बताते हुए इसके समाधान के लिए चार चरण सुझाए। दूसरी ओर भारत के प्रधानमंत्री वाजपेयी ने भी जम्मू-कश्मीर से जुड़े मतभेद दूर करने के लिए एक खाका पेश किया जिसमें सीमा पार आतंकवाद का मुद्दा शामिल किया गया।
पाक समर्थित आतंकवादियों का भारत की संसद पर निष्फल हमला – 13 दिसम्बर, 2001 को भारतीय संसद पर पाक समर्थित आतंकवादियों के हमले को अत्यन्त दुस्साहसो कार्यवाही मानते हुए 21 दिसम्बर को भारत ने इस्लामाबाद से अपने उच्चायुक्त को बुलाने का निर्णय लिया और 1 जनवरी, 2002 से समझौता एक्सप्रेस और दिल्ली-लाहौर बस सेवा की सेवाएँ भी बन्द कर दी। भारत ने कड़ा रुख अपनाते हुए 1 जनवरी, 2002 से पाकिस्तान एयरलाइन्स को अपने देश के ऊपर उड़ने की सुविधा भी स्थगित कर दी। भारत ने पाकिस्तान को कानून से भागे ऐसे 20 भगोड़ों की सूची भी दी, जो उस देश में सुरक्षित रह रहे हैं और कहा कि हम पाकिस्तान से यह आशा करते हैं कि वह उन्हें गिरफ्तार करे और उन्हें भारत को सौंपे।
सीमा पर शान्त हुई गोलों की आग और वाजपेयी इस्लामाबाद में- पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने की दिशा में एक बार फिर अपनी ओर से पहल करते हुए 22 अक्टूबर, 2003 को भारत ने 12 सूची नए प्रस्तावों की घोषणा की। लोगों में मेलजोल बढ़ाना ही इन प्रस्तावों का सार है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जमाली ने ईद के दिन से जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर एक तरफा संघर्ष विराम की घोषण कर भारत से सकारात्मक जवाब देने की मंशा जताई। भारत ने नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम की पाक की पेशकश मंजूर करते हुए सियाचीन क्षेत्र में भी संघर्ष विराम की पेशकश की। दिसम्बर, 2003 में नई दिल्ली में दोनों देशों के अधिकारियों की नागरिक उड्डन सम्बन्धी बातचीत शुरू होने के पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति मुशर्रफ ने भारतीय विमानों को पाक वायु सीमा से उड़ने की इजाजत देने की घोषणा की। दोनों देशों के बीच 1 जनवरी, 2004 से वायु सम्पर्क खुलने पर सहमति बनी। दोनों देशों में बस सेवा बहाल हो गई। भारत ने उसे बढ़ाने और रेल सम्पर्क बहाल करने के साथ मुम्बई-कराची जलयान सेवा शुरू करने की पेशकश की। जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी बन्द है। सीमा पर ऐसी शान्ति कई वर्षों के बाद बनी है। जनवरी 2004 में इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मेलन में प्रधानमंत्री वाजपेयी ने भाग लेने की स्वीकृति दे दी।
वाजपेयी ने पाकिस्तान को एक बार फिर वार्ता की राह पर उतारा- इस्लामाबाद में हुए दक्षेस सम्मेलन (जनवरी, 2004) ने लगभग असम्भव को सम्भव बना दिया। आगरा में जो तार टूटा था, उसके जुड़ने की दूर-दूर कोई सम्भावना नजर नहीं आ रही थी। शक यह भी था कि अटल जी और मुशर्रफ में शायद भेंट ही न हो, लेकिन इस्लामाबाद में, जो संयुक्त वक्तव्य जारी हुआ और जिस तर्ज पर वह लिखा गया है, वह अपने आप में ऐतिहासिक उपलब्धि है। उसे किसी भी तरह ताशकन्द, या शिमला समझौते या लाहौर घोषणा से कम नहीं आंका जा सकता। यह ऐसी पहली घोषणा है, जिसका न तो पाकिस्तान में विरोध हो रहा है और न भारत में। दुनिया के सभी देश इसका स्वागत कर रहे हैं। इस घोषणा का महावाक्य यह है कि दोनों देश कश्मीर समेत सभी मुद्दों के शान्तिपूर्ण समाधान पर तब तक बातचीत करते रहेंगे, जब तक कि दोनों को संतोष न हो जाय।
मनमोहन सरकार एवं भारत-पाक सम्बन्ध
पाकिस्तान के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाने का जो प्रयास वाजपेयी सरकार ने किया था उस प्रयास को मनमोहन सरकार ने आगे बढ़ाया। मनमोहन सरकार ने पाकिस्तान के साथ सम्बन्ध बेहतर बनाने तथा आपसी विश्वास बहाल करने के लिए अनेक कदम उठाये।
मनमोहन सरकार ने कश्मीर में एकतरफा संघर्ष विराम की घोषणा की। सचिव स्तर की कई बैठकें हुईं और इन बैठकों में आपसी विश्वास बहाली के लिए अनेक कदम उठाने की बात कही गई। इनमें प्रमुख बातें हैं- दोनों देशों के मध्य क्रिकेट मैचों का आयोजन, लोगों को सीमा पार करके एक दूसरे से मिलने के लिए वीजा नियमों में ढील देना, दोनों देशों के लोगों को जोड़ने के लिए बस सेवा एवं रेल सेवा को प्रारम्भ करना आदि।
दोनों देशों के मध्य सम्बन्ध के सुधार के लिए कई बस सेवा चलाई गई, 20 जनवरी, 2006 को लाहौर अमृतसर के मध्य बस सेवा प्रारम्भ की गई।
जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा के दोनों ओर रह रहे विभाजित परिवारों को अपने समाधन तो निकालना ही होगा।
नरेन्द्र मोदी सरकार एवं भारत-पाक सम्बन्ध
2014 में भारत में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एन.डी.ए. की सरकार बनी और श्री नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने। इस काल के शुरुआती दिनों को छोड़कर भारत-पाक सम्बन्ध सामान्य नहीं रहे। भारत द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर सितम्बर, 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक कर सैकड़ों पाक आतंकवादियों को मारा गया। निहितार्थ यह है कि वर्तमान (2018) समय में भी भारत-पाक सम्बन्धों में तनाव जारी है।
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