द्वितीय महायुद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के स्वरूप में परिवर्तन लाने वाले तत्वों में गुटनिरपेक्षता का विशेष महत्व है। गुटनिरपेक्षता पर गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का प्रादुर्भाव वविकास कोई संयोग मात्र नहीं था, अपितु यह सुविचारित अवधारणा (Concept) थी ।
गुट निरपेक्षता की अवधारणा (Concept)
गुटनिरपेक्षता की अवधारणा का अभिप्राय गुटों से पृथक रहकर स्वतन्त्र नीति अपनाना व अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, आचरण व व्यवहार तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में स्वतंत्र निर्णय लेना है। यह सैनिक गठबन्धन व गुटबन्दी की राजनीति से पृथक है तथा इसका सम्बन्ध आन्तरिक व बाह्य क्षेत्र में स्वतंत्र नीति अपनाने व निर्णय लेने से है। पं० नेहरू जो इसके जन्मदाता, प्रतिपादक व प्रवक्ता माने जाते हैं ने इस अवधारणा का प्रतिपादन व उद्घाटन एक सुविचारित योजना व नीति के अन्तर्गत की थी। इसके लिए 1946-47 में एशियाई सम्मेलन बुलाया गया तथा उसमें इसकी रूपरेखा पर विचार किया गया था।
इसका उद्देश्य नवोदित राष्ट्रों की स्वाधीनता की रक्षा करना, पराधीन राष्ट्रों को आजादी दिलाना तथा युद्ध की संभावनाओं को रोकना था। इसके अभ्युदय के पीछे मूल धारणा यह थी कि साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद से मुक्ति पाने वाले देशों को शक्तिशाली गुटों से पृथक् रखकर उनकी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखा जाए। आज एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश गुटनिरपेक्ष होने का दावा करने लगे हैं। इसने कुछ समय बाद ही अपनी व्यापकता व लोकप्रियता के कारण एक आन्दोलन का रूप धारण कर लिया है। क्योंकि 1961 के बेलग्रेड सम्मेलन में 25 राष्ट्रों ने भाग लिया था। जबकि जकार्ता सम्मेलन 1992 में 108 राष्ट्रों ने भाग लिया। वर्तमान में इसकी संख्या 109 हो गई है। इतनी बड़ी संख्या में राज्यों की उपस्थिति व इसमें रहना इस आन्दोलन की लोकप्रियता व बढ़ती हुई शक्ति का ही प्रतीक है। साम्यवादी और पाश्चात्य गुटों में दरार पड़ने के बाद इससे पृथक हुए राष्ट्र इसमें शामिल होते गये। चीन ने भी पर्यवेक्षक के रूप में जकार्ता सम्मेलन में भाग लिया था।
वस्तुतः शीत युद्ध के राजनैतिक ध्रुवीकरण ने इसकी समझ तैयार करने व व्यापक बनाने में एक उत्प्रेरक का काम किया, क्योंकि नवोदित राष्ट्र फिर से किसी की दासता स्वीकार करने को तैयार न थे। अतः अधिकांश राष्ट्रों ने इस तीसरे विकल्प को चुना और इसे शक्ति व लोकप्रियता प्रदान की।
गुटनिरपेक्षता का अर्थ व परिभाषा
गुटनिरपेक्षता की धारणा को अर्थ प्रदान करना काफी कठिन है। यह विचारधारा पिछले तीन दशक से अधिक समय से चल रही है तथा आज यू०एन० के 2/3 से अधिक देश इसे अमल में ला रहे हैं। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि “जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अभिरुचि है, वे सब गुटनिरपेक्षता का सही-सही अर्थ समझते ही हैं।” क्योंकि इस क्षेत्र के देशों की भी भिन्न-भिन्न स्तरों पर गतिविधियाँ जारी हैं- विश्व स्तर पर तथा वैयक्तिक या क्षेत्रीय स्तर पर गुटनिरपेक्षता शब्द का चयन पं० जवाहरलाल नेहरू ने किया था और इस शब्द के कई रूप व अर्थ हैं। पं० नेहरू भी इससे बहुत प्रसन्न नहीं थे। इसे असंलग्नता की नीति ही कहना लोग ज्यादा पसन्द करते हैं। इसे अप्रतिबद्धता, असम्पकता, तटस्थता, तटस्थतावाद, सकारात्मक तटस्थता, गतिशील तटस्थता, स्वतंत्र व सक्रिय नीति और शान्तिपूर्ण सक्रिय सहअस्तित्व भी कहा जाता है। डॉ०एम०एस० राजन “इनमें से कुछ शब्द और शब्द बन्ध तो केवल अर्थजाल के द्योतक हैं और यह जाल गुटनिरपेक्षता के अलोचकों द्वारा बुना गया है। “
जार्ज श्वार्जन बर्गर ने “गुटनिरपेक्षता को स्पष्ट करने के लिए उससे सम्बन्धित निम्न छह अर्थों की व्याख्या की है और गुटनिरपेक्षता को इनसे पृथक बतलाया है।” उनके ये छह धारणायें अलगाववाद, अप्रतिबद्धता, तटस्थता, तटस्थीकरण, अनुसार एकपक्षवाद और असंलग्नता हैं।
जार्जलिस्का के अनुसार, “गुटनिरपेक्षता का अभिप्राय सही व गलत में विभेद करते हुए सदैव सही का समर्थन करना है।”
संक्षेप में गुटनिरपेक्षता से अभिप्राय अपनी स्वतंत्र रीति-नीति से है। गुटों से अलग रहकर हर प्रश्न के औचित्य-अनौचित्य पर विचार किया जा सकता है। इस प्रकार गुटनिरपेक्षता का स्पष्ट अभिप्राय किसी भी देश के साथ सैन्य गुटबन्दी में शामिल न होना, किसी विशेष देश के साथ सैन्य दृष्टि से आबद्ध न होना, प्रत्येक प्रकार की आक्रामक सन्धि से दूर रहना, शीत युद्ध से दूर रहना और राष्ट्रीय हित का ध्यान रखते हुए न्यायोचित पक्ष में अपनी दिशा को संचालित करना है।
गुटनिरपेक्षता का स्वरूप तथा विशेषतायें
गुटनिरपेक्षता के स्वरूप को भी स्पष्ट करना आवश्यक है। गुटनिरपेक्षता से सम्बन्धित प्रमुख तथ्य व बातें इस प्रकार हैं जिससे इसका वास्तविक स्वरूप प्रकट होता है-
( 1 ) नकारात्मक नहीं सकारात्मक नीति- गुटनिरपेक्षता अन्तर्राष्ट्रीय मामलों या अन्य देशों के प्रति एक निषेधात्मक (Negative) नीति या दृष्टिकोण नहीं है, बल्कि यह एक सकारात्मक (Positive) दृष्टिकोण व नीति है। डॉ० अप्पा दोराई के शब्दों में- “स्वतंत्र विदेश नीति एवं तटस्थता एक ही बात नहीं है। यदि कभी कहीं युद्ध होता है, तो स्वतंत्रता एवं शान्ति के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए भारत स्वतन्त्र देशों का साथ दे। यह एक नकारात्मक नहीं, वरन् सकारात्मक नीति है जिसका उद्देश्य समविचारवादी राष्ट्रों के साथ मिलकर शान्ति, स्वतन्त्रता व मैत्री के उद्देश्य प्राप्त करना तथा अपना व अर्द्धविकसित राष्ट्रों का विकास करना है।”
( 2 ) तटस्थता से पृथक व भिन्न स्थिति व स्वरूप – गुटनिरपेक्षता की स्थिति व स्वरूप तटस्थता से भिन्न है। यह व्यापक महायुद्ध के समय संघर्ष में भाग न लेने वाले देश की तटस्थता नहीं है। यह स्विटजरलैण्ड व आस्ट्रिया की तरह की तटस्थता भी नहीं है जिसकी गारण्टी अन्य राष्ट्रों ने सन्धि के द्वारा दी थी संभवतः गुटनिरपेक्ष राष्ट्र इस सिद्धान्त के जनक पं० जवाहर लाल नेहरू के इस मत से अवश्य सहमत होंगे कि “जहाँ स्वतंत्रता के लिए खतरा उत्पन्न होता है या न्याय पर आँच आने लगती है या कोई देश इसके ऊपर आक्रमण कर देता है, वहाँ न तो हम तटस्थ रह सकते हैं, और न रहेंगे।”
( 3 ) सक्रिय व राष्ट्रहितपरकं- यह निःसंगतवाद भी नहीं है बल्कि प्रायः सभी गुटनिरपेक्षत राष्ट्र विश्व राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। नरेश नोरोदम सिंहानुक ने वेलग्रेड सम्मेलन में कहा था कि “गुटनिरपेक्षता में अन्तर्राष्ट्रीय जीवन का एक गतिशील स्वरूप परिलक्षित होता है। वह अपदस्थ व निष्क्रिय अन्तर्मुखी प्रवृत्ति नहीं है।” इसके साथ ही गुटनिरपेक्ष राष्ट्र विशेष परोपकारी नहीं हैं। यह भी उतनी ही राष्ट्रहितपरक नीति है जितनी कि गुटबद्धिता है।
( 4 ) अवसरवादी व उदासीन नीति नहीं- गुटनिरपेक्षता का अर्थ एक किनारे बैठ जाना नहीं है। गुटनिरपेक्ष देशों की भी अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में दिचस्पी होती है। वे ज्वलन्त प्रश्नों के प्रति उदासीन नहीं रहते। यह काम निकालने व अवसरवादी नीति नहीं है।
(5) न्यायाधीश जैसी निरपेक्षता की द्योतक नहीं- इसमें अन्तर्राष्ट्रीय मसलों के प्रति न्यायाधीश जैसी निरपेक्षता नहीं होती है। गुटनिरपेक्ष देश विश्व राजनीति के खेल में निर्णायक की भूमिका की तलाश में नहीं रहते, बल्कि वे तो स्वयं सक्रिय खिलाड़ी होते हैं। अतः यह संभव नहीं कि वे स्वयम् निर्णायक भी बन जाएँ। वे प्रत्येक प्रश्न व स्थिति के संदर्भ में गुण दोषों के आधार पर निष्पक्ष निर्णय देने का प्रयत्न करते हैं।
( 6 ) काल्पनिक नहीं, व्यावहारिक नीति- गुटनिरपेक्षता महज कोरी कल्पना या कोरे सिद्धान्तों पर आधारित नीति नहीं है। कम से कम उतनी व्यावहारिकता तो अवश्य है जितनी कि गुटबद्धता की नीति ।
( 7 ) प्रतिबद्धता की नीति नहीं- यह प्रतिबद्धता की नीति भी नहीं है क्योंकि जो राष्ट्र इसमें शामिल हैं वे सदैव के लिए अथवा किसी भी परिस्थितियों में इसी नीति पर चलने के लिए बंध नहीं गये हैं। वे इससे मुक्त भी हो सकते हैं। अल्जीरिया के प्रधानमंत्री विल बिल्हान ने कहा था कि, “हम किसी से बँधे नहीं, गुटनिरपेक्षता से भी नहीं।”
( 8 ) एकांगी नीति नहीं- गुटनिरपेक्षता कोई एकांगी नीति नहीं है। यह किसी अन्य राष्ट्र अथवा राष्ट्र के समूहों के साथ मैत्री व सहयोग का रास्ता नहीं रोकती। यह सीमित व संकुचित नहीं बल्कि व्यापक है।
इसके अतिरिक्त गुटनिरपेक्षता अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देने का एक मात्र साधन नहीं है, हालांकि यह अधिकांश अन्य साधनों से अधिक उपयुक्त है। इसका लक्ष्य किसी विचारधारा, गुट अथवा राष्ट्र का विरोध करना नहीं होता। इस दृष्टि से यह गुटबद्धता से सर्वथा भिन्न है। वस्तुतः गुटनिरपेक्षता तथा गुटनिरपेक्ष देश किसी तीसरी शक्ति के द्योतक नहीं हैं न उसका ध्येय (दो पूर्व गुटों के विरुद्ध) किसी तीसरे शिविर अथवा राष्ट्रों के गुट की उद्भावना करना था या है। ऐसा करना तो गुटनिरपेक्षता के आधार के ही विरुद्ध होगा। किन्तु आज तीसरी शक्ति व तृतीय विश्व की चर्चा अवश्य है और उसमें अधिकांशतया गुटनिरपेक्षों की ही गिनती होती है।
गुटनिरपेक्षता के कारण तथा औचित्य
गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाने व उसके औचित्य के अपने कुछ आधार व कारण हैं। कोई देश अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में गुटनिरपेक्षता क्यों अपनाता है। द्वितीय महायुद्ध के बाद गुटनिरपेक्षता के अभ्युदय व विकास के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं-
( 1 ) शीत युद्ध इसका सबसे बड़ा कारण रहा है, जो कि अब समाप्त हो चुका है। शीत युद्ध के उस विषैले वातावरण में नवोदित राष्ट्रों ने किसी भी पक्ष का समर्थन न करके पृथक रहने का निर्णय लिया। भारत इसका अगुआ था।
( 2 ) मनोवैज्ञानिक तथा भावात्मक विवशता को इसका एक प्रमुख कारक माना जा सकता है। भावात्मक विवशता यह थी कि “गुटनिरपेक्ष राष्ट्र केवल औपचारिक अर्थ में ही स्वतंत्र न हों बल्कि शक्तियों के प्रभुत्व या प्रभाव के अवशेषों से एकदम मुक्त प्रतीत भी हों।” ऐसा वे इसमें आस्था व्यक्त कर व विशिष्ट संदर्भों में स्वतंत्र दृष्टिकोण अपना कर ही अपनी स्वतंत्रता सबसे अच्छी तरह से प्रमाणित कर सकते थे।
( 3 ) सैन्य गुटों से पृथक रहने की प्रवृत्ति ने भी इस नीति को प्रोत्साहन दिया। 1945 के बाद दो गुटों की स्थापना हो चुकी थी और 1950 तक अधिकांश एशिया व अफ्रीकी राष्ट्र स्वतंत्र हुए थे। ये सभी शोषित व गरीब देश थे तथा अपना स्वतंत्र राजनीतिक व आर्थिक विकास करना चाहते थे। ये किसी भी गुट में फँसकर अपनी स्वतंत्रता समाप्त नहीं करना चाहते थे ।
( 4 ) अपने पृथक् व विशिष्ट अस्तित्व को कायम रखने की उत्कट अभिलाषा भी गुटनिरपेक्षता की ओर ले गई। नवोदित राष्ट्रों को लगा कि गुटनिरपेक्षता उनके लिए (विशेषकर दोनों गुटों के वैचारिक संघर्ष के संदर्भ में) अपने पृथक व विशिष्ट वैचारिक स्वरूप को अक्षुण्य कायम रखने का साधन थी ।
( 5 ) स्वतंत्र विदेश नीति संचालित करने की अभिलाषा भी नवोदित एशियाई अफ्रीकी राष्ट्रों के मन में थी। वे एक स्वतंत्र शक्ति के रूप में विश्व में अपनी पहचान कायम रखना चाहते थे। स्वतंत्र विदेश नीति के कारण आज ये किसी के संकेत पर नाचने के लिए बाध्य नहीं हैं।
( 6 ) आर्थिक कारण- एक महत्वपूर्ण कारण आर्थिक भी था। इनके सामने एक स्वतन्त्र आर्थिक विकास की समस्या थी। एक गुट में बँध जाने के कारण दूसरे से इन्हें सहायता प्राप्त न होती। इसलिए इन्होंने एक ऐसा मार्ग चुना जो किसी से भी आर्थिक सहायता प्राप्त करने के मार्ग में बाधक न बने। बहुत से देशों ने आन्तरिक राजनीतिक आवश्यकताओं के दबाव में गुटनिरपेक्षता की राह चुनी। कारण चाहे जो भी रहे हों गुटनिरपेक्ष नीति का विश्व में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान हैं। ये राष्ट्र आज तृतीय विश्व के नाम से अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अहम् भूमिका अदा कर रहे हैं।
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