भारत पर 1962 के चीनी आक्रमण के कारण क्या थे?
भारत और चीन के मध्य सीमा को लेकर कटु विवाद प्रारम्भ हो चुका था। 1950 51 में साम्यवादी चीन के नक्शे में भारत के बड़े भाग को चीन का अंग दिखाया गया था। जब भारत ने चीन का ध्यान इस ओर दिलाया तो यह कह कर मामला टाल दिया गया कि ये नक्शे कोमिन्तांग सरकार के पुराने नक्शे हैं। चीन की नई सरकार को इतना समय नहीं मिला है कि वह इनमें उपयुक्त संशोधन कर सके। समय मिलते ही इन नक्शों को ठीक कर दिया जायेगा। जून 1954 में भारत एवं चीन के मध्य तिब्बत को लेकर समझौता हुआ, तब वार्ता हेतु चुने गये विषयों में सीमा विवाद का कहीं प्रश्न ही न था। भारत में यही समझा गया कि समस्त विवाद हल हो चुके, परन्तु शीघ्र ही 17 जुलाई, 1954 को चीन ने एक पत्र द्वारा भारत पर आरोप लगाया। कि भारतीय सेना ने बूजे नामक चीनी स्थान पर अवैध अधिकार कर लिया है। बूजे भारत में ‘बड़ा होती’ के नाम से प्रसिद्ध था। चीन के विरोध-पत्र का उत्तर देते हुए भारत सरकार ने लिख दिया कि “यह स्थान भारतीय प्रदेश में है और यहाँ भारतीय सीमा सुरक्षा सेना की चौकी है।” 1954 से ही चीन ने सीमा के विभिन्न भारतीय प्रदेशों में अपने सैनिक दस्ते और टुकड़ियाँ भेजनी आरम्भ की। 23 जनवरी, 1959 के पत्र में चीनी सरकार ने लिखा है कि भारत और चीन के मध्य कभी भी सीमाओं का निर्धारण नहीं हुआ है और तथाकथित सीमाएँ चीन के विरुद्ध किये गये साम्राज्यवादी षड्यंत्र का परिणाम मात्र हैं।
भारत पर चीन का आक्रमण- अक्टूबर, 1962 में भारत पर साम्यवादी चीन ने बड़े पैमाने पर आक्रमण कर दिया। इससे पूर्व 12 जुलाई, 1962 को लद्दाख में गलवान नदी की घाटी की भारतीय चौकी को चीनियों ने अपने घेरे में ले लिया। 8 सितम्बर को चीनी सेनाओं ने मेकमोहन रेखा पार करके भारतीय सीमा में प्रवेश किया। 20 अक्टूबर, 1962 को चीनी सेनाओं ने उत्तर-पूर्वी सीमान्त तथा लद्दाख के मोर्चे पर एक साथ बड़े पैमाने पर आक्रमण किया। टिड्डी दल की भाँति वे भारतीय चौकियों पर टूट पड़े। 21 नवम्बर, 1962 को चीन ने एकाएक अपनी ओर एक एक-पक्षीय युद्धविराम की घोषणा कर दी और युद्ध समाप्त हो गया। चीन ने जीते हुए भारतीय प्रदेशों को भी खाली कराना प्रारम्भ कर दिया और भारत के कुछ सैनिक साजो सामान को भी वापस कर दिया।
चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के कारण
डॉ. वी.पी. दत्त के अनुसार चीन के भारत पर आक्रमण के दो उद्देश्य थे- (i) अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना, (ii) भारत की निर्बलता को प्रदर्शित करना तथा उसे अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपमानित करना ।
संक्षेप में, चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के निम्नलिखित कारण थे
(1) चीन विस्तारवाद की नीति का प्रदर्शन करना चाहता था।
(2) चीन की इच्छा है कि वह भारत को लोकतंत्रात्मक पद्धति से उन्नति करने में सफल न होने दें, उस पर युद्ध का बोझ डाल दे।
(3) तिब्बत के प्रति भारतीय नीति से चीन नाराज था। दलाई लाला को शरण देने के कारण उसे हमसे रोष था।
(4) उसका उद्देश्य भारत को बदनाम करना था, एशिया में चीन की सर्वोच्च शक्ति बनने की आकांक्षा तथा भारत को नीचा दिखाने की इच्छा थी।.
चीन के एक-पक्षीय युद्ध-विराम के कारण
चीन ने एक-पक्षीय युद्ध-विराम की घोषणा करके सबको स्तब्ध कर दिया। युद्ध बन्द कर देने के कारणों के सम्बन्ध में बड़ा मतभेद है। फिर भी मोटे तौर से निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-
(1) चीन अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपनी सद्भावना प्रकट करना चाहता था कि चीन युद्ध प्रेमी नहीं, बल्कि उसे बाध्य होकर लड़ाई लड़नी पड़ी थी।
(2) चीन को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सफलता मिल गई थी। सैनिक दृष्टि से चीन ने भारत को हराकर भारतीय प्रतिष्ठा को धूल में मिला दिया और भारत की निर्बलता जगप्रसिद्ध हो गई थी।
(3) सर्दी बढ़ जाने से सैनिकों को सामान पहुँचाने के लम्बे मार्ग पार करना कठिन होता जा रहा था, जिससे चीन अधिक समय तक युद्ध जारी नहीं रख सकता था।
(4) भारत को अमरीका और ब्रिटेन से भारी मात्रा में सैनिक सहायता तेजी से प्राप्त होने लगी थी। इससे भी चीनी सरकार को भय होने लगा था।
(5) सोवियत संघ चीन के इस आक्रमण को उचित नहीं समझता था।
(6) चीन इस तथ्य से परिचित था कि भारत पर प्रभुत्व जमाना आसान नहीं है। केवल वह अपनी शक्ति प्रदर्शित करके एशिया में अपने नेतृत्व का दावा प्रमाणित करना चाहता था।
कोलम्बो प्रस्ताव- भारत और चीन के इस युद्ध से एशिया और अफ्रीका के कुछ मित्र राज्यों ने दोनों देशों के सीमा विवाद को हल करवाना चाहा। इन देशों ने श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में 10 दिसम्बर से 12 दिसम्बर, 1962 तक एक सम्मेलन किया। इस सम्मेलन में म्यांमार (बर्मा) कम्बोडिया, श्रीलंका, घाना, इण्डोनेसिया तथा संयुक्त अरब गणराज्य के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। भारत ने इन प्रस्तावों के बारे में कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। कोलम्बो प्रस्ताव के छः सूत्र इस प्रकार हैं-
(1) वर्तमान नियंत्रण रेखा भारत-चीन विवाद के समाधान का आधार मानी जाय।
(2) पश्चिमी क्षेत्र में चीन वर्तमान रेखा से 20 किलोमीटर पीछे अपनी सैनिक चौकियाँ हटा ले, जैसा कि चाऊ-एन-लाई स्वयं श्री नेहरू को अपने 21 तथा 23 नवम्बर में पत्र में लिख चुके हैं।
(3) भारत इस क्षेत्र में अपनी वर्तमान स्थिति को बनाये रखे। समस्या के अन्तिम समाधान होने तक भारत और चीन इस क्षेत्र को विसैन्यीकृत रखें और इस क्षेत्र का निरीक्षण दोनों देशों के असैनिक अधिकारी करें।
(4) पूर्वी क्षेत्र में वर्तमान नियंत्रण रेखा को युद्धविराम रेखा माना जाय।
(5) मध्य क्षेत्र में सीमा का निश्चय शान्तिपूर्ण साधनों से किया जाय।
(6) इन प्रस्तावों की स्वीकृति से दोनों देशों के बीच परस्पर वार्ता के द्वारा निर्णय ले सकते हैं।
इसे भी पढ़े…
- एशिया में महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा का कारण क्या है? विस्तृत विवेचना कीजिए।
- एशिया के नव-जागरण के कारण (Resurgence of Asia: Causes)
- एशियाई नव-जागरण की प्रमुख प्रवृत्तियाँ- सकारात्मक प्रवृत्तियाँ तथा नकारात्मक प्रवृत्तियाँ
- गुटनिरपेक्षता की कमजोरियां | गुटनिरपेक्षता की विफलताएं | गुटनिरपेक्षता की आलोचना
- शीत युद्ध का अर्थ | शीत युद्ध की परिभाषा | शीत युद्ध के लिए उत्तरदायी कारण
- शीत युद्ध के बाद यूरोप की प्रकृति में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। इस कथन की विवेचना करो ?
- शीतयुद्ध को समाप्त करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
- शीत युद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- नवीन शीत युद्ध के स्वरूप एवं परिणामों की विवेचना करो?
- शीत युद्ध के विकास के प्रमुख कारणों की विवेचना करो।
- दितान्त अथवा तनाव शैथिल्य का अर्थ एवं परिभाषा | दितान्त के कारण
- अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- शीत युद्धोत्तर काल के एक ध्रुवीय विश्व की प्रमुख विशेषतायें का वर्णन कीजिए।
- शीतयुद्धोत्तर काल में निःशस्त्रीकरण हेतु किये गये प्रयास का वर्णन कीजिए।
- तनाव शैथिल्य का प्रभाव | अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था पर दितान्त व्यवहार का प्रभाव
- द्वितीय शीत युद्ध के प्रमुख कारण | नवीन शीत युद्ध के प्रमुख कारण | उत्तर शीत युद्ध के शुरू होने के कारक