राजनीति विज्ञान / Political Science

सुरक्षा परिषद की संरचना, संगठन, कार्यप्रणाली, तथा सुरक्षा परिषद के  कार्य

सुरक्षा परिषद की संरचना
सुरक्षा परिषद की संरचना

सुरक्षा परिषद की संरचना एवं प्रमुख कार्यों की विवेचना करो।

सुरक्षा परिषद् यू०एन० का कार्यपालिक अंग तथा संगठन में सर्वाधिक प्रभावशाली व महत्त्वपूर्ण अवयव है। डम्बटिन ओक्स सम्मेलन में इसके स्थायित्व व प्रभावशीलता पर विशेष जोर दिया गया था। फलतः यू०एन० के निर्माताओं ने विश्व संख्या की सम्पूर्ण शक्ति सुरक्षा परिषद् (Security Council) में निहित की है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति सुरक्षा का पहरेदार माना गया है। अन्तर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा के उद्देश्य की पूर्ति का उत्तरदायित्व उसे ही सौंपा गया है। यह महासभा की अपेक्षा लघु निकाय है, पर उससे कहीं अधिक प्रभावकारी व शक्तिशाली है। यदि महासभा मानवता की सर्वोच्च राजनीतिक शक्ति (Supreme Political Power) का प्रतिनिधित्व करती है, तो सुरक्षा परिषद् विश्व की सर्वोच्च शक्ति (The Supreme Power of World) का प्रतिनिधित्व करती है। राजनीतिक मामलों में वह निर्णायक भूमिका अदा करती है। इसके महत्त्व व प्रभाव के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। पामर व परकिन्स के शब्दों में, “यह संयुक्त राष्ट्र की कुंजी (Key) है।” ए०एच० डाक्टर द्वारा ‘इसे संघ की प्रवर्तन भुजा’ तथा डेविड कुश मैन द्वारा उसे विश्व का पुलिस मैन’ कहा गया यह यू०एन० का हृदय (Heart) है तथा है यू०एन० की समस्त महत्त्वपूर्ण गतिविधियाँ इसके इर्द-गिर्द घूमती हैं। यह एक स्थायी निकाय है जो हर समय कार्य करता रहता है।

सुरक्षा परिषद का संगठन

चार्टर के 5वें अध्याय में सुरक्षा परिषद् के संगठन का वर्णन है। वर्तमान में इसमें 5 स्थायी रूस, चीन, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन व 10 अस्थायी सदस्य हैं जिनका प्रति दो वर्ष में चयन किया जाता है। अस्थायी सदस्यों का चयन महासभा द्वारा किया जाता है। सदस्यों का अपने दो तिहाई बहुमत से चयन करते हुए महासभा द्वारा किया जाता है। सदस्यों का अपने दो तिहाई बहुमत से चयन करते हुए महासभा संगठन के उद्देश्यों, अन्तर्राष्ट्रीयता, शान्ति व सुरक्षा के विषय में यू०एन० सदस्यों के योगदान तथा भौगोलिक क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देने की आवश्यकता का ध्यान भी रखती है।

सुरक्षा परिषद की कार्यप्रणाली

यह एक स्थायी निकाय है। यह सदैव कार्य करती रहती है। इसकी बैठक 14 दिन में एक बार व आवश्यकता पड़ने पर 24 घंटे की सूचना देकर कभी भी बुलाई जा सकती है। इसमें प्रत्येक राष्ट्र के सिर्फ एक-एक प्रतिनिधि रहते हैं। सुरक्षा परिषद् के प्रत्येक सदस्य राज्य का एक प्रतिनिधि संघ के मुख्यालय में बना रहता है। प्रक्रिया विशयक मासलों में निर्णय हेतु 9 मतों की आवश्यकता पड़ती है। किन्तु अन्य सभी महत्त्वपूर्ण मसलों ( Substan tive Matters) में निर्णय के लिए 9 मतों के साथ पाँचों स्थायी सदस्यों के मत भी होने चाहिए। क्योंकि महत्त्वपूर्ण विषयों में स्थायी सदस्यों को विशेषाधिकार (Veto) प्राप्त है। किन्तु विवाद से सम्बन्धित दल मतदान नहीं करता। इसकी कार्य प्रणाली काफी जटिल है। इसीलिए सुरक्षा परिषद् को अपने उद्देश्यों में अब तक कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई। क्योंकि सामान्य हितों के विषयों पर भी सदस्य (Veto) कर देते हैं।

सुरक्षा परिषद के  कार्य

सुरक्षा परिषद का मुख्य कार्य विश्व शान्ति की स्थापना तथा सुरक्षा की स्थापना करना है। सुरक्षा परिषद् के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत बहुत से संगठनात्मक विषयों में उसे कानूनी रूप से बाध्यकारी अधिकार प्राप्त है। वह निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कार्यों का सम्पादन करती है-

(1) उसका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य विश्व शान्ति की स्थापना तथा सुरक्षा कायम रखना है। इसके लिए वह शान्तिपूर्ण साधनों के अतिरिक्त आवश्यकतानुसार बल प्रयोग भी कर सकती है। कोरिया, कांगो, मिस्र, लीबिया, खाड़ी युद्ध व अन्य महत्त्वपूर्ण मामलों में उसने सैन्य हस्तक्षेप भी किया।

(2) नवीन राष्ट्रों को यू०एन० की सदस्यता प्रदान करने, महासचिव की नियुक्ति में सहयोग, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति वह महासभा के सहयोग से करती है। उसकी सहमति के बिना कोई कार्य नहीं हो सकते।

(3) अपने आन्तरिक मामलों में सुरक्षा परिषद् स्वयं निर्णय लेती है।

(4) शान्ति एवं सुरक्षा सम्बन्धी मामलों में निर्णय वह स्वयं लेती है। केवल सुरक्षा परिषद को ही शान्ति भंग करने वाले के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार है।

(5) यदि सुरक्षा परिषद् यह निर्णय लेती है कि किसी परिस्थिति से विश्व शान्ति को खतरा उत्पन्न हो गया है या शान्ति भंग हो रही है अथवा किसी राष्ट्र ने दूसरे पर आक्रमण कर दिया है तो उसे कूटनीतिक, आर्थिक कार्रवाई करने का अधिकार है तथा सदस्य राज्य उस निर्णय को मानने के लिए विवश है। खाड़ी संकट के समय ऐसा नहीं हुआ था तथा इराक के विरुद्ध सैन्य व आर्थिक प्रतिबन्धों की कार्रवाई का आदेश दिया गया था।

(6) नवीन सदस्यों को सदस्यता प्रदान करने के विषय में भी उसे निर्णयात्मक अधिकार प्राप्त है। सुरक्षा परिषद की सहमति के बिना सदस्यता प्राप्त नहीं हो सकती।

संयुक्त राष्ट्र का महासचिव बिना उसकी सिफारिश के नियुक्त नहीं किया जा सकता। स्थायी सदस्यों की सहमति महासचिव की नियुक्ति हेतु आवश्यक है। डागहैमर शोल्ड की मृत्यु बाद महासचिव हेतु स्थायी सदस्यों की सहमति प्राप्ति करना एक संकट का विषय बन गया था।

इस प्रकार सुरक्षा परिषद् को प्रत्येक क्षेत्र में व्यापक अधिकार व शक्तियाँ प्राप्त हैं। चाहे संगठनात्मक क्षेत्र हो या शान्ति का, बिना उसकी स्वीकृति के कोई कार्य नहीं हो सकता। किन्तु मूलतः सुरक्षा परिषद् का उद्देश्य व दायित्व शान्ति की स्थापना माना जाता है। वह पहले विवाद को शान्ति प्रस्तावों द्वारा समाप्त करना चाहती है, उसके बाद आर्थिक प्रतिबन्धों की बारी आती है और अन्त में सैन्य कार्रवाई की शक्ति व अधिकार का प्रयोग करती है।

यद्यपि चार्टर के अनुसार यू०एन० की सेना का कहीं प्रावधान नहीं है, किन्तु सुरक्षा परिषद् राष्ट्रों को कभी भी सेना उपलब्ध कराने हेतु कह सकती है। चार्टर के अनुसार, “सुरक्षा परिषद् को अधिकृत किया गया है कि वह शान्ति की स्थापना हेतु जल, थल व नभ सेना का यथा उचित प्रयोग कर सके।”

सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर ही किसी राष्ट्र को जिसके विरुद्ध अनुशासन की कार्यवाही की गई हो सदस्यता के अधिकार से अनिश्चित काल के लिए वंचित किया जा सकता है। उसे पुनः सदस्यता बहाल करने का भी अधिकार है। दक्षिण अफ्रीका के साथ ऐसा हो चुका है। यू०एन० चार्टर में परिवर्तन व सुधार अनु० 109 के अनुसार- महासभा के दो तिहाई मत के अतिरिक्त सुरक्षा परिषद् के स्थायी मतों के समर्थन से ही हो सकता है।

इस प्रकार सुरक्षा परिषद् के अधिकार व्यापक व भूमिका बहुआयामी है। उसके बिना यू०एन० की किसी भी गतिविधि का संचालन नहीं हो सकता। वस्तुतः वह यू०एन० की जान है। उसके बिना हम यू०एन० की कल्पना ही नहीं कर सकते।

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